VIBHISHIKA in Hindi Classic Stories by rajendra shrivastava books and stories PDF | विभीषिका

Featured Books
Categories
Share

विभीषिका

लघु-कथा--

विभीषिका

--राजेन्‍द्र कुमार श्रीवास्‍तव,

संतोषजनक आवश्‍यक कार्य निबटाकर लौट रहे अपने व्‍हीकल पर सामान्‍य रफ्तार से आ रहे पिता-पुत्र हाइवे के दोनों और घनी हरियाली के मनमोहक प्रभाव से अपने आपको और खुशनुमा बना रहे थे; कोयल की कूह्कू....कूह्कू की स्‍वरलहरी सोने में सुहागा घोल रही है। पूरा परिवेश मादकतायुक्‍त शुरूर सांसों में मिश्री की तरह समा रहा है।

....रोड पर गाडि़यों का रेलापेला तथा जनसमूह आश्‍चर्य चकित, संदेह में इधर-उधर डोलता प्रतीत हो रहा है।....

‘’क्‍या हुआ होगा!‘’

‘’यही कोई एक्‍सीडेण्‍ट लगता है।‘’

‘’मगर ऐसा अन्‍देशा तो....’’

पिता ने कुछ शंका व्‍यक्‍त की, ‘’कुछ और कारण है, भीड़ का!‘’

पुत्र ने भी समर्थन किया, ‘’हो सकता है।‘’ उसने मोटरवाईक की रफ्तार बढ़ाई, ‘’अभी तो पहुँचे जाते हैं!’’

ऐतिहासिक नदी है।

‘’सभी का ध्‍यान ब्रिज पर है।‘’ पिता ने कहा, ‘’वहीं कुछ गड़बड़ है!’’

पुत्र मोटरवाईक रोकने हेतु जगह देखने लगा।

पिता इशारा करने लगा, ‘’इधर-उघर एक तरफ खड़ी कर दे।‘’ कुछ आश्‍वश्‍त होकर, गाड़ी से उतरते हुये, ‘’हॉं ठीक है! यहीं सुरक्षित रहेगी।‘’ दोनों भीड़ चीरकर आगे घुसे.....

.......यहॉं तो माजरा ही कुछ और है नदी ओवरफ्लो बह रही है। कुछ अति साहसी लोग बहते हुये जलधारा में से उसपार जाने के लिये ब्रिज पार कर रहे हैं। कुछ हिचकिचा रहे हैं। कुछ प्रोत्‍साहित कर रहे हैं, पानी कम है निकल जायेंगे आसानी से! ऊपर कहॉं नदी के मैदानी जगह में बारिष हुई होगी, उसी का पानी लगता है। थोड़ी देर में उतर जायेगा। जितने मुँह उतनी बातें। ब्रिज के दोनों किनारों पर, कोलाहल सा मचा हुआ था। किसी के कुछ समझ में नहीं आ रहा था कौन क्‍या कह रहा है।

इसी शोर-गुल में वे पिता-पुत्र अपने कश्‍माकश में थे। दोनों सहमत हुये, क्‍यों ना पूर्ण सावधानी व सुरक्षा के साथ ब्रिज पार किया जाय, धीरे-धीरे। सारी सम्‍भावनाओं को अपने अनुकूल मेहसूस करके, चल दिये ब्रिज मिशन पार को, इम्‍पलीमेन्‍ट करने।

अनेक लोगों ने, आगाह किया, समझाया, रूकने का आग्रह किया। अनेकों तरीकों से, अपनी जिद छोड़ने का अनुरोध किया। मगर पिता-पुत्र कहॉं मानने वाले थे। उनको तो आत्‍मविश्‍वास हो गया था कि बहुत ही आसानी से पार लग जायेंगे!

हुआ भी यही बड़ी सुविधापूर्वक आधे ब्रिज तक तो खुशी-खुशी पहुँच गये, मगर नदी में ऊपर काफी दूरी पर मूसलाधर या बादल फट्ट चुका था, जिसकी विशाल जलराशि तीव्रगति से बहती तूफान की तरह कलक्‍वलित करती हुई लहरें गरजती, उछलती विध्‍वन्‍सकारी आपदा का रूप लेकर भयानक ध्‍वनी का अट्टहास करती हुई। सब कुछ अपने साथ बहा ले गई, अथाह गहराईयों में।

♥♥♥ इति ♥♥♥