Bade babu ka pyar - 9 in Hindi Fiction Stories by Swapnil Srivastava Ishhoo books and stories PDF | बड़े बाबू का प्यार - भाग 9 14: सुराग 

Featured Books
Categories
Share

बड़े बाबू का प्यार - भाग 9 14: सुराग 



भाग 9/14: सुराग

नहाया धोया मनोज तय समय पर राजा पार्क चौराहे पर एक चाय की दुकान पर चाय पी रहा होता है| थोड़ी देर में ऑटो वाले को पैसा देता महिपाल नज़र आता है| तेज़ी से चलता महिपाल मनोज के पास आता है और बोलता है, “सॉरी यार लेट हो गया…चल अन्दर चलते हैं”

इन्श्योरेन्स ऑफिस का रिसेप्शन, रिसेप्शन पर अधेड़ उम्र का सिक्यूरिटी गार्ड बैठा रजिस्टर में कुछ लिख रहा होता है| ऑफिस स्टाफ आते जाते है, फिंगर सेंसर पर पंच करते है फिर रजिस्टर में कुछ लिखते रहते है| उधर किनारे लॉबी में कुछ लड़के – लड़कियां सिगरेट पी रहे होते हैं|

“जी सर बताइए क्या काम है?” सिक्यूरिटी गार्ड पूछता है|

“ये है सब इंस्पेक्टर महिपाल चौधरी और मैं मनोज…मनोज यादव… कांस्टेबल श्याम नगर थाने से..आप के ऑफिस में दिवाकर जी काम करते हैं, उन्ही से काम है|” मनोज बोलता है

महिपाल इधर उधर देखता रहता है|

“बड़े-बाबू तो अभी आए नहीं है..पांच –दस मिनट इंतज़ार कर लीजिए आते ही होंगे..” सिक्यूरिटी गार्ड बताता है|

दोनों पास ही रखे सोफे पर बैठ जाते है| महिपाल एक मैगज़ीन उठा कर देखने लगता है और मनोज आते जाते स्टाफ, खास कर लेडीज स्टाफ को देखता रहता है|

थोड़ी देर में महिपाल सिक्यूरिटी गार्ड से पूछता है, “कल कितने बजे गए थे दिवाकर जी ऑफिस से?”

सिक्यूरिटी गार्ड बोलता है, “बड़े-बाबू तो कल नहीं आए थे…वैसे डेली साढ़े छह बजे दफ्तर से निकल जाते है| समय पर आते है… और समय पर जाते है…..सर चाय कॉफ़ी बोले आपके लिए|”

“हाँ चाय चलेगी…बिना शक्कर” मनोज फ़ौरन बोलता है, फिर महिपाल को देखता है….महिपाल का भाव शायद ना बोलने का था पर अब तो मनोज बोल चुका था|

इंतज़ार करते आधा घंटा और बीत जाता है|

मनोज थोड़ा गुस्से में बोलता है, “आप फ़ोन कीजिए दिवाकर जी को ….पूछिए ऑफिस आ रहे हैं या नहीं…पूरा दिन यहीं थोड़े बैठना है|”

सिक्यूरिटी गार्ड रजिस्टर के पीछे से नम्बर देख कर लैंडलाइन से फ़ोन करता है|

“बड़े-बाबू फ़ोन नहीं उठा रहे…” सिक्यूरिटी गार्ड धीरे से बोलता है

“घंटी जा रही है ?” महिपाल पूछता है

“हाँ सर दो बार पूरी-पूरी घंटी गई पर नहीं उठा रहे है….शायद गाड़ी चला रहे होंगे|” सिक्यूरिटी गार्ड असमर्थता दिखाते हुए बोलता है

महिपाल मनोज को उठने का इशारा करता है…. सिक्यूरिटी गार्ड के पास आता है फिर अपनी पॉकेट डायरी में कुछ लिखता है| इसके बाद दोनों वहां से निकल जाते हैं…

दिवाकर के घर का बाहरी हिस्सा, महिपाल चारो तरफ देखते हुए गेट खोलता है| पड़ोस की बूढ़ी औरत छत पर कपड़े सुखा रही होती है| फिर छत से ही महिपाल और मनोज को अन्दर आते देखती है|

“दिवाकर बाबू आए क्या?” महिपाल जोर से पूछता है|

बूढ़ी औरत हाथ के इशारे से मना करती है

दिवाकर और मनोज अन्दर के दरवाज़े के पास आते है, दिवाकर बोलता है, “वीडियो बना..दरवाज़ा तोड़ना पड़ेगा…ऐसा न हो दूर भाग जाए…अन्दर देखते हैं, शायद कुछ सुराग मिल जाए”

मनोज मोबाइल निकालता है और वीडियो बनाना शुरू करता है|

महिपाल इधर –उधर देखता है, उसे बगल के घर के पोर्च में एक लोहे की राड पड़ी दिखती है|

“माता जी ये रॉड लेनी है…अभी वापस करता हूँ” बिना बूढ़ी औरत के ज़वाब का इंतज़ार किए महिपाल बगल के घर में जाता है, रॉड उठाता है और वापस दिवाकर के घर आ जाता है|

“मनोज वीडियो स्टार्ट कर….”

“सर स्टार्ट है|” मनोज जवाब देता है

महिपाल इन्टरलॉक में रॉड फसा कर लॉक उठा देता है और दरवाज़ा खोल देता है| महिपाल रॉड पकड़े सधे क़दमों से अन्दर जाता है, मनोज पीछे- पीछे वीडियो शूट करता चलता है|

“सर! दिवाकर!…” मनोज बेडरूम की ओर देखता हुआ बोलता है|

महिपाल अन्दर देखता है तो दिवाकर बेड पर बेसुध पड़ा होता है| कमरे के अन्दर जा कर महिपाल चेक करता है तो पता चलता है वह मर चुका होता है|

महिपाल मनोज को वीडियो बंद करने को बोलता है, फिर सरसरी निगाह से पूरे कमरे का मुआयना करता है|

कुछ कागजों को पलटता हुआ महिपाल बोलता है, “थाने फ़ोन कर दो…टीम बुला लो…सुसाइड लगता है…फारेंसिक वालों को भी बोल दो|”

फिर थोड़ा रुक कर बोलता है, “एक काम करो…मैं थाने में फ़ोन कर देता हूँ..तुम आस- पास पता करो किसी के पास इसके घरवालों का नंबर है क्या? नहीं तो ऑफिस से ले कर इसके घर खबर भिजवा दो….और हाँ मंदार को बोलो थाने में पहुँचे….तुम पंचनामा करा कर सीधे थाने मिलो”

मनोज उसके ही साथ साथ घर से बहार निकलता है….अड़ोस पड़ोस में हलचल और ताका-झाँकी शुरू हो गई होती है|

मनोज धीरे से बोलता है, “साला प्यार करते ही क्यों हो जब निभा नहीं सकते…खुद तो मरा- मरा एक और को ले गया|”

स्वरचित कहानी
स्वप्निल श्रीवास्तव(ईशू)
कॉपी राईट
भाग 10/14 : जनरल इंक़्वारी