सीमा पार के कैदी2
बाल उपन्यास
राजनारायण बोहरे
दतिया (म0प्र0)
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बाल जासूसों की एक संस्था बनाई गई थी, अजय और अभय उसके सक्रिय सदस्य थे। आपस में विचार करके अगले दिन उन्होंने अपने चीफ मिस्टर सिन्हा को सीमा पर गरीबों के साथ हो रहे अन्याय के बारे में लिखा और यह बताया कि वे दोनों गोपनीय रूप से ऐसे बे गुनाह लोगों के लिए कुछ करना चाहते हैं, कोई योजना बनाई जाये।
कुछ दिनों के बाद ही मिस्टर सिन्हा ने इन दोनों को दूसरे देश भेजने का प्रोग्राम बनाया और इनकी सुरक्षा के लिये केन्द्रीय खुफिया विभाग को पत्र लिखा। जहां से पता लगा कि विख्यात जासूस विक्रान्त भी किसी काम से पढ़ौसी देश जा रहे हैं, उनके साथ जाने के लिये अजय और अभय के नाम को मंजूरी दे दी गई । जल्दी ही इस तरह का पत्र भी अजय और अभय को मिल गया।
आदेश पाकर दोनों शैतानों को बड़ी प्रसन्नता हुई, उन्होने अपने पापा को बताया कि पढ़ौसी देश की जेलों में बंद भारतीयों की तलाश में जा रहे हैं जिसकी मंजूरी उनकी बाल जासूस संस्था ने दे दी है तो ठाकुर साहब बड़े दुःखी हुये कि, निरीह बच्चे दुश्मन के देश में कैसे भेजें ?
पपा को दुःखी देखकर अजय बोला- ‘‘ पापा। हम वहाँ अकेले नहीं जायेंगे, हमारी सुरक्षा के लिये विक्रान्त भी जा रहे हैं।’’
- ‘‘विक्रान्त !’’ विक्रान्त का नाम सुनकर ठाकुर साहब चौके !
- ‘‘हाँ ! विख्यात जासूस विक्रांत।’’
- ‘‘तो ठीक है।’’ भारत माँ के लाड़ले सपूत जासूस विक्रान्त से ठाकुर साहब भी परिचित थे। उसका नाम सुनते ही उनकी सारी चिंतायें दूर हो गई। वे पुनः बोले-
- लेकिन क्या विक्रान्त केवल इसीलिये वहाँ जा रहा है कि तुम लोगों की मदद करे़?
- नहीं। किसी दूसरे केस में वहाँ जा रहे होंगे। हाँ, सीमा पार करने तक हम साथ-साथ ही रहेंगे। पापा को खुश पाकर, वे लोग अपनी कसरत और हथियार आदि चलाने का अभ्यास करने लगे।
अन्त में वह दिन आ गया, जिस दिन दोनों को बिदा होना था।
विजय-नगर के रेलवे स्टेशन पर पापा उन्हें छोड़ने आये। फर्स्ट क्लास में अजय और अभय की शीट पहले से ही रिजर्व रख दी गई थी। दोनों उछलते कूदते ट्रेन में चढ़ गये और खिड़की के पास जाकर बैठ गये।
लम्बी सीटी मार कर जब ट्रेन चली, तो अजय ने देखा कि मम्मी की आँखों में आंसू छलकने लगे हैं। कैसे भी सुरक्षित हों पर आखिर दुश्मन के देश में अपने बेटे भेजते समय हर माँ का कलेजा पिघल उठता है।
बड़ी देर तक हाथ हिलाते हुये दोनों खिड़की के पास बैठे रहे।
काफी रात गये जयपुर स्टेशन पर ट्रेन रूकी।
फर्स्ट क्लास के कम्पार्टमेन्ट में आगे, एक बेहद लम्बा, बहुत खूबसूरत युवक खड़ा था। अजय ने पहचाना कि वही विक्रान्त था।
अजय ने पुकारा- ‘‘विक्रान्त अंकल।’’
विक्रान्त ने भी दोनों बच्चों को देख लिया था, यद्यपि वह पहले से उन दोनों को नहीं जानता था, मगर अपनी ओर बेतकल्लुफ होकर देखते और आवाज लगाते देखकर, वह समझ गया था।
इसके बाद तीनों उस होटल में पहुँचे, जहाँ कि इनके ठहरने का इंतजाम किया गया था।
खाने के बाद तीनों जन आमने सामने बैठ गये थे। विक्रान्त बोला- ‘‘ सबसे पहले यह बताओ कि आखिर ऐसे कठिन काम में तुम्हें क्यों भेजा जा रहा है ?’’
‘‘ बात यह है अंकल कि हम अभी बहुत छोटे हैं, किसी को शक भी नहीं होगा कि हम जासूसी भी कर सकते हैं और फिर हमारी संस्था का काम रहस्यमय रह सके, उसको हम लोग हल करने की कोशिश करें।’’ अजय ने समझाया।
‘‘यह तो समझ में आ गया, अब बताओ चलने का क्या प्रोग्राम है?’’
‘‘आप बड़े हैं, आप ही बताईये ।’’
मेरे अनुसार तो हम लोग रेत के मैदानों से चले। ऊंट पर अपना सफर पूरा करें, कैसा ख्याल है ? ’’ विक्रांत बोला ।
‘‘बहुत अच्छा अंकल। ’’अभय बोल उठा।
‘‘ हाँ एक और बात, अब आप दोनों मुझको अंकल-अंकल नहीं बोलेंगे। अजय एक्स है, राम है-बाय, और मैं हूँ-जेड। ठीक है।’’
‘‘ वाह जेड- बैरी गुड़ !’’ अजय प्रफुल्ल हो उठा।
इसके बाद विक्रान्त ने दोनों का एक-एक ट्रांसमीटर सेट दिये। जिनके द्वारा जरूरत पड़ने पर आपस में सम्पर्क किया जा सकता था। साथ ही उसमें ऐसी भी व्यवस्था भी थी, जिससे पास के अन्य किसी ट्रांसमीटर पर होने वाली बातें भी सुनी जा सकें।
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