Dastango - 4 in Hindi Moral Stories by Priyamvad books and stories PDF | दास्तानगो - 4

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दास्तानगो - 4

दास्तानगो

प्रियंवद

दरवाजे पर तेज दस्तक हुयी।

यह लड़की की दस्तक से अलग थी। इसमें संकोच और विनम्रता नहीं थी। यह कई हाथों की धमक से भरी थी। द्घोड़ों की हिनहिनाहट, खुरों के पटकने की, लगाम पफटकारने की आवाजें भी थीं।

वे दोनों अपने कमरे में आ गए थे। पाकुड़ कच्चा रास्ता पार करके आया। उसने दरवाजे की खिड़की खोली। अंदर पहले एक सिपाही आया, पिफर दूसरा। अंदर आकर वे दोनों एक ओर तन कर खड़े हो गए। कुछ देर बाद तीसरा आदमी अंदर आया। यह बड़ा अपफसर था। वर्दी में था। उसके कंधों पर पीतल के चमकते हुए बिल्ले लगे थे। सर की टोपी पर अशोक की लाट बनी थी। कमर की पेटी पर सुनहरा बकल लगा था। पैरों में पिंडली तक चिपके हुए मिट्टी से सने जूते थे। उसका चेहरा भारी, बदन दोहरा पर कसरती था। वह लम्बा और मजबूत था। उसके चेहरे पर मूंछें इतनी द्घनी थीं कि उसके होठ अंदर छिप गए थे। आँखों में एक वीरानी थी।

उसके अंदर आते ही द्घोड़ों का हिनहिनाना बंद हो गया।

पाकुड़ ने हथेली माथे पर ले जाकर सलाम किया। पाकुड़ की मुद्रा से जाहिर था कि अपफसर पहले भी आता रहा है। उसने अपने नथुनों को दो बार सिकोड़ कर साँस अंदर खींची।

'कैसी महक है?'

'झींगों की'

'ओह' वह हँसा 'तो आज झींगे बना रहे हो। बाहर किसकी गाड़ी खड़ी है?' कमरे की देहरी पर तब तक वामगुल आ गया था। साथ में लड़की भी थी। वाम उसको देखकर मुस्कराया। कच्चे रास्ते से होता हुआ दो सीढ़ियाँ चढ़कर वह बरामदे में आ गया। उसने वाम से हाथ मिलाया पिफर आँखें सिकोड़ कर लड़की को देखा।

'आज आप खुद गश्त पर निकले हैं?' वाम ने पूछा।

'गश्त भी... और कुछ तैयारियाँ भी। क्या चम्पगने आयी है?'

'हाँ', वाम एक ओर हट गया 'आप गश्त से पहले ले सकते हैं।'

'मापफ करिएगा' उसने लड़की को देखा 'मैं अनपढ़ नहीं हूँ पर शैम्पेन को चम्पगने ही कहता हूँ। यह भारी भरकम, मर्दों ऐसा नाम है। शैम्पेन किसी जलपरी की तरह लगता है। मुझे चम्पगने बोलते ही पहली किक मिल जाती है।'

लड़की मुस्करा कर एक ओर हट गयी। वह अंदर आ गया।

'अगर मैं गलत नहीं हूँ तो बाहर खड़ी गाड़ी आपकी है। उस पर जमी धूल बता रही है कि आप बहुत दूर से आयी हैं और कुछ देर पहले ही आयी हैं। शायद इन काग़जों में छुपा कोई खजाना ढूंढ़ने?'

लड़की ने वाम को देखा

'हाँ', वाम ने अपफसर को बैठने का इशारा किया 'यह अभी कुछ दिन रुकेंगी भी।'

'मुझे विश्वास है मैं गलत समय पर नहीं आया' वह सोपफे पर बैठ गया। उसके सामने वाले सोपफे पर वाम और लड़की भी।

'मैं ज्यादा देर नहीं बैठूंगा' उसने पाकुड़ को देखा। उनके पीछे वह भी कमरे में आ गया था। 'हालांकि झींगे मुझे बहुत पसंद हैं। इतने कि अभी कुछ दिन पहले मैंने चेकपोस्ट पर झीगों से भरी एक गाड़ी पकड़ी तो रात को उन्हीं पर सोया। यह महक भी मुझे उकसा रही है... पिफर भी मैं ज्यादा रुकूँगा नहीं'

वामगुल ने इशारा किया। पाकुड़ छोटे दरवाजे से बाहर चला गया।

पाकुड़ लौटा तो उसके हाथ में ट्रे थी। उस पर शैम्पेन की बोतल थी। बफ़ांसुरी ऐसे संकरे तीन गिलास थे। सोपफों के बीच की मेज पर ट्रे रखकर उसने वाम को देखा

'मैं जाऊँ... झींगे बुला रहे हैं'

अपफसर पिफर हँसा। 'मेरी तरपफ से भुनते हुए झींगों से मापफी मांग लेना।'

पाकुड़ उसी दरवाजे से चला गया। वामगुल उठा उसने कार्क खोला। तेज आवाज के साथ थोड़ी शैम्पेन बाहर छलकी। वाम ने तीनों गिलासों को भर दिया। खाली बोतल वापस ट्रे में लिटा दी।

पहला गिलास उसने अपफसर को दिया। दूसरा लड़की को।

'क्या हम किसी शुभेच्छा के लिए गिलास टकराएँ?' अपना गिलास उठाकर उसने अपफसर से पूछा।

'जरूर... महामहिम की कल की यात्राा सकुशल खत्म हो'' अपफसर पिफर हँसा।

तीनों ने अपने गिलास टकराए। वाम वापस सोपफे पर बैठ गया।

'सब कुछ अचानक ही हुआ' अपफसर ने कुछ द्घूंट लिए। 'अभी कुछ द्घंटे पहले पता चला कि महामहिम कल सुबह पीछे वाले पुल की जगह नए बनने वाले पुल का शिलान्यास करने आ रहे हैं। तुम जानते ही हो कि इस इलाके में कितनी गरीबी... भुखमरी... पिछड़ापन है। कुछ महीनों पहले बहुत ऊपर यह तय हुआ कि दोनों शहरों को जोड़ने वाले इस संकरे और कम इस्तेमाल के रास्ते को एक चौड़े राजमार्ग में बदल दिया जाए' उसने कुछ द्घूंट और लिए 'यही नहीं... इस राजमार्ग के दोनों तरपफ बड़े-बड़े मकान... शॉपिंग काम्पलेक्स, अस्पताल... यूनिवर्सिटी... क्लब और न जाने क्या-क्या बनेगा। इसके कई पफायदे होंगे। पुराने रास्ते के मुकाबले यह दूरी आधी रह जाएगी। दुनिया में सबसे पिछड़े हुए इस इलाके के लोगों को रोजगार मिलेगा। जिनके पास खाली, ऊसर जमीन बेकार पड़ी है उन्हें उसकी कीमत मिलेगी। जो कुछ बनेगा उसमें काम मिलेगा। वे सब, जो आज भी उसी तरह रह रहे हैं जैसे सैकड़ों साल पहले रहते थे, एक झटके के साथ इस नई तरक्की में शामिल हो जाएंगे। उनकी पूरी जिं़दगी ही बदल जाएगी। पर इसे शुरू करने में सबसे बड़ी समस्या यह पुल है। इस पुल से एक ट्रक भी नहीं गुज़र सकता। इसलिए सबसे पहले इसे तोड़कर नया और बड़ा पुल बनेगा। इस बनने वाले पुल का पहला पत्थर रखने ही महामहिम आ रहे हैं', उसके गिलास के ऊपर ठंडक से जमी बूंदें खत्म हो गयी थीं। उसने कुछ और द्घूंट लेकर गिलास खाली कर दिया 'महामहिम आ रहे हैं तो उनकी सुरक्षा के लिए पहले तो एक लम्बी गश्त करनी है, पिफर दूसरे इंतजाम भी करने हैं। कल बहुत मजमा होगा। बड़े अखबार, बड़े मंत्राी, बड़े अपफसर और विदेशों के कुछ लोग भी होंगे। द्घुड़सवारों को सलामी देने का अभ्यास भी कराना है।'

वाम और लड़की के गिलासों में अभी शैम्पेन थी। वह बेचैनी से उसके खत्म होने का इंतजार कर रहा था। बाहर द्घोड़े हिनहिनाने लगे। खुर पटकने लगे।

'बहुत दिन बाद निकले हैं इसलिए बेचैन हैं' वह हँसा। उसके अंदर सुरूर की पहली लहर उठने लगी थी। 'तुम कब तक रुकोगी?' उसने लड़की से पूछा

'अभी तय नहीं किया है।'

'वैसे तो मुझे तुम्हारे बारे में पूरी जानकारी लेनी चाहिए क्योंकि तुम अचानक और आज ही बाहर से आयी हो... बल्कि तुम्हारे सामान की... गाड़ी की तलाशी भी लेनी चाहिए' उसने लड़की को देखा 'पर मैं ऐसा नहीं करूँगा। मैं तुम्हारी तलाशी लूँगा तो यह बुरा मान जाएगा। मुझे चम्पगने पिलाना बंद कर देगा' वह पिफर हँसा।

'मैं जानता हूँ तलाशी में कुछ मिलने वाला नहीं है। इस इमारत में सिपर्फ पूरी दुनिया से और खुद से भी नाराज और ऊबे हुए लोग आते हैं। उनका बस चले तो सूरज के उगने और बच्चों के जन्म लेने को भी गलत सि( करके रोक दें,' उसकी बेचैनी बढ़ गयी। उसने वाम के गिलास की ओर इशारा किया 'शुरुआत हमेशा तेज करनी चाहिए।'

वाम ने गिलास खत्म करके मेज पर रख दिया। इस बार वह खुद उठा। छोटे दरवाजे से बाहर गया और शैम्पेन की दूसरी बोतल ले आया। उसी तरह सब करने के बाद उसने तीनों गिलास पिफर भर दिए। गिलास उठाकर अपफसर पीछे की तरपफ लुढ़क कर बैठ गया। माँसपेशियों को उसने ढीला छोड़ दिया। आराम के लिए और सुरूर के लिए भी। अब वह सहज और मुक्त दिख रहा था।

'सब कहते हैं शराब पीने के बाद मैं दूसरी कोटि में गिर जाता हूँ और बहुत बकबक करता हूँ... उस पर भी तुर्रा यह कि अपने ही बारे में बोलता हूँ। मैं जानता हूँ यह सब बहुत द्घटिया और उबाऊ होता है... पिफर भी... मेरी बकबक को कुछ देर बर्दाश्त कर लेना' उसने लड़की से कहा। 'वैसे मैं चुपचाप सुन भी सकता हूँ अगर तुममें से कोई बकबक करे' वह पिफर हँसा 'पर मुझे पता है तुम लिखने पढ़ने वाले लोग बहुत कम बोलते हो। सोचते ज्यादा हो... करते ज्यादा हो। खासतौर से ऐसे काम जो हमें परेशान करते हैं... इसलिए मैं ही बोलूँगा। वैसे चाहें तो हम तीनों ही चुप रह कर द्घोड़ों का हिनहिनाना सुन सकते हैं। पर यह इस शानदार चम्पगने का अपमान है जो हमें नहीं करना चाहिए। अब देखो मैंने बकबक शुरू भी कर दी' उसने दो बड़े द्घूंट लिए। उसके चेहरे की माँसपेशियाँ तन गयी थीं। वह सूजा हुआ लग रहा था। उसकी नसों में ठंडी शैम्पेन उतरने लगी थी।

'क्या तुम अपने बारे में बताना

चाहोगी?' उसने लड़की से पूछा।

'नहीं... आप हम लोगों के बारे में ठीक सोचते हैं' वह हँसी 'हमारे पास बोलने के लिए कुछ नहीं होता और होता भी है तो दूसरों के लिए गहरी नापसंदगी या पिफर उन्हें न समझ पाते हुए भी समझने का अभिनय।'

'इस सबसे मुझे द्घृणा है। बात और ज़िंदगी, दोनों इतनी सापफ और सीधी होनी चाहिए, जैसे आँतों में छुरी उतरती चली जाती है। बेहतर है तुम लोग चुप ही रहो' उसके चेहरे पर हल्की सी विरक्ति और द्घृणा की छाँह आयी जो तत्काल चली भी गयी।

'पर तुम पहले अपने कपड़े के ऊपर के दोनों बटन बंद करो। मुझे उसके अंदर कैद दोनों लाल कबूतर परेशान करने लगेंगे' वह पिफर हँसा 'लाल कबूतर... मैंने जब पहली बार सुना तो मैं पूरे दिन गरमाया हुआ द्घूमता रहा था। तुम्हें पता है मैंने कहाँ सुना था?'

लड़की ने कमीज के बटन बंद कर गिलास में चेहरा धंसा दिया।

'तुम्हें विश्वास नहीं होगा। एक जगह कुछ मजदूर रस्सों से बड़ा पत्थर ऊपर उठा रहे थे। उनका तरीका होता है कि एक आदमी गाते हुए उन्हें हुलसाता है। बाकी सब जवाब देते हैं... होइसा। मैं तब छोटा था। खड़ा होकर सुनने लगा। एक आदमी उन्हें हुलसा रहा था। वे उसे जवाब देते हुए पत्थर को उठाते जा रहे थे। हाथों को नचाते हुए वह आदमी लय में बोल रहा था। वे 'होइसा' कहकर जवाब दे रहे थे।

गाँव की गोरी

होइसा

पहने चोली

होइसा

चोली के भीतर

होइसा

लाल कबूतर

होइसा

दुई कबूतर

होइसा

जो कोई खींचे

होइसा

वही दबोचे

होइसा

शंकर खींचे

होइसा

रहमत खींचे

होइसा

झगड़ू खींचे

होइसा

बाबू खींचे

होइसा

दुई कबूतर

होइसा

उड़ न पाएँ

होइसा

पफड़पफड़ करते

होइसा

रहो दबोचे

होइसा

वह कुर्सी से उठ गया। धीरे-धीरे गोले में द्घूमते हुए गाने लगा। उसके गिलास से कुछ शैम्पेन छलक गयी। दो चक्कर द्घूमने के बाद वह रुक गया। कुछ क्षण खड़े होकर उसने साँस ली पिफर बैठ गया।

'मापफ करना... मैंने कहा था मैं पूरा दिन गरमाया रहा था। वही पिफर हुआ' उसने आँखें बंद कर लीं। कुछ द्घूंट पिफर लिए। वह बिल्कुल निश्चल हो गया। धीरे-धीरे उसने अपने को संयत किया। कुछ ही क्षणों में वह उसी तरह हो गया जैसा दरवाजे के अंदर द्घुसते हुए था। सख्त, कठोर चेहरा... भावविहीन आँखें।

द्घोड़ों के हिनहिनाने की तेज आवाज पिफर आयी। वे खुर पटक रहे थे। उनके सवार उनको गालियाँ दे रहे थे पर वे ऊपर मुँह उठाकर नथुनों को सिकोड़ते पफैलाते बेचैनी से मुँह से झाग उगल रहे थे।

'इन्हें क्या हो गया है' वह रुक गया 'ऐ...' उसने किसी अदृश्य आदमी को आवाज दी 'देखो इन मरदूदों को... उनसे कहो कि कुछ देर बाद उनकी लगामें पफटकारते हुए उन्हें चारों ओर दौड़ाया जाएगा। बेचैन न हों।'

द्घोड़े चुप हो गए। वह पिफर सोपफे पर आकर बैठ गया।

'यह बेचैनी बुरी चीज है। मैं भी कितना बेचैन हो गया था अभी' उसने लड़की को देखा 'आदमी को हमेशा पता होना चाहिए कि क्या चीज उसे इस तरह बेचैन कर सकती है। उसे उससे बचना चाहिए। जैसे मैंने किया। मैंने इसीलिए तुमसे बटन बंद करने को कहा था। मुझे अपनी इस बेचैनी के बारे में पता था' उसने गिलास मेज पर रख दिया।

'तुम यह मत समझना कि यह नशे का असर था' उसने वाम से कहा 'इसके लिए तो मैं तुम्हें चुनौती दे सकता हूँ... खैर। मैं इस खुशनुमा शाम के बदले तुम्हें एक दोस्ताना सलाह देता हूँ। तुम इस सड़क के किनारे बनने वाले आलीशान मकानों में एक पैन्ट हाउस बुक करवा लो। अभी वे इसे कौड़ियों के भाव दे रहे हैं। पर आने वाले समय में इनकी कीमत बहुत होगी। मैं तीन पैन्ट हाउस बुक करवाऊँगा। तुम चाहो तो उस दलाल को तुम्हारे पास भेज दूँ...' उसने वाम को देखा। उसकी मूंछें इतनी बड़ी और द्घनी थीं कि उसकी द्घृणा, मुस्कान या ऊब पता नहीं चलती थी। 'वे तुम्हें पैसे भी कर्ज पर देंगे। तुम चाहो तो मैं तुम्हारी जमानत ले सकता हूँ।'

'नहीं' वाम ने कहा 'बस कुछ ही दिनों बाद मेरा काम खत्म हो जाएगा। मैं चला जाऊँगा। पिफर भी... शुक्रिया'

'छोड़ो... तीसरी और आखरी चम्पगने खोलने से पहले अब काम की बात कर लें। जाहिर है यहाँ कोई हथियार तो होगा नहीं'

'है'

उसने आँखें सिकोड़कर वामगुल को देखा।

'अंदर कमरे में पीतल के दो द्वारपाल खड़े हैं... उनके हाथों में भाले हैं।'

'और?'

'बस'

'तुम्हारा ड्राइविंग लाइसेंस?' उसने लड़की से पूछा।

'गाड़ी में है'

'छोड़ो... सब ठीक ही होगा। अच्छा होगा कि कल सुबह, जब तक महामहिम नए पुल का पत्थर लगाकर न चले जाएँ, तुम लोग बाहर मत निकलो। हम नहीं चाहते कि उनकी सुरक्षा को कोई भी खतरा हो। इसका सबसे आसान तरीका यही है कि किसी को भी द्घर से बाहर निकलने न दिया जाए। थोड़ी ही देर की बात होगी। इस पुल के साथ अरबों रुपए का मामला जुड़ गया है इसलिए सब कुछ बहुत बड़ा होगा। कल मत निकलना। मेरा उस्ताद कहता था कि जब हाथी चले तो चींटियों को रास्ते पर नहीं निकलना चाहिए।'

'तुम्हारा उस्ताद मूर्ख था', लड़की का एक होठ द्घृणा से टेढ़ा हो गया। उसकी आँखों की लाली बढ़ गयी थी।

'नहीं... वह मूर्ख नहीं था।' उसने लड़की की बात का बुरा नहीं माना 'वह इस जगत के हर खेल को समझता था। मैंने सब कुछ उसी से सीखा है। यहाँ तक कि ऐसी मूंछें रखना भी। वह कहता था कि होठ इंसान की भावनाओं के सबसे बड़े इश्तहार होते हैं और एक अपफसर की भावनाएँ हमेशा छुपी रहनी चाहिए। न समझे जाने से ही वह भय पैदा करता है। इसलिए भावनाओं को झपटने वाले तेंदुए की तरह मूंछों की झाड़ी में छुपाए रहो...। तुम लोग किसी के अंदर डर पैदा नहीं कर सकते क्योंकि तुम्हारे होंठ बता देते हैं तुम क्या सोच रहे हो। क्या करने वाले हो। पर मेरे साथ ऐसा नहीं है। मैं क्या सोच रहा हूँ और अगले ही क्षण क्या करने वाला हूँ कोई नहीं समझ सकता। यहाँ तक कि वह भी नहीं, जिसकी हत्या ठीक अगले ही क्षण मैं कर देता हूँ। मेरे उस्ताद ने ही यह हुनर मुझे सिखाया है। वह मूर्ख नहीं था 'वह रुका पिफर बोलने लगा 'मेरे उस्ताद की मूंछों के पीछे एक मस्सा था जो दिखता नहीं था। उस पर कभी मक्खी बैठ जाती तो वह बहुत बेचैन हो जाता... जैसे अभी मैं हो गया था। मक्खी तभी बैठती थी जब उसके मस्से से एक खास तरह की गंध निकलने लगती थी, और यह गंध तब निकलती थी जब उसके अंदर हत्या करने की गहरी तड़प जागती थी। बाद के दिनों में मैंने उसके मस्से पर हमेशा मक्खी को बैठे देखा। वह जल्लादों के खानदान का था। वह अपनी कई पीढ़ियों के बारे में जानता था। उसके पुरखों ने जितनों को पफफ़ांसी दी, उसे उनके नाम जबानी याद थे। उन पफफ़ांसियों से जुड़े सारे किस्से भी याद थे। उन्हें सुनाकर वह कभी-कभी पूरी रात हँसता था। किस्से भी क्या थे... कभी गलत पफंदा लग जाने के... कभी प्राण न निकलने पर छटपटाने के... कभी गिड़गिड़ाने के... कभी कैदियों का पेशाब निकल जाने के... और कभी पफंदे से पहले ही डर कर मर जाने वालों के थे। उसे पफफ़ांसी देने के बहुत से तरीके पता थे। उसे पफंदे की बहुत सी गांठें मालूम थीं। उन्हें वह उसी प्यार और मुग्धता से लगाता था जैसे जवान होती लड़कियाँ अपनी लटों में लगाती हैं। वह पूरी रात पफफ़ांसियों पर बात कर सकता था। अब उस्ताद की याद मुझे रुला देगी। इसलिए भी कि मैंने उसे निराश किया... उसे धोखा दिया। इसके पहले कि मैं रोने लगूँ बेहतर है तुम तीसरी चम्पगने खोल लो। पिफर मैं यहाँ से जाऊँ और कल की तैयारी करूँ।'

वामगुल उठ गया। अभी उसके सुरूर में कमी थी। लड़की की आँखों से सुरूर पता चल रहा था। वामगुल तीसरी शैम्पेन ले आया।

'मेरा वायदा है कि यह आखरी गिलास है। वैसे भी इससे ज्यादा पिऊँगा तो मैं भी इन मरदूदों की तरह हिनहिनाने और खुर पटकने लगूँगा।'

वामगुल ने पिफर तीनों गिलासों को भर दिया।

'क्या धोखा दिया?' लड़की ने पूछा।

'उसने मुझे सिखाया था कि किसी की भी हत्या करते समय अपने अंदर द्घृणा की भावना मत रखना। क्रोध की भी नहीं। बदले की भी नहीं। बल्कि कोई भावना ही मत रखना। शांत... निर्लिप्त... जैसे समाधि में होता है कोई। जैसे कसाई करता है। अपना धर्म... अपनी रोजी... अपना ईमान समझकर। हत्या करते समय भी तुम्हारे अंदर करुणा होनी चाहिए। मौत की आहट मौत से भयानक होती है। तुम किसी हँसते... खिलखिलाते आदमी को अचानक मार दो तो तुम सचमुच उदार हो... दयालु हो। तुम्हारे अंदर अभी गहरी करुणा बची हुयी है। गरुड़ को देखो कभी। कोई भी हो। कितनी खामोशी से हवाओं में तैरता हुआ वह ऊपर से शिकार पर झपटता है। शाखों में दुबका बंदर का बच्चा, चट्टानों की दरार से झाँकता साँप... लहर के नीचे नाचती मछली... झाड़ी में सोया खरगोश... किसी को पता नहीं चलता कि अगले ही क्षण मृत्यु है। मृत्यु का आतंक, आहट कुछ नहीं। और पिफर कितनी खामोशी और धैर्य से वह उसे पंजों में दबोच कर हवाओं में ले जाता है... उसकी गर्दन मरोड़ता है। गरुड़ की करुणा किसी भी हत्यारे के धर्मग्रंथ का पहला पाठ होना चाहिए।' उसने साँस ली, कुछ द्घूंट लिए।

'पर मैंने उसे धोखा दिया। मैं ऐसा नहीं कर पाया। मुझे हत्याओं में सुख मिलने लगा। मैं हत्या करने के बहाने ढूंढ़ने लगा। एक बार मैंने एक आदमी को सिपर्फ इसलिए पफफ़ांसी दी क्योंकि उसने सपना देखा था कि वह मेरा गला उतार रहा है। मैंने उसे जब इस जुर्म में पकड़ा तो वह पफटी आँखों मुझे देख रहा था। उसके सर के बाल खड़े हो गए थे। वह पिल्ले की तरह कांप रहा था। उसे विश्वास नहीं हो रहा था कि सपने में किसी का कत्ल करना भी कोई जुर्म है। मैं उसे जब उसका जुर्म समझा रहा था तो मुझे उसमें भी मजा आ रहा था... किसी को जिबह करने से पहले चाकू तेज करने का मजा। वह द्घुटनों के बल जमीन पर बैठा दोनों हाथ जोड़े सुन रहा था। मैं उसके मन से और अपने भी, यह निकाल देना चाहता था कि मैं कोई अन्याय कर रहा हूँ। मैंने उसे बताया कि अगर तुम मेरी हत्या करने की इच्छा रखते हो, ऐसा सोचते हो, तो तुम उतने ही दोषी हो जितना मेरी हत्या करने वाला

होगा। हमारे खिलापफ सोचना भी अपराध है। तुम्हारी आत्मा... मस्तिष्क सब हमारे गुलाम होने चाहिए। इसलिए तुम्हारे सपने भी। तुम्हारा सपना अगर हमारे खिलापफ बगावत करता है, तो इसके जिम्मेदार तुम हो कि तुमने अपने सपने को इतनी

आजादी दी। उसमें इतना साहस पैदा होने दिया। तुम तो उससे भी बड़े गुनहगार हो जो मेरी हत्या करता, इसलिए कि वह तो सिपर्फ एक बार मेरी हत्या करता... पर तुम अपना सपना दूसरों को बताकर, उसे बांट कर, उनके अंदर भी वैसे ही सपनों को जन्म देते हो। मेरी हत्या अनेक जगह करते हो... उसके निशान छोड़ते हो। तुम्हारी मौत ऐसी होनी चाहिए जिसमें तुम्हारे शरीर के साथ तुम्हारे सपने की मौत भी दिखे। तुम्हारी पफटी और उबल कर निकली हुयी आँखों के बाहर वह सपना दम तोड़ता दिखे। डरो मत। मैं न्याय करूँगा। मैं ऐसा कुछ भी नहीं करूँगा जो एक दयालु... नेक और न्यायप्रिय हत्यारे को नहीं करना चाहिए। मैं तुम्हें नहीं... तुम्हारे सपने को पफफ़ांसी दूँगा। मैं मजबूर हूँ। तुम्हारा सपना अगर सिपर्फ तुम्हारी आँखों के अंदर ही रहता, तो मैं उनमें गर्म सूजा भौंक देता या उन्हें हमेशा के लिए सिलवा देता। पर ऐसा नहीं है। जो सपने सिपर्फ तुम्हारी आँखों के अंदर ही होते हैं वे आँख खुलते ही मर जाते हैं। कोई उन्हें दूसरों को नहीं बताता। पर जो आत्मा के अंदर पलने लगते हैं... नसों में खून के साथ दौड़ने लगते हैं, उन्हें आदमी हमेशा दूसरों के अंदर भी उतारता चलता है। अब यह तुम्हारा दुर्भाग्य और मेरी मजबूरी है कि इसके लिए मुझे तुमको पफफ़ांसी देनी होगी। इस तरह, कि मैं अपनी आँखों से देखूँ कि तुम्हारी आँखों में तुम्हारी आत्मा दम तोड़ रही है... यानी तुम्हारा सपना सचमुच मर रहा है। यही हुआ भी। बाद में उसकी आँखें पफटकर बाहर निकल पड़ी थीं। पर मैंने अपने उस्ताद को धोखा दिया। मैंने उसे अचानक झपटती हुयी मौत नहीं दी। मैंने कसाई की तरह निर्लिप्तता नहीं दिखायी। मैं उस समय उदार और करुण नहीं था। मैंने उसे पूरी तरह मरते देखा। उसके सामने पत्थर पर कुहनी

टिकाकर... हथेली पर सर रख कर। उसकी तड़पती देह को उसी तरह देखा। जैसे कोई नृत्य नाटिका देखता है। उसके हाथ पैर लटक गए थे। उसके हर रन्ध्र से चीत्कार निकल रही थी। आनन्द... और विजय के अहंकार से लबालब मैं गहरी द्घृणा के साथ उसे देख रहा था। मैंने धोखा दिया' वह सुबकने लगा। कुछ देर बाद उसने बाँह से अपना गीला चेहरा पोछा।

'मुझे पता था ऐसा ही होगा। चम्पगने का तीसरा गिलास... उस्ताद की यादें... मेरा पाप और हत्याओं की तिलस्मी दुनिया। मेरे साथ हर बार ऐसा ही होता है। इसलिए कि मैं झूठा और बुरा इंसान नहीं हूँ। बल्कि सच्चा और ईमानदार हूँ। जैसा हूँ वैसा बता देता हूँ। दूसरे लोग यह नहीं करते। वे जैसे होते हैं वैसे दिखना नहीं चाहते। अब मेरे गिलास में कुछ ही चम्पगने बची है इसलिए मुझे थोड़ा दार्शनिक होने का भी अधिकार है। मुझे टोकना मत... बस मेरी कुछ बकबक और सुन लो। उदारता या क्रूरता... पाप या पुण्य... नैतिक या

अनैतिक, हम नहीं हमारा समय तय करता है... या पिफर वह सब जो सदियों पहले तुम्हारी इन बदबूदार किताबों में तय करके लिख दिया गया है। वैसे देखो तो यह ठीक भी है। हमें ही यह सब तय करने की छूट मिल जाए तो कभी न रुकने वाली चीख पुकार के अलावा कुछ नहीं बचेगा। हमें उनका आँणी होना चाहिए जो सारी महान बातें, अलग-अलग पुड़ियाओं में बांधकर हमें दे चुके हैं, और जिन्हें वक्त-बेवक्त हम गोली की तरह चुपचाप गटकते रहते हैं। वैसे भी... हम हैं क्या? हम कभी, किसी समय में नहीं होते... अगर होते भी हैं तो बस समय की जेब में द्घिसे हुए सिक्कों की तरह पड़े रहते हैं जिनकी सारी चमक उतर गयी है। कीमत खत्म हो चुकी है। केवल खनकते रहते हैं। समय में वे होते हैं जिन्हें उस समय में दर्ज कर दिया जाता है। और यह काम तुम लोग यहाँ ढहते हुए खंडहरों के सन्नाटों में चुपचाप करते रहते हो। भांडों वाले चमकीले लिबास पहनकर, अत्यंत गंभीर मुद्राओं में सत्य की खोज का स्वांग करते हुए... ईश्वर की असली और इकलौती औलाद होने का दावा करते हुए।'

आखरी द्घूंट लेने के लिए उसने पूरा गिलास मूंछों के अंदर पलट दिया। रोने से निकले आँसू और ज्यादा बोलने से बनी लार आखरी द्घूंट के साथ अंदर चली गयी। खाली गिलास उलटा कर उसने दोनों हथेलियों से चेहरे को पोछा। सर को दो झटके दिए।

'मुझे सचमुच देर हो गयी। लम्बी गश्त करनी है... पर हो जाएगा। ये द्घोड़े बहुत तेज हैं। मजबूत मफ़ांसपेशियों और हल्के खुरों वाले। पर सुनो...' वह एक दम से स्थिर हो गया। उसका हथेलियों का चेहरे पर द्घिसना... शरीर का हिलना सब बंद हो गया। एक क्षण बाद वह हँसा।

'यह कमाल चम्पगने ही कर सकती है। मेरा काम तो बहुत आसान हो गया... ऐ...' वह खुशी से चीखा। बाहर खड़े सिपाहियों में एक भागता हुआ अंदर आया।

'ऊपर की दूरबीन से देखो चारों ओर। हालांकि इस रात में सुर्ख केकड़ों के अलावा कौन निकलेगा'।

वह सिपाही बाहर निकल गया। सीढ़ियों पर उसके चढ़ने की आवाज आयी पिफर खामोशी छा गयी।

'सचमुच शुक्रिया। मुझे विश्वास है मैंने तुम लोगों को उबाया नहीं है। अगर मैं पिफर आया तो मुझे यही शानदार चम्पगने पिलाओगे।'

वामगुल हँसा।

'जरूर... अगर मैं ज्यादा दिन रुका।'

'नहीं... तुम रुको... जब तक चाहो बादशाहों की तरह रुको... मैं हूँ... और तुम...'

उसने लड़की को देखा, 'मुझे मापफ करना... पर मैं क्या करूँ।'

सीढ़ियों पर बहुत तेज आवाज आयी। हाँपफता हुआ सिपाही अंदर द्घुसा। उसका चेहरा पीला पड़ गया था।

'पुल पर दो द्घोड़े मरे पड़े हैं। चावल के बोरों की गाड़ी पलट गयी है। वे सब चावल बटोर रहे हैं। वे अनगिनत हैं वे आते जा रहे हैं झाड़ियों से... पुल के नीचे से... सड़क से। वे चावल के लिए लड़ रहे हैं। अपने कपड़ों में चावल भरकर द्घरों की तरपफ भाग रहे हैं।'

वह चुपचाप सिपाही को देखता रहा। उसका चेहरा पत्थर होना शुरू हो गया। वह उठ गया।

'विदा दोस्तों' उसने हथेली अपने माथे से छुआयी पिफर सिपाही की तरपफ मुड़ा 'द्घोड़े छोड़ दो'।