Leave in lockdown aur padoshi aatma - 3 in Hindi Moral Stories by Jitendra Shivhare books and stories PDF | लिव इन लॉकडाउन और पड़ोसी आत्मा - 3

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लिव इन लॉकडाउन और पड़ोसी आत्मा - 3

लिव इन लॉकडाउन और पड़ोसी आत्मा

जितेन्द्र शिवहरे

(3)

दरवाजे की डोर बैल बज रही थी। टीना ने मैजिक आई से झांक कर देखा। बाहर किराना सामान लेकर एक युवक खड़ा था। टीना ने दरवाजा खोल दिया।

"मैडम जी! ये आपका किराना सामान!" द्वार पर खड़े युवक ने टीना से कहा।

"हां लाईये। इधर एक तरफ रख दीजिये।" टीना ने उस युवक से कहा।

"धरम! बाहर तो आना जरा। किराना सामान आया है इसका पेयमेन्ट करना है।" टीना ने धरम को आवाज़ लगाई। धरम बेडरूम से बाहर आया।

"भाई ऑनलाइन पेयमेन्ट लेते हो न!" धरम ने किराने का सामान लेकर आये उस युवक से पुछा।

"हां सर! इस स्केन कर पेयमेन्ट कर दीजिए।" युवक ने अपने गले में लटके कार्ड को आगे बढ़ा दिया।

धरम ने अपने मोबाइल से उस कार्ड को स्केन कर पेयमेन्ट डन कर दिया।

वह युवक लौट गया।

"चार हजार रूपये का किराना सामान! देखे जरा! क्या-क्या है!" धरम ने अपने आप से कहा।

वह किराना सामान की थैलियों पर झुकने ही वाला था कि तब ही टीना ने उसे टोंका-

'हूंअंsss! पहले इन्हें सैनेटाइज करने दो।" टीना ने कहा।

"ओके। साॅरी।" धरम ने टीना से कहा।

टीना ने सैनेटाइजर स्प्रे किराना सामान की थैलियों पर छिड़काव कर दिया।

"अब इन्हें एक-एक कर उन डिब्बों में भरना है। दाल, चावल, शक्कर सभी के डिब्बें उठा लाओ।" टीना ने धरम से कहा।

"ओके मैम।" धरम ने टीना के कहने पर हां मी भरी।

किराना सामान व्यवस्थित रसोई घर में पहूंच चूका था।

दोपहर का वक्त हो रहा था। धरम आईने के सम्मुख खड़े होकर अपने सिर के बालों को सहला रहा था।

"कहां रह गया ये?" धरम स्वयं से कह रहा था। उसने बालकनी में जाकर नीचे झांका।

"क्या हुआ धरम? अरे! तुमने अब तक नहाया नहीं। खाना रेडी है।" टीना ने व्याकुल धरम से पुछा।

"देखो न! उस नाई जीवन को कब से फोन लगा रहा हूं। बाल कटवाने है। पिछले महिने तो टाइम पर आ गया था। अब तीन दिन से टाल रहा है।" धरम ने टीना से कहा।

"बस! इतनी सी बात! लाओ मैं काट देती हूं तुम्हारे बाल!" टीना ने धरम से कहा।

"क्या तुम?" धरम ने आश्चर्य से पुछा।

"और नहीं तो क्या? मैंने ब्यूटीशियन का कोर्स किया है।" टीना ने धरम से बताया।

"हां मगर! लेडिज और जेन्टस् लोगों के बालों में फर्क होता है।" धरम ने तर्क दिया।

"कोई फर्क नहीं होता। बाल तो बाल होते है। मैं तुम्हारे बाल बिल्कुल वैसे काट दूंगी जैस तुम्हें पसंद है।" टीना ने धरम से कहा।

"ठीक है! चलो! आज यह एक्सपेरीमेंट भी कर के देख लेते है।" धरम ने टीना को सहमती दी।

"तुम वहां बाहर बालकनी में जाकर बैठो। मैं तुम्हें हलाल करने के औजार लेकर आती हूं।" टीना ने धरम से मज़ाक किया।

"क्या कहा?" धरम ने पुछा।

"मेरा मतलब है की कैंची लेकर आती हूं।" टीना ने अपनी बात को सुधारते हुये कहा। उसके होठों पर मुस्कराहट तैर गयी।

धरम बालकनी में लगी कुर्सी पर बैठ गया। टीना अपने साथ कैंची और कंघी लेकर आई। उसने बालकनी की दिवार पर कुर्सी से कुछ ऊपर आईना टांग दिया।

"ये शर्ट उतारों। टीना ने धरम से कहा।

"अरे! मगर शर्ट क्यों उतारुं?" धरम ने कहा।

"अरे! बाल काटूंगी तो कटे बाल शर्ट में घुस जायेंगे।" टीना बोली।

"अंदर बनियान पहना हूं तब क्या उसे भी उतारू? क्योंकी बाल तो उसमें भी चले जायेंगे न?" धरम ने कटाक्ष किया।

"हां वह भी उतारो। अरे! अब मुझसे क्या शरमाना। चलो जल्दी करो। मुझे बहुत भूख लग रही है।" टीना ने कहा।

"तो पहले खाना खा लो !" धरम ने टीना से कहा।

"नहीं! दोनों साथ में खायेंगे। तुम बिना स्नान किये खाना खाओगे नहीं और उसके पहले तुम्हारे बाल काटने होंगे।" टीना ने बताया।

"ओके! ये लो बाबा!" कहते हुये धरम ने अपनी पहनी हुई शर्ट उतार दी। और उसके बाद बनियान भी। टीना धरम को देखकर मंद-मंद मुस्करा रही थी।

"एक बात सच्ची-सच्ची बताऊ धरम।" टीना ने कुर्सी पर बैठे धरम को टाॅवेल से ढकते हुये कहा। टीना ने वह टाॅवेल के दोनों सिरे धरम के गले में खौंस दिये।

"हां बोलो।" धरम ने पुछा। वह दिवार पर लगे आईने में अपनी तस्वीर देख रहा था।

"तुम्हारी बाॅडी बहुत अच्छी है।" टीना ने धरम से कहा।

"थैंक्यू!" धरम का जवाब था।

"मगर क्लीन नहीं है। मुझे क्लीन शेव पसंद है।" टीना ने कहा।

"अच्छा! मगर उस दिन तो तुम कह रही थी कि तुम्हें दाढ़ी-मुंछ बहुत पसंद है।" धरम ने कहा।

"हां कहा था मगर वो दाढ़ी मुंछ के बारे में था और अब में तुम्हारी सीने के विषय में कह रही हूं।" टीना ने बताया।

"क्या!" धरम चौंका।

"हां।" टीना ने कहा। टीना ने धरम के बाल काटने शुरू कर दिये थे।

"अरे! यार तुम्हारे लिए क्या अब अपन छाती भी साफ करा लूं।" धरम ने चिढ़ते हुये कहा।

"हां! क्यों नहीं कर सकते। सपाट सीने में तुम एक दम रितिक रोशन लगोगे।" टीना ने कहा।

वह धरम के बाल वैसे ही काटे रही थी जैसे वे पुर्व में थे।

"अरे मगर ये क्यूं?" धरम ने पुछा।

"डोन्ट वरी। यह भी मैं ही कर दुंगी। मगर आज नहीं कल।" देखो अब तुम्हारे बाल कैसे लग रहे है?" टीना धरम के बाल काट चूकी थी।

"अरे वाह! ये तो बिल्कुल मेरे पहले बालों की स्टाइल की ही तरह है। थैंक्स यार!" धरम ने कहा।

"यूं ही सूखा-सूखा थैंक यूं! हमारे अमेरिका में तो किस कर के थैंक्यू बोलते थे।" टीना ने धरम को छेड़ते हुये कहा।

"इसमें कौन सी बात है। लाओ मैं भी ऐसे ही थैंक्स कर देता है।" धरम ने अपनी दोनों बाहें टीना के सामने फैला दी। वह टीना की तरफ झुका ही था कि टीना शरमा गयी।

"अरे नहीं! मैं तो मज़ाक कर रही थी।" कहते हुये टीना अंदर भाग गयी। धरम हंसते हुये बाथरूम में नहाने चला गया।

धरम और टीना दोपहर का भोजन कर रहे थे। तभी बाहर से पुलिस के साइरन की तेज आवाज आने लगी। कुछ ही देर में वहां अपार्टमेंट में पुलिस की वैन आ खड़ी हुयी। धरम ने उठकर बालकनी से देखा।

"क्या बात है धरम? ये पुलिस क्यों आई है?"

टीना भी बालकनी में आ चूकी थी।

"पता नहीं! देखते है!" धरम ने कहा।

कुछ देर के बाद पुलिस धरम के ही फ्लैट से लगे फ्लैट नम्बर थीन सौ दो में आ पहूंची।

धरम ने अपने फ्लैट का दरवाजा खोलकर देखना चाहा। कुछ लोग भी वहां जमा थे। जिन्हे पुलिस सोशल डिस्टेन्सिंग का पालन करने की सीख दे रही थी। तीन सौ दो फ्लैट में अकेली रहने वाली निवेदिता ने फांसी लगाकर आत्महत्या कर ली थी। उसके हाथों में पुलिस को सुसाइट नोट भी मिला। जिसमें उसने अपने असफल प्रेम को आत्महत्या का कारण बताया। राज ने निवेदिता को प्यार में धोखा दिया था। राज के प्यार में पढ़कर निवेदिता अपना घर छोड़ आई थी। इंदैर आकर राज की हकीकत उसे पता चली। जब तक निवेदिता के पास रूपये थे वह निवेदिता से प्रेम का झुठा दिखावा करता रहा। मगर जैसे ही निवेदिता कंगाल हुई राज ने उसे अपने दिल से निकाल दिया। राज का यही तरीका था प्यार करने का। शर्मिन्दगी के मारे निवेदिता ने किराये के फ्लेट में ही फांसी लगाकर आत्महत्या कर ली।

पुलिस ने आसपास के फ्लेट में रहने वालों से पुछताछ की। धरम और टीना के भी बयान लिये जये। धरम और टीना निवेदिता को फ्लैट से आते-जाते देखा करते थे। मगर कभी उससे बात नहीं की। उन्हें निवेदिता के संबंध में जानकारी नहीं थी। लॉकडाउन में बहुत कम ही लोग घर से बाहर निकल रहे थे। यह भी कारण था की पड़ोसियो को निवेदिता के क्रियाकलापों के विषय में पता नहीं था। पुलिस ने निवेदिता की लाश को पोस्टमार्टम के लिए भेज दिया। साथ ही उस प्लबंर से आवश्यक पुछताछ कर उसे जाने दिया जिसने पुलिस को फोन कर निवेदिता के फांसी लगाने की सुचना दी थी। निवेदिता ने कल ही प्लम्बर को अपने बाथरूम का नल सुधरवाने के लिए कहा था। प्लबंर नीतीन ने अगले दिन उसके फ्लैट पर आने का कहा था। नीतीन जब यहां आया तब निवेदिता के फ्लैट का दरवाजा खुला था। जब वह अंदर गया तब उसने देखा की निवेदिता फांसी के फंदे पर झुल रही थी। उसने तुरंत पुलिस को इत्तला देना जरूरी समझा। पुलिस के आने तक नीतीन वहीं रूका रहा। फ्लेट के मालिक रामकिशन शर्मा को भी बुलाकर उनके बयान लिये गये। दो महिने पहले ही निवेदिता को उन्होंने ये फ्लेट भाड़े पर दिया था। वह रीवा की रहने वाली थी। रीवा में पुलिस ने निवेदिता के परिजनों को फोन पर सबकुछ बता दिया। तथा इंदौर आने की बात कही।

पुलिस वहां से जा चुकी थी। जाते-जाते पुलिस ने अलांउस किया की जब तक निवेदिता की आत्महत्या की गुत्थी सुलझ नहीं जाती, सभी फ्लैट रहवासी शहर छोड़कर बाहर न जाये। पुलिस को श़क था की निवेदिता ने फांसी नहीं लगाई अपितु उसे मारा गया है। क्योंकी उसके गले में रस्सी के निशान नहीं थे। उस पर रस्सी एक दम नई थी। लॉकडाउन में सभी दुकाने बंद थी फिर ये नई रस्सी कहा से आयी। सबसे बड़ी बात यह की निवेदिता जब फांसी पर झूल रही थी तब उसकी आंखें और जीभ बाहर नहीं थी। आमतौर पर फांसी लगाने वाले व्यक्ति की जीभ और आंखें बाहर की तरफ निकल आते है। इन सभी बातों के आधार पर पुलिस जांच कर रही थी।

"धरम! मुझे तो बहुत डर लग रहा है।" टीना ने धरम से कहि।

दोनों हाॅल में आकर बैठ गये थे।

"इसमें डरने की क्या है टीना?" धरम ने टीना पमसे पुछा।

"अरे वाह! डरने की बात क्यों नहीं है। निवेदिता ने फांसी लगाकर आत्महत्या की है। यह असामयिक मौत है। कहते है अकाल मौत में मरे हुये व्यक्ति की आत्मा भटकते रहती है। और आसपास वालों को परेशान करती है।" टीना ने समझाया।

"लेकिन भटकती आत्मा आसपास वालों को क्यों परेशान करेगी।" धरम ने पुछा।

"क्योंकी मरने के बाद वह असंतुष्ट आत्मा भुत बन जाती है। और भुत लोग तो सभी इंसानों के दुश्मन होते है।" टीना ने बताया।

"तुम्हें देखकर जरा भी नहीं लगता की तुम अमेरिका रिटर्न हो।" धरम ने हैरानी से पुछा।

"क्यों? तुम्हें ऐसा क्यों लगा?" टीना ने अगला प्रश्न किया।

"अरे! तुम इतनी पढ़ी-लिखी होकर भी भुत-प्रेतों पर विश्वास करती हो!" धरम ने कटाक्ष किया।

"हां! मुझे डर लगता है। क्योंकि मैं मानती हुं कि भुत-प्रेत होते है।" टीना बोली।

"क्यों! क्या तुमने कभी उन्हें देखा है?" धरम ने पुछा।

"तुम भगवान को मानते हो?" टीना ने पुछा।

"हां मानता हूं।" धरम ने जवाब दिया।

"क्या तुमने उन्हें कभी देखा है?" टीना ने पुनः प्रश्न पुछा।

"अss वो अsss वो!" धरम हकलाने लगा।

"बोलो! हकलाने क्यों लगे। अगर तुम अच्छी शक्तियों को मानते हो तो तुम्हें बुरी शक्तियों का अस्तित्व भी स्वीकारना पड़ेगा। यदि ईश्वर धरती पर आकर अपने भक्तों की मदद करते है, उनकी मन की मुरादें पुरी करते है तब ये भुत-प्रेत भी तो उन्हीं ईश्वर की रचना है। फिर हम इन्हें कैसे नकार सकते है।" टीना ने तर्क दिये।

"ओके बाबा! मैं समझ गया कि दुनिया में भुत होते है बस। अब खाना खाये।" धरम ने टीना की बात पर सहमति जताते हुये कहा।

"नहीं। मुझे भूख नहीं है। तुम खा लो।" कहते हुये टीना मोबाइल पर व्यस्त हो गयी।

"खैर! भूख तो मेरी भी अब नहीं रही।" कहते हुये धरम बाथरूम बेसिन पर हाथ धोने चला गया।

टीना अपने पिता से फोन पर बात करने लगी। उसने आज हुई घटना का ब्यौरा अपने पिता को बताया। विश्वनाथ ने टीना को हिम्मत बंधाई। और कहा कि जब तक धरम उसके पास है उसे डरने की कोई जरूरत नहीं है। फिर भी वह अगर घर आना चाहती है तो आ सकती है। मगर टीना को अपना वचन स्मरण आ गया जो उसे हर किमत पर पुरा करना था। उसने पिता विश्वनाथ से कहा कि वह ठीक है और वह अपना तय समय पुर्ण कर ही घर आयेगी। विश्वनाथ प्रसन्न थे। धरम के साथ रहकर उनकी डरपोक बेटी में अब हिम्मत आने लगी थी। ये उनके लिए अच्छे संकेत थे। उन्होंने धरम से भी बात की। विश्वनाथ यह जानकर बहुत खुश हुये कि उनकी बेटी ने खाना पकाना सीख लिया है।

धरम ने अपनी बहन श्वेता को बताया की उसके और टीना के बीच सबकुछ ठीक चल रहा है। यदि युं ही चलता रहा तो आने वाले समय में टीना शंकरदयाल की बहु बनकर ही रहेगी।

शाम का वक्त हो रहा था। टीना अंदर से डरी हुयी थी। उसे अब भी विश्वास नहीं हो रहा था कि निवेदिता मर चूकी है। उसकी आंखों के सामने अब भी निवेदिता का सफेद कपड़ों में लिपटा शव दिखाई दे रहा था। धरम उसकी मनः स्थिति भांप चूका था। वह समझ गया था आने वाले दो-तीन टीना पर भारी रहेंगे। लेकिन धीरे-धीरे वह इन सब से बाहर निकल ही आयेगी।

"मैं चाय बनाकर लाता हूं।" टीवी देख रहे धरम ने अचानक उठते हुये कहा। टीना भी टीवी देख रही थी।

"तुम रूको! मैं बनाकर लाती हूं।" टीना बोली।

धरम बैठकर टीवी देखने लगा। दिनों-दिन कोरोना संक्रमण में बेतहाशा वृद्धि हो रही थी। भारत में पचास हजार से अधिक केस सामने आये थे और लगभग दो हजार की जाने जा जूकी थी। इटली, स्पेन और ईरान के बाद कोरोना महामारी का सबसे अधिक प्रभाव अमेरिका पर पड़ा था। जहां लाखों की संख्या में कोरोना संक्रमित मरीज़ सामने आये थे। वही हजारों गंभीर मरीजों की प्रतिदिन मृत्यु हो रही थी।

धरम ने चैनल बदल दिया। उसने फिल्मी गीतों का चैनल लगा दिया। जहां पुराने सदाबहार नगमें प्रसारित हो रहे थे। धरम स्वंय भी अपने मुख से गीत गाकर वातावरण को हल्का-फुल्का बनाने का पुरा प्रयास कर रहा था। मगर टीना थी जो अब भी चुपचाप थी। यकायक उसने जोर से धरम को आवाज़ लगायी।

"धरम!" टीना चिखी।

टीना की चीख सुनकर धरम तुरंच किचन की तरफ भागा।

"क्या हुआ टीना?" धरम ने टीना से पुछा।

"धरम यहां कोई है!" टीना ने बताया।

"कोई है मतलब?" धरम ने पुनः पुछा।

"मतलब ये की निवेदिता का भुत यहां आया था!" टीना ने सहमते हुये कहा। उसने धरम के हाथ पकड़ रहे थे। वह उसके पीछे छिपना चाहती थी।

"क्या बकवास कर रही हो! टीना। निवेदिता यहां कैसे आ सकती है। वह मर चूकी है। और ये भुत-वुत कुछ नहीं होता समझी।" धरम ने टीना को समझाया।

मगर टीना मानने को तैयार नहीं थी।

"अच्छा ये बताओ! तुमने यहां देखा क्या! तुम किस बिनाह पर कह रही हो की निवेदिता यहां आई थी?" धरम ने अगला प्रश्न किया।

"धरम! मैं चाय बनाने जैसे ही किचन में आई मैंने देखा की चाय की तपेली पहले ही से गैस पर रखी है। गैस भी पहले ही से चालु है। तपेली में दुध और चाय पहले ही से घुली है। चाय गैस स्टोव्ह पर उबल रही थी। मुझे लगा धरम ने यहां मुझसे पहले आकर चाय गैस चुल्हें पर रख दी होगी। मुझे अब सिर्फ चाय छानकर लाना है।" टीना ने बताया।

"ये तुम क्या कह रही हो?" धरम ने आश्चर्य से पुछा।

"मैं रसोई घर में घुसा ही नहीं। फिर चाय कैसे बना सकता हूं।" धरम ने कहा।

"वही तो! मैं भी सोच रही थी।" टीना स्वयं हैरत में थी।

"फिर तुम चिखी क्यो?" धरम ने पुछा।

"वो जैसे ही मैंने चाय कप में छानने के लिए छलनी उठायी, छलनी मुझसे दुर जा रही थी। वह उड़ने लगी। फिर वह अपने-आप कप पर आकर बैठ गयी। फिर संडासी आई और उसने तपेली उठाकर कप में चाय उड़ेलना शुरू कर दी। चाय दोनों कप में छानी जा चूकी थी। अब वही दोनों कप टी ट्रे में आकर बैठ गये। मैंने उस ट्रे को अपने हाथों में लेना चाहा। मगर ट्रे मेरे हाथों से दुर यहां-वहां हवा में उड़ने लगी। मैंने प्रयास कर उसे पकड़ ही था की ट्रे नीजे जमीन में गिर गयी। चाय गर्म थी। और सीधे मेरे पैर पर आ गिरी। हिsssहिssss।" टीना हंसने लगी।

"ओहsss गाॅड। तुमने तो मुझे डरा ही दिया था।" धरम टीना की शरारत समझ चूका था।

"देखा। भुत-प्रेतो से डर तो तुम्हें भी लगता है। बस युं ही मर्द बने फिरते हो।" टीना ने मज़ाक में कहा।

"तुम्हारी ये मज़ाक करने की आदत भी न किसी दिन जान लेके जायेगी।" धरम ने कहा। वह दुसरी बार चाय बनाने।

"लाओ! मैं बना देती हूं।" टीना बोली।

"बिल्कुल नहीं। जाओ बाहर जाकर बैठो। मैं बरनाॅल लेकर आता हूं।"

टीना सोफे पर बैठी थी। धरम उसके पैरो पर बरनाॅल लगा रहा था। टीना की नज़रे धरम पर थी। धरम बिना उसे देखे अपना काम कर रहा था।

"क्या हुआ? ऐसे क्यों देख रही हो?" धरम ने पुछा।

"मैं कितनी लक्की हूं कि मुझे तुम्हारे साथ रहने का मौका मिला।" टिना बोली।

"और मैं कितना अनलक्की हूं?" धरम ने उठकर सोफे पर बैठते हुये कहा।

"क्या कहा?" टीना ने पुछा।

"कुछ नहीं! मैंने कहां कुछ कहा।" धरम ने कहा।

"इतनी भी नादान नहीं हूं मैं। सब समझती हूं। अब जैसे भी हो। तुम्हें एक साल तो मेरे साथ निकालना ही है?" टीना ने कहा।

"एक साल नहीं। दस महीनें। अब सिर्फ दस महिने रह गये है हमें।" धरम ने बताया

"ओहह! तो तुम एक-एक कर दिन गिन रहे हो। हां। ठीक है। मैं भी देखती हूं तुम्हारे ये दस महिने कैसे हंसी-खुशी निकलते है।" टीना बोली।

"मतलब की इससे भी बुरे दिन आने वाले है मेरे?" धरम ने मज़ाक किया।

"जी हां। अब देखना बच्चू! तुम्हें कैसे प्याज के आसूं रूलाती हूं।" टिना बोली।

"अरे! वो प्याज के आंसू नहीं वो खून के आंसू होते है।" धरम ने कहा।

"वो बाद में। पहले प्याज के आसूं तो सह लो। फिर वो भी मिलेगा। अब से सुबह शाम तुम्हें प्याज काटना होगा सब्जी के लिए।" टीना ने आदेश देते हुये कहा।

"नहीं! मैंने पहले ही कह दिया था कि मैं प्याज नहीं काटूंगा। मुझे प्याज से एलर्जी है?" धरम ने प्रार्थना की।

"वो जो भी हो। ये हमारा हुक्म है। अब से प्याज काटने का काम धरम हम तुम्हें सौंपते है। हुक्क की तामील हो।" नाटकीय अभिनय करते हुये टीना ने कहा

"जो हुक्क मेरे आका।" धरम कहते हुये किचन में प्याज काटने चला गया।

धरम प्याज काट रहा था। उसकी आंखों से झर्र-झर्र आसुं बह रहे थे। टीना प्रसन्न हो रही थी। उस यह देखकर आनंद आ रहा था। मगर ज्यादा समय तक वह धरम को ऐसे देख न सकी।

"लाओ। मैं काट देती हूं। तुम मुंह धोके आराम करो।" टीना ने धरम से कहा।

धरम खुश था। उसके प्रति टीना की यह चिंता धरम को अच्छी लगी। वह किचन से निकलकर बाथरूम में चला गया।

"धरम! किचन में आना जरा। मुझे लगता है गैस सिलेण्डर खत्म हो गया है?" टीना ने ऊंची आवाज लगायी।

धरम किचन की ओर भागा। उसने सिलेण्डर हिला-डुला के देखा। वह तो अच्छा खासा भरा हुआ था। अभी पन्द्रह दिन पहले ही तो नया भरा हुआ गैस सिलेण्डर लगाया था। उसने ध्यान से देखा तो पाया की गैस सिलेण्डर का स्वीच ही ऑफ था। धरम ने सिलेण्डर का स्वीच ऑन कर दिया। और गैस लाइटर की सहायता से गैस स्टोव्ह ऑन कर दिया। गैस पर सब्जी पक रही थी। दुसरे चूल्हें पर टीना रोटीयां सेंक रही थी। टीना को महान आश्चर्य हो रहा था कि जब उसने गैस सिलेण्डर का स्वीच ऑफ किया ही नहीं तब वह अपने-आप बंद कैसे हो गया। वह जानती थी की यदि वह धरम को इस संबंध मे बतायेगी तो निश्चित ही धरम इस बात का विश्वास न करते हुये उसी की कोई नयी शरारत समझेगा। उसे चिंता होने लगी। मगर उसने इसे मन का वहम समझकर खुद को समझा लिया।

धरम और टीना खाना खाने बैठे ही थे कि लाइट चली गयी। धरम ने मोबाइल का टार्च ऑन किया। टीना मोमबत्ती लेने अलमारी के पास पहूंची। उसने ड्राॅज खोला ही था की उसमें निवेदिता का चेहरा दिखाई दिया। उसकी चीख निकल गयी।

"ये क्या बचपना है टीना। तुम्हें अंधेरे में भी शरारत सुझ रही है।" धरम ने कहा।

टीना ने उसे बताया था कि ड्राॅज में उसे निवेदिता का सिर दिखाई दिया था। वह बड़ी भयानक दिखाई दे रही थी। मगर जब धरम ने अपने मोबाइल टार्च से ड्राॅज में देखा तब वहां कुछ नहीं था। पहले वह गैस सिलेण्डर का स्वतः बंद हो जाना और अब ड्राॅज में निवेदिता कि सिर का दिखाई देना। कहीं ये अशुभ संकेत तो नहीं थे। या फिर यह उस बात की पुष्टी कर रहे थे कि निवेदिता मरने के बाद भी यही कहीं है और वह टीना को परेशान करने उसी के फ्लेट में आ चूकी है।

टीना का सोच-सोच कर बुरा हाल था। उसने धरम को गैस सिलेण्डर वाली घटना भी बता दी। और कहा कि निवेदिता की आत्मा उनके घर में आ चूकी है। वह उन्हें छोड़ेगी नहीं। धरम हर तरह से टीना को समझा चुका था मगर टीना मानने को तैयार नहीं थी। कुछ देर के बाद लाइट आ गयी। धरम ने टीना को समझा बुझाकर खाना खाने के लिए मना लिया। दोनों एक बार फिर खाना खाने बैठ गये। टीना ने देखा कि उसके बनाये भोजन की मात्रा में कमी आ गयी है। जबकी उन्होंने अभी खाना शुरू भी नहीँ किया था। सब्जी, रोटी, चावल और दाल सभी कुछ थोडा-थोड़ा कम था। देखकर ऐसा लग रहा था की बिजली जाने और आने के पहले वहां कोई आकर खाना खा चूका था। या फिर कुछ खाना चोरी हो गया था। धरम भी यह देखकर आश्चर्य में डुब गया था। उसने घर के अंदर प्रत्येक कोने में जा-जाकर देखा। मगर कहीं किसी के होने की कोई संभावना नहीं दिखी। टीना को लगा बालकनी के उपर की छत पर कोई है। उसके हिलने-डुलने की आवाज भी आ रही थी। ये एक बिल्ली थी जिसने एक बड़े भारी चुहे का शिकार किया था। वह उसे ही खा रही थी। धरम ने लठ्ठ की सहायता से उसे वहां से भगा दिया। मगर अब भी किसी के कुछ खाने की आवाज़े आ रही थी। ये आवाज़ शायद फ्लैट की सीढ़ीयों से आ रही थी। धरम दबे पांव सीढ़ीयों से नीचे उतरने लगा। उसके पीछे-पीछे टीना भी आ रही था। यकायक किसी की परछाई दिखाई दी। टीना डर गयी। वह धरम को पुनः घर में लौटने का आग्रह कर रही थी। मगर धरम ने उसे हाथों के इशारें से चूपके-चूपके चलते रहने को कहा। रात गहरा चूकी थी। सीढ़ीयों पर लगा विद्युत बल्ब ऑन-ऑफ हो रहा था। जिसके कारण उस व्यक्ति की परछाई आती-जाती दिखाई दे रही थी। धरम उस परछाई के निकट पहूंच गया था। वह दांतो से लगातार कुछ चबाये जा रहा था। जिसकी आवाज से अनुमान हुआ कि वह कूछ न कुछ खा रहा था। धरम ने जाते ही उसे दबोच लिया।

"कौन हो तुम?" धरम ने उस आदमी से कहा।

"मुझे मारना नहीं साहब! बहुत जोरो की भूख लगी थी। आपके घर का दरवाजा खुला देखा तो अंदर घुसकर खाना चुरा लाया।" उस वृद्ध व्यक्ति ने धरम से प्रार्थना की।

"मगर तुमने चोरी क्यों की। तुम खाना मांग भी तो सकते थे।" धरम ने कहा।

"मेरी ऐसी हालत देखकर लोग मुझसे डर जाते है। मारकर भगा देते। सभी की चिंता है कि मैं उन्हें कोरोना की बीमारी न दे दूं। किसी ने खाना नहीं दिया साहब! तीन दिन से भुखा था। इसलिए मैंने आपके यहां से खाना चुराया है।आप चाहे तो मेरी तलाशी ले लो। मैंने खाने के अलावा कुछ भी चोरी नहीं किया है।" वृद्ध के स्वर करूणा से भरे थे।

"कोई बात बाबा। आप आईये हमारे साथ।" टीना ने कहा।

"नहीं बेटी! मेरा इतने भोजन में पेट भर गया है।" वृद्ध ने कहा।

"आप आईये तो सही।" धरम ने वृद्ध बाबा को अपने हाथों से उठाया। दोनों उसे फ्लैट के अंदर लेकर आये। धरम ने उसे बाथरूम में जाकर स्नान करने को कहा। वृद्ध डरा-सहमा नहाकर बाथरूम से निकला। धरम ने उसे अपना कुर्ता पायजामा पहनाया। और पुनः भोजन टेबल पर आमन्त्रित किया। वृद्ध ने बड़े दिनों के बाद छंककर भोजन किया। धरम ने उसे अपनी स्लीपर चप्पल और कुछ पैसे दिये। तब तक टीना टीफीन में शेष खाना पैक कर ले आयी।

"लो बाबा! ये अपने बच्चों के लिए है। और हां। तुम सुबह आ जाना। हम तुम्हारे लिए राशन निकालकर रखेंगे। उसे घर ले जाना।" टीना ने कहा।

"और कभी भी कोई समस्या हो तो बे-रोक टोक यहां आ जाना।" धरम ने कहा।

धरम उस वृद्ध बाबा को नीचे छोड़ने गया। ताकी गार्ड वृद्ध के आने-आने संबंध में कोई प्रश्न न करे।

"कुछ खाओगे धरम!" टीना ने पुछा। धरम उस वृद्ध व्यक्ति को नीचे छोड़कर अभी-अभी आया था।

"टीना! आज उस बाबा को खाना खिलाया तो अपना पेट भर गया।" धरम ने कहा।

"सही कहा धरम। आज मुझे भी भुख नही है।" टीना ने कहा।

"चलो आज दुध पीकर ही सो जाते है। दुध गर्म कर लाओ।" धरम ने कहा।

"ठीक है।" कहते हुये टीना किचन में चली गयी।

दुध पीकर धरम ने लाइट स्वीच ऑफ कर दिया। धरम और टीना बिस्तर पर सोने जा पहूंचे।

"धरम आज बिजली ऑन कर ही सोये तो।" टीना के चेहरे पर अब डर के भाव थे।

"कोई बात नहीं। ये लो लाइट का स्वीच ऑन कर देता हूं।" धरम ने स्वीच ऑन कर दिया।

टीना धरम के सीने पर अपना सिर रखकर सोयी थी। रात गहराती जा रही थी। धरम ने देखा टीना सो चूकी थी। उसने टीना को स्वयं से अलग कर कुछ दुर लेटा दिया। धरम स्वयं भी टीना की ओर पीठ कर सो गया।

रात के दो बज चूके थे। किचन से कुछ अजीब सी आवाजें आ रही थी। सुनकर लग रहा था किचन में कोई है जो वहां खड़े होकर कुछ न कुछ कर रहा था। चकला बेलन पर रोटी बेलने की आवाज़ से टीना की नींद खुल गयी। उसने घड़ी की तरफ देखा। फिर अपने पास सो रहे धरम को देखा। धरम का मुंह अब उसकी तरफ था। वह चाहती थी की धरम को जगा दूं ताकी वह देखकर आये की किचन में कौन है? मगर फिर उसने अकेले ही जाकर देखने की सोची। वह धीरे-धीरे किचन की ओर बढ़ रही थी। किचन से अब भी किसी के खाना पकाने की आवाज़ें आ रही थी। अभी-अभी सब्जी का झोंक दिया गया था। टीना खांसने लगी थी। उसने सुना की धरम भी खांस रहा था। टीना किचन के गेट के मुहाने पर आ खड़ी हुई। उसने जो देखा वह हैरान करने वाला था। कोई लड़की सलवार-सुट पहने हुये किचन में खाना बना रही है। उसकी पीठ टीना की और थी। टीना डरी सहमी कुछ आगे बढ़ी। वह उस लड़की से कुछ पुछना चाहती थी।

"सुनो! कौन हो तुम? यहां कैसे आयी? हमारे किचन में खाना कैसे बना रही रहो?" टीना एक के बाद एक प्रश्न कर रही थी। मगर वह लड़की कुछ नहीं बोली।

"तुमने सुना नहीं! मैं पुछ रही हूं कौन हो तुम?" टीना ने उस लड़की की पीठ को झंझोड़ते हुते कहा।

यह निवेदिता थी। उसे देखकर टीना का चेहरा सफेद पड़ गया। वह चिखना चाहती थी मगर उसे गले से आवाज ही नहीं निकल रही थी। वह डर के मारे कांप रही थी। उसके कदम पीछे की ओर चल पड़े थे।

"क्यों! अकेली खाना बनाकर खा लिया। मुझे पुछा नहीं। अब मैं तेरे किचन का सारा सामान खा जाऊंगी। और बाद में तुझे भी। हा हा हा।" निवेदिता दहाड़ रही थी। उसकी आवाज़ में दोहरी आवाज़ें सुनाई दे रही थी। टीना डरते- डरते हाॅल में आ चूकी थी। यहां से उसे अंदर बेडरूम में सोया हुआ धरम दिखाई दे रहा था। वह धरम को आवाज लगाना चाहती थी। मगर आवाज़ थी की उसके गले से निकल ही नहीं पा रही थी।

निवेदिता उसके एक दम करीब आ चूकी थी। उसकी आंखें बड़ी-बड़ी थी। वह अपनी शैतानी मुस्कुराहट से टीना को अपनी ओर खींचे जा रही थी। यकायक टीना पीछे की बजाये आगे चलने लगी। उसके कदम उसकी इच्छानुसार नहीं चल रहे थे। यह निवेदिता के गुलाम बन चूके थे। निवेदिता टीना को अपने करीब लाने में धीरे-धीरे सफल होती जा रही थी। जब टीना निवेदिता के एकदम नजदीक आ गयी तब निवेदिता ने टीना का गला पकड़ लिया। टीना का दम घुट रहा था। वह निवेदिता के हाथ को अपने दोनों हाथों से पकड़ कर जोर लगा रही थी। मगर निवेदिता की पकड़ बहुत ही मजबुत थी। उसकी पकड़ टीना के इस छोटे से प्रहार से छुटने वाली नहीं थी। निवेदिता ने टीना का गला पकड़कर उसे आसमान की ओर लहरा दिया। टीना छटपटा रही थी। आज उसकी जान को बहुत बड़ा खतरा था। निवेदिता उसे जिंदा छोड़ना नहीं चाहती थी।

"टीना! टीना! टीना! क्या हुआ।" धरम ने टीना हे कहा।

धरम ने देखा की टीना नींद में ही बिस्तर पर छट पटा रही है।

"उठो टीना! तुम्हें क्या हुआ है?" धरम ने टीना को बिस्तर से जगाया।

"आज तो धरम ने आकर तुझे बचा लिया। लेकिन ज्तादा दिनों तक तु मुझसे बच नहीं सकेगी।" निवेदिता टीना से कह रही थी।

टीना की एकदम आंख खुल गयी। धरम उसके पास ही बैठा था। उसे यकिन नहीं हो रहा था कि वह नींद में थी। क्योंकि उसके गले में अब भी दर्द हो रहा था।

"तुम ठीक हो?" धरम ने टीना से पुछा।

"हां धरम।" कहते हुते वह धरम के गले लग गयी। उसके आसूं बता रहे थे की उसने कोई बहुत बड़ा बुरा सपना देखा है।

"मैंने सपने में निवेदिता को देखा धरम!" टीना ने धरम को बताया।

"ओके! होता है। कल ही निवेदिता की मौत हुई है और दिन भर तुम उसके बारे में सोचती रही। वही तुम्हारे सपने में आ गयी होगी।" धरम ने कहा। वह टीना को पीठ पर थपकी देकर सहला रहा था।

"मगर वो जिंदा है धरम!" टीना ने कहा।

"यह तुम्हारा वहम है टीना। वह मर चूकी है। कल हम दोनों ने उसकी लाश को अपनी आंखों से देखा था।" धरम ने स्पष्ट किया।

"हां मगर! मुझे लगता है वह लौट आयी है। वर्ना वो हमारे किचन में क्यों आती?" टीना ने कहा।

"किचन में?" धरम ने आश्चर्य से पुछा।

"हां वह रात में हमारे किचन में आती थी। निवेदिता वहां खाना बना रही थी।" टीना ने धरम को बताया।