अध्याय-16मीता जब कोर्ट अंदर गई तो सुबोध किसी और काम में व्यस्त था। जैसे ही उसकी आँखे चार हुई उसका दिल धक्क से हुआ।
साईलेंस। प्लीज थोड़ा शांति बनाए रखिए सुबोध बोला।
भंडारी साहब मैंने जो जो कहा था वो सारी चीजें आज आप लेकर आए हैं।
जी सर। हमने मीता देवी से और जानकारियाँ ली है। उनके आस पास के लोगों से, दीपक के विभाग के लोगों से, उनके परिसर, सभी से पूछताछ की है। हमने मीता देवी के भी विभाग से पूछताछ की है।
गवाह के रूप में आज सिर्फ दो आयकर अधिकारी ही आए है हालांकि उस दिन जब दीपक गिरा तो वहाँ पर तीन अधिकारी मौजूद थें।
तो क्या आपने तीसरे से कंसेट ले लिया है कि जो भी ये लोग बयान देना चाहते है वो भी वही बयान देना चाहते हैं।
हाँ सर हमारी बात हो गई है उन्होंने अपना बयान लिखकर हमें भेज दिया है। और सीसीटीवी फुटेज मिला कि नहीं।
हाँ सर थोड़े दूर में एक घर पर सीसीटीवी लगा था वहाँ से हमने कलेक्ट किया है बहुत साफ तो नहीं है परंतु दिखाई दे रहा है।
तो फिर एक काम कीजिए सीसीटीवी फुटेज हम सबसे आखिरी में देखेंगे। पहले गवाहों को बुलाईये।
सर, मेरा नाम अमित कुमार है मैं आयकर अधिकारी हूँ और दिल्ली में निवासरत हूँ, उस दिन टीम के साथ मैं भी वहाँ आया था। जब हमने उनके घर पर छापा मारा तो वहाँ सिर्फ कुछ महिलाएँ और सेक्युरिटी गार्ड्स थे। उस वक्त ना तो दीपक वहाँ आया था और ना ही मीता देवी। करीब एक घंटे की कार्यवाही के बाद पुलिस की टीम के साथ दीपक वहाँ आया था। आते ही उसने हमारे सामने से ही मीता देवाी को फोन किया और उसे तत्काल आने की हिदायत दी। वो तो मीता देवी के ऊपर दोषारोपण भी कर रहा था कि उसी की वजह से ये रेड पड़ी है।
फिर ?
फिर सर तभी मीता देवी आई। दीपक ने उन्हें ऊपर जाने के लिए कहा। वो काफी गुस्से में थे। फिर मीता देवी ऊपर चली गई और बालकनी में खड़ी थी। इतने में दीपक भी ऊपर गया। हम नीचे एक दूसरे से बात ही कर रहे थे कि अचानक दीपक धड़ाम से नीचे गिरा उस वक्त हममें से कोई भी ऊपर नहीं देख रहा था। मतलब उसके जाने और गिरने के बीच कितना समय लगा होगा ?
सुबोध ने पूछा।
सर मुश्किल से पाँच मिनट।
मतलब हाथापाई की संभावना नहीं है।
संभव ही नहीं है सर वो तो सीसीटीवी में भी दिख जायेगा।
ओके और कोई विशेष बात जो आप बताना चाहेंगे।
सर हमने लोकल आयकर विभाग को इस रेड के बारे में कोई सूचना नहीं दी थी अतः इस बात की संभावना नहीं है कि मीता देवी को इस छापे के बारे में पता हो।
हाँ भंडारी जी क्या दूसरे अधिकारी का भी यही कहना है ?
जी सर। मुझे कुछ कहना है।
हाँ बताइये सर। सुबोध बोला।
सर दीपक बहुत गुस्से में ऊपर गया था। तो स्वाभाविक है कि मीता देवाी को भी बुरा लगा होगा। जब दीपक स्कीड हुआ तो मीता देवी उनके सामने ही थी। दीपक को गिरता देख उन्होंने जाने दिया। जबकि वो उसे पकड़ सकती थी और मुझे लगता है उन्होंने ऐसा जानबूझकर किया।
दिखाईये सीसीटीवी फुटेज। सुबोध बोला
सभी के सामने सीसीटीवी फुटेज को चालू किया गया। स्क्रीन बहुत जयादा क्लीयर तो नहीं था और कवरेज भी दूर का था। हाँ लेकिन उस वक्त क्या हुआ था ये दिख रहा था।
सुबोध ने देखा कि दीपक गुस्से में तेजी से उसकी ओर हाथ उठाए हुए आ रहा है। मतलब वो उसे मारना चाहता था। परतु उसके एकदम नजदीक आने से पहले उसका एक पैर स्लिप हुआ और बैंलेस बिगड़ गया। वो एकदम से मीता के नजदीक से नीचे गिरने को हुआ। मीता ने उसे उसे पकड़ने की कोशिश की। मीता का एक हाथ उसके सीने के ऊपर और एक हाथ पीठ की तरफ था, पर वो नीचे गिर गया।
देखिए सर मैंने कहा था ना कि मीता देवी चाहती तो उसे रोक सकती थी परंतु बदले की भावना में उसे छोड़ दिया। ये तो मर्डर है सर।
बचाव पक्ष के वकील साहब आप बोलिए।
सर फुटेज से ये कैसे साबित होगा कि मीता देवी की मंशा क्या है। इसमें तो बल्कि ये दिख रहा है कि उसने दीपक को बचाने की पूरी कोशिश की, परंतु बचा नहीं सकी और वैसे भी गुस्से में आदमी का बैलेंस बहुत जल्दी बिगड़ जाता है सर दीपक इतने गुस्से में था कि खुद पर कंट्रोल नहीं कर पाया। अगर वो शांत मन से ऊपर गया होता तो शायद स्लिप भी नहीं होता और बच जाता।
हम्म। मीता देवी आपको ..................................................
ये सुबोध बोल ही रहा था कि मीता अचानक चक्कर खाकर नीचे गिर गई। गिरते वक्त उसका सिर बेंच से टकराया और वो बेहोश हो गई। सुबोध ये सब अचानक देखकर घबरा गया वो तेजी से अपने सीट से उठा और मीता के पास आ गया।
मीता। मीता। मीता। उठो सुबोध चिल्लाया उसने मीता को गोद में उठाया और बाहर की ओर भागा।
उसे गाड़ी की पिछली सीट पर रखा और वही बैठ गया। मीता का सिर उसकी गोद में था और वो एकदम हाफ़ रहा था।
तभी दौड़ते हुए उसके पिताजी भी वहाँ पर आ गए। सर आप पीछे आईयें ड्राईवर सीधे हॉस्पिटल ले चलो। वो अब भी हाफ़ रहा था।
ड्राईवर गाड़ी दौड़ाते हुए सीधे हॉस्पिटल ले गया। गाड़ी से उतर कर उसने मीता को गोद में उठाकर निकाला और स्ट्रेचर पर रख दिया। उसको तेजी से इमरजेंसी में ले जाया गया।
वो डॉक्टर के रूम के बाहर ही बैठा था।
दस पंद्रह मिनट के बाद डॉक्टर बाहर आया और बोला।
देखिए लगता है गिरते वक्त इनको सिर पर चोट लगी है। इसलिए बेहोश हो गई है। इनको प्राईवेट वार्ड में शिफ्ट करके वेंटीलेटर पर रखते हैं फिर आगे की जाँच करेंगे। उनके साथ कौन है ?
मैं हूँ डॉक्टर और उनके पिताजी हैं।
ठीक है आप ये दवाईयाँ ले आईये। डॉक्टर बोले।
सुबोध ने पर्ची उसके पिता के हांथो से ले ली और कहा -
आप बैठिए सर मैं लेकर आता हूँ।
मीता के पिता आश्चर्यचकित थे कि सुबोध मीता को अब भी प्रेम करता है और वो उसकी चिंता कर रहा है।
थोड़ी देर में मीता को प्राईवेट वार्ड में शिफ्ट कर दिया गया। डॉक्टर ने उसकी जाँच की प्रक्रिया चालू कर दी। लगभग 3 घंटे बीत गए थे। सुबोध और मीता के पिता बाहर ही बैठे थे। वहाँ पर पुलिस भी तैनात थी। परंतु अब तक मीता को होश नहीं आया था। तभी नर्स बाहर आई।
पेसेन्ट के साथ कौन है ? उन्हें डॉक्टर साहब अंदर बुला रहे हैं।
सुबोध और मि. शर्मा उठकर अंदर गए।
जी डॉक्टर साहब बताईये ? सुबोध बोला।
देखिए। क्या आपको इनकी परिस्थिति का कुछ ज्ञान है। आप लोग इतने लापरवाह कैसे हो सकते हैं।
मैं समझा नहीं डॉक्टर साहब। मीता के पापा बोले।
मि. शर्मा आपकी बेटी कई दिनों तक भयंकर यौन हिंसा का शिकार हुई है। उसके शरीर में जगह जगह चोट के निशान है और उसके निजी अंगो को तो नोचा खरोंचा गया है। ऐसा लग रहा है जैसे कई दिनों से उसने कुछ खाया पीया नहीं है। न्यूट्रीशन की भारी कमी है उसके शरीर में। ये सब क्या है मि. शर्मा, आप इतने बड़े अधिकारी हैं अपनी बेटी का ख्याल नहीं रख सकते।
शर्मा जी रोने लगे और सुबोध तो ये सब सुनकर एकदम सन्न रह गया। उसका दिमाग शून्य हो गया फिर अचानक उसने डॉक्टर से कहा -
क्या मैं वो सारे निशान देख सकता हूँ डॉक्टर साहब। देखिए मैं एक जज हूँ और मैं ही इनके केस की सुनवाई कर रहा हूँ और ये सब देखना मेरे लिए बहुत महत्वपूर्ण है।
जज साहब बिना उनके घर वालों की अनुमति के मैं आपको नहीं दिखा सकता। डॉक्टर बोले -
उनके फादर यही खड़े हैं आप उनसे परमिशन ले लीजिए। सुबोध बोला
डॉक्टर ने मि. शर्मा की ओर देखा तो मि. शर्मा ने हाँ में सिर हिला दिया।
ठीक है मि. शर्मा आप बाहर जाईये। नर्स जज साहब को सारे चोट के निशान दिखा दो। ये कहकर वो भी बाहर निकल गए।
सुबोध वही स्टूल पर बैठ गया और नर्स ने मीता के जब कपड़े हटाए तो सुबोध एकदम व्यथित हो गया। उसके शरीर में कई जगह चोट के निशान थे कुछ जगहों पर तो खून जम गया था और उसके निजी अंगो पर तो ढेर सारे खरोंच के निशान थे।
उसने धीरे से अपनी ऊँगली उसके एक चोट पर रखा और जैसे ही उसे मीता के स्पर्श का अहसास हुआ वो टूट गया और फफक कर रो पड़ा। उसकी आँखे छलछला गई वो मीता के हाथ को अपने चेहरे से लगाकर रोने लगा।
तुमने मुझे बताया क्यों नहीं मीता ? तुमने मुझे बताया क्यों नहीं। वो रोये जा रहा था। उस राक्षस ने मेरी मीता का क्या हाल कर दिया। तुमने मुझे बताया क्यों नहीं, मैं तुम्हारे साथ ये सब कभी नहीं होने देता मीता, कभी नहीं होने देता। तुम बस ठीक हो जाओ मीता। भगवान के लिए ठीक हो जाओ। वो काफी देर तक सुबकता रहा फिर थोड़ा शांत हुआ। मीता के पिता बाहर ही थे पर मीता को होश नहीं आया था। सुबोध बाहर आया।
सर आप घर जाईये मैं यहीं पर रूका हूँ। घर पर मीता की मम्मी चिंता कर रही होंगी।
नहीं, आप बल्कि घर चले जाइये सर मैं यहीं पर हूँ। मीता के पापा बोले।
मैं कह रहा हूँ ना आप जाईये मैं डॉक्टर से बात करके आता हूँ।
मीता के पापा उसका ये लहजा देख मना नहीं कर पाए। उनके लिए तो ये सुखद था कि सुबोध खुद से मीता की देखभाल कर रहा था।
वो घर आ गए।
क्या हुआ जी ? इतनी देर कैसे हो गई ? श्यामा देवी ने पूछा।
कुछ नहीं श्यामा। मीता अचनाक बेहोश हो गई कोर्ट रूम में।
ओह! तो अपने मुझे बताया क्यों नहीं।
चिंता की कोई बात नहीं। डॉक्टर ने बताया कि ये बेहोशी शारीरिक कमजोरी की वजह से है।
तो आप उसे अकेले छोड़ कर कैसे आ गए।
वो अकेली नहीं है उसके पास सुबोध है।
क्या ? क्या कहा आपने ? सुबोध।
हाँ सुबोध। कोर्ट रूम में जब वो गिरी तो सुबोध ही दौड़कर सबसे पहले आया। उसे अपनी गोद में उठाकर गाड़ी में डाला और हॉस्पिटल ले गया। वही उसकी देखभाल कर रहा है और खर्चा भी वहीं कर रहा है। वो उसको बहुत चाहता है श्यामा। नफरत की चादर जो उसके मन पर चढ़ी थी वो शायद धुल गई है। अब शायद उसके फैसले पर उसका असर हो। तुम उसके लिए टिफिन दे दो, मैं वापस जाऊँगा और चिंता मत करो।
ठीक है जी कहकर श्यामा देवी टिफिन बनाने चली गई।
इधर सुबोध ने डॉक्टर से पूछा।
कब तक होश में आ जाएगी डॉक्टर साहब ?
कुछ कह नहीं सकते सर। कमजोरी काफी है, हो सकता है रात को ही आ जाए या कल सुबह तक आए। आप घर क्यों नहीं चले जाते जज साहब। आप क्यों रूके हैं?
इस प्रश्न का सुबोध ने कोई उत्तर नहीं दिया। वो चुपचाप उठा और मीता के पास जाकर स्टूल पर बैठ गया। वो एकटक मीता को देख रहा था। कितनी खुशियो के पल उसके साथ बिताए थे सब उसकी आँखों के सामने झिलमिला गए।
तभी उसके पिता अंदर आए।
सर मैं ये आपके लिए टिफिन लाया हूँ, प्लीज खा लीजिए।
नहीं इसकी कोई आवश्यकता नहीं है। मैं ठीक हूँ।
काफी देर से आपने कुछ नहीं खाया है सर प्लीज ले लीजिए।
क्षमा कीजिए सर। पर ये टिफिन आप बाहर जो दोनो सैनिक बैठे हैं उनको दे दीजिए। उनके लिए तो आफत ही हो गई है। आप प्लीज उन्हें दे दीजिए और आप बाहर जाकर थोड़ा सो जाईये, मैं यही बैठा हूँ।
ठीक है सर। कहकर शर्मा जी बाहर आ गए।
सुबह चार बजे के करीब मीता को होश आया। उसने चारों ओर कमरें मे नजर फिराया उसे कोई नहीं दिखा। फिर अचानक बगल में उसकी नजर गई। सुबोध स्टूल पर बैठा था और उसका सिर दीवार पर टिका था। शायद उसकी आँख लग गई थी।
उसने उसे नहीं जगाया। वो बहुत देर तक उसकी ओर आश्चर्य से देखती रही कि ये यहाँ कैसे है और मैं यहाँ कैसे आई। उसे कुछ भी याद नही आ रहा था उसे सिर्फ इतना याद था कि वो तो कोर्ट रूम में खड़ी थी और फिर अचानक उसका दिमाग शून्य हो गया था। फिर उसे समझ में आया कि वो शायद हॉस्पिटल में है और सुबोध ही उसे शायद वहाँ लेकर आया हो।
वो अब भी वेंटीलेटर पर थी।
बहुत देर तक सुबोध को देख लेने के बाद जब उससे रहा नहीं गया तो वो उसे छूने के लिए उसके हाथ को टच की।
इससे अचानक सुबोध जाग गया।
ओह! आपको होश आ गया। चलो अच्छा हो गया अब आप सेफ हैं। मैं चलता हूँ। सुबोध उठते हुए बोला।
मीता ने उसका हाथ पकड़ लिया। सुबोध रूक गया।
नाराज हो मुझसे। हाँ ठीक ही है तुम्हारी नाराजगी जायज है सुबोध। आज मैंने देख लिया कि कितना प्यार करते हो मुझसे। बहुत प्यार करते हो ना ? रात भर मेरे लिए यही बैठे रहे कुछ खाया पिया नहीं। पर मैं तुम्हारे प्यार के लायक नहीं हूँ सुबोध मैं अपवित्र हो गई हूँ। तुम मुझे फाँसी दे दो। मीता बोली।
सुबोध उसकी ओर न देखकर इधर-उधर देख रहा था क्योंकि उसके आँसू निकलने के लिए बेताब थे और वो उन्हें रोक नहीं पा रहा था। मीता आगे बोली।
क्योंकि सच यही है सुबोध कि मैं चाहती तो उसे पकड़ सकती थी पर उसने मुझे इतनी तकलीफ दी थी कि मैंने सोचा यही बेहतर है और उसे जाने दिया। मीता बोली।
देखिए आज आपकी पेशी है अगर आपको बेहतर लगे तो आईये, अन्यथा मैं आपके बगैर ही फैसला सुना दूंगा। यह कहकर वो बाहर निकल गया। मीता उसे बाहर जाते हुए देखती रही। बाहर निकलकर उसने उसके पापा को जगाया।
सर, आपकी बेटी को होश आ गया है। अब वो सेफ है मैं चलता हूँ तैयार होकर कोर्ट जाना है कल का फैसला अधूरा रह गया था उसे पूरा करना है। अगर उसे ठीक लगे तो कोर्ट लेकर आईये, नहीं तो आप अपने वकील को ही भेज दीजिए और उसे एडमिट रहने दीजिए। मैं गार्ड को बोल देता हूँ। सुबोध बोला।
धन्यवाद सर। आपने बहुत मदद की।
नहीं सर। ये तो मेरा फर्ज था, कहकर सुबोध निकल गया।
क्रमशः
मेरी अन्य दो कहानिया उड़ान और नमकीन चाय भी matrubharti पर उपलब्ध है कृपया पढ़कर समीक्षा अवश्य दें- भूपेंद्र कुलदीप।