Sanwlapan in Hindi Short Stories by रामानुज दरिया books and stories PDF | सांवलापन

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सांवलापन

ऐसा नहीं कि ओ खूबसूरत नहीं थी लेकिन किसकी नज़र में थी इसका अंदाजा लगा पाना बहुत मुश्किल था शायद उसके लिए जो उसी की तरह बदसूरत हों या फिर उसके लिये जो उससे भी ज्यादा हों।हालांकि किसी की तारीफ करना तो कोई गुनाह नहीं है लेकिन किसी को बदसूरत कहना ये भी अपने अधिकार क्षेत्र में नहीं आता।
नाम तो खैर बहुत ही खूबसूरत था लेकिन जो चेहरे की ललक थी ओ कुछ और ही बयां कर रही थी लेकिन अगर आप ये कहें कि आंख के अंधे, नाम नयन सुख तो कोई बुरा नही है।
नाम तो रोशनी है लेकिन चेहरा, सांवला तो नहीं कहेंगे क्योंकि इसमें सांवला भी अपनी बेज्जती महसूस कर सकता है लेकिन हां उसे आप काला जरूर कह सकते हैं। अभी उम्र तो कोई चौदह से पंद्रह साल होगी लेकिन ओ बड़ी होने के लिए इतनी लालायित है इसका अंदाज़ा इसी से लगाया जा सकता है जैसे आपके सामने एक कटोरे में अच्छी सी खीर बना के गरमागरम रख दिया जाए और आप खाने के उतावले हो जायें।
लेकिन प्रकृत का अपना नियम है जो सतत होता है उसमें किसी और का ज़ोर नहीं चलता है।
वैसे तो कोई कमी नहीं है बस चेहरे पे मोटे मोटे दाने और ओठो की फटी हुयी लाइने थोड़ा सा चेरे पे सन्नाटा लाने को आतुर थी। वक्ष अस्थलों में उभार था लेकिन उतना नहीं जितना कि ओ चाहती थी। उसे आकार देने के लिए ओ काफी प्रयासरत थी। खैर ये उसकी अपनी लाइफ थी जिस पर किसी और का कोई अधिकार नहीं था ये बात अलग है कि दस से बारा लोग रूम में आते जाते रहते थे।
आज सुबह मैं थोड़ा जल्दी उठ गया था तो ओफिस जाने के लिए भी मेरे पास पर्याप्त समय था सो मैं ब्रश करके रूम में लेट गया और उस चने को एक एक करके मुह में डालने लगा जो पिछले तीन दिन से भिगोया था और बड़े बड़े अंकुर निकल आये थे ।हमारे जो बड़े भाई के रूप में रहते है पार्टनर आज ओ सुबह मुहूर्त निकलवा के दाढ़ी की स्पेशल सेटिंग करवाने गये थे तो कमरे में सन्नाटा पसरा हुआ था। रूम का दरवाज़ा आधा से कम खुला हुआ था और ओ बार बार सामने से आ जा रही थी हमने भी खुद को रोक के उसे चने खाने का आफर दे दिया, पहली बार मे तो उसने मना कर दिया जैसा कि इंशान का स्वभाव होता है लेकिन दुबारा आग्रह करने पर ओ आके दो दाने मुह में डाल ली।
आज कल उसके भाव गिर गए हैं जबसे नयी पड़ोसन आयी है नहीं तो उसके अपने भी जलवे थे । लोग उसी से बातें करते, उसी की चिढ़ाते,उसी का नाम बदल बदल कर रखते और आनंद का उत्सव करते।
लेकिन उसके सारे दिन लद गये। अब न जल्दी कोई उससे बात करता है ना ही कोई मीठा तंज कसता है जिससे कि उसका भी मन प्रशन्न हो उठे इसीलिए अब उसे बिल्डिंग के अन्य फ्लोर से रिश्ते बनाने शुरू कर दिए थे।

यह एक काल्पनिक घटना है जिसका किसी व्यक्ति विषेस से कोई लेना देना नहीं है।
लघु कथा रामानुज "दरिया"