Dastango - 6 - last part in Hindi Moral Stories by Priyamvad books and stories PDF | दास्तानगो - 6 - अंतिम भाग

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दास्तानगो - 6 - अंतिम भाग

दास्तानगो

प्रियंवद

एटिक में अब अंधेरा था। बुढ़िया ने चरखे पर काता हुआ सूत समेटना शुरू कर दिया था।

अंधेरे में ही वामगुल स्टूल पर बैठ गया। पुल अभी बची हुयी चांदनी में था। दूरबीन से देखा उसने। सिपाहियों के द्घोड़े़ पहुंच चुके थे। द्घोड़ों के खुरों के नीचे इंसानी शरीर थे। चीखते हुए वे इधर-उधर भाग रहे थे। भागते हुए भी रुककर चावल बटोर रहे थे। सवारों ने कमर में पफंसे चाबुक निकालकर पफटकारना शुरू कर दिया था। हर चाबुक उनकी नंगी पीठों पर खून की एक लकीर छोड़ रहा था। पुल के नीचे से कुछ आदमी ऊपर चढ़ आए। उनमें से एक के हाथ में लम्बा चाकू था। उसने चाकू तानकर सिपाही पर पफेंका। चाकू की मूठ सिपाही के चेहरे पर लगी। उसने बन्दूक की नली द्घुमा कर गोली चला दी। चाकू पफेंकने वाला हवा में उछला पिफर तड़पता हुआ गिर पड़ा। उसके गिरते ही वे सब भागने लगे। मरे हुए द्घोड़ों की लाशों को छलांगों में पार करते हुए वे चारों ओर भाग रहे थे। सिपाही पुल के एक सिरे से दूसरे सिरे तक द्घोड़े दौड़ा रहे थे। वे लोग भाग कर पुल के बाहर एक ओर खड़े हो जाते... पिफर झुंड में लौटते... पिफर भागते। थोड़ी दूर जाकर उन्होंने सिपाहियों पर पत्थर पफेंकने शुरू कर दिए। कुछ पिफर आधे पुल तक आ गए। एक ने उछल कर द्घोड़े से सिपाही को खींच लिया। वे उसे द्घसीट कर पुल के बाहर झाड़ी के पीछे ले गए। उस सिपाही के द्घसीटे जाते ही वे सब पूरी ताकत से सिपाहियों पर टूट पड़े। आगे के तीन आदमी गोलियाँ खाकर गिर पड़े। पर बाकी दूसरे द्घोड़ों तक पहुँच गए थे। उन्होंने गर्दन पकड़ कर द्घोड़ों को बैठा दिया। वे सिपाही को भी खींचने लगे। अब अपफसर आगे आया। उसने हाथ ऊपर उठाया। सारे सिपाहियों ने बन्दूकों की नली खोल दी। दो लड़के और हवा में उछले पिफर गिर पड़े। वे सब भागने लगे। इस बार सिपाहियों ने पुल की दोनों दिशाओं में द्घोड़े दौड़ा दिए। उनके चाबुक हवा में लहरा रहे थे। पीछे के सिपाही हवा में या पिफर उनके पैरों पर गोली चला रहे थे। वे सब चीखते हुए पुल से नीचे कूदने लगे। पेड़ों के पीछे भाग गए। उनकी चीखें धीमी होती हुयी चिड़ियों की आवाजों की तरह रह गयीं। कुछ ही देर में पुल उनसे खाली हो गया।

अब पुल पर मरे हुए दोनों द्घोड़े पड़े थे। पांच आदमियों की लाशें भी थीं। उनका बहता खून था। चावल के दाने थे। बेहोश पड़ा गाड़ी वाला लड़का था। लाशों को ललचायी आँखों से देखते और खुशी से चीखते हुए, पुल की टूटी मुँडेरों पर बैठते परिन्दे थे। खत्म हो रही चाँदनी थी...बारूद की गंध् थी।

वाम ने देखा। मुँडेर पर कोहनियाँ टिकाए अपफसर पुल को देख रहा था। वाम की तरपफ उसकी पीठ थी। कुछ देर बाद कोहनियाँ हटा कर वह सीधा खड़ा हो गया। उसने चारों ओर देखा, पिफर द्घूमा और सर उठा कर सीधे एटिक की तरपफ देखा। दूरबीन में वाम ने उसकी आँखें देखीं। वे बहुत पास थीं बेहद ठंडी और भावविहीन होकर वामगुल को देख रही थीं।

वामगुल दूरबीन से उठ गया। एक टूटी कुर्सी को उसने सीधा किया। मेज की धूल को बाँह से पोछकर उसकी दराज से कुछ पुराने कागज निकाले। कुर्सी पर बैठकर उसने दराज से ही एक कलम निकाली और कागजों पर झुक गया।

लिखने के बाद वामगुल जब उठा तब तक भोर की पहली रोशनी आकाश के एक कोने में दिखने लगी थी। समुद्र में छोटी नावें निकल गयी थीं। उसने सब कागज समेटे और हुक्के के नीचे दबाकर रख दिए। वापस दूरबीन पर आया वह। स्टूल पर बैठकर उसने आँखें दूरबीन पर चिपका दीं। पुल पर अब कुछ नहीं था। चमकदार सुबह के नीचे शान्त, खाली और स्वच्छ पुल दिख रहा था। उसके दोनों सिरों पर एक सिपाही खड़ा था। पुल के ऊपर से दो बकरियाँ और एक बूढ़ा गुजर रहे थे।

वाम स्टूल से उठ गया। उसने दूरबीन खींच कर दूसरी खिड़की पर रखी। झुककर दूरबीन में देखा। डूप्ले की मूर्ति पर रोशनी की पहली किरण आ गयी थी। उसके आगे चौड़ी सड़क पर समुद्र में उगता सूरज देखने के लिए, नए शादीशुदा जोड़े चट्टानों की आड़ में बैठे एक दूसरे को चूम रहे थे। चट्टानों से चिपके केकड़े वापस समुद्र में लौट चुके थे। सड़क पर गाड़ियां दिखने लगी थीं। वाम ने दूरबीन को द्घरों की ओर द्घुमाया। उसे नीले रंग वाली खिड़की दिखायी दी। वह औरत खिड़की पर झुकी अपने नाखून रंग रही थी।

वाम उठ गया। एटिक की सीढ़ियाँ उतर कर नीचे आया। पहले लड़की के कमरे में आया। मेज पर झींगे पड़े थे। वह बेसुध सो रही थी। उसके द्घुंद्घराले बाल तकिये पर बिखरे थे। बिना कोई आवाज किए छोटे दरवाजे को पार करके वह पाकुड़ के कमरे में आया। पाकुड़ भी सो रहा था। उसकी औरत सो रही थी। दोनों के बीच में एक छोटा बच्चा लेटा था। दो मुर्गियाँ टोकरी के अन्दर दुबकी थीं। सिरहाने स्टूल पर उसके अमूल्य शंखों वाली पेटी रखी थी।

वामगुल बाहर निकल आया। वह बड़े दस्तावेजी कमरे में आया। दोनों द्वारपालों के हाथ से उसने भाले निकाल लिए। एक भाला सोती हुयी लड़की के सिरहाने रख दिया। दूसरा पाकुड़ की सोती हुयी बीवी के पास। कमरे से बाहर बरामदे में आया वह। एक बार सर उठाकर उसने एटिक को देखा पिफर दरवाजे में बनी छोटी खिड़की खोल कर, बरामदे की सीढ़ियों पर बैठ गया।

तीसरे रेखांकन में तीन औरतें द्घर छोड़कर भाग रही थीं। उनके पीछे कटे हुए सर पड़े थे। भागती औरतों में सबसे आगे की औरत जवान थी। उसके बाएँ हाथ में छोटा बच्चा लटका हुआ था जिसे वह किसी तरह गिरने से बचाए थी। उसके दाएँ हाथ में दो मुर्गियाँ थीं। मुर्गियों को वह परों से दबोचे थी। उसके पीछे दूसरी औरत अपने कंधों पर थोड़े बड़े बच्चे को बैठाए थी। वह आगे की ओर थोड़ा झुकी हुयी थी। बच्चे को गिरने से बचाने के लिए उसके लटकते पंजों को हथेलियों से पकड़े थी। तीसरी औरत झुककर बिल्कुल दोहरी हो गयी थी। उसकी पीठ पर बड़ी गठरी थी। आगे की दो औरतों के चेहरे सापफ बने थे। उनमें भावविहीन सपाटता थी। बच्चों के चेहरों के नक्श नहीं थे। बस रेखाओं में उकेरी गयी आकृतियाँ थीं

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