Nakti - part 1 in Hindi Fiction Stories by Rohitashwa Sharma books and stories PDF | नकटी - भाग 1

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नकटी - भाग 1

संजय रास्ता पूछता हुआ देवीपुरा की तरफ जा रहा था। सड़क पर देवीपुरा का बोर्ड देखकर समझ गया कि देवीपुरा पास ही है। उसने बोर्ड मेंदिखाई दिशा में मोटरसाइकिल मोड़ दी। कुछ घर नज़र आने लगे थे। रास्ते चलती महिला से उसने पूछा
" जोगी कानदास कहाँ रहते हैं?"
"बस थोड़ा आगे दाहिनी तरफ उनकी झोंपडी दिख जाएगी।"
संजय झोंपडी में पहुँचा। वहां जोगी कानदास अपनी झोंपडी को ठीक करने में लगे हुए थे
"जय भोले नाथ"
"बम बम भोले। बेटा यहाँ के तो नहीं लग रहे, कहाँ से आये हो?"
"यहीं का हूँ। दूर आपने पहुँचाया। मैं हरसी का बेटा संजय।"
कानदास सुनकर घबरा गये। उसे पकड़कर अंदर लेकर गए
"जोर से मत बोल। तुझे यहाँ का पता किसने दिया?"
"महेश मामा ने। अब यह मत कहना आपने उनको मना किया था। मैंने जबरदस्ती उनसे पूछा था।"
"लेकिन तुम्हें जबरदस्ती करने की जरूरत क्यों आन पड़ी।"
"एक लडकी ने मुझे कहा 'जा पहले अपनी माँ की नथनी और बाली ला। आप बताओ कहाँ है मेरी माँ की नथनी और बालियाँ?"
"उस लड़की के पिता का क्या नाम है?"
"विनोद कुमार।"
कानदास ने लंबी साँस छोड़ते हुए कहा
"अच्छा हुआ जो विनोद शहर चला गया। यहाँ रहता तो उसे भी मार डालते।"
"कौन, किसके लिए कह रहे हो?"
"रहने दे संजय, जो बीत गया सो बीत गया। अब तू भी शहर जा और हमें भी आराम से रहने दे।"
तभी वहाँ एक व्यक्ति आ गया
"जोगी डे… ओ जोगी डे… कहाँ मर गया। बाहर निकल। किस किस को बुलाता है यहाँ। एक टांग तो हमने तोड़ ही दी दूसरी भी तोड़ देंगे।"
"ये है आपका आराम! कौन है ये बदतमीज़?"
"नवल है। यहाँ का सबसे बदमिजाज व्यक्ति।"
" आप रुकिए मैं जाता हूँ।"
"नहीं संजय।"
"आप रुकिये तो सही।"
संजय बाहर आ गया।
"अच्छा तो किसी ने सच ही कहा है। कौन है ? कहाँ से आया है रे छोरे?" संजय को देखकर नवल ने पूछा।
"आप से मतलब?"
"शहरी लग रहा है। शक्ल से ही गुंडा लग रहा है। ये शरीफ लोगों का गाँव है गुंडों का नहीं।"
"शराफत तो तेरी आवाज़ से ही टपक रही है।जाता है कि लेता है?"
"तू जानता नहीं किस से बात कर रहा है। इस जोगी डे से पूछ लेना। अब तक लंगड़ा चलता है।"
"ओ कुएँ के मेंढक। कभी बाहर भी निकला कर। अब मैं तेरी वो हालत करूँगा कि तू पैदल नहीं जा पायेगा।"
संजय ने नवल को पकड़ लिया और उठा कर जमीन पर दे मारा। नवल संजय की हिम्मत और हमले से घबरा गया।
"अच्छा नहीं किया तूने, बहुत पछतायेगा तू।” कहता हुआ नवल वहाँ से चला गया।
"संजय तूने अच्छा नहीं किया। अब ये लोग मेरा यहाँ रहना मुश्किल कर देंगे।"
"मैं आ गया हूँ। अब आपको डरने की जरुरत नहीं है। आप मुझे मेरी माँ के बारे में बताइए।"

" तो सुनो, ये जो दूर दूर तक खेत दिखाई दे रहे हैं इसमें आधी जमीन तुम्हारी और आधी तुम्हारे पिता बसंत के ताऊ के बेटों केदार,विक्रम औरनवल की है। बसंत अकेला था वे लोग तीन । बसंत की जमीन हमेशा उनकी आंखों में खटकती थी। हर जगह बसंत का विरोध करते थे।"
"ऐसा क्यों?"
"नवल को तो अभी तुमने देख ही लिया। तुम्हारे पिता बसंत और नवल हमउम्र थे। तुम्हारे पिता जितने समझदार और शालीन थे नवल उतना हीउद्दंड और नासमझ।"

पुरानी विस्मृतियों में खोते हुए कानदास ने कहा
”गाँव में सरपंच के चुनाव थे। केदार सरपंच का अकेला दावेदार था। उसकी गुंडागर्दी से तंग गांववालों ने तुम्हारे पिता बसंत को आग्रह कर चुनावमें खड़ा कर दिया था। केदार ने गाँव मे हर घर में जाकर धमकाया । कुछ लोगों को शराब भी पिलाई।...
चुनाव का नतीजा आने वाला था। पंचायत घर के आगे भीड़ जमा हो गई थी। तभी निर्वाचन अधिकारी खड़ा हुआ और बोला

"मैं, निर्वाचन अधिकारी, ग्राम पंचायत चुनाव देवीपुरा, मतगणना के आधार पर श्री बसंत कुमार को निकटतम प्रतिद्वंद्वी श्री केदार मल से 821 वोटसे विजयी घोषित करता हूँ। बसंत कुमार जी कृपया शपथ के लिये आगे आयें।
बसंत कुमार आगे आये। निर्वाचन अधिकारी ने शपथ पत्र का प्रारूप उनको थमाया और बोले
"मैं.."
"मैं बसन्त कुमार।"
"शपथ लेता हूँ कि..
"शपथ लेता हूँ कि..."
केदार वहाँ से झल्लाता हुआ बाहर निकल गया
"देख लूँगा इस सरपंच के बच्चे और गाँव वालों को"
****
एक दिन केदार अपने भाई विक्रम के साथ बैठा था। विक्रम ने कहा
"भैया हमें नवल की शादी का भी सोचना चाहिए। ये बसंत का हमउम्र है। बसंत की शादी हुए 6 साल हो गये हैं और इसका अभी तक कोईठिकाना ही नहीं"
"कब से सोच रहा हूँ। कुछ लोगों से बात भी की लेकिन इस उद्दंड निकम्मे को कोई लड़की देने को तैयार हो तब ना। तुम्हारी साली भी तो बड़ी होगई है, तू बात क्यों नहीं करता? एक बार तुम्हारी पत्नी से कहो तो सही।“ विक्रम की पत्नी को उधर से गुजरते हुए देखकर केदार ने विक्रम से कहा।
विक्रम ने ऊंचे स्वर में पत्नी बिमला को आवाज दी
"सुनो तो, भैया नवल के लिए तुम्हारी बहन के लिए कह रहे हैं।"
"मैं तो खुद ही इस गँवारू गाँव में फँस गयी।" उधर से बिमल की आवाज़ आई।
"एक बार अपने बाप से बात तो करो।"
"मेरा बाप तो इस गाँव की ओर मुँह कर पेशाब भी नहीं करता।" बिमला ने हाथ नचाकर कहा।
"चुप रहो, बड़े छोटे का कोई कायदा ही नहीं है।" विक्रम गुस्साया।
तभी एक आदमी दौड़ता हुआ आया
"केदार भाई, केदार भाई, गाँव में पंचायत जुड़ी है। आपको बुलाया है।"
"क्या मामला है?"
"एक औरत नवल के खिलाफ छेडख़ानी का आरोप लगा रही है।"
केदार चौंक गया।
"ये नवल भी ना। काम धाम कोई करता नहीं और कोई ना कोई ऐसी हरकत कर देता है जिससे सब परेशानी में आ जाते हैं। कहाँ है पंचायत?"
"गाँव की चौपाल में बरगद के पेड़ के नीचे।"

केदार ने सिर पर पगड़ी लगाई और बेंत हाथ में लेकर विक्रम के साथ पंचायत पहुँच गया। बरगद के पेड़ के नीचे चबूतरे पर बसंत सहित पंच लोगबैठे थे। चबूतरे के चारों ओर ग्रामीण मर्द और औरतें अलग अलग झुण्ड में बैठे थे। केदार मर्दों के झुण्ड के पीछे खड़ा हो गया। उसने एक बारनवल की ओर देखा जो सिर झुकाये खड़ा था। केदार को आया देखकर बसंत ने आवाज़ लगाई
"केदार भाई जी, ऊपर आजाओ।"
"मेरे भाई के खिलाफ आरोप है। मैं कैसे पंचों में शामिल हो सकता हूँ?"
"पंच तो परमेश्वर होते हैं।"
सबने कहा "जाइये। ऊपर जाइये।"
केदार भी पंचों में शामिल हो गया। पंचायत शुरू हो गई एक पंच खड़ा हुआ और बोला
"पंचायत की कार्यवाही आरम्भ हो रही है। किसी को कोई शिकायत हो तो पंचों को कह सकता है।"
एक औरत हाथ जोड़कर खड़ी हुई और बोली
"मेरी पंच परमेश्वर से अर्जी है कि नवल ने मुझे तंग कर रखा है। रास्ते में कहीं भी मिल जाता है तो गंदी गंदी बातें करता है, अश्लील इशारे करताहै। आज तो उसने मेरा हाथ ही पकड़ लिया।"
"नवल तुम्हें सफाई में कुछ कहना है?"
नवल सिर झुका कर खड़ा रहा। सभी पंचों ने आपस में मंत्रणा की। मंत्रणा उपरांत बसंत खड़ा हुआ और बोला
"साथियो, आजकल पंचायत न्याय का ज़माना नहीं रहा लेकिन हर छोटी बड़ी बात के लिए कोर्ट में भी नहीं जा सकते। न ही कोर्ट के पास समयहै। शारिरिक सजा हम दे नहीं सकते इसलिये सभी पंचों ने बहुमत से निर्णय लिया है कि नवल इस बहन की जूती सिर पर रखकर पंचायत केचारों ओर चार चक्कर लगायेगा।"
ग्रामीणों ने तालियां बजाकर फैसले का स्वागत किया। तभी केदार खड़ा हुआ और बोला
"हालांकि मैं पंचों में शामिल हूँ लेकिन मैं इस हरामखोर का भाई भी हूँ। इसको बड़ा करने में जरूर हमसे गलती हुई है। मैं इसको इतनी सरलसजा के पक्ष में नहीं हूँ।"
केदार ने वहाँ पास में पड़ी एक लकडी उठायी और नवल को मारने लगा। पीछे पीछे केदार और आगे आगे नवल मार खाते हुए घर की तरफ दौड़ा।नवल रोते हुए बोला
"भाई जी अब तो रुक जाओ। घर आ गया है।"
"तू ने तो इज्जत मिट्टी में मिलाने में कोई कसर नहीं छोड़ी थी। वो तो मैं मारने के बहाने तुझे यहाँ भगा लाया। तू ने जूती सिर पर उठा ली होती तोहम तो किसी को चेहरा दिखाने लायक नहीं रहते।"
"भाई जी यह सब बसंत का करा धरा है। सरपंच बनने के बाद बहुत घमंड आ गया है। हमें बेईज्जत करने का कोई मौका नहीं चूकता।" विक्रम नेआग को हवा दी।
"मैं सब समझता हूँ विक्रम। मैं ऐसा बदला लूँगा पूरा गाँव याद रखेगा साथ ही नवल का भी काम हो जाएगा।"
केदार ने विक्रम की तरफ झुकते हुए कान में कुछ कहा। केदार और विक्रम कुटिल मुस्कान लिए हँस पड़े।
"भाई जी आपका जवाब नहीं।" विक्रम बोला
"हरसी और कुँवारी लड़की में क्या फर्क है। छः साल हो गये अभी तक कोई संतान नहीं हुई। ये बसंत है ही नपुंसक। तुम देखते जाओ जर जोरूजमीन तीनों हमारी होंगी। बसंत के साथ हरसी का नखरा भी कुछ ज्यादा बढ़ गया है। मैं देख रहा था हरसी भी शिकायत करने वाली औरत कोउकसा रही थी।"
दोनों फिर मुस्कुरा दिए। नवल भी पिटने के बावजूद केदार की बातों से खुशी महसूस कर रहा था।
***
बसंत और हरसी गाँव की खुशहाली के लिए दिन रात व्यस्त रहते। एक दिन गाँव के कुछ लोग बसंत के पास आये
"सरपंच जी, इस बार गेहूँ की फसल बहुत अच्छी है लेकिन बिजली का ट्रांसफॉर्मर कई दिन से फुका होने से ट्यूबवैल नहीं चल रहे हैं। फसल सूखरही है।"
"मैं अभी शहर जाता हूँ। बिजली वाले इंजीनियर से मिलकर आता हूँ।"
"हम भी साथ चलें।"
"अभी नहीं। अभी तो मैं अकेला ही जा रहा हूँ। जरूरत पड़ी तो आपको भी साथ ले चलूँगा।"
गाँव वाले बसंत को धन्यवाद देते हुए चले गये। गाँव वालों के जाने के बाद बसंत ने हरसी से कहा
"क़स्बे की तरफ़ जा रहा हूँ। तुम बताओ तुम्हारे लिए क्या लाऊँ?"
"कुछ अमिया लेते आना।" कंचन ने मुस्कुरा कर कहा।
"ठीक है।" बसंत ने कह दिया। उसे कुछ देर में समझ आया तो वह उछल कर बोला
“एक बार फिर बताना क्या लाना है? मैं भूल गया।"
"तुम्हें गाँव के अलावा और कुछ याद कहाँ है! अब तुम्हारे ऊपर दोहरी जिम्मेदारी आने वाली है।" हरसी ने लजाते हुए कहा।
“देखना मैं जैसे सरपंच की जिम्मेदारी उठा रहा हूँ वैसे ही अपने परिवार की जिम्मेदारी भी उठाऊँगा। अपनी संतान को अच्छी शिक्षा दिलवाउंगाऔर जिम्मेदार नागरिक बनाऊँगा।“

बसंत जीप लेकर शहर गया। वहाँ इंजीनियर से बात की। इंजीनियर ने तुरंत ट्रांसफॉर्मर बदलने वालों को फोन कर दिया। वापस आते समयबसंत ने कुछ अमिया, फल, मिठाइयां ली और गाँव को चल दिया। गाँव के पास पहुँचते ही उसने देखा केदार अपने भाइयों के साथ सूखा पेड़ काटरहा है। बसंत ने जीप रोक कर आवाज़ दी
"केदार भाई राम राम, मैं कुछ सहायता करूँ।"
"अरे बसंत तुम बड़े आदमी हो गये हो। पेड़ तो लगभग काट ही लिया है बस थोड़ा धक्का लगाने की जरूरत है।"
"हाँ हाँ क्यों नहीं।अभी पेड़ गिरा देते हैं।" बसंत जीप से नीचे आ गया। विक्रम और नवल रस्सी पकड़े हुए थे । बसंत उनकी सहायता के लिएउनकी ओर आ रहा था लेकिन जैसे ही वह पेड़ के पास से गुजरा नवल और विक्रम ने रस्सी खींच ली और दौड़ पड़े। पेड़ बसंत पर गिर गया। पेड़की एक डाल बसंत के पेट को फाड़ती हुई आर पार हो गई।
नवल और विक्रम गाँव की दहाड़ते हुए दौड़े
"भाई रस्सा खींचते वक़्त पेड़ बसंत के ऊपर गिर गया। कोई बचाने आओ।"
गाँव वाले बचाने के लिए दौड़े लेकिन तब TL बसंत के प्राण पखेरू उड़ चुके थे। जोगी कानदास को खबर मिली तो वह भी दौड़ता हुआ आया।केदार, विक्रम, नवल दहाड़ें मार कर रो रहे थे। कानदास को देखकर बोले
"कानदास हम तो अनाथ हो गये। हमारा भाई, गाँव का सरपंच और तुम्हारा दोस्त हमें छोड़कर चला गया।"
कानदास की आँखे लाल हो गई। उसने तीनों को घूरकर देखा।
***


तो
कई
गलत
अर्थ
निकलेंगे।
"