Ulajjn - 6 in Hindi Moral Stories by Amita Dubey books and stories PDF | उलझन - 6

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उलझन - 6

उलझन

डॉ. अमिता दुबे

छः

अंशी ने जैसे कुछ सुना ही नहीं आगे बताने लगी - ‘एक दिन एक अंकल जी को मुहावरा मिला - ‘थाली का बैगन’ वे बेचारे समझाते-समझाते हार गये लेकिन आण्टी जी थाली और बैगन तक नहीं पहुँची। जब वे थाली का इशारा करते तो आण्टी जी चाँद बतातीं और जब वे बैगन का इशारा करते तो आण्टी जी लड्डू कहतीं। चाँद और लड्डू के बीच का कोई मुहावरा वे नहीं जोड़ सकीं बाद में थाली का बैगन जानकर खूब पछतायीं अरे, कितना आसान था।’ अंशिका मुदितमनः थी।

‘और अंशी, उस दिन जो एक श्रीमती जी पिक्चर का नाम नहीं बूझ पा रहीं थीं। पिक्चर का शीर्षक था ‘ज्वैल थीफ’। श्रीमान जी ठीक से इशारा भी नहीं कर पा रहे थे और श्रीमती जी समझ भी नहीं पा रहीं थीं। सोमू की दादी ने वहीं से ही उनकी बातों के बीच दखल दिया।

सोमू ने अंशी को इशारा कर समझाया कि देख लो और समझ लो कि किस प्रकार सोच-समझकर बात कहनी चाहिए कम से कम दादी के सामने। सोमू की दादी से पूछकर अंशी फोन मिलाने लगी।

अपनी दादी से बात कर अंशी एक बार फिर उदास हो गयी। दादी की तबियत आजकल ठीक नहीं चल रही थी इसलिए पापा ने उनके और अपने लिए टिफिन लगवा लिया था जिससे खाना तो नियमित मिलने लगा था लेकिन घर के अन्य कार्य बिल्कुल अव्यवस्थित हो गये थे। बेचारे पापा को आॅफिस से लौटकर बहुत सारे काम निपटाने पड़ते थे। इन छः महीनों में तीन कामवालियाँ बदल चुकीं थीं। कोई ठीक ढंग से दादी की सहायता नहीं कर पा रही थी।

बाद में अंशिका ने अपने पापा से भी बात की। पापा उस समय आॅफिस में थे और उन्होंने यह कहकर फोन काट दिया कि अभी आधे घण्टे बाद फोन करूँगा तुम यहीं रहना। अंशिका बेसब्री से फोन का इंतजार करने लगी। ठीक आध्ज्ञा घण्टे बाद फोन की घण्टी बजी। दौड़कर फोन अंशिका ने उठाया। पापा से खूब देर बात की बाद में उन्होंने सौमित्र से भी बात की और उसका पोस्टल एड्रेस पूछा।

एक दिन बाद अंशिका का जन्मदिन है। अंशिका की आँख बार-बार भर आ रही है। जब वह अपने पापा के पास थी तब कितने दिन पहले से ही उसके जन्मदिन की तैयारियाँ शुरू हो जाती थीं। उसे ‘ब्लैक फाॅरेस्ट’ केक ही पसन्द है इसलिए पापा उसकी पसन्दीदा बेकरी से बड़ा सा केक उसके लिए मँगवाते थे। आधा तो मेहमानों के बीच बँट जाता था और आधा केक वह बड़े इत्मीनान से बैठकर अकेले ही खाती थी। उसे फ्रीज में रखे केक की क्रीम चुपके से चाटते हुए देखकर एक बार पापा ने फोटो खींच ली थी जो उसके बैडरूम में बड़े आकार में मढ़वाकर लगायी गयी थी जो आज भी वहाँ लगी होगी ऐसा अंशी का विश्वास है।

आज रविवार है। अंशी की नानी के घर सभी सो रहे हैं। उसे नींद नहीं आ रही थी। जरा सा उजाला होने के बाद वह बालकनी में आ गयी। सामने पार्क में कुछ बच्चे खेल रहे थे। वह अनमने भाव से उन्हें देखने लगी। तभी उसे सौमित्र आता हुआ दिखायी दिया। वह चुपके से दरवाजा खोल कर बाहर आ गयी। सौमित्र के हाथ में फूलों का गुलदस्ता है जिसे शायद उसने स्वयं ही बनाया है क्योंकि उसकी सजावट बुके की तरह की नहीं है। सौमित्र उसे जन्मदिन की शुभकामनाएँ दे रहा है। अंशी मुस्कुराते-मुस्कुराते सिसकने लगती है। उसे अपने पापा बहुत याद आ रहे हैं। सौमित्र उसे सांत्वना देता है अंशी शान्त होकर ‘थैंक्स’ कहकर घर के अन्दर चली जाती है।

मम्मी को अंशिका का बर्थ डे याद है लेकिन उन्हें सैलीबे्रट करने की फुर्सत नहीं है। आज उन्हें वकील के पास जाना है। दोपहर तक आने की बात कहकर वह साढ़े नौ बजे चली जाती हैं। तभी फोन की घण्टी बजती है मामी फोन उठाती हैं और कहती हैं कि सोमू की मम्मी उसे बुला रही हैं। नहा-धोकर अंशिका सौमित्र के घर जाने का मन बनाती है। उसने कौन सी ड्रेस पहनी है या वह क्या पहनेगी इसकी चिन्ता किसी को नहीं है। वह भी बेमन से पिछली वर्षगांठ पर पापा द्वारा दिलवायी गयी डेªस पहनकर बिना नाश्ता किये मामी को बताकर ऊपर सौमित्र के घर जाती है।

घण्टी की आवाज पर दरवाजा दादी ने खोला और ‘हैपी बर्थ डे’ कहते हुए उसका माथा चूम लिया है। अंशिका को फिर से रुलाई आने लगती है। तब तक अंकल आण्टी और सौमित्र उसे ‘विश’ करते हुए घेर लेते हैं। सौमित्र अंशिका का हाथ पकड़ उसे अपने कमरे की ओर ले जाता है और अंशी से कमरे का दरवाजा खोलने को कहता है। दरवाजा खोलते ही अंशी को सामने टेबल पर बहुत बड़ा ब्लैक फाॅरेस्ट केक दिखायी देता है। इतना बड़ा जितना अंशी के पापा लाते थे जिसे वह स्वाद ले लेकर कई दिनों तक खाती थी। अंशिका फूट-फूटकर रोने लगी। जितना वह रुलाई रोकने की कोशिश करती है उतनी ही तेज आँसुओं की धार बहने लगती है। सौमित्र की मम्मी उसे खूब समझाती हैं बेटा तुम तो बहादुर बच्ची हो। ये दिन हमेशा तो नहीं रहेंगे। अपने को दुःखी करोगी तो पढ़ोगी कैसे। आज तो तुम्हारा बर्थडे है तुम्हें खुश रहना चाहिए। तुम्हारे पापा और दादी जान जायेंगे कि तुम आज इस प्रकार से रो रही हो तो उन्हें कितना दुःख होगा। देखो यह केक तुम्हारे पापा ने भेजा है।’

‘क्या आण्टी, सच्ची ये केक पापा ने भेजा है।’ अंशिका को विश्वास नहीं हुआ। तब तक फोन की घण्टी बज उठी। अंकल ने फोन उठाया। उधर से अंशिका के पापा ही थे। फोन का रिसीवर पकड़कर अंशिका फिर रोने लगी।

पापा के ‘हैपी बर्थ डे टू अंशी’ कहने पर ‘आई लव यू पापा, आई मिस यू पापा आई काण्ट लिव विदाउट यू पापा’ कहते हुए अंशिका बिलखने लगी। फोन सोमू की मम्मी ने ले लिया और अंशिका के पापा से बात करने लगीं। दादी अंशिका को सम्हालने लगीं। बाद में सौमित्र के पापा से भी बात हुई और यह तय हुआ कि जल्दी ही अंशिका के पापा उससे मिलने आयेंगे। चुप होने पर अंशी को बहुत अफसोस हुआ कि उसने अपनी बर्थडे के दिन पापा को परेशान किया जबकि उन्होंने हर बार की तरह उसे केक भेजा इतनी दूर होने के बाद भी।

केक काटा गया और उस दिन सबने अंशिका के आग्रह पर खाने की जगह उसे खाया भी, बाद में फ्रिज में रख दिया गया। अगले दिन दादी सौमित्र, अंशी के साथ-साथ उनके सर ने भी वही केक खाया और अंशी को बर्थ डे की बधाई दी। वैसे बर्थडे के दिन अंशिका मम्मी के साथ घूमने गयी जहाँ उन्होंने उसे एक डेªस दिलवायी और चाट-आइसक्रीम भी खिलवायी। बाद में सबके लिए आइसक्रीम लेकर वे घर आ गये। मम्मी ने अंशी से यह नहीं पूछा कि उसे पापा की याद आ रही है या नहीं। उन्होंने अपनी तरफ से यह मान लिया उनकी तरह उसे भी पापा से बहुत सी शिकायते हैं जबकि अंशिका के अगर पंख होते तो वह आज ही उड़कर पापा के पास पहुँच जाती और हर वर्ष की तरह अपना बर्थडे मनाती दादी से ढेरों आशीर्वाद पाती और अपने साथ मम्मी को भी घसीटकर ले जाती। चाहे पीछे से नानी कितना ही बड़बड़ाती रहतीं। बादल आज दस दिन बाद घर लौट रहा है। चर्चा है कि अभिनव के विशेष आग्रह पर उसके पापा द्वारा बादल के विरुद्ध मुकदमा वापस ले लिया गया है। पहले तो अभिनव के पापा मान ही नहीं रहे थे परन्तु बाद में उनकी पहल पर उसे छोड़ा जा रहा है।

दो दिन पहले अस्पताल से अभिनव की छुट्टी हुई है। उसके सारे टेस्ट ठीक हैं। डाॅक्टरों ने कुछ दिन घर पर आराम कर स्कूल जाने की अनुमति दे दी है। स्कूल से लौटकर सौमित्र अभिनव को देखने उसके घर जायेगा इसकी अनुमति उसने मम्मी से ले ली है। सौमित्र दुविधा में है कि बादल की मदद करने के लिए वह अभिनव से अनुरोध करे या न करे। न जाने अभिनव कैसे रिएक्ट करे ? उसकी बात मानें भी या न माने। लेकिन सोमू ने सोच लिया था कि कोशिश करके जरूर देखेगा।

अभिनव अपने कमरे में आराम कर रहा था। सौमित्र को उसके कमरे तक पहुँचकर नौकर वापस चला गया। सौमित्र इससे पहले दो बार अभिनव के घर आया है इसलिए नौकर उसे पहचानता है। सौमित्र ने बहुत धीरे से दरवाजा खोला और कमरे के अन्दर आ गया। अभिनव की पीठ सौमित्र की ओर थी वह दीवार की ओर मुँह करके लेटा था। सोमू ने एक हल्की सी आवाज दी अभि ! शायद उसने सुनी नहीं। वह दुविधा की स्थिति में खड़ा ही रहा कि उसे बैठना चाहिए या बाहर चले जाना चाहिए। तब तक अभिनव की मम्मी आ गयीं। नौकर उन्हें बुलाकर ले आया था। नमस्ते के बाद उन्होंने सौमित्र को बैठने का इशारा किया और अभिनव को पुकारने से पहले उससे कहा बेटा ! अभिनव अभी पूरी तरह ठीक नहीं है हम उसे घर जरूर ले आये हैं लेकिन अभी उसे स्ट्रैस नहीं लेना है। इसलिए कोई ऐसी बात मत करना कि जिससे उसे किसी प्रकार का टेंशन मिले।’

अभिनव को सहारा देकर उसकी मम्मी ने तकिया लगाकर बैठा दिया और स्वयं नाश्ते का इंतजाम करने चली गयीं। सौमित्र को अभिनव दुबला-दुबला लगा वह कुछ कहता इससे पहले अभि ने ही पूछ लिया - ‘सोमू ! तुम अकेले आये हो। क्या और दोस्त नहीं आये।’

‘नहीं, अभी सबको पता नहीं है कि तुम घर आ गये हो। इस बीच हम लोग दो बार तुम्हें देखने अस्पताल भी गये लेकिन तुम आई0सी0यू0 में थे इसलिए डाॅक्टरों ने हमें मिलने नहीं दिया। मुझे अपने पापा से पता चला था कि तुम्हारी छुट्टी हो गयी है, इसलिए मैं देखने आ गया। अब जाकर सबको बताऊँगा तो सभी आयेंगे तुम्हें देखने।’ सौमित्र ने बताया।

‘सोमू ! क्या बादल भी मुझे देखने आया था या वह अब भी मुझसे नाराज है।’ अभिनव ने पूछा।

‘बादल....बादल तो.....इसका मतलब तुम्हें कुछ नहीं मालूम।’ सौमित्र ने आश्चर्य से कहा।

‘क्या हुआ बादल को ? वह ठीक तो है।’

‘ठीक, कहाँ अभि ! बादल तो जेल में है।’

‘जेल में मगर क्यों ?’

‘क्योंकि उसने तुम्हारे सिर पर बैट मारा था चोट लगने के बाद तुम तो अस्पताल चले गये थे उसे उसी दिन पुलिस पकड़कर ले गयी थी। वह तो अभी तक जेल में है।’ सौमित्र अभिनव की मम्मी की हिदायत भूल गया था। उस समय उसे एक ही बाद याद थी कि किसी प्रकार बादल को बचाना है।