Ulajjn - 5 in Hindi Moral Stories by Amita Dubey books and stories PDF | उलझन - 5

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उलझन - 5

उलझन

डॉ. अमिता दुबे

पाँच

एक दिन पापा घर पर ही थे। आज सुबह से ही उनकी तबियत कुछ खराब थी। इसी कारण बादल भी रहमान के साथ नहीं गया था। कई दिनों से तो वह स्कूल भी नहीं जा रहा था। पापा के पूछने पर उसने छुट्टी होने की बात कही। पापा सामने तख्त पर लेटे थे और वह दरवाजे के पास कुर्सी डालकर किताब लेकर बैठ गया। किताब सामने खुली थी और उसका ध्यान कहीं और था। रह-रहकर उसे रहमान की याद आ रही थी। वास्तव में उसे पान-मसाले की तलब लग रही थी जिसका वह पिछले छः महीनों में आदी हो गया था।

पहले पहल रहमान उसे कभी समोसा, चाय, हाॅफ प्लेट चाउमीन या छोला भटूरा खिला देता था बाद में कभी-कभी वह कुछ पैसे भी देने लगा। जब कहीं आॅटो रोककर रहमान तम्बाकू वाला पान मसाला खाता तो वह भी एक दो स्वीटी सुपारी का पाउच खरीद लेता जिसे वह थोड़ा-थोड़ा करके दिन भर में खाता रहता। आॅटो में घूमने पर उसे झपकी सी आने लगती थी। कई बार रहमान ने टोका भी था ये क्या खाता है रे खाना है तो यह मसाला खा मजा आ जायेगा। रहमान के बहुत कहने पर वह कभी कभार चख लेता था। पहली बार तो उसे चक्कर सा आ गया जिसका रहमान ने खूब मजाक बनाया था। लेकिन फिर वह माहिर होता चला गया। अब तो पूरा पाउच खोलकर एक साथ चबा डालता है और उसे कोई असर नहीं होता था।

पापा के घर पर होने से आज वह मसाला नहीं खा पा रहा था। तलब तो इतनी तेज लग रही थी उससे रुका नहीं जा रहा था। इधर-उधर पहलू बदलते-बदलते जब वह परेशान हो गया तो वह दोस्त के यहाँ से किताब लेने की बात कहकर तीर की तरह बाहर निकल गया। पापा पीछे से पुकारते ही रह गये।

पन्द्रह मिनट बाद जब बादल लौटकर आया तो स्कूल का चपरासी उसके दरवाजे पर खड़ा था और पापा किसी कागज को देख रहे थे। बादल का कलेजा धक्क से हो गया। पापा बड़े ध्यान से पत्र पढ़ रहे थे। पत्र में उन्हें अगले दिन सुबह आठ बजे बच्चे यानि बादल के साथ स्कूल बुलाया गया था। रात बहुत मुश्किल से कटी बादल की। पापा के पूछने पर कि स्कूल क्यों बुलाया गया है, बादल ने अनभिज्ञता जता दी लेकिन मन ही मन वह जानता था कि उन्हें स्कूल किसलिए बुलाया गया है। सुबह उठकर पहले तो उसने सोचा कि पेट दर्द का बहाना बनाकर पापा के साथ न जाये लेकिन फिर उसकी बुद्धि ने कहा कब तक सच्चाई छुपा सकेगा वह। इसलिए मन मारकर चल दिया।

स्कूल पहुँचकर बादल का रिपोर्ट कार्ड पापा के सामने आया साथ ही क्लासटीचर ने स्पष्ट कर दिया कि वह ग्यारहवीं कक्षा में सभी विषयों में बुरी तरह फेल होने के कारण कक्षा बारह में नहीं जा सकता। वह पढ़ने में इतना कमजोर है कि अब यह स्कूल उसे ग्यारहवीं में भी दोबारा एडमीशन नहीं दे सकता। इसलिए उसका नाम काट दिया गया है। पापा ने बहुत कहा कि कम से कम उसे एक मौका और दिया जाय अब यह ठीक से पढ़ेगा लेकिन उनकी बात नहीं सुनी गयी। पापा ने फोन पर अपने साहब से बात की। उनके हस्तक्षेप करने पर उसे ग्यारहवीं पास की मार्कशीट देकर टी0सी0 दे दी गयी। इस तरह एक हफ्ते के अन्दर वह ग्यारहवीं पास तो हो गया लेकिन स्कूल छोड़ना पड़ा।

बहुत प्रयास के बाद घर के पास वाले स्कूल में कक्षा बारह में उसे प्रवेश मिल सका। पहले वाले स्कूल और इस स्कूल में जमीन आसमान का अन्तर था। बादल का मन पहले ही पढ़ाई में नहीं लगता था अब तो और भी उदासीनता हो गयी। पापा ने बादल को खास डाँटा तो नहीं हाँ इतना अन्तर अवश्य हुआ कि अब वे साढ़े पाँच-छः बजे तक घर लौटने लगे। इसी बीच बादल के मामा सपरिवार शहर आ गये। उन्होंने सौमित्र की काॅलोनी के गेट पर दूध-मक्खन आदि की दुकान खोल ली। अब स्कूल से लौटकर बादल मामा के पास दुकान पर आ जाता। घर में मामी और छोटे बच्चे के कारण उसकी पढ़ाई में हर्जा न हो इसलिए मामा के पास दुकान पर रहना ठीक है। ऐसा पापा का कहना था। एक से दो भले। कभी मामा को कहीं जाना होगा तो बादल से सहारा रहेगा।

बादल के लिए कहना मानने के अलावा और चारा भी क्या था ? नये स्कूल के मास्टर साहब घर पर ट्यूशन पढ़ाने आने लगे थे। दो महीने खुलकर स्कूल एक महीने के लिए बन्द हो गया था। लेकिन मास्टर साहब ने आना बन्द नहीं किया था इसलिए बादल भी गाँव नहीं जा पाया था। बादल के मामा को बच्चों के क्रिकेट क्लब के बारे में पता चला था। उस क्लब के कर्ताधर्ता के घर मामा जी दूध पहुँचाते थे इसलिए उनसे कहकर बादल को बच्चों के साथ क्रिकेट सीखने और खेलने के लिए मामा ने ही जबर्दस्ती भेजा था। पहले तो वह चिढ़कर गया था लेकिन टीम पूरी न होने के कारण जब उसे वहाँ महत्त्व मिलने लगा तो उसे अच्छा भी लगने लगा था।

इस प्रकार रहमान से उसका साथ छूट गया था लेकिन पान मसाले से नाता वह नहीं तोड़ पाया था। दबा-छुपाकर वह खा ही लेता था। मामा भँाप जाते थे उसे डाँटते भी थे और समझाते भी थे। हाँ, पापा से शिकायत नहीं करते थे। बादल की पढ़ाई कुछ पटरी पर आ गयी थी लेकिन उसे अब पाबन्दियों से गुस्सा आने लगा था। कभी-कभी तो यह गुस्सा इतना बढ़ जाता कि उसका मन करता कि अपने आस-पास सब कुछ तोड़-फोड़ डाले या कहीं भाग जाये। अभिनव के व्यंग्य पर उसका गुस्सा फूट पड़ा था जिसका घातक परिणाम सामने आ गया था। बादल की अम्मा दो दिन पहले ही गाँव से शहर आयीं थीं। बादल की मामी की कुछ तबियत खराब थी और अम्मा को भी बहुत दिनों से घुटनों का दर्द परेशान कर रहा था इसलिए इलाज करवाना था। आते ही उन बेचारियों को यह सब देखना पड़ा। बादल का भविष्य क्या होगा यह तो बाद की बात थी बादल इस मुसीबत से कैसे छूटेगा इस पर बड़े लोग विचार कर रहे थे। अंशिका की कुछ सहेलियाँ दशहरे की छुट्टियों में पिकनिक जाने का प्रोग्राम बना रहीं थी। यह पिकनिक किसी पार्क में नहीं मनायी जानी थीं। वे सब मल्टी फ्लैक्स में पिक्चर देखना और मैकडी में पिज्जा और बरगर खाना चाहती थीं। कोल्डड्रिंक और आइसक्रीम के साथ। घर में पूछने से पहले अंशी ने सौमित्र से चर्चा करना उचित समझा।

पूरा प्लान सुनकर सौमित्र ने कोई उत्साह नहीं दिखाया। अंशी के पूछने पर बस इतना ही कहा ‘ये पढ़ने वाले बच्चों के काम नहीं हैं। वैसे अभी तुम सब इतनी बड़ी कहाँ हो गयी हो कि तुम्हें माॅल में अकेले घूमने की इजाजत मिल जाय। तुम्हारे साथ कितनी लड़कियाँ जाना चाहती हैं ?’

‘दस लड़कियाँ’

‘सब अपने क्लास की ही हैं।’

‘नहीं कुछ बी सेक्शन की और कुछ बड़े क्लास की दीदियाँ भी हैं।’

‘जिनमें भूमि जरूर होगी।’

‘हाँ है तो, लेकिन तुम भूमि से इतना चिढ़ते क्यों हो ?’

‘तुम अच्छी तरह जानती हो कि मैं क्यों चिढ़ता हूँ।’

‘सोमू ! देखो अब तुम ज्यादती कर रहे हो।

भूमि ने फिर कभी मोबाइल के बारे में कोई बात नहीं की, मेरे मना करने के बाद से। वैसे आजकल मोबाइल तो सभी रखते हैं। देखा जाय आज के समय में जरूरत बन गया है मोबाइल भी। अगर मेरे पास मोबाइल होता तो मैं अपने पापा से रोज बात करती और अपनी दादी से भी कम से कम हफ्ते में तीन दिन तो जरूर करती। अगर मैं नहीं कर पाती तो वे लोग ही कर लेते।’ अंशिका उदास होने लगी।

‘तुम इस फोन से बात क्यों नहीं करतीं ? जब यह बात तय हो गयी थी कि अंकल और दादी से इसी फोन पर बात की जायेगी तुम खुद ही याद नहीं रखतीं तो मैं क्या करुँ ?’ सोमू ने टोका।

‘जब से तुम्हारी दादी आयी हैं तब से मुझे संकोच होने लगा है।’

‘दादी से कैसा संकोच। जब मैंने मम्मी से पूछ लिया है तो तुम्हें जब इच्छा हो बात कर लेनी चाहिए। वैसे दादी कुछ कहेंगी भी नहीं अगर टोकेंगी तो मैं समझा दूँगा।’

‘अच्छा सोमू ! जब सर जी हमें पढ़ाते हैं तो दादी उसी कमरे में क्यों बैठी रहती हैं ? उनके बैठने से हम सर के साथ ‘इजी’ नहीं हो पाते। न कोई हँसी-मजाक कर सकते हैं। कभी-कभी सर पढ़ाते हुए इतना ‘फनी’ तरीके से मुँह बनाते हैं कि हँसी आ जाती है लेकिन दादी के कारण हम हँस भी नहीं पाते।’ अंशिका ने याद करते हुए कहा।

‘जब हम पढ़ते हैं तब दादी इसीलिए उसी कमरे में डँट कर बैठी रहती हैं ताकि हमारा समय बर्बाद न हो और सर यह न समझ लें कि घर में बच्चे-बच्चे ही हैं। और तो और तुम सोच रही हो दादी कहीं और हैं तो देखो वे सामने कमरे में देख तो टी0वी0 रही हैं लेकिन उनके कान हमारे ही ओर लगे हैं। दो परदों के गैप से वे बराबर हम पर नज़र रखे हैं।’ सोमू ने अंशिका का ध्यान आकृष्ट किया।

‘बाप रे बाप ! कहीं दादी ने सुन लिया होगा तो हो गयी छुट्टी। उन्हें कितना बुरा लगेगा। अच्छा सोमू मैं दादी से पूछकर एक फोन मिला लूँ अपनी दादी को।’

‘मक्खन लगा रही हो’

‘नहीं मूड देख रही हूँ। अगर दादी ने हमारी बातें सुन ली होंगी तो उनका मूड खराब होगा। नहीं तो रोज की तरह हँसते हुए जवाब देंगी।’

‘तुम दादी के पास जाकर पूछो, तब तक मैं फ्रिज से आइसक्रीम निकाल लाता हूँ वहीं बैठकर तीनों इकट्ठा खायेंगे।’

‘और क्या दादी अगर गरम होंगी तो ठण्डी हो जायेंगी।’

‘ठण्डी होने का मतलब भी जानती हो।’ सोमू ने छेड़ा।

‘अच्छा चुप रहो, तुम तो बाल की खाल निकालते हो।’

‘क्या बाल में भी खाल होती है ?’ सोमू ने चिढ़ाया।

‘दादी से पूछो जाकर, वे हमसे अच्छी हिन्दी जानती हैं।’

‘सोमू ! तुम ‘व्हील स्मार्ट श्रीमती’ देखते हो।’

‘यह क्या होता है ?’

‘एक टी0वी0 सीरियल है। हफ्ते में एक दिन एक घण्टे का प्रोग्राम दूरदर्शन के नेशनल चैनल पर आता है। नानी के घर सब लोग देखते हैं। उसमें अन्नू कपूर चिट पर लिखकर कोई मुहावरा या पिक्चर का नाम एक अंकल जी को देते हैं जिन्हें उन्हें आण्टी जी जो कि उनकी पत्नी होती हैं, को इशारों से समझाना होता है। फिर आण्टी जी उसे बूझती हैं और उन्हें नम्बर दिये जाते हैं।’‘तुम्हीं देखा करो बेवकूफी के सीरियल और समय बर्बाद किया करो।