30 Shades of Bela - 19 in Hindi Moral Stories by Jayanti Ranganathan books and stories PDF | 30 शेड्स ऑफ बेला - 19

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30 शेड्स ऑफ बेला - 19

30 शेड्स ऑफ बेला

(30 दिन, तीस लेखक और एक उपन्यास)

Day 19 by Sumita Chakrobarty सुमिता चक्रवर्ती

कुछ तेरी-कुछ उसकी कहानी

फिर दादी… दादी के अलावा जिंदगी के सूत्र और किसी ने दिए ही नहीं। वो कहा करती थीं, हर सवाल का जवाब नहीं होता। कुछ सवाल खुद अपने आप में जवाब होते हैं। बेला की उम्र रही होगी, बारह साल। वह अपने स्कूल में कथक की डांस प्रतियोगिता में हिस्सा ले रही थी। मन था कि पापा और मां भी उसे देखने आएं। पर आईं, सिर्फ दादी। उसकी दादी शानदार दिखती थीं। छोटे कटे झक सफेद मुलायम से बाल। उजले माथे पर छोटी सी लाल बिंदी, रॉ सिल्क की साड़ी, हील के शूज और खूब चमचमाती आंखें।

प्रोग्राम के बाद दादी उसे पंडारा मार्केट में उसके पसंदीदा रेस्तरां गुलाटी ले कर गईं। वहीं बेला ने पूछा था- दादी, क्या हर दादी-पोती का रिश्ता हमारे जैसा ही होता है? मेरी फ्रेंड्स तो कहती हैं कि उनकी दादियां बड़ी बोरिंग हैं। भजन, भोजन और दूसरों की बुराई के अलावा और कुछ नहीं करतीं। फिर आप ऐसी क्यों हो?

दादी खूब हंसी थी। सवाल और जवाब का फॉर्मूला भी तभी थमाया था उसे।

आज उस फॉर्मूले की सख्त जरूरत पड़ गई है बेला को। वह समीर से सवाल नहीं करना चाहती। यह उसे नागवार लग रहा है, अपना कद कैसे इतना गिरा सकती है? कैसे पूछ सकती है कि किस पद्मा से तुम फोन पर बात कर रहे थे? मेरी बहन? वो कैसे आ गई तुम्हारी जिंदगी में? क्यों?

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डलहौजी से मुंबई आने तक बेला ने सामान्य बने रहने की कोशिश की। जब सारे सवालों के जवाब धीरे-धीरे मिल रहे हैं, तो इसका भी मिल जाएगा। पापा और आशा मां मुंबई में ही थे। बेला ने ही कहा था कि वे कुछ दिन उसके पास रह जाएं, रिया को अच्छा लगेगा।

रिया की ही नहीं, पापा की तबीयत में भी आश्चर्यजनक सुधार था।

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बेला ने ऑफिस जाना शुरू कर दिया। शुक्रवार को सुबह पापा कुछ जल्दी उठ गए। बेला बॉलकनी में उन्हें चाय का कप देने गई, तो वे धीरे से बोले, ‘आज आशा का जन्मदिन है। तुम उन्हें विश करोगी बेटी?’

बेला के होंठों पर हलकी सी मुस्कराहट आई, ‘जरूर पापा। आप कहें तो शाम को केक ले आऊंगी। घर पर सेलिब्रेट करेंगे।’

पापा की आंखें चमकने लगीं, एकदम दादी की आंखों की तरह। उन्होंने बहुत प्यार से बेला का हाथ पकड़ कर कहा, ‘थैंक्यूं बेटी। मैं शायद कभी बहुत अच्छा पिता नहीं बन पाया…पर तुम दुनिया की सबसे अच्छी बेटी हो।’

पापा की आंखें भर सी आईं। ऐसे वाले पापा तो उसने कभी नहीं देखा। बेला की तरफ देख कर उन्होंने कुछ हिचकते हुए कहा, ‘बेला, अगर तुम कहो, तुम्हें दिक्कत ना हो तो उसे भी बुला लें? तुम्हारी बहन। वह तुमसे मिलना चाहती है। हमारे मना करने के बावजूद वह तुम्हारे पीछे-पीछे बनारस गई थी। तुम नाराज हो ना उससे?’

पता नहीं कैसे बेला के मुंह से निकला, ‘उससे कैसी नाराजगी पापा? मैं तो यह भी नहीं जानती थी कि मेरी कोई बहन भी है। एक बात बताइए पापा। क्या मैं आप सबको इतनी कमजोर लगती थी कि सबने मुझसे यह बात छिपाई? आप बनारस में मेरा अपहरण करवाने के बजाय मुझे सच बता देते?’

पापा अवाक रह गए। शायद थोड़ा सहम भी गए। रुक कर बोले, ‘बेला, गलती मेरी ही थी। दादी के गुजरने के बाद तुमने मुझसे बात करना बंद कर दिया। तुम मुझे बिना बताए हरिद्वार और बनारस चली गई। मुझे मां ने रोका था कि कभी तुम्हें यह नहीं बताऊं कि नियति तुम्हारी मां नहीं, आशा है। आय एम सॉरी बेटा। मैं जिंदगी में अपनी भागदौड़ में लगा रहा। कभी नहीं सोचा कि इन सब बातों का तुम पर क्या असर पड़ेगा। अब भुगत रहा हूं। हाथ बिलकुल खाली हैं मेरे। कहने को पूरा परिवार है मेरा, पर क्या सच में है?’ पापा शायद हिचकी ले कर रोने लगे थे। बेला यह बर्दाश्त नहीं कर पाई। नहीं, उसके पापा नहीं रो सकते। उसके पापा कमजोर नहीं पड़ सकते।

उसने पापा का कंधा सहलाते हुए कहा, ‘पुरानी बातों को जाने दीजिए पापा।’ वह पापा को वैसे ही छोड़ कर ऑफिस के लिए निकल आई। पापा ने एक सवाल पूछा था, शाम को पद्मा को घर बुलाए? ऑफिस में देर तक सोचती रही, फिर पापा को मैसेज कर दिया—आप शाम को जिन-जिनको बुलाना चाहते हैं बुला लीजिए…

दिन भर ऑफिस में धुकपुक मची रही। पद्मा से वह मिली है एक बार, पांच साल पहले। तब पता नहीं था कि वह उसकी बहन है। उसके पूर्व प्रेमी की पत्नी, उसके मां-पापा की दूसरी बेटी। समीर की पता नहीं क्या? क्या कहेगी उससे? मन उचटने लगा।

लंच टाइम में समीर का उत्साह भरा फोन आ गया, ‘बेला, पापा बता रहे थे कि शाम को घर में पार्टी कर रही हो। खाने-पीने की चिंता मत करो। बाहर से मंगवा लेंगे। तुम बस मेन्यू बता देना।’

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बेला ने फोन पर केक ऑर्डर करके घर भिजवा दिया। जानबूझ कर वह ऑफिस से देर से निकली। आठ बजे घर पहुंची। समीर घर आ चुका था। उसने पूरे घर को सेंटेड कैंडिल से सजाया था। रिया नई जीन्स में बेबी डॉल बनी घूम रही थी। पापा ड्राइंग रूम में आराम कुर्सी पर बैठे थे, नीले रंग के कुर्ते में। आशा मां ने कई दिनों बाद साड़ी पहनी थी, हलकी गुलाबी। बालों में मोंगरे का गजरा। टेबल पर केक सजा था। उसकी पिक्चर परफेक्ट फैमिली। उसने इधर-उधर झांक कर देखा, और कोई नजर नहीं आया।

बस उसका परिवार। खाने की टेबल पर सब खुश थे। रिया ने केक काटते समय बड़े जोश से हैप्पी बर्थडे नानी गाया। आशा मां की आंखों में आंसूं, पापा की आंखों में आह्लाद। ओह, कहीं वह सपना तो नहीं देख रही?

खाना खाते ही रिया सोने चली गई। समीर और पापा टीवी पर क्रिकेट मैच देखने लगे। बेला टेबल साफ करने लगी। आशा मां उसकी मदद को आ गई।

अचानक किचन में आशा मां ने हाथ का काम छोड़ बेला को गले लगा कर उसका माथा चूम लिया। बेला ने महसूस किया उनके आंसू भीगे होंठों का स्पर्श। वह कुछ तड़प कर बोली, ‘मां, क्या हुआ?’

आशा मां ने अपने को संभालते हुए कहा, ‘कुछ नहीं रे। बहुत सालों से तुझे प्यार करने का मन था। कभी हालात ने मौका नहीं दिया।’

बेला की आंखों में भी आंसू आ गए, ‘मैं समझ सकती हूं मां। रिया मुझे मां कहती है तो मैं अंदर तक भर जाती हूं।’

बेला देर तक उनकी तरफ देखती रही। अचानक उसने पूछा, ‘आपने मुझे जन्म देने के बाद दादी के पास क्यों छोड़ दिया? क्या कभी आपको नहीं लगा कि मेरे पास आए, मुझे मां का प्यार दे? आपके पास पद्मा थी ना तो…’

आशा विचलित हो गई, ‘ऐसा नहीं है बेला। तुम शायद अब समझ पाओगी कि मैंने ऐसा क्यों किया था!’

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हाथ में कॉफी का कप लिए बेला और आशा बालकनी में आ बैठे। ढलती रात, दूर समंदर से आती भीनी हवा, सामने सड़क पर तेज चलती गाड़ियां। आशा रेलिंग के सहारे खड़ी थी।

बेला, तुम्हें जन्म देने का हक मैंने लिया था। जब पता चला था कि नियति दीदी मां नहीं बन सकतीं और वे बच्चा गोद लेने की सोच रही हैं, मैंने प्रस्ताव रखा था कि मैं सेरोगेट मां बन सकती हूं। मेरी उम्र उस समय इक्कीस साल थी। गजब का बचपना था मुझमें। एक आक्रोश भी कि पुष्पेंद्र ने मुझे छोड़ कर नियति से शादी क्यों की? पुष्प को पता नहीं था कि मैं उनसे कितनी मोहब्बत करती थी। दादी को भी नहीं। सब मुझे एक बेपरवाह, हिप्पी लड़की समझते थे। तुम्हारी दादी और नियति मान गए। मैंने नौ महीने बड़े प्यार से तुम्हें अपने पेट में रखा, हर क्षण मैं पुष्प के एक बीज को अपने अंदर फलता-फूलता महसूस करती और उसीमें खुश हो जाती।

तुम्हारे पैदा होने के बाद मैंने एक झटके में अपने को तुमसे अलग कर दिया। मैं बहुत रोई हूं अकेले में। बहुत बर्बाद किया है अपने को। दो साल बाद जब पुष्पेंद्र मुझे मिले, वो वजह अलग थी। मैं दुनिया से लड़ना चाहती थी। मैंने सबके मना करने के बावजूद अमेरीकी गायक माइक से अपने संबंध बढ़ाने शुरू किए। मैं पूरी तरह एक छुट्टा सांड बन गई। किसी की नहीं सुनती थी।

नियति ने पुष्पेंद्र को भेजा था मुझे वापस ले जाने। शिमला में शो था माइक का। उस दिन गजब की बर्फ पड़ रही थी। मैं पुष्प की कोई बात नहीं मान रही थी। खूब पी ली थी। उसी रौ में मैंने बता दिया उन्हें कि मैं उनसे मोहब्बत करती हूं। पुष्प को शायद मुझसे यह उम्मीद नहीं थी। उस रात… फिर हम काबू में ना रहे। मैं बहकी, वो बहके। जब सुबह मौसम साफ हुआ, तो मैंने पुष्प के साथ दिल्ली लौटने से मना कर दिया। मैं माइक के साथ विदेश चली गई। कुछ दिनों बाद पता चला कि मैं प्रेग्नेंट हूं। पैट्रीशिया नाम रखा था माइक ने उसका। मैं पद्मा बुलाती थी…

बेला बिलकुल चुप थी। उसकी बहन पद्मा। आज आई क्यों नहीं? उसने तुरंत पूछा,‘आज पद्मा यहां आने वाली थी ना मां, आपका बर्थ डे मनाने?’

आशा की आवाज जैसे गूंजती हुई आई, ‘हां, वो तुमसे मिलना चाहती थी। पिछले दिनों वह घर आई थी एक दिन पापा से मिलने। तुम ऑफिस गई थी। समीर घर पर थे। पद्मा समीर को भाई कहती है, पता नहीं क्यों। नाराज थी उनसे कि वो तुम्हारे साथ, रिया के साथ समय नहीं बिताते। बहुत हक से डांट रही थी समीर को। पर आज समीर ने ही मना कर दिया उसे बुलाने से…’