is riste ko kya naam du - 4 in Hindi Fiction Stories by Kalpana Sahoo books and stories PDF | इस रिश्ते को क्या नाम दूँ ? - 4

Featured Books
Categories
Share

इस रिश्ते को क्या नाम दूँ ? - 4

 

       सब केहते हैं प्यार जीन्देगी में एकबार होती है, पर में कहूँगीं प्यार बारबार भी हो सकती है । क्युंकी हमको जो अच्छा लगता है हम उससे जुड जाते हैं । यही तो प्यार है और क्या ? प्यार कोई चीज नहीं है, वो एक येहेसास् है । उसे रोकना नामुमकिन् है । मगर हम गलत लोगों से दिल लगा लेते हैं । 

      अबतक आप पढे हैं की स्रुती और दिपक् खुद confuse है इस रिस्ते को लेकर । ना उन्हे लगता है की वो दोनो सीफ् दोस्त है, नाही दोस्ती से उपर और कुछ है । फिर भी एक दुसरे से जुडे रेहने की कोसीस करते हैं । अब आगे बढते हैं ।

       दीपक् एक dance teacher के साथ साथ एक school teacher भी था इसलिए उसको समय का थोडा अभाब था । फिर भी उसको जब भी बक्त मिलता था वो स्रुती के साथ ढेर सारे बाते करता था । हर बक्त मजाक मस्ती चल रहा था उनकी बीच में । 

      एक दिन उनके बीच में झगडा हुआ इसी बक्त को लेकर । फिर वो दोनों बात करना ही बन्द करदीये । 

             after 5days........

      दीपक् स्रुती को sms भेजता है good morning. स्रुती जबाब दि very good morning. दीपक् फिर से sms कीया have a good day. स्रुती जबाब देती है मेरी सुबह अच्छी हो या बुरा इससे तुम्हे क्या ? उसके बाद वो net off कर देती
 है ।

     तभी कुछ देर बाद दीपक् का call आता है । स्रुती देखकर खुस हो जाती है, पर call recive नहीं करती है । फिरसे दीपक् call करता है । इसबार भी call उठाया नहीं स्रुतीने । थोडी देर बाद फिर से call आयी तो झट् से phone उठालिया और बाते करने लगी ।
        स्रुती :- hello. 

        दीपक् :- तुझे नहीं दिखता क्या में call कर रहा हुं ?

       स्रुती :- हाँ दिखता है, पर मेने सोचा की सायद गलती से phone लग गया होगा ।
   
       दीपक् :- अब क्या पता किया तुने ?

        स्रुती :- यही की ये call मेरे लिये ही
थी ।
       दीपक् :- अब बात करें ?

         स्रुती :- हाँ बोलो ।

       दीपक् :- तुझे कुछ नहीं बोलना है ? 

       स्रुती :- नहीं आज में सुनुगीं, तुम बोलो ।

       दीपक्:-  वैसे भी तु कब क्या बोल रही थी जो आज बोलोगी ।

       स्रुती:- सब पता है फिर भी पुछ रहे हो अच्छा है ।

       दीपक् :- आच्छा ठीक् है में तुम्हे कुछ पुछुगीं तुम उसकी जबाब सीफ् हाँ या नाँ में देना, ok.

        स्रुती :- ok.

       दीपक् :- तु मुझे प्यार करती है ?

       स्रुती :- यैसा क्युं ?

       दीपक् :- सबाल मत कर । सिफ् जबाब दे हाँ या नाँ ?

       स्रुती :- देखो यार जब खुदको पता नहीं है, तो में तुम्हे कैसे बताऊँगीं ?

       दीपक् :- तु मुझे प्यार करेगी ?

         स्रुती :- पता नहीं ।

        दीपक् :- तो क्या पता है तुझे ?

       स्रुती :- एक बात बोलुँ ?

         दीपक्:- हाँ बोल ।

       स्रुती :- पता है में नहीं जानती हुं की ये प्यार क्या है, और क्युं होती है ? पर एक सबाल है, क्या हम प्यार के बिना नहीं रेह सकते हैं ?

       दीपक् :- तु धोखा खायी है क्या ? नहीं मैंने भी खाया है ।

       स्रुती :- हाँ ! पर मेरी सच्ची थी और उसका दिखाबा ।

       दीपक् :- क्या हुआ है तेरी life में बतायेगी मुझे ?

      स्रुती :- सच कहुँ तो हाँ बताना चाहती हुं, पर डर लगती है । कहीं तुम मेरी कमजोरी का फायेदा तो नहीं उठाउगे इसलिए !

      दीपक् :- आरे नहीं रे जो खुद घायल है वो दुसरों को क्या घायल करेगा ?

       स्रुती :- ठीक् है ।

      अब स्रुती अपनी अतीत की पह्नों को खोलने की तेयारी कर रही थी । अपनी अन्दर हीम्मत जुटायी हाँ में आज किसीको अपना तकलीफ बतादुं सायद थोडी हलका लगे । जोर् से सासं ली और खुदको प्रस्तुत किया ।

        
          To be continue.......