Matrutva in Hindi Classic Stories by Sangeeta Gupta books and stories PDF | मातृत्व

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मातृत्व

"आंती,हमाली बोल दे दो "
गुलाब की क्यारी गोड़ते हुए सुरभि ने पीछे पलटकर देखा। मेहंदी की बाढ़ के टूटे हुए पैबंद से एक गोरा चिट्टा बच्चा लाल स्वेटर पहने, अपने दोनों हाथ बढ़ाए खड़ा था।
" बोल यहां "?
"हां वो ली कुलची के नीचे"
सुरभि ने देखा हरे रंग की टेनिस बॉल गार्डन चेयर के पास पड़ी थी।
उसने दूसरी ओर बॉल उछाल दी। बच्चा खुशी से ताली बजाने लगा।
बच्चे के चेहरे की खुशी और किलकारी सुनती वह फिर गुलाब की क्यारी की तरफ बढ़ गई।
अचानक से सुर्ख गुलाबों का वह गुच्छा उसे बेरंग सा लगने लगा।
"एक्सक्यूज मी "
किसी की आवाज ने उसका ध्यान खींचा। दूसरी और छब्बीस-सत्ताईस साल की जींस और टॉप पहने एक स्मार्ट सी युवती खड़ी थी। "मेरा नाम मीना है ,आपकी पड़ोसी"
" जी, जी मैं सुरभि हूं"।
हम लोग लास्ट वीक ही कानपुर से शिफ्ट हुए हैं ।
"क्या नाम है आपके बेटे का "? बड़ा प्यारा है। सुरभि ने ट्राईसाईकिल चलाते बच्चे की ओर इशारा कर पूछा।
ओह, अच्छा तो इसने आप से भी दोस्ती कर ली। क्या बताऊं बड़ा शैतान है दिन भर मुझे नचा कर रखता है ।नाम तो आरव है प्यार से हम सब मोनू ही पुकारते हैं ।
मीना सुरभि की आंखों के खालीपन को कुछ फील कर रही थी कुछ और नहीं बोली। नाइस टॉकिंग टू यू ,कुछ भी चीज की जरूरत हो तो बताइएगा।
अंदर सब्ज़ी चढ़ा कर आई हूँ कहती मीना अंदर चली गई ।
सरकारी क्वॉर्टर ऐसे ही तो जुड़े जुड़े रहते हैं जैसे स्यामी बच्चे। और तबादलों में यदि कोई हमदर्द पड़ोसी मिल जाए तो यह आपके अच्छे कर्मों का ही फल होता है।
शाम का स्लेटी धुंधलका नीचे उतरने लगा था। सुरभि देर तक मोनू को देखती रही।
उसे भीतर जाने का मन नहीं कर रहा था। वही गार्डनचेअर में धंस गई तभी उसे अनुज की गाड़ी का हॉर्न सुनाई दिया ।
दुपट्टा ठीक करते हुए सुरभि गेट के पास आ गई ।अनुज, बैग और टिफिन लिए गाड़ी लॉक कर रहे थे ।
"अरे! आज इतनी जल्दी फ्री हो गए"?
" हां ,बस छोटा सा ही था ओरियंटेशन"
"और तुम सुनाओ, कैसा रहा दिन ?"
सुरभि हां हूं करती किचन में अंदर चाय
बनाने लगी।
अनुज भी चेंज कर सोफे पर पसर गया।
चाय पीते पीते पूछा "कोई मैड मिली?" "पड़ोसी से पहचान हुई "?
"हाय हेलो तो हुई थी पर बाई की बात नहीं हुई। कल कह दूंगी।
पता नहीं सुरभी का मन अजीब सा हो रहा था ।उसने अपना सर अनुज के कंधे पर टिका दिया ।
"क्या हुआ थक गई क्या?"अनुज ने प्यार से पूछा ।
"नहीं.. नहीं तो,"
अनुज और सुरभि की शादी को सात साल हो गए थे । दुनियाभर के इलाज करवाने पर भी सुरभि की कोख हरी नहीं हुई थी।
उस का मातृत्व गीली लकड़ियों की तरह सुलगता रहता ।
अनुज, सुरभि पर जान देता था, पर सरकारी नौकरी की जिम्मेदारी और हर दो साल में तबादला । फिर नई जगह, नया विभाग।अनुज ने मानो नियति को स्वीकार कर लिया था।
अगले दिन अनुज को ऑफिस भेज सुरभि चाय का कप लिए न्यूज़पेपर की हेडलाइंस देख रही थी। यह कुछ पल ही तो होते थे थोड़ी सी देर सुकून के ,उसके अपने।
तभी डोर बेल बजी। साफ-सुथरी साड़ी पहने माथे पर बड़ी सी लाल टिकुली लगाए सांवली सी एक औरत खड़ी थी ।
"मैडम जी, मुझे पास वाली मीना मैडम ने भेजा है। "
" आपको कामवाली बाई की जरूरत है ना?? "हां, मैंने ही कहा था मीना से"
"क्या नाम है तुम्हारा ?"
"जी ...कजरी"
"पहले कहीं काम किया है ??"
काम तो नहीं किया है पर आप जैसे
समझाएंगी वैसे कर लूँगी।
"तनखा कितना लोगी??"
आप एकबार काम करवा कर देख लीजिए फिर जो आपको ठीक लगे।
उसने कुछ संकोच से कहा।
"ठीक है, फिर कल आठ बजे आ जाना" ।
जी मैडम ,कहकर वह गेट की तरफ मुड़ गई।
दूसरे दिन ठीक आठ बजे कजरी दरवाजे पर खड़ी थी। सरभी के बताए अनुसार जल्दी ही उसने सारे काम की जिम्मेदारी अपने ऊपर ले ली। सुबह के उसके सुकून भरे चाय के कप के साथ वह उसका सुख-दुःख भी बांटने लगी थी।
बहुत अपनी सी लगती थी वह सुरभी को। शायद कुछ पिछले जन्म का कनेक्शन था।
जब पापा की बीमारी की खबर आई , वह तो जैसे आपा ही खो बैठी थी ।तब कजरी पूरे टाइम उसे ढाँढस बंधाती रही।
और पिछले महीने जब सुरभी को टाइफाइड हुआ था बुखार 104 से कम ही नहीं हो रहा था। अनुज तो घबरा ही गए थे , तब कजरी पूरी रात उसके सिरहाने बैठी ठंडे पानी की पट्टी रखती रही।
वह कभी अनुज को कॉफी पकड़ाती और कभी मुझे काड़ा पिलाती।
कितनी सेवा की थी उसने ,शायद कोई अपना भी ना करे।
आज कजरी कुछ परेशान लग रही थी ।
उसने चाय भी पीने से मना कर दिया।
" क्या हुआ पति से लड़ाई हो गई क्या?"
" अरे मैडम जी इस महंगाई में हम गरीबों को तो जैसे जीने का हक ही नहीं है। लड़ाई तो रोज का किस्सा है कमाता तो है वह पर शाम को आधी मजदूरी ठर्रे में चली जाती है।
तीन तीन लड़कियों को लड़ झगड़ कर स्कूल भेजा।
पर आज स्कूल वालों ने कह दिया कि ट्यूशन लगानी पड़ेगी पास होने के लिए ।
अब आप ही बताओ घर तो मुश्किल से चलाती हूं ,ट्यूशन कहां से भेजूं??
कजरी की आवाज में दर्द था।
" हां आजकल सरकारी स्कूलों में पढ़ाई तो कराते नहीं, और ट्यूशन को धंधा बना लिया है ।"
सुरभि की आवाज भी तल्ख हो गई थी।
"चल तू कल से दोपहर में दो घंटे भेज देना, तीनों को मैं पढ़ा दूंगी "
कजरी को तो जैसे रेगिस्तान में पानी मिल गया ।
दूसरे दिन कजरी तीनों लड़कियों को दोपहर में उसके पास छोड़ गई थी बड़ी दो तो बिल्कुल अपनी मां पर गई थी शांत ,सहमी पर छोटी बिल्कुल अलग। चार साल की गोरी चिट्टी ,घुंघराले बाल और बड़ी बड़ी काली आंखें। घुटनों तक लटकती फ्रॉक में भी वह बड़ी प्यारी लग रही थी।
ड्राइंग रूम के कारपेट पर अपनी बहनों के साथ बैठी छोटी इधर-उधर आंखें मटका रही थी।
" आंटी प्यास लगी है "
"छोटी---- " दोनों बड़ी बहनें उसे डांटते हुए बोली ।
"अरे कोई बात नहीं है "
सुरभी रसोई से पानी ले आई। दोनों बड़ी बहनें एक ही क्लास में थी और छोटी पहली में ।
सुरभी ने उनका कोर्स देखा और दोनों को इंग्लिश का पहला चैप्टर पढ़ाने लगी। छोटी को भी गिनती लिखने को कहा पर उसका ध्यान पढ़ाई में कम और घर का मुआयना करने में ज्यादा था ।
पता नहीं उसे छोटी की चंचलता अच्छी लग रही थी।
धीरे-धीरे वह उसकी डेली रूटीन का हिस्सा बन गया।
शाम को अनुज से भी वह अक्सर छोटी की बातें करती रहती । कैसे आज अपनी लड़खड़ाती बोली में उसने बुंदेलखंडी गीत सुनाया ।कैसे वह आज उसके लिए कनेर का गजरा बना कर लाई । कैसे उसका पालतू पिल्ला गुम हो गया ।
अनुज भी खुश थे, चलो सुरभी व्यस्त भी हो गई और उदास रहने की वजह भी कुछ फीकी होने लगी थी।
कभी-कभी तो छोटी उसके पास ही रात में रुक जाती और वह छोटी सी बच्ची बन उसके साथ खेलती रहती।
एक दिन शाम को मीना और सुरभी जो अच्छी सहेली बन गई थी ,बाहर चाय पी रहे थे ।
तभी मीना बोली "सुरभि बुरा मत मानना, कजरी का आजकल बहुत आना-जाना बढ़ गया है तुम्हारे यहाँ, यार यह फोर्थ कैटेगरी से थोड़ा डिस्टेंस बनाकर ही रहना चाहिए ।बाकी तुम्हारी मर्जी"।
सुरभि को चाय का स्वाद कसैला लगने लगा।
कजरी और उसकी लड़कियां दो दिनों से नहीं आए थे ।
कुछ दिनों से कजरी को चक्कर भी आ रहे थे और सिर में तेज दर्द भी था। दो तीन बार तो वह सुरभि से दवा भी लेकर गई थी ।
सुरभी का मन कुछ आशंकित हो उठा।
उसे छोटी की याद आ रही थी ।
तभी मीना के घर से निकलती कजरी की चचेरी बहन दिखी।
" सुनो, कजरी की कोई खबर ??? दो दिनों से आई नहीं वह "
"मैडमजी, वह तो अस्पताल में भर्ती है।परसों बेहोश होकर गिर गई थी"।
उसने तुरंत अनुज को फोन किया।
कुछ ही देर में वे पास के सरकारी अस्पताल में थे ।
दोनों लड़कियां मां के सिरहाने खड़ी थी। उसका पति जमीन पर उकड़ू बैठा था ।
छोटी ने जैसे ही सुरभि को देखा दौड़कर उसका दुपट्टा पकड़ लिया।
कजरी अभी भी बेहोश थी ।
तभी ड्यूटी डॉक्टर वहां आए ।
अनुज ने पूछा "व्हाट हैप्पण्ड डॉक्टर ??"
"बेहद एनेमिक ,हीमोग्लोबिन सिर्फ तीन।
इंटरनल ब्लीडिंग हो रही थी कुछ दिनों से शायद। कुछ कह नहीं सकते । वी आर ट्राईंग अवर बेस्ट"।
दोनों बड़ी लड़कियां सुबकने लगी ।
छोटी, सुरभि का हाथ कसकर पकड़े थी।तभी अचानक कजरी ने धीरे से आँखे खोली। उसकी सांस तेज तेज चलने लगी। उसने अपनी पूरी ताकत से दोनों हाथ अनुज और सुरभि के आगे जोड़ दिए।
फिर इशारे से छोटी को अपने पास बुलाने लगी । सुरभि ने छोटी को कजरी के पलंग के पास धकेल दिया । कंपकंपाते हाथों से उसने छोटी का हाथ सुरभि के हाथ पर रख दिया। मानो उसकी आंखें कह रही हो अब तुम्हें ही इसे संभालना है । बड़ी तो दोनों समझदार है सम्भल जाएंगी पर मेरी छोटी ......
सुरभि ने छोटी को कसकर अपने पैरों से चिपका पाया ।
तभी एक जोर की हिचकी आई और कजरी की गर्दन एक ओर लुढ़क गई। बस्ती से उनके आठ- दस रिश्तेदार भी आ गए थे। अनुज कजरी के पति के कंधे पकड़े हुए उसे ढाँढस बंधा रहे थे।
जाते हुए उसके हाथ में कुछ रुपये रख दिए थे क्रियाकर्म के।
दूसरे दिन छोटी को मीना के पास छोड़ सुरभि और अनुज गए थे कजरी के दाह संस्कार में ।
सुरभी का मन डरा सहमा सा था।
पता नहीं कजरी का पति छोटी को बुलवा ना ले या अनुज ही उसे वापस ना भेज दे ।
आते समय कजरी का पति के उसके व अनुज के पैरों के पास बैठ कर रोने लगा ।
"साहब मेरी छोटी को आप अपना लो, यही कजरी की आखिरी इच्छा थी ।"
रास्ते में गाड़ी में दोनों की कोई बात नहीं हुई।
सुरभी की आँखे डबडबाई हुई थी।
घर पहुंचते ही देखा, अनुज किसी वकील से चाइल्ड एडॉप्शन की बात कर रहे थे ।
सुरभि का मातृत्व एक बार फिर अंकुरित होने लगा था।