समीर उसकी झुल्फों को दूर से निहार रहा है। अंजुम का काजल लगाना, हाथों में लाल चूड़ा, लाल बिंदी और लाल साड़ी तो अंजुम की खूबसूरती को चार चाँद लगा रही है।
समीर: तुम बहुत खूबसूरत हो अंजुम।
अंजुम: थैंक यू, मैं अब जा रही हूँ आप तैयार होकर जल्दी आ जाइएगा।
अंजुम चली जाती है और समीर भी तैयार होकर रस्मों रिवाज के लिए आ जाता है।
हाथ कँगन को खोलना, दूध के पानी में अँगूठी ढूंढना,
सारी रस्में भली भांति पूरी होती हैं। सब नई बहू को देखकर खुश हैं।
समीर की माँ: बेटा अंजुम कल तुम्हारी पहली रसोई है तो सवेरे जल्दी उठ जाना और समीर भी कल से ऑफिस जाएगा।
अंजुम: जी माँ जी।
माँ: ठीक है तुम लोग जाकर अब आराम करो।
समीर और अंजुम अपने कमरे में आ जाते हैं। समीर अंजुम से बात करने की कोशिश करता है।
समीर: अच्छा अंजुम तुम अपने बारे में कुछ बताओ, मैं जानना चाहता हूँ तुम्हें।
अंजुम: क्या बताऊँ, पूछिये।
समीर: तुम्हारी पसन्द-नापसंद?
अंजुम: मुझे कुछ खास पसन्द नहीं है। सब ठीक है।
समीर: तुम इतनी चुप क्यों रहती हो? बस जी हाँ, जी हाँ करती हो। शर्मा रही हो क्या?
अंजुम: नहीं ऐसा कुछ नहीं है। मुझे बस ज़्यादा बातें करना पसन्द नहीं।
अपने घर में पटर-पटर बोलने वाली अंजुम को अब बातें करना पसंद नहीं है, ऐसा क्यों? क्या ये रिश्ता अंजुम की मजबूरी है शायद इसीलिए।
समीर: तुमने मुझसे शादी के लिए हाँ क्यों कहा?
अंजुम: पापा ने सब तय किया था।
समीर: तो क्या इसमें तुम्हारी रज़ा मंदी नहीं थी। तुमसे पूछा नहीं गया था?
अंजुम: क्या फर्क़ पड़ता है मेरी रज़ा मंदी से, पापा ने तय किया तो सब अच्छा ही होगा।
समीर: फर्क पड़ता है, क्यों नहीं पड़ता। तुम्हें अपने घर पर बोलना चाहिए था। आखिर तुम्हारी पूरी ज़िन्दगी का सवाल था।
ये सुनकर अंजुम की आँखों में आँशु आ जाते हैं पर वह समीर के सामने रोना नहीं चाहती। वह खुद पर संयम रखती है और कहती है, "कोई बात नहीं।"
दरवाजा खटकाने की आवाज आती है।
समीर: कौन है, आ जाओ।
कमरे में बिंदिया प्रवेश करती है। (बिंदिया समीर की छोटी बहन है।)
बिंदिया: भैया-भाभी क्या कर रहे थे आप दोनों, कहीं मैनें डिस्टर्ब तो नहीं कर दिया।
(बिंदिया हँसते हुए बोली।)
समीर: हाँ बहुत डिस्टर्ब कर दिया तूने, कबाब मैं हड्डी।
(समीर भी उसकी खिंचाई करते हुए बोला।)
बिंदिया: हाँ तो, भाभी से क्या आप ही बात करोगे पूरा दिन, हम भी तो हैं कतार में।
समीर: हाँ, हाँ, क्यों नहीं। (ताने भरे स्वर में।)
अंजुम दोनों भाई-बहन की नोंक-झोंक देख कर मुस्कुरा जाती है।
समीर (अंजुम से): अरे वाह! तुम तो हस्ती भी हो।
बिंदिया: देखा मेरा कमाल। मैनें हँसा दिया न भाभी को। तभी तो माँ कहती है मैं बोलती गुड़िया हूँ, मुझे देख कर सब मुस्कुरा देते….
अरे बाप रे! मैं तो भूल ही गई।
समीर: क्या हुआ? क्या भूल गई?
बिंदिया: मुझे माँ ने ही तो यहाँ भेजा था आप दोनों को खाने के लिए बुलाने। जल्दी आ जाओ वरना माँ गुस्सा करेंगी मुझ पर।
(इतना कहकर बिंदिया वहाँ से चली जाती है।)