Juye ki latt in Hindi Motivational Stories by Rajesh Maheshwari books and stories PDF | जुए की लत

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जुए की लत

जुए की लत

रामसिंह एक कारखाने में उच्च पद पर कार्यरत था। उसे बुरी संगत के कारण जुआ खेलने की लत लग गई। इस लत के कारण प्रारंभ में तो वह ताश के पत्तों से जुआ खेलता था, धीरे धीरे कैसिनो जाना भी उसने शुरू कर दिया जिससे वह प्रतिदिन हजारों रूपयों का जुआ खेलने लगा। वहाँ पर उसकी मुलाकात कई धनाढ्य व्यक्तियों से होती थी जिस कारण उनके सुझावों पर उसने शेयर मार्केट में भी प्रतिदिन शेयर खरीदने और बेचने का काम शुरू कर दिया। उसकी पत्नी को जब इन सब बातों का पता हुआ तो उसने रामसिंह को बहुत समझाया कि इस प्रकार के कामों में यदि तुम्हें घाटा हो गया तो अपना परिवार बर्बाद हो जायेगा।

रामसिंह कहता था कि शेयर मार्केट का काम तो एक व्यवसाय है और इसमें नफा नुकसान का होना एक स्वाभाविक प्रक्रिया है। मै बहुत होशियारी के साथ शेयर की खरीद फरोख्त करता हूँ यदि वक्त और भाग्य ने साथ दिया तो बहुत जल्दी ही तुम्हें लाखों रूपया कमाकर दे दूँगा। उसकी पत्नी बहुत समझदार थी उसने उससे कहा कि शेयर की प्रतिदिन खरीद और बिक्री करना एक जुए के समान है। तुम्हें ऐसे गलत कार्यों से बचना चाहिए। रामसिंह ने उसकी बात नही मानी और प्रतिदिन इस प्रकार की सटटेबाजी करता रहा।

एक दिन उसने त्वरित धन कमाने की अभिलाषा मे अपनी हैसियत से ज्यादा शेयर खरीद लिये और दुर्भाग्य से उसी दिन उनका दाम कम हो जाने के कारण उसे काफी लंबा घाटा लग गया। इस कारण उसके होश फाख्ता हो गये और उसे रकम चुकाने में अपना स्वयं का घर, कार और अन्य सामान बेचना पड़ा। इतना सब होने के बाद भी यह लत वह नही छोड़ पा रहा था और क्रमश वह दिवालिया होता गया।

उसकी पत्नी ने उनके गुरू स्वामी राजेश्वरानंद जी को जाकर इस समस्या के बारे में बताकर उनसे समाधान हेतु निवेदन किया। उन्होंने कहा कि रामसिंह को मेरे पास आश्रम में भेज देना। यहाँ के वातावरण और मेरी निकटता, निश्चित रूप से उसके स्वभाव को परिवर्तित कर देगी। रामसिंह तदनुसार उनके आश्रम आ जाता है। वहाँ पर कुछ दिन तो वह शांत रहता है और स्वामी जी की इच्छाओं का पालन करता है परंतु धीरे धीरे उसके मन में जुए की इच्छा प्रबल होने लगती है। एक दिन वह स्वामी जी के पास जाकर स्पष्ट रूप से कहता है कि स्वामी जी मै जुआ खेले बिना नही रह सकता हूँ। आप कोई ऐसा चमत्कार कर दे कि मेरे मन से जुआ खेलने की प्रवृत्ति खत्म हो सके।

स्वामी जी उसकी बात सुनकर अपने पालतू कुत्ते को आवाज देकर बुलाते है और उसे पकड़कर वहीं बैठ जाते हैं कुछ देर बाद कुत्ता छूटने के लिए छटपटाने लगता है। वह स्वामी जी के चेहरे को देखता है और बार बार छूटने का प्रयास करता है। यह देखकर रामसिंह घबराकर कि कही कुत्ता स्वामी जी को काट ना ले तो उनसे कहता है कि आप इसे छोडते क्यों नही है। ऐसे में यह नाराज होकर आपको काट सकता है। स्वामी जी कहते है मेरे हाथ इसे छोड नही पा रहे है। मैं क्या करूँ ? रामसिंह आगे बढकर उनके दोनो हाथों को अपने हाथ से अलग कर देता है ताकि कुत्ता छूट जाये।

स्वामी जी रामसिंह की ओर देखकर कहते हैं कि देखो जैसे मैंने कुत्ते को जकड़कर पकडा हुआ था उसी प्रकार तुम जुए की लत को अपने मन में पकडकर रखे हुए हो। तुमने आगे आकर मेरा हाथ हटाकर कुत्ते को मुक्त कर दिया। तुम भी अपने इस व्यसन को पत्नी के अनुरोध पर क्यों नही छोड सकते हो ? यह सुनकर वह स्वामी जी का आशय जान गया और उसने जुआ ना खेलने का दृढ संकल्प ले लिया। इस घटना के बाद वह अपनी इस बुरी आदत से छुटकारा पा गया और पुनः कडी मेहनत करके उसने अपनी खोयी हुयी संपत्ति दुबारा हासिल कर ली और सुखमय जीवन बिताने लगा।