Chhoona hai Aasman - 9 in Hindi Children Stories by Goodwin Masih books and stories PDF | छूना है आसमान - 9

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छूना है आसमान - 9

छूना है आसमान

अध्याय 9

‘‘चेतना ऽ ऽ ऽ ऽ ऽ......चेतना ऽ ऽ ऽ ऽ ऽ ’’

चेतना की मम्मी ने चेतना को आवाज लगायी, लेकिन से आवाज का कोई उत्तर नहीं मिला तो वह अपने आपसे कहने लगीं, ‘‘अरे, ये चेतना बोल क्यों नहीं रही है......?’’ उन्होंने उसे दुबारा आवाज लगायी......‘‘चेतना ऽ ऽ ऽ ऽ ऽ......चेतना ऽ ऽ ऽ ऽ ऽ......चेतना की तरफ से फिर कोई उत्तर नहीं मिला। ......आखिर, ये चेतना कर क्या रही है......? इसे मेरी आवाज सुनायी नहीं दे रही है क्या......?

कहती हुई चेतना की मम्मी उसके कमरे में आती हैं और उसे कमरे में न पाकर वह बड़बड़ाती हैं, ‘‘अरे, चेतना तो अपने कमरे में है ही नहीं ......कहाँ चली गयी......? ‘‘चेतना ऽ ऽ ऽ ऽ ऽ......चेतना ऽ ऽ ऽ ऽ ऽ......अरे, घर में भी कहीं नहीं है......? फिर कहाँ चली गयी......? ......मैं तो उसे घर में ही छोड़कर गयी थी ? कहीं ऐसा तो नहीं कि घर में अकेले उसका मन नहीं लग रहा हो तो वह पड़ोस में मिसेस कपूर के यहाँ चली गयी हो......लेकिन वह वहाँ जाती तो नहीं है......? फिर भी देख आती हूँ, हो सकता है, आज चली गयी हो। मन में कहती हुई मेनका मिसेस कपूर के घर जाती हैं।

‘‘ट्रिन......ट्रिन......ट्रिन......’’

‘‘कौन है......? काॅल बेल की आवाज सुनकर मिसेस कपूर ने अन्दर से आते हुए पूछा।

‘‘मिसेस कपूर मैं मेनका।’’ बाहर से मेनका ने कहा।

‘‘ओह मेनका बहन तुम, आओ अन्दर आओ।’’

‘‘नहीं मिसेस कपूर, अभी अन्दर नहीं आऊँगी, बस इतना बता दीजिए कि हमारी चेतना तो आपके यहाँ नहीं आयी......?’’

‘‘नहीं, चेतना तो यहाँ नहीं आयी......क्यों कहीं चली गयी क्या......?’’

‘‘हाँ, घर में नहीं है, तो मैंने सोचा, कि शायद आपके यहाँ आ गयी होगी। अच्छा मिसेस कपूर चलती हूँ, फिर आऊँगी।’’

‘‘ओके मेनका बहन, चेतना मिल जाये तो फोन पर बता देना।’’ मिसेस कपूर ने कहा।

‘‘जी, बता दूँगी।‘‘ चेतना की मम्मी वहाँ से चली आयीं।

‘ट्रिन......ट्रिन......ट्रिन......’’ चेतना के पापा के मोबाइल फोन की घंटी बजी, तो उन्होंने अपनी बाइक एक तरफ रोक कर अपनी जेब से मोबाइल निकाला और स्क्रीन पर मेनका का नाम देखकर मन में बोले, ‘‘मेनका का फोन......? ......सब ठीक तो है......?’’

कहकर उन्होंने फोन रिसीव करते हुए कहा, ‘‘हाँ मेनका बोलो, कैसे फोन किया......?’’

‘‘सुनिए, क्या आप अपने आॅफिस पहुँच गये......?’’

‘‘नहीं, बस पहुँचने वाला हूँ, क्यों, कोई काम है क्या......?’’

‘‘एकदम घबराते हुए, वह क्या है कि अपनी चेतना घर में नहीं है।’’

‘‘चेतना घर में नहीं है......तो कहाँ है......?’’ उन्होंने चैंक कर कहा।

‘‘पता नहीं। अलका को स्कूल छोड़कर आने के बाद उसे नाष्ता करने को बुलाने के लिए मैं उसके कमरे में गयी, तो वह अपने कमरे में नहीं थी।’’

‘‘ऐसा कैसे हो सकता है मेनका, तुम ठीक से देखो, वह वहीं कहीं होगी।’’

‘‘मैंने कहा न कि मैंने उसे अड़ोस-पड़ोस, सब जगह देख लिया, लेकिन वह कहीं भी नहीं है।’’

‘‘अच्छा ठीक है, मैं घर आ रहा हूँ।’’

‘‘हाँ जल्दी आ जाओ, मेरा दिल घबरा रहा है।’’ चेतना की मम्मी ने कहकर फोन काट दिया।

‘‘क्या हुआ मेनका, चेतना का कुछ पता चला......?’’ घर में घुसते ही चेतना के पापा ने उसकी मम्मी से पूछा।

‘‘नहीं कुछ पता नहीं चला। सब जगह देख आयी।’’ चेतना की मम्मी ने दुःख व्यक्त करते हुए कहा।

‘‘चेतना, यह सब तुम्हारी लापरवाही का नतीजा है, तुम उसका बिल्कुल भी ध्यान नहीं रखती हो। ......तुमने ठीक से देख तो लिया है, कहीं ऐसा तो नहीं कि वह अलका के साथ पार्क में खेलने चली गयी हो......?’’

चेतना के पापा की बात पर उसकी मम्मी का दिमाग खराब हो जाता है। वह गुस्से से गरज कर कहती हैं, ‘‘कहीं आपका दिमाग तो खराब नहीं हो गया है......अलका स्कूल गयी है, और मैं ही उसे स्कूल छोड़कर आ रही हूँ।’’

‘‘दिमाग मेरा नहीं मेनका, दिमाग तो तुम्हारा खराब हो गया है। क्योंकि हर वक्त तुम्हारा दिमाग चैथे आसमान पर रहता है, जब तुम्हें बात करने की तमीज नहीं है तो मत किया करो किसी से भी बात। हर वक्त तुम ही चेतना का पीछा लिये रहती हो। तुम्हारी जली-कटी और जहर की तरह कड़वी बातों ने चेतना का दिल तोड़ दिया है। जब देखो, तब उसे न जाने क्या-क्या बकती रहती हो......उसे ताने मारती रहती हो......उसका हौसला बढ़ाने की बजाय उसका मनोबल गिराती रहती हो। पता नहीं मेरी बच्ची कहाँ और किस हाल में होगी ? समझ में नहीं आ रहा है कि उसे कहाँ जाकर ढूंढू......? कहते हुए वह चेतना को ढूँढ़ने के लिए जाते हैं।’’

स्कूल की छुट्टी के बाद अलका अपने घर वापस आयी। आते ही उसने अपनी मम्मी से षिकायत-भरे लहजे में कहा, ‘‘मम्मी, आज आप मुझे लेने के लिए स्कूल क्यों नहीं आयीं......? अलका की बात पर उसकी मम्मी कोई जवाब नहीं देती हैं। उन्हें खामोष देखकर अलका पुनः कहती है, ‘‘क्या हुआ मम्मी, आप इस तरह खामोष क्यों बैठी हैं......?’’

अलका के सवाल पर मेनका का मन भर आता है। वह अलका को अपने आपसे चिपटा लेती है और लगभग रोते हुए कहती है, ‘‘बेटा, आज तुम्हारी चेतना दीदी पता नहीं कहाँ चली गयी।’’

इतना सुनते ही अलका चैंक कर अपनी मम्मी से अलग हो जाती है और कहती है, ‘‘कहाँ गयीं

दीदी......?

‘‘पता नहीं।’’

‘‘पता नहीं क्या होता है मम्मी, आपने ही दीदी से कुछ ऐसा कह दिया होगा, जिसकी वजह से वह घर छोड़कर चली गयी होंगी।’’ कहकर अलका रोने लगती है और रोते-रोते कहती है, ‘‘वैसे भी दीदी आपकी आँखों में किरकिरी की तरह खटकती रहती थीं। कभी भी आपने उन्हें प्यार नहीं किया, हमेषा उन्हें झिड़कती रहती हो, उनके अन्दर कमियाँ निकालती रहती हो। वह जो भी करना चाहती हैं, आप उन्हें यह कहकर निराष कर देती हो कि तुम यह नहीं कर सकतीं, तुम वो नहीं कर सकतीं। तुम खुद तो खड़ी नहीं हो सकतीं, और करने के लिए सबकुछ करना चाहती हो।’’

अलका की बात पर उसकी मम्मी एकदम भड़क उठती हैं और कहती हैं, ‘‘हाँ......हाँ......मैं ही उसकी दुष्मन थी, मैंने ही उसे इस घर से चले जाने के लिए मजबूर किया है......सब लोग मुझे ही कह रहे हैं, जैसे सारा दोष मेरा ही है।’’

‘‘हांँ सारा दोष तुम्हारा ही है मेनका......तुम्हारे ही सौतेले व्यवहार से तंग आकर चेतना यह घर छोड़कर चली गयी है। ......अब तो तुुम्हारे मन की हो गयी......अब तो तुम्हें खुषी हो रही होगी।’’ अलका के पापा ने अन्दर आते हुए कहा।

‘‘आप मुझे क्यों बक रहे हो......? ......मैंने उसके साथ क्या सौतेला व्यवहार किया......?’’ मेनका ने लगभग रोते हुए कहा।

‘‘क्यों, जब भी वह कुछ अच्छा करने की सोचती थी, तो तुम ही उसमें कमियाँ निकालने बैठ जाती थीं, उसे अपाहिज होने का अहसास दिलाती थीं। बजाय उसका उत्साहवर्धन करने के, उसे निराष कर दिया करती थीं...... तुमने कभी भी उससे सहानुभूति नहीं दिखायी......कभी भी उससे प्यार और स्नेह से बात नहीं की......और न ही तुमने कभी उसके किसी काम की प्रषंसा की, जबकि अलका के छोटे-से-छोटे काम को भी तुम सराहती हो......उससे जब भी कुछ कहती हो, तो प्यार से कहती हो......तो क्या यह सब बातें बच्चे के भावुक मन को ठेस नहीं पहुँचाती है।’’

‘‘पापा, अब आप लोगों के आपस में लड़ने-झगड़ने से कोई फायदा नहीं है, आप चेतना दीदी के रोनित सर को फोन करके पता करिये, हो सकता है, उन्हें दीदी के बारे में कुछ मालूम हो......?’’

अलका के कहने पर उसके पापा रोनित को फोन करते हैं।

ट्रिन......ट्रिन......ट्रिन......फोन की घण्टी घनघनाती है।

‘‘हेलो......’’ रोनित ने फोन रिसीव करते हुए कहा।

‘‘हेलो, रोनित बेटा, क्या चेतना के बारे में तुम्हें कुछ पता है......?’’

‘‘चेतना के बारे में......? ......क्या हुआ चेतना को......?’’ रोनित ने चैंक कर कहा।

‘‘बेटा, चेतना आज सुबह से घर पर नहीं है, पता नहीं कहाँ चली गयी।’’

‘‘चली गयी......? ऐसा कैसे हो सकता है अंकल, चेतना अकेले कहाँ जा सकती है ? और......चेतना तो चल-फिर भी नहीं सकती है, ......फिर वह अकेले कहाँ और कैसे चली गयी......?’’

‘‘पता नहीं बेटा, हम लोग तो सुबह से बहुत परेषान हैं। सब जगह उसे ढूँढ़ आये उसको, लेकिन उसका कहीं कुछ पता नहीं चला। हम सोच रहे थे कि शायद उसने तुम्हें कुछ बताया होगा, इसीलिए मैंने तुम्हें फोन किया था।

‘‘यह तो बहुत ही आष्चर्य की बात है कि चेतना घर से चली गई और किसी को कुछ पता भी नहीं चला ? और उसने मुझे भी कुछ नहीं बताया। वैसे तो वह सारी बातें मुझे जरूर बताती है, लेकिन यह बात उसने मुझसे भी छिपायी, मुझे यकीन ही नहीं हो रहा है। अंकल, चेतना है तो बहुत समझदार लड़की, फिर उसने ऐसा निर्णय क्यों ले लिया......? बात कुछ समझ में नहीं आ रही है ?’’

‘‘यही तो हम सब भी सोच रहे हैं। पता नहीं ऐसे अचानक वह कहाँ चली गयी। आष्चर्य की बात तो यह है कि उसे किसी ने भी जाते हुए भी नहीं देखा।’’ चेतना के पापा ने रोनित की बात का समर्थन करते हुए कहा।

क्रमशः ...........

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बाल उपन्यास: गुडविन मसीह