Lahrata Chand - 3 in Hindi Moral Stories by Lata Tejeswar renuka books and stories PDF | लहराता चाँद - 3

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लहराता चाँद - 3

लहराता चाँद

लता तेजेश्वर 'रेणुका'

3

माथेरान से लौटने के बाद से संजय को रम्या में बहुत बदलाव महसूस हुआ। कभी खोई-खोई नज़र आती तो कभी वह किसी भी छोटी-छोटी बातों से घबराने लगती। लोगों को डर और शक की नज़र से देखती। कभी खुद से बातें करने लगती जैसे कोई हर पल उसके साथ हों। कभी भय से काँप उठती और संजय का हाथ पकड़कर कहती संजय कोई मुझे तुमसे अलग करना चाहता है, कोई मुझे तुमसे छीन लेना चाहता है। जैसे खुद के चारों ओर कोई शिकारी जाल बिछाए बैठा हो, पलक झपकाने की देर उसे पकड़ ले जाए, उसे उसकी प्यारे परिवार से दूर बहुत दूर ले जाए। हर पल किसी साजिश की बू-सी महसूस करने लगती।

जब भी अचानक कोई आवाज़ करता तो राम्या चौंक जाती। गाड़ी का हॉर्न जब भी बजता लगता कोई गाड़ी में उसीका पीछा कर रहा है। हर छोटी बात में भी कोई साजिस-सी महसूस करने लगती। हाथ और पाँव से पसीने छूटने लगते। कुछ कहने को कोशिश करती लेकिन उसके जुबान से एक भी शब्द नहीं निकलता। उसकी परेशानी उसकी दोस्त या घरवालों से कहना चाहती थी मगर उसे डर था कहीं उसकी बात को मज़ाक में उड़ा न दें। कभी धैर्य करके बताने की कोशिश करती मगर उसे कोई कारण ही नहीं नज़र आता कि जिसे वह साबित कर सके ।

एक दिन उसने फैसला किया कि संजय के ऑफिस से लौटते ही उसे अपने दिल में बस गए डर को बताएगी। शाम का इंतज़ार करने लगी। जैसे संजय घर पहुँचा रम्या गैस के ऊपर चाय रखकर संजय के पास पहुँची, संजय हँसते हुए पूछा, "रम्या क्या बात है कुछ खोई-खोई-सी लग रही हो। कुछ बात हो तो बताओ।"

- हाँ, ... नहीं कुछ ख़ास नहीं.." उसने फर्श को देखते हुए कहा।

- इसका मतलब कोई बात तो है, बोलो रम्या।" संजय ने रम्या से पूछा।

- आप का दिन कैसा गुजरा?

- हम्म, ठीक था। डॉक्टर हूँ, 'रोग, पेशेंट्स, दुःख, दवा, इंजेक्शन के अलावा और क्या हो सकता है? तुम बोलो दिन कैसे गुजरा? बच्चों के स्कूल में सब ठीक है कि नहीं?

- स्कूल में सब कुछ ठीक है। बच्चे भी ठीक है। रम्या ने संजय का हाथ पकड़कर कहा - संजय तुमसे कुछ कहना है।

संजय दोनों हाथ रम्या के कन्धों पर रखकर उसे सोफ़े पर बिठाते हुए कहा - हाँ अब कहो।

- संजय कुछ दिनों से मन में कुछ अजीब से ख्याल आते हैं। डर लगा रहता है, ऐसा लगता है अभी कोई अचानक मेरे सामने आ जाएगा और मुझे मेरे बच्चों से अलग कर देगा और मुझे उठा ले जाएगा। तुमसे और मेरे बच्चों से दूर होकर मैं जिंदा नहीं रह सकती संजय। कोई है जो मेरे पीठ पीछे जाल बिछा रहा है, मौका देखकर पकड़ लेगा। वैसे ये सब सिर्फ मेरा भय है। ऐसा कुछ नहीं हो सकता है पर ... न जाने कुछ तो है जो मुझे दिख नहीं रहा पर मन में दिमाग में कुछ ऐसा छवि नज़र आती है कि... कि.... कुछ है लेकिन क्या है पता नहीं... " न जाने खुद में कुछ बड़बड़ाने लगी जैसे खुद को समझा रही है।

- कौन ले जाएगा? कौन है वह?

- कोई साया है या कोई इंसान है.. पता नहीं।

- तुम्हें ऐसा क्यों लगता है रम्या? क्या किसीने तुम्हें कुछ कहा। कोई तुम्हें परेशान कर रहा है तो बताओ मैं बात करता हूँ।

- नहीं संजय कोई है जिसे मैं नहीं जानती पर वह मेरे बारे में सब कुछ जानता है। मैं क्या सोचती हूँ क्या करती हूँ सब कुछ।

- ऐसा कौन है जो तुम्हें इतना नजदीक से जानता है, कहीं तुम्हें किसी और से प्यार तो नहीं हो गया? मुस्कुराते हुए पूछा।

- छी! कैसी बात कर रहे हो संजय! तुम्हारे आलावा मैं किसी और के बारे में सोच भी कैसे सकती हूँ?

- फिर तुम्हें ऐसा क्यों लगता है कोई तुम्हारी हर पल का खबर लेता है?

- संजय क्या ऐसा हो सकता है जैसे की 'टेलीपैथी' जो की किसीकी दिमाग से कांटेक्ट कर सकता है और उन्हें पढ़ सकने की क्षमता रखता है?

- हाँ है तो लेकिन कोई ऐसा क्यों करेगा? किसीका तुमने क्या बिगाड़ा है? संजय हँसकर कहा - तुम बेकार से ज्यादा सोचती हो उस दिन माथेरान में जो हुआ वह ख्याल, वह डर अब भी तुम्हारे मन से गया नहीं इसलिए तुम्हें ऐसा लगता है और कुछ बात नहीं है।

रम्या सिर हिलाकर कहा - हाँ, पर नहीं संजय ... कहते-कहते रुक गई फिर खुद से ही कहने लगी - हाँ, हो सकता है।

रम्या की बात जुबान पर आकर रुक गई। उसे लगता कहीं संजय ये न कह दे कि किसी भयानक सीरियल देख लिया होगा या कोई सपना। उसकी बातों को मजाक में उड़ा न दे। जब तक संजय घर पर रहता, रम्या खुद को महफूज़ महसूस करती, खुश रहती लेकिन जैसे ही वह अपने क्लिनिक के लिए घर से बाहर निकल जाता था वो खुद को घर में बंद कर लेती। कई दिनों से आईना देखना भी छोड़ दिया उसने। जब भी आईना देखती लगता कोई उसे आईने के अंदर से उसकी ओर झाँक रहा है और आईने में खुद को देखने से भी घबराने लगती। संजय, रम्या की परेशानी देख खुद भी परेशान होने लगा था।

रम्या जब कभी बाहर निकलती उसके चारों और शोर-शराबा उसे परेशान करने लगते। यहाँ तक की बच्चों की आहट से भी पसीने छूटने लगते। साथ ही हाथ पैर काँपने लगते। जोर-जोर से साँस लेते हुए बैठ जाती। अचानक दिल का जोर-जोर से धड़कना, बार-बार चौंक जाना, हर बात पर तिलमिलाती हुई बडबड़ाने लगती। संजय का हाथ पकड़कर उसको अपने पास ही बैठे रहने की जिद्द करना, इस तरह रम्या की बदली हुई मानसिकता से संजय परेशान था। दिन ब दिन रम्या की हालत बिगड़ने लगी। संजय को रम्या की बातें पहेली से लगने लगती। बिना कोई कारण उसका डर संजय को परेशान करने लगता। किसी को भी देखकर चौंक जाना और यहाँ तक की कार के हॉर्न से भी घबराने लगती। अचानक उसके बदलाव संजय के मन में तरह-तरह की शंकाएँ पैदा करने लगे।

तब अनन्या सिर्फ 12 साल की थी। अवन्तिका 9 साल की हो गई। बच्चों को स्कूल छोड़ना और घर ले आना सब रम्या ही सँभालती थी। सुबह डब्बा बनाकर दोनों को तैयार कराती, फिर बस तक जाकर छोड़ आती। अनन्या के स्कूल में किसी फंक्शन की तैयारी के लिए रोज़ देर तक स्कूल में रुकना पड़ता था।

एक दिन रम्या अनन्या को स्कूल भेजने से इनकार करने लगी। अजीबो-गरीब सवाल खड़ा कर दिया, - स्कूल में उसे कोई छेड़ने लगे तो? कहीं उसे कोई चोट पहुँचाए तो? वह खुद भी घर के अंदर रहना पसंद करने लगी और अपने बच्चों को भी अपने से दूर भेजने से इनकार कर दिया।

अनन्या उसे समझाने की कोशिश करती - माँ कुछ नहीं होगा। माँ, मैं बिलकुल सही सलामत वापस आ जाऊँगी। मुझे कुछ नहीं होगा। फिर मैं इतनी छोटी भी तो नहीं हूँ न माँ, स्कूल ही तो जा रही हूँ, मुझे जाने दो न प्लीज्।

मुश्किल से मानते हुए - ठीक है, लेकिन सभी के साथ रहना और समय पर वापस लौटना, पता है न थोड़ी-सी भी देर हो जाए तो मेरा मन घबरता है। अवन्तिका को भी साथ ही रखना वह बहुत छोटी है। साथ लेकर आना।" ढ़ेर सारा उपदेश देकर उसे स्कूल में भेजती।

- ठीक है माँ, मैं अवन्तिका का ख्याल रखूँगी।" रम्या बच्चों को जाने देती।

जैसे-जैसे वक्त बीतने लगा रम्या की इस तरह की हरकतें बढ़ने लगी। रम्या की मुश्किलें देख संजय परेशान होने लगा। उस दिन के बाद रम्या डर को मन में ही दबा देती। संजय के सामने खुद को नॉर्मल रखने की पूरी कोशिश करती। वैसे भी वह बहुत ही सुशील स्वभाव की है। चाहे कोई बिमारी हो या कोई मनोव्यथा हमेशा खुद में घुटकर चुप रहती थी। संजय से या उसकी माँ बाबूजी से कभी कोई शिकायत या परेशानी जाहिर नहीं करती लेकिन संजय को उसकी चेष्टाएँ भावुक कर देती थीं। रम्या की हालत देख संजय बहुत दुखी हो जाता था, एक दिन उसने किसी डॉ. से सलाह मशवरा करने का निर्णय लिया।

आखिरकार संजय ने मनोचिकित्सक और रम्या की खास सहेली अंजली से जाँच करवाने का निर्णय लिया। अंजली मनोचिकित्सा में स्नातक होकर अपनी एक क्लिनिक भी खोल रखी थी। रम्या की शादी के बाद वह पढाई के लिए लंदन चली गई। 10 साल वहाँ चिकित्सक रहने के बाद भारत लौटकर अपना खुद का एक हॉस्पिटल खोला। कई सुविधाओं से लेस उसके क्लीनिक ने भारत में भी 5वें स्थान पर अपना नाम दर्ज कराया। कई नये डॉक्टर उसके हॉस्पिटल में प्रैक्टिस करते थे।

संजय ने रम्या को डॉ अंजली के पास ले जाना सही समझा। रम्या की तड़प संजय से देखी नहीं जा रही थी। वो धीरे-धीरे डिप्रेशन का शिकार बनती जा रही थी। संजय से रम्या की सारी बातें सुनने के बाद अंजली ने रम्या से अकेले में बात करने की अपील की। संजय रम्या को अंजली के पास छोड़कर बाहर आ गया। अंजली के प्राइवेट क्लिनिक की कॉरीडोर में अस्त-व्यस्त घूमने लगा। उसकी आँखें अश्रु से भरी हुई थी। रम्या को कैसे सँभाला जाए, इस मीमांसा में वह बहुत दुखी था। संजय को कुछ ही दिन पहले की बात याद आई। उस दिन बाथरूम से निकलते समय रम्या के पैर पर गहरी चोट लग गई। जब संजय ने उसे प्रश्न किया की ये चोट कैसे लगी तो रम्या ने जो कहा उससे संजय का होश उड़ गया।

पहले तो वह बताने से इंकार कर रही थी लेकिन संजय जब जोर देकर पूछा तब रम्या ने बताया - मैं जब वाशरूम के अंदर गई तब जाने के बाद लाइट बंद कर दिये थे इसलिए अंधेरे में चोट लग गई।"

  • - लेकिन रम्या रात का समय लाइट क्यों बंद कर दिया तुमने? वैसे भी इतने अँधेरे में चोट तो लगना ही था।
  • रम्या संकुचित मन से कहा - मुझे कोई देख लेता तो?
  • संजय - वाशरूम में बंद दरवाजों से तुम्हें कौन देखेगा? वैसे घर में मैं हूँ फिर अंदर आने का हिम्मत कौन करेगा?
  • रम्या ने विचलित होकर कहा - कोई देख रहा है मुझे, सुबह शाम मुझ पर नज़र रखा हुआ है। मुझे ऐसा लगता है कि कोई मेरे आस-पास हमेशा रहता है। ऐसा क्यों लगता है पता नहीं लेकिन मुझे खुद को देखने में भी डर लगता है। कोई मेरे आँखों से मुझे देख रहा है। यहाँ तक कि आईने के सामने खड़े होने में भी डर लगता है। संजय हतप्रभ होकर सुन रहा था और रम्या बस खुद में बड़बड़ाती रही।
  • - कोई मेरे ही आँखों से मुझे देख रहा है, वह मेरे आस-पास हमेशा मँड़राता है। कहीं बाहर जाती हूँ तो मेरे साथ अदृश्य होकर चलता है। अकेले में मुझसे बातें करता है। ऐसे में वॉशरूम में भी वह हो सकता है इसलिए मैंने लाइट्स बंद कर दिए थे कि वह मुझे देख न पाए।
  • संजय के सामने जैसे पहाड़ टूट पड़ा। उसकी जिंदगी का आईना जैसे टूटकर चूर-चूर हो गया हो। पैरों तले जमीं खिसकना क्या होता है पहली बार महसूस किया उसने। संजय की जुबान पर शब्द नहीं थे। वह समझ नहीं पा रहा था कि रम्या के साथ हो क्या रहा है? वह क्यों ऐसी बहकी-बहकी बातें कर रही है?
  • संजय ने रम्या को धीरे से पलँग पर बिठाया। उसके पैर पर पट्टी बांधते हुए समझाने की कोशिश करने लगा, "रम्या देखो हम चार दीवारों के अंदर हैं, और हम हमारे अपने ही घर में हैं। यहाँ कोई नहीं आ सकता। हम बिलकुल महफूज़ हैं, इसलिए तुम ऐसी धारणाएँ मन से निकाल दो कि कोई तुम्हें देख रहा है। हम सब तुम्हारे साथ हैं। कोई तुम्हें क्यों और कैसे देखेगा? अगर देखता भी है तो क्या कर लेगा? देखता है तो फिर देखने दो। हमारी रम्या भी तो चाँद से कम नहीं है? हँसाने की कोशिश किया पर रम्या ने बिलकुल ध्यान नहीं दिया।

    - संजय तुम समझ नहीं रहे हो हमें कोई हर वक्त देख रहा है। कल हम मंदिर गए थे, वहाँ एक आदमी हमारा पीछा कर रहा था। कैसे घूर रहा था। अगर मुझे आप से छीनकर कहीं ले जाए तो, मैं, मैं मर जाउंगी ।

    - क्या अनाप-सनाप बातें कर रही हो रम्या? ऐसे कैसे कोई तुम्हें मुझसे छीन लेगा? छीन कर तो देखे। अगर तुम्हें डर लगे तो बाहर मत जाना। हम बाहर भी गए तो अंदर से दरवाज़ा बंद कर लेना। फिर कोई नहीं आएगा और ये सिर्फ तुम्हारा मन का भ्रम है। मेरी बात को समझो प्लीज।

    रम्या की आँखों में आंसू आ गए - हाँ संजय मैं जानती हूँ की हम घर पर हैं और बिलकुल महफूज़ हैं लेकिन मैं क्या करूँ मुझे ऐसा लगता है कि कोई मेरे आस-पास है कोई हर पल मुझे देख रहा है, मैं इस ख्याल से कैसे छुटकारा पाऊँ। कहीं बाहर जाती हूँ तो लगता है कोई दूर से या आस-पास से मुझ पर नज़र रखा हुआ है। जब आईना देखती हूँ तो लगता है कोई मुझे घूर रहा है, मेरा दिमाग पढ़ रहा है। जैसे दो आँखें मुझे आईने से ताक रहीं हैं। बहुत घबराहट होती है। जैसे की टेलीपैथी से मुझसे जुड़ा हुआ है, जिससे मैं अलग नहीं हूँ, वह मेरे अंदर बस गया है। कोई दूसरा परेशान करे तो अलग बात है मगर मुझे खुद से डर लगे तो क्या करूँ? कहाँ जाऊं? मैने किसी का क्या बिगाड़ा है ? अगर मेरी ही नज़र मुझे चुभ रहीं हैं तो मैं क्या करूँ? जब वाशरूम जाती हूँ न संजय मुझे यही लगता है वहाँभी कोई मुझे देख रहा है। इसलिए अँधेरे में आँखें बंद कर वाशरूम में हो आई। उस दौरान मुझे चोट लग गई। कहते-कहते संजय के काँधे पर सिर रख कर रोने लगी।