Divyang in Hindi Short Stories by Anil Patel_Bunny books and stories PDF | दिव्यांग

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दिव्यांग

बहुत ही बड़े शिवजी के मंदिर के बाहर भीड़ जमा हो गई थी। सब लोग कुतूहलवश जानने की कोशिश में थे कि आखिर वहां हुआ क्या था।
“आप को गलतफहमी हुई है बहन जी!”
“तू खुद गलत काम कर रहा है और मुझे गलत बोल रहा है? वाह उल्टा चोर कोतवाल को डांटे।”
“बहन जी मैं आपको गलत नहीं कह रहा हूं मैं तो बस आपको ये समझाने की कोशिश कर रहा हूं कि आप मुझे गलत समझ रही है।”
“क्या हुआ बहन जी? क्या दिक्कत है?” वहां पे खड़े एक सज्जन पुरुष ने बहन जी से पूछा।
जवाब में उस महिला ने कहा,
“मैं हर सोमवार यहां शिवजी के दर्शन के लिए आती हूं, मेरे पति बैंक में मैनेजर है। कुछ दिनों पहले ही उनका तबादला यहां पर हुआ है। हम करीब 5 या 6 सोमवार से यहां पर दर्शन करने आते है, हमारा घर यहां से 2 या 3 किलोमीटर की दूरी पर ही है। हम जब भी यहां पे दर्शन करते है, उसके बाद हम किसी ना किसी जरूरतमंद लोगों की मदद करते है। इस लड़के को भी हम खाने के लिए या फिर कुछ पैसे दे देते थे।”
“यह लड़का तो यहां शायद एक साल से भीख मांग रहा है। इसने आप के साथ कोई गुस्ताखी की क्या?” उन सज्जन पुरुष ने पूछा।
“नहीं गुस्ताखी तो नहीं की है, पर…”
“पर क्या, बहन जी?”
“मैंने जब इस लड़के पर गौर फरमाया तो मुझे मालूम हुआ कि ये दरअसल में अंधा नहीं है। ये बस अंधे होने की एक्टिंग कर रहा है।”
“नहीं ये सच नहीं है।” उस लड़के ने कहा।
“ये आप कैसे कह सकती है?” सज्जन पुरुष ने कहा।
“मैं हर सोमवार को इस लड़के को 5 रुपये देती थी, पर आज मेरे पास 5 रुपये नहीं थे तो मैंने इससे कहा कि मेरे पास 50 की नोट है।”
भीड़ के सभी लोग उस महिला की बातें सुन रहे थे।
“फिर क्या हुआ बहन जी?”
“मैंने अपने पर्स में देखा तो मेरे पास 10 की नोट थी, मैंने इस लड़के को वही दे दिया और इसको कहा कि मेरे बाकी के पैसे मुझे वापिस दे। तब इसने मेरे आश्चर्य के बीच मुझे 5 रुपये वापिस किये जबकी मैंने इसे 50 की नोट दे रही हूं ऐसा कहा था। अगर ये सचमुच का अंधा है तो इसे कैसे मालूम कि मैंने इसे 10 की नोट दी या 50 की?” महिला ने गुस्से से कहा।
वहां पर खड़े सभी लोग दंग रह गए, कुछ तो वहीं पर उस लड़के को गाली देने लग गए, तो कुछ लोग उसे पुलिस के हवाले करने की बात करने लगे।
कई लोग इस पूरे घटनाक्रम का वीडियो रेकॉर्ड करने लगे और उसे लाइव फेसबुक पर शेयर भी करने लगे, तो कई लोग उसे मारकर सजा देने की बात भी करने लगे।
“पर बहन जी ये लोग अंधे है, इन लोगों में देखने की शक्ति शायद ना हो पर सूंघने और छूने से पहचानने की शक्ति कुछ ज़्यादा ही होती है।” उस सज्जन पुरुष ने कहा।
“भाई साहब में यही बात तो इनको समझाने की कोशिश कर रहा हूं पर ये मेरी बात सुन ही नहीं रही है।” उस अंधे लड़के ने कहा।
भीड़ में खड़े कुछ लोग उस लड़के को वहीं पर मारने लगे, भीड़ बेकाबू हो गई और गाली गलौच भी करने लगी। उस सज्जन पुरुष ने लोगो को समझाने की बहुत कोशिश की पर किसीने उसकी ना सुनी। उस लड़के का चश्मा भी निकल गया पर उसकी आँखें देखकर कोई भी ये नहीं कह सकता था कि वो अंधा है।
लोगो ने उसे पुलिस के हवाले करने की बात की, तो कुछ लोगो ने मौके का फायदा उठाकर उसके कटोरे में से पैसे चुरा लिए। जब तक उसकी आँखों में से खून बहना नहीं शुरू हुआ तब तक लोगो ने उसको खूब जमकर पीटा।
उसके आँखों से खून निकलते देख लोगो को ये एहसास हुआ कि उन लोगो से शायद ग़लती हो गई है। कुछ ही देर में भीड़ वहां से गायब हो गई। वो महिला भी तब तक वहां से जा चुकी थी।
उस सज्जन पुरुष ने तुरंत एम्बुलेंस बुलाई और उस लड़के को हॉस्पिटल में एडमिट करवाया। उसके पश्चात जब उस लड़के को होश आया तब उसने उस सज्जन पुरुष का शुक्रिया अदा किया।
“भाई साहब, मैं सच में अंधा हूं। बचपन से मैं अंधा नहीं था पर एक हादसे में मेरी दोनों आँखें नहीं रही। बचपन से ही अनाथ था, आँखों के जाने के बाद विकलांग भी हो गया। कैसे भी करके पैसे कमाता हूं। भीख मांगकर, जूते पॉलिश कर के, गाड़ियां साफ कर के। अपना पेट तो भरता ही हूं पर मेरी छोटी बहन जो सिर्फ 2 साल की है उसका भी ध्यान रखता हूं ताकि वो मेरी तरह भीख ना मांगे।” उस अंधे लड़के ने कहा।
“बहन? वो अभी किधर है?” सज्जन पुरुष ने पूछा।
“वो घर पर होगी। सुबह में अपने पड़ोसियों के भरोसे उसे छोड़ जाता हूं। दरअसल वो मेरी सगी बहन नहीं है। मुझे वो मंदिर के सीढियो पर ही वो लावारिश मिली थी।”
वो सज्जन पुरुष उस लड़के को देखता ही रह गया, वो खुद अंधा हो कर भी एक लावारिश बच्ची की देखभाल कर रहा था और बदले में उसे क्या मिला?
“बेटा, तुम चिंता मत करो। मैं एक NGO में काम करता हूं, वहां से मैं तुम्हारी जो मदद कर पाऊंगा वो करूँगा। और हां अब अपने आप को विकलांग मत कहना, हमारे प्रधानमंत्री ने भी कहा है कि आप जैसे लोग विकलांग नहीं दिव्यांग है।”
“भाई साहब, हमें दिव्यांग कहो या विकलांग, या फिर और कोई नामों से हमें पुकार लो पर हमें इस समाज में जो इज्जत मिलनी चाहिए वो अगर नहीं मिली तो इसका फ़ायदा ही क्या?”
“सही कहा, यह बात तो हमारे समाज को समझनी पड़ेगी।”

✍️ Anil Patel (Bunny)