Mita ek ladki ke sangarsh ki kahaani - 17 - last part in Hindi Love Stories by Bhupendra Kuldeep books and stories PDF | मीता एक लड़की के संघर्ष की कहानी - अध्याय - 17 अंतिम भाग

Featured Books
  • नियती - भाग 24

    भाग -24पण एक दिवस सुंदर तिला म्हणाला...."मिरा.... आपण लग्न क...

  • लोभी

          "लोभी आधुनिक माणूस" प्रस्तावनाआजचा आधुनिक माणूस एकीकडे...

  • चंद्रासारखा तो

     चंद्र आणि चंद्रासारखा तो ,जवळ नाहीत पण जवळ असल्यासारखे....च...

  • दिवाळी आनंदाचीच आहे

    दिवाळी ........आनंदाचीच आहे?           दिवाळी आनंदाचीच आहे अ...

  • कोण? - 22

         आईने आतून कुंकू आणि हळदची कुहिरी आणून सावलीचा कपाळाला ट...

Categories
Share

मीता एक लड़की के संघर्ष की कहानी - अध्याय - 17 अंतिम भाग

अध्याय-17

अंतिम भाग

मि. शर्मा अंदर गये तो मीता को जागा हुआ देख खुश हो गए। उन्हें रोना आ गया ओर वो वही स्टूल में बैठकर सुबकने लगे।
मीता ने उनका हाथ पकड़ा और पूछा।
पापा आप क्यों रो रहे हैं अब तो मैं ठीक हूँ। कुछ नहीं बेटा तुझे होश में देखकर मुझे रोना आ गया।
मुझे क्या हुआ था पापा ? कुछ याद नहीं आ रहा है। तू कोर्ट रूम में अचानक चक्कर खाकर गिर गई थी। बेटा और गिरते वक्त सिर पर बेंच से चोट लग गई करके बेहोश हो गई थी।
ओह! तो मुझ यहाँ कौन लाया। आप लाये ?
जी नहीं बेटा। तुम्हें गिरा देखकर सुबोध दौड़कर आया तुम्हें अपनी गोदी में उठाया और अपनी ही गाड़ी में डालकर तुरतं हॉस्पिटल लाया। उसी ने सारा खर्च किया बेटा और यहाँ से टस से मस नहीं हुआ जब तक कि तुमको होश नहीं आया।
मीता की आँखों से आँसू निकल गए।
वो मुझे बहुत चाहता है पापा पर मैंने उसके साथ बिलकुल अच्छा नहीं किया। पता नहीं वो मुझे माफ करेगा कि नहीं, मैं थोड़ी चिंतित हूँ। क्योंकि आज वो मुझसे बिना कुछ कहे निकल गया।
इतने दिन की नाराजगी क्षण भर में नहीं जायेगी बेटी उसे थोड़ा मौका दे। वो एक बहुत ही सुलझा हुआ लड़का है। जल्दी ही समझ जाएगा। आज तुम्हारा फैसला होना है बेटा मैं वकील अंकल हो भेज देता हूँ कोर्ट। तुम्हें जाने की आवश्यकता नहीं है।
ठीक है पापा। कहकर वो सोने की कोशिश करने लगी।
इघर कोर्ट रूम में दोनो पक्ष के वकील मौजूद थे। सुबोध ने कहा।
देखिए, मैंने दोनो पक्षों को सुना है। गवाहों के बयान भी सुना है और सीसीटीवी फुटेज भी देखा है। एक बात तो साफ है कि इसको पीछे किसी भी प्रकार की साजिश या इरादा तो नहीं दिखाई देता। मतलब इरादतन हत्या का तो बिलकुल मामला नहीं बनता। दूसरा मीता देवी के हाथ दोनो ओर मतलब सामने और पीछे हैं जबकि धक्का देते वक्त हांथो का पीछे होने की संभावना नहीं है अतः यह कहना भी उचित नहीं है कि उसने धक्का दिया । अब यह बात की वो उसको पकड़ सकती थी इसके लिए मैं यह कहना चाहूँगा कि आदमी जब पहले से तैयार होता है तभी वह पकड़ पाता है अचानक ऐसी स्थिति हो तो जरूरी नहीं कि उसका शारीरिक बल काम करे और वो उसको पकड़ पाए।
अतः सारी बातों को ध्यान में रखते हुए यह सिद्ध होता है कि यह घटना मात्र एक दुर्घटना थी और मीता देवी का इस घटना के कोई संबंध नहीं है। इसलिए यह कोर्ट प्रकरण क्रमांक 7321 में दीपक साहनी की हत्या के जुर्म से मीता देवी को दोषमुक्त करते हुए बाईज्जत बरी करती है। यह कोर्ट शासन को यह भी आदेश देती है कि मीता देवी को उनकी नौकरी ससम्मान लौटाई जाए।
द कोर्ट इज एडजर्ण्ड । कहकर वो उठा ओर बाहर निकल गया।
वकील की खुशी का ठिकाना नहीं रहा। उसने तुरंत मि. शर्मा को फोन लगाया।
भैया। कोर्ट ने मीता को बाईज्जत बरी कर दिया।
क्या ?
हाँ भैया। जज साहब ने मीता को दोषमुक्त करते हुए बाइज्जत बरी कर दिया और उसे वापस नौकरी पर रखने के लिए आदेश जारी कर दिया।
यह सुनते ही उसके पापा जोर-जोर से रोने लगे। आस पास में सबकी नजरें उधर घूम गई।
क्या हुआ पापा ? आप इतनी जोर जोर से क्यों रो रहे हैं ?
सुबोध ने तुम्हें बाईज्जत बरी कर दिया बेटा।
मीता एकदम स्तब्ध थी। वो कुछ कहने की स्थिति में नहीं थी। उसकी आँख के कोने से आँसू की धार बह गई।
उसने तुम्हारी नौकरी भी लौटा दी बेटा। अभी वकील अंकल आर्डर्स लेकर जेल जायेंगे और तुम्हें छुड़ाने की सारी कार्यवाही करके सीधे यही आयेंगे।
मीता एकदम चुप थी, उसकी आँखे लबालब भरी थी। सुबोध का चेहरा उसकी आँखों के सामने झिलमिला रहा था।
थोड़ी ही देर में वकील साहब जेल से सारी औपचारिकाताएँ पूरी करके आ गए। उनके साथ जेल से एक सैनिक भी आया था जो मीता से दस्तखत लेकर उसे आदेश की प्रति देकर चला गया। मि. शर्मा ने भी तब तक हॉस्पिटल की सारी औपचारिकताएँ पूरी कर ली थी। फिर वो मीता को लेकर घर चले गए।
शाम को करीब सात बजे उसके घर का डोरबेल बजा। मि. शर्मा और श्यामा देवी वही हॉल में बैठे थे, उन्हें लगा वकील साहब आए होंगे। लेकिन जैसे ही उन्होंने दरवाजा खोला तो देखा कि सामने सुबोध खड़ा है।
अरे आईए सर। मीता के पापा बोले।
आप मुझे सर मत कहिए प्लीज। मेरा नाम सुबोध है आप मुझे सुबोध कह सकते हैं और क्या आप मुझे बता सकते है कि मेरी पत्नि कहाँ है ?
मैं उसे ले जाने आया हूँ।
ये सुनते ही मीता के माता-पिता की आँखे छलछला गई।
उन्होंने इशारे से कहा उपर।
आप परमिट करें तो क्या मैं उसे ले जा सकता हूँ।
मीता के पापा ने डबडबाई आँखों से सिर हिलाकर हाँ कहा।
सुबोध ये देखकर सीधा ऊपर चला गया। मीता का कमरा खुला हुआ था। सुबोध ने दरवाजे से देखा कि मीता हाथ में अपनी और सुबोध की तस्वीर लिए चुपचाप बैठी हुई है। वह धीमे से चलते हुए मीता तक गया और उसके कंधे पर हाथ रखा। मीता चौक कर पलटी।
तुम्हें ले जाने के लिए दुबारा शादी करनी पड़ेगी की ऐसे ही चलोगी ? सुबोध ने मुस्कुराकर पूछा।
ये सुनते ही मीता टूट गई। वो सुबोध से लिपट गई और फूटफूटकर रोने लगी।
मुझे ले चलो सुबोध। मुझे ले चलो। वो जोर जोर से ये बोलकर रो रही थी।
सुबोध उसे रोते हुए ही गोद में उठाया, और उठाए-उठाए ही हाल से होते हुए गाड़ी तक लाया। ड्राईवर उन्हें देखते ही दरवाजा खोला और सुबोध ने उसे पिछली सीट पर बिठा दिया। वो वापस अंदर गया और उसके मम्मी-पापा के पैर छुआ। मीता के माता-पिता की आँखो में आज खुशी के आँसू थे। फिर सुबोध वहाँ से बाहर निकल कर आया और गाड़ी में बैठ गया। उसने मीता की ओर देखा और उसका माथा चूम लिया फिर कहा -
चलो घर चलते हैं।
और गाड़ी निर्बाध गति अपनी मंजिल की ओर निकल गई।


आप सभी के प्यार के लिए शुक्रिया। मेरी अन्य दो कहानिया उड़ान और नमकीन चाय भी matrubharti पर उपलब्ध है कृपया पढ़कर समीक्षा अवश्य दे। मेरी नई कहानी जल्द ही - भूपेंद्र कुलदीप।


भूपेन्द्र कुलदीप राज्य विश्वविद्यालयीन सेवा के प्रथम श्रेणी राजपत्रित अधिकारी हैं। वे शिक्षा विभाग, छत्तीसगढ़ शासन के अंतर्गत उपकुलसचिव के पद पर वर्तमान में हेमचंद यादव विश्वविद्यालय दुर्ग में पदस्थ हैं। उनकी यह कृति बोलचाल की भाषा में लिखी गई है।आप अपना मूल्यवान सुझाव व समीक्षा उन्हें bhupendrakuldeep76@gmail.com पर प्रेषित कर सकते हैं। जिससे अगली कृति को बेहतर ढंग से लिखने में सहयोग मिले।