आम कहानियों की अपेक्षा अगर किसी कहानी में प्रभावी ढंग से समाज में पनप रही विद्रूपताओं का जिक्र हो तो मेरे ख्याल से उस कहानी की उम्र आम कहानियों की अपेक्षा ज़्यादा लंबी हो जाती है। अधिक समय तक ऐसी कहानियों को किसी ना किसी बात या बहाने के याद रखा जाता है। ऐसी ही कुछ कहानियों को पढ़ने का मुझे मौका मिला जब मैंने आज के समय की सशक्त कहानीकार आंकाक्षा पारे जी के कहानी संग्रह "पिघली हुई लड़की" पढ़ने के लिए उठाया।
जहाँ एक तरफ धाराप्रवाह भाषा से लैस उनकी कुछ कहानियाँ अपने अंत या ट्रीटमेंट को ले कर आपको हतप्रद करती हुई चौंकाती हैं तो वहीं दूसरी तरफ कुछ कहानियाँ आपके अंतर्मन को भीतर तक झकझकोरती हुई आपको गहनता से सोचने पर मजबूर करती हैं। उनकी किसी कहानी में अगाध प्रेम दिखाई पड़ता है तो किसी कहानी में समाज की विद्रूपताएँ हमें...हमारे हमारे मन मस्तिष्क पर चोट कर रही होती हैं।
इस संकलन की किसी कहानी में जहाँ उन्होनें किसी ऐसे व्यक्ति के साथ पत्रों के आदान प्रदान द्वारा पूरी कहानी का ताना बाना रचा है जो दरअसल असलियत के बजाय सिर्फ ख्यालों में ही मौजूद है। तो वहीं एक अन्य कहानी में नीम हकीमों और नयी तकनीक एवं गैजेटों से उनके दिन प्रतिदिन चौपट होते धंधे पर ठेठ कस्बाई अंदाज़ में करारी चोट की है
उनकी किसी कहानी में महानगरीय शहरों में एकाकी जीवन जी रहे वृद्धों एवं कामधंधे में व्यस्त नौकरीपेशा लोगों की दिक्कतों को भी एक अलग..मनोरंजज अंदाज में सुलझाने का प्रयास किया गया है।
"कायर व्यक्ति विश्वासघाती नहीं होता" इस बात की तस्दीक कर इसी संकलन की कहानी बताती है कि किस तरह से नायिका का डर...हिम्मत में बदल जाता है जब पति, समाज एवं ससुराल के अत्याचारों से प्रताड़ित कुछ युवतियाँ अपने अपने घरों से भाग कर सर छुपाने हेतु उससे मदद माँगती हैं तो तमाम आशंकाओं और डर के बावजूद भी अंत में वह अपनी माँ की तरह हिम्मत कर उन्हें आश्रय देने का मन बना लेती है।
इस संकलन की एक कहानी सरकारी दफ़्तरों एवं रेलवे में पनपते भ्र्ष्टाचार की कलई खोलती है कि किस तरह ईमानदारी से काम करने की चाह रखने वाले ठेकेदारों को भी ऊपर से नीचे तक...महकमे के अधिकारियों एवं यूनियन लीडरों द्वारा शाब्दिक एवं आर्थिक रूप से प्रताड़ित किया जाता है। उसके बढ़िया काम में भी नुक्स एवं कमी निकाल कर...उसे नुकसान पहुँचा कर घूस देने के लिए इस हद तक बाध्य किया जाता है कि वह काम धंधा सब बंद करने तक की सोचने लगता है।
"लड़कियाँ... लड़कों से किसी भी मामले में कमज़ोर नहीं" इस बात की तस्दीक करती हुई इस संकलन एक कहानी में आत्मनिर्भरता की चाहत में मोटरसाइकिल सीख रही कुछ गरीब घरों की नौकरीपेशा लड़कियाँ, उन्हें परेशान करने वाले लड़कों को इस तरह मुंहतोड़ जवाब देती हैं कि सब देखते रह जाते हैं।
इस संकलन की एक अन्य कहानी बहुत ही अलग..रोचक अंदाज़ में इस सत्य से पर्दा उठाती है कि जीवन में कभी भी सब कुछ आपके मन मुताबिक नहीं होता। कहीं ना कहीं...किसी ना किसी रूप में आपको समझौता करना ही पड़ता है। समझौता ना करने वालों या ना झुकने वालों को अक्सर टूटना या फिर लेफ्टओवर बन खड़े रह जाना पड़ता है।
इस संकलन की एक दूसरी कहानी में किसी की चाह में भीतर तक डूबा एक युवक आगे कदम बढ़ाना तो चाहता है मगर दिलेरी नहीं बल्कि थोड़ी हिचकिचाहट के साथ क्योंकि वह अपनी ऊँची और उसकी नीची जाति को ले कर थोड़ा पशोपेश मे है।
इसी संकलन की एक कहानी जहाँ अपने अलग ट्रीटमेंट की वजह से ध्यान आकर्षित करती है। जिसमें परिचितों/रिश्तेदारों द्वारा बलात्कार या फिर एसिड अटैक की मार झेल चुकी कुछ युवतियाँ जो अब मर कर मृत आत्माओं में तब्दील हो चुकी हैं, के द्वारा उनकी व्यथा का जिक्र तथा ऐसी घटनाओं की आँच पर अपनी रोटियों को सेंकने की चाह रखने वाले मतलब परस्त लोगों को ले कर कुछ अलग अलग दृश्य उत्पन्न किए गए हैं। तो वहीं एक कहानी हमारे समाज के विधवा, तलाकशुदा एवं बिनब्याही माओं के साथ किए जाने वाले व्यवहार को ले कर है कि वह इन्हें सम्मान की नज़र से नहीं देखता जबकि इसमें आमतौर पर उनकी कोई ग़लती नहीं होती।
"सबको जीने के समान हक तथा अवसर" इस बात की गवाह बनती यह कहानी बताती है कि...बदलते समय के साथ अब तस्वीर बदल रही है।
एक रोचक अंदाज़ में लिखी गयी एक अन्य कहानी अपने कथन के ज़रिए सीख देती है कि...
अपनी कमियों को अक्सर हम सब औरों के सामने बताने से या लाने से कतराते हैं। ऐसे में हर समय हमें हमारे वजूद..हमारी असलियत को छुपा..एक भले से दिखने वाले आकर्षक मुखौटे के पीछे छिपना पड़ता है। ऐसे में अगर हम अपने डर..अपनी कमी पर काबू पा लेते हैं और अपना असल..अपना मूल सब पर उजागर कर देते हैं, तब ऐसा कोई भी डर नहीं होता जो हमको डरा सके।
इस संकलन की एक अन्य कहानी में अपनी सहेली पर एसिड अटैक की गवाह रही एक युवती को उसके घरवाले ही केस में गवाही ना देने के लिए मजबूर करते हैं। ऐसे में बरसों बाद उन सहेलियों की जब मुलाकात होती है तो क्या तब भी उनके रिश्ते पहले की तरह प्रगाढ़ रह पाते हैं?
यूँ तो इस पूरे कहानी संकलन को ही संग्रहणीय की कैटेगरी में आराम से रखा जा सकता है मगर फिर भी इस संकलन की कुछ कहानियाँ मुझे बेहद पसंद आई जिनका जिक्र मैं यहाँ.. अपनी इस पाठकीय समीक्षा में करना चाहूँगा। उनके नाम इस प्रकार हैं:
* कुछ इश्क था, कुछ हम थे, कुछ थी यायावरी
* नीम हकीम
* एम ई एक्सप्रेस
* ठेकेदार की आत्मकथा
* लेफ़्टओवर
* हर शाख को हरियाली का हक है
* तुम्हारे जवाब के इंतज़ार में
* पिघली हुई लड़की
125 पृष्ठीय इस उम्दा कहानी संकलन के पेपरबैक संस्करण को छापा है राजपाल एन्ड सन्ज़ ने और इसका मूल्य है ₹175/- जो कि किताब की क्वालिटी एवं कंटैंट को देखते हुए बहुत ही जायज़ है। आने वाले उज्ज्वल भविष्य के लिए लेखिका तथा प्रकाशक को बहुत बहुत शुभकामनाएं।