Dastango - 5 in Hindi Moral Stories by Priyamvad books and stories PDF | दास्तानगो - 5

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दास्तानगो - 5

दास्तानगो

प्रियंवद

हिनहिनाहट, कार के इंजन, आदमियों की चीखें, लगाम पफटकारने और तराशे हुए खुरों के पटकने की आवाजें खत्म हो जाने के बाद पाकुड़ ने बाहर के दरवाजे की छोटी खिड़की बंद की पिफर कमरे में आया। उसने मेज पर रखे खाली गिलास उठा लिए। पफर्श पर शैम्पेन की खाली

बोतलें पड़ी थीं। उन्हें बाहर रखकर वह आया और चुपचाप एक ओर खड़ा हो गया। सब खामेश थे।

कुछ क्षण बाद वाम कुर्सी से उठ गया। खिड़की के बाहर उसकी नजर पड़ी। पगडंडी पर पाकुड़ की बीवी आती दिखायी दी। पीठ पर एक बच्चा बांधे थी। एक हाथ में दो मुर्गियाँ लटकाए थी। दूसरे हाथ में पोटली थी। सर पर एक गठरी थी।

'क्या मैं ऊपर देखूँ एक बार?' पाकुड़ ने पूछा

'हाँ' वाम ने द्घूम कर कहा। पाकुड़ चला गया। लड़की भी उठ गयी।

'पुल अब खुल जाएगा। पर क्या मैं सुबह भी जा पाऊँगी?'

'नहीं'

'क्या तुम्हें पहले यह पता था?'

'क्या'

'राजमार्ग या नए पुल के बारे में'

'नहीं'

'उसे पता है कि हम दूरबीन से सब देख सकते हैं। क्या वह यह भूल जाएगा?'

'क्या पफर्क पड़ता है' वाम ने लड़की को देखा 'तुम खाना खाकर सो जाओ। सुबह देखेंगे क्या हो सकता है।'

लड़की को अचानक लगा कि वह बुरी तरह थक गयी है। उसने खिड़की के बाहर देखा। चाँद आसमान का तीन हिस्सा पार कर चुका था। सीढ़ियों पर पाकुड़ के उतरने की आवाज आयी। उसी आवाज के साथ बरामदा पार करके वह कमरे में आ गया। उसकी आँखें पफैली हुयी थीं। वह हाँपफ रहा था।

'वे बहुत सारे हैं। मैंने कभी एक साथ इतने आदमी नहीं देखे। वे चावल लूट रहे हैं। लड़ रहे हैं। द्घोड़ों की लाशों के ऊपर कूद रहे हैं। लगता है वे द्घोड़ों को भी काटकर उनकी बोटियां ले जाएंगे। चावल मुट्ठी में भरते ही वे खुशी से चीखने लगते हैं। कुछ द्घोड़ों का मफ़ांस मिलने की उम्मीद में नाच रहे हैं। उनके नंगे बदन की हड्डियाँ भी नाचती हुयी दिख रही हैं। उनकी मुरझाई हुयी पीली आँखों में द्घोड़ों के मफ़ांस और उबले चावल की उम्मीदें हैं। उनके बच्चे, औरतें चावल बटोरने में उनकी मदद कर रहे हैं। मैंने उन्हें पुल के नीचे से लम्बा चाकू लेकर आते देखा है। कुछ ही देर में वे द्घोड़ों को काटकर गायब कर देंगे। पुल के नीचे से ...पेड़ों के पीछे से...पानी पर तैरती नावों से वे आ रहे हैं। वे जंगलों से...खानों से...खेतों से...श्मशानों से आ रहे हैं'.....

'वह लड़का?'

'उसे उन्होंने अलग कर दिया है। टूटा पैर लिए वह पुल की दीवार से चिपका हुआ लेटा है।'

'और ये सब?'

'अभी नहीं पहुँचे। पर पहुँचने वाले हैं। सबसे आगे अपफसर की गाड़ी है। उसके पीछे उनके द्घोड़े कच्चे रास्ते पर धूल उड़ाते चौकड़ी भर रहे हैं। उनके बदन हवा में उड़ रहे हैं। सिपाहियों के हाथों में

बन्दूकें हैं। द्घोड़ों के पुट्ठों को थपथपाते हुए वे उन्हें उकसा रहे हैं।' पाकुड़ वाम के बिल्कुल पास आ गया। उसका चेहरा सपफेद था। वाम की आँखों में देखते हुए वह टूटी आवाज में पफुसपफुसाया-

'मैंने गिना। वे दस हैं।'

कमरे में गहरा सन्नाटा छा गया। बच्चे के रोने की आवाज आयी।

'लगता है वह आ गयी' पाकुड़ ने कहा, 'क्या खाना लगा दूँ?'

वाम ने लड़की को देखा

'मैं अभी नहीं खाऊँगी'

'रख दो' वाम ने कहा। पाकुड़ छोटे दरवाजे से बाहर चला गया।

'अब क्या होगा?' लड़की वाम के पास आयी।

'पता नहीं'

'तुम्हें पता है। तुम सब जानते हो।' लड़की ने वाम की कमीज पकड़ ली।

'तुम्हें पता था वे आने वाले हैं। तुमने शैम्पेन तैयार करके रखी थी। उसे लगातार बकबक करने दिया। उसकी किसी बात को नहीं काटा...किसी बात के लिए नहीं रोका। उसे दूरबीन से पुल देखने दिया। तुम जानते थे कि वह पुल पर मरे हुए द्घोड़े देख लेगा। तुम चाहते तो उसे दरवाजे से लौटा सकते थे। तुमने कुछ नहीं किया। सब कुछ वैसे ही होने दिया जैसे हुआ।' वह रुआंसी हो गयी। वामगुल उदासी से उसे देखता रहा। उसने वामगुल की कमीज छोड़ दी।

'तुम्हें पता था?' वाम आगे झुककर उसके बाएं कान में पफुसपफुसाया।

'क्या?'

'अपने होठों का स्वाद?'

लड़की ने सर पीछे खींच कर वाम को देखा। उसकी उदासी में गहरा वीतराग था। शैम्पेन की बूदों की नमी लड़की के होठों पर थी। लड़की कुछ देर उसे देखती रही पिफर उसने अपने गीले होठ वाम के होठों पर रख दिए। वाम के होठों में शैम्पेन से भीगी चाकलेट का स्वाद भर गया।

'तुम सो जाओ मैं देखता हूँ' वाम ने बहुत धीरे से टूटे शब्दों में कहा।

लड़की ने सर हिलाया। वामगुल कमरे से बाहर निकल गया।