naina ashk na ho - 7 in Hindi Love Stories by Neerja Pandey books and stories PDF | नैना अश्क ना हो... - भाग - 7

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नैना अश्क ना हो... - भाग - 7

शांतनु जी ने अपने दुख को अपने जब्त कर लिया था।
उन्होंने निश्चय किया की मै जब तक जीवित हूं ,नव्या के
आस पास भी गम की छाया ना पड़े इसका पूरा प्रयत्न
करूंगा।
शाश्वत नहीं है तो क्या हुआ ,जिसे वो अपने प्राणों से
अधिक चाहता था वही अब मेरे लिए मेरा शाश्वत है।

नव्या के आगे पूरी जिंदगी पड़ी थी ,उसे आगे बढ़ाना
शांतनु जी अपना दायित्व समझते थे।
यही सोचकर उन्होंने नव्या को फिर से कोचिंग जाने के
लिए कहा।
पर नव्या ने ये कह कर मना कर दिया कि " पापा मै नहीं
जाऊंगी मेरा कहीं भी जाने का मन नहीं करता।"
शांतनु जी ने ये जिम्मेदारी अपनी पत्नी को दी कि वो नव्या को किसी
भी तरह राजी करें ,नव्या को कोचिंग जाने के लिए।
उसका बाहर निकलना बहुत जरूरी था ।
तभी वो अपने दुख को कुछ कम कर पाएगी।
दूसरे पढ़ाई से उसका भविष्य भी बनेगा।जिन्दगी तो आगे
जीनी ही पड़ेगी ।
मां ने नव्या को बहुत समझाया ,बोली "तुम तो बेटी नहीं
बेटा हो । मैं और तुम्हारे पापा तुम्हें शाश्वत की जगह
देखते है ,क्या शाश्वत भी हमारी बात नहीं मानता "।

नव्या तड़प उठी, "नहीं मां !!! ऐसा मत बोलिए, मै
आपको दुख नहीं पहुंचाना चाहती। अगर आप सब की
यही मर्जी है तो मै जरूर कोचिंग क्लास जाऊंगी।
और सिर्फ जाऊंगी ही नहीं । मैं प्रतियोगी परीक्षा में पास
भी होऊंगी ।"

नव्या को कोचिंग क्लास कभी शांतनु जी छोड़ देते कभी
वो खुद ही चली जाती।

जब कभी साक्षी के स्कूल के समय पर क्लास होती तो
वो उसी के साथ चली जाती।

धीरे धीरे नव्या ने खुद को पढ़ाई में समर्पित कर दिया।
अब उसका ध्येय सिर्फ पढ़ाई और मां पापा की खुशी
थी।

नव्या ने कई सारी प्रतियोगी परीक्षाएं दी थी, पेपर बहुत
अच्छे हुए थे। पूरी उम्मीद थी कि वो चुन की जाएगी।

आर्मी हेड क्वार्टर से एक दिन फोन आया कि शाश्वत को
उसके सर्वाेच्च बलिदान एवम् आतंकियों से हुए संघर्ष में
अदम्य बहादुरी का परिचय देने के लिए शौर्य चक्र से
सम्मानित किया जाएगा।
आगे बिग्रेडियर साहब ने कहा "आप सब को छब्बीस
जनवरी की शाम आयोजित सम्मान समारोह के लिए
आमन्त्रित करने के लिए फोन किया है मैंने। "

शहादत का सम्मान जिस भी परिवार को मिलता है,
वो गर्व तो करता है। पर उसके जीवन में जो रिक्तता
आती है उसका दर्द जीवन भर साथ रहता है।शाश्वत को
शौर्य चक्र मिलना उनके परिवार के लिए सम्मान की
बात थी, पर शाश्वत की कमी परिवार के हर सदस्य को
खल रही थी।

ये खबर सुनकर शाश्वत की मां अपने आंखों में आए
आंसुओं को पोछते हुए बोली "कभी सपने में भी नहीं
सोचा था कि मेरा बेटा ऐसे चला जाएगा।'"

शांतनु जी ने पत्नी को समझाया हुए कहा " तुम ये
सोचो हमारे साथ तो फिर भी शाश्वत का बचपन और
जवानी के कुछ समय बिता,पर नव्या का सोचो वो कैसे
सब्र कर रही है।

अब दिल्ली जाने में सिर्फ दो दिन बचे थे । जाने की
तैयारियां चल रही थी ।
तभी साक्षी एक लिफाफा लेकर आई ।
और नव्या को पुकारने लगी!

"भाभी ! भाभी ! कहां हो???"
किचेन से ही नव्या बोली,
"यहां हूं मैं । क्या हुआ????"
साक्षी के हाथ में लिफाफा देख नव्या ने पूछा "ये क्या
है?"
साक्षी बोली,
"भाभी अभी पोस्टमैन
आया था, आपके लिए ये लिफाफा दिया है।"

अपने हाथ पोछते हुए, नव्या ने उत्सुकता से लिफाफा
साक्षी के हाथ से लेते
हुए कहा,
''तुमने देखा नहीं क्या है?"

साक्षी बोली, "नहीं भाभी मैंने नहीं देखा ।"

लिफाफा खोलने पर नव्या ने देखा,ये एक ज्वायनिंग
लेटर था।
नव्या ने ग्राम विकास अधिकारी की जो परीक्षा दी थी ,
उसमे उसका चयन हो गया था।

नव्या ने साक्षी को ये बात बताई और दोनों ड्राइंग रूम
में बैठे मां और पापा के पास गई।
वहां जाकर नव्या ने लेटर पापा (शांतनु जी) के हाथ में
थमा कर उनके पांव छुए ,फिर मां के भी पांव छुए।

मां कुछ समझ नहीं पाई की क्या बात है?
नव्या पांव क्यों छू रही है???

पापा ने लेटर पढ़ कर ,नव्या के सिर पर प्यार से हाथ
फेरा और बोले,
" नव्या की मां हमारी नव्या ने ग्राम विकास अधिकारी
की परीक्षा पास कर ली है। ये उसका ज्वायनिंग लेटर
है।"
नव्या की मां ने बगल में बैठी नव्या को गले लगा लिया
और साक्षी से बोली,
"जा साक्षी पास वाली दुकान से मिठाई लेकर तो आ।
तेरी भाभी ने आज हमारा सर गर्व से ऊंचा कर दिया है।"
साक्षी भाग कर गई और मिठाई लेकर आई।

शांतनु जी ने नव्या का मुंह मीठा करवाया ।

वो कम से कम इतनी तसल्ली चाहते थे कि उनके बाद
नव्या का भविष्य सुरक्षित हो ।
आज उन्हे इत्मीनान था कि नव्या जल्दी ही अपने पैरों पर खड़ी हो जाएगी ।
नव्या के पापा ( नवल जी ) को जब शांतनु जी ने
जब फोन द्वारा सूचना दी कि नव्या का चयन ग्राम
विकास अधिकारी के पद पर हो गया है तो वे नव्या की
मम्मी को लेकर कुछ देर बाद ही आ गए।

ये समय गम और खुशी का मिला - जुला रूप था।
शांतनु जी ने साक्षी और उसकी मां से कहा
" अरे!! भाई क्या समधी जी और समधन जी को भूखा
ही भेज दोगी ।
जाओ जल्दी सब मिल कर प्रबन्ध करो।
आज हम सब साथ में ही खाना खायेंगे।
क्यों नवल जी?क्या कहते है?"

नवल जी ने भी कहा , "हां हां क्यों नहीं?
समधन जी के हाथों का स्वादिष्ट खाना को नहीं खाना
चाहेगा ।"

आज ही सब को दिल्ली के लिए निकलना था।
सारी तैयारी हो गई थी।
नवल जी पत्नी सहित सब को ट्रेन में बिठाने आए थे।


ट्रेन आने पर सब बिठा कर नवल जी ने समान व्यवस्थित
कर दिया।
नव्या को दुलारा और सबको विदा कर दिया।

पूरा सफ़र सब गुमसुम ही थे। सब का अपना अपना दुख
था।
सोच का घोड़ा दौड़ रहा था।
कल का दिन सब के लिए सम्मान का था । दग्ध हृदय
व्याकुल था उन जवानों में शाश्वत की छवि ढूंढने को।



अगले भाग में पढ़िए नव्या की सम्मान समारोह में सबको
विचलती करती कविता।


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