भाग 8/14:प्यार का पंचनामा
मुर्दाघर की एक बेंच पर बेसुध सा बैठा मंदार अपनी पूरी कहानी सुना चुका था| सुबह होने को थी और मंदार का नशा पूरी तरह उतर चुका था….बगल में सब इंस्पेक्टर महिपाल चौधरी और सामने खड़ा हवालदार मनोज यादव मंदार की कहानी सुन चुके थे, पूरी रात तफशीश हुई थी|
महिपाल चौधरी मनोज से पूछता है, “बॉडी पोस्टमार्टम के लिए भेज दी क्या?”
मनोज हां में सर हिलाता है और बोलता है, “सर आधा घंटा और लगेगा..रिपोर्ट 3-4 बजे तक मिल जाएगी”
महिपाल सर झटक कर नींद भगाता है और वापस मंदार की ओर मुड़ता है, “हाँ भाई, क़त्ल की जानकारी कैसे हुई..?”
मंदार आँखों में आसूं लिए बोलता है, “सर पाली से जब हम वापस आए तो सभी उदास थे…पूरे रस्ते एक दूसरे से बात तक नहीं हुई थी….अगले दिन हम ऑफिस गए थे पर थोड़ा लेट….कुछ देर ऑफिस में रहे पर लगा वो दीवारें….वो लोग जैसे झंझोड़ रहे हों…कोई 2-3 बजे तक ऑफिस में थे फिर दोस्तों को बोल कर ऑफिस से निकल गए….घर जाना चाहते थे और सारे गिले शिकवे दूर कर लेना चाहता थे, पर जाने क्यों हिम्मत ही नहीं हुई…सोचा थोड़ी शराब पी कर…..तो बात करना आसान होगा” फिर रुकते हुए बोला “…पर उस बात से उभर ही न पाए…न जाने कब देर रात हो गई और फिर जब लगा अब बस…बहुत हो गई, हम उठ कर घर को चल दिए….घर पहुँच कर दरवाज़ा खटखटाया पर कोई जवाब नहीं मिला….नशे में न जाने क्या क्या बोल गए…अड़ोसी – पड़ोसी भी निकल आए थे…फिर ताला तोड़ा गया और जैसे ही हम अन्दर पहुँचे…डाली खून से लतपथ किचन के पास पड़ी थी….उसके बाद हमें कुछ याद ही नहीं….शायद पड़ोस में किसी ने आप को फ़ोन किया होगा….” मंदार की ऑंखें नम हो गई थी|
“सर एक सिगरेट पी लें….इफ यू डोंट माइंड…”
महिपाल बाहर चलने का इशारा करता है और तीनों साथ साथ बाहर चाय की दुकान पर आ जाते हैं…मंदार जेब से सिगरेट का पैकेट निकलता है…अपने होठों पर एक सिगरेट रखता है और लाइटर से जलाता है…एक लम्बा कश लेने के बाद सिगरेट का पैकेट महिपाल को ऑफर करता है|
महिपाल सिगरेट पीने से मना कर देता है पर पैकेट हाथ में पकड़े घुमाता रहता है, कुछ देर बाद वापस मंदर से बोलता है, “कल जब ऑफिस गए थे तो ….क्या नाम था उसका…..”
“दिवाकर!” मनोज पीछे से बोलता है|
“हाँ दिवाकर…..उसका हाव भाव कैसा था…..कोई बात हुई थी ऑफिस में….पर्सनल….आफिशियल….?” महिपाल अपनी बात आगे बढ़ाता है|
मंदार नें एक कश सिगरेट का खींचा फिर बोला, “बड़े- बाबू कल ऑफिस नहीं आए थे..”
महिपाल को कुछ खटकाता है…फिर घड़ी देखते हुए बोलता है, “ऑफिस कितने बजे खुलता है?”
“साढ़े नौ बजे…लेकिन स्टाफ आते-आते दस बज जाता है…” मंदार बोला|
महिपाल मनोज को इशारा करता है और मनोज मंदार को अन्दर छोड़ कर वापस चाय की दुकान पर आ जाता है|
महिपाल अपना माथा पकड़े मनोज से बोलता है, “मनोज चाय बोल…साला सर दर्द हो रहा है…|”
“छोटे, दो चाय दे बिना शक्कर….” मनोज चाय का आर्डर दे देता है|
“सर क्या लगता है…कहीं दिवाकर तो नहीं…” मनोज धीरे से पूछता है|
“साहब चाय…” चाय वाले की आवाज़ आती है|
“ये सिगरेट कितने की है…?” महिपाल चाय वाले से पूछता है|
“नौ रुपये की साहब….दूँ!” चाय वाला महिपाल से बोलता है|
“और पैकेट?” महिपाल फिर से चाय वाले से पूछता है|
“साहब पिच्चासी का…. दूँ!”
महिपाल मना करता है और चाय पीने लगता है|
मनोज चाय पीते हुए पूछता है, “आप…. सिगरेट…. कब से सर?”
महिपाल कुछ सोचता रहता है फिर बोलता है, “साला पच्चीस रुपये का पैकेट था…अब पिच्चासी का हो गया…शादी के बाद सिगरेट शराब सब छोड़ दी….” फिर आधी चाय छोड़ कर बोलता है, “चल बाइक निकाल…मैं आता हूँ|” इतना बोल कर महिपाल सरकारी अस्पताल के अन्दर जाता है और मंदार से कुछ बात करता है| फिर बाहर निकल कर आता है, बाइक पर पीछे बैठता है और बोलता है, “आतिश मार्केट पता है?…उधर चलना है…”
मनोज बिना कुछ पूछे बाइक स्टार्ट करता है और दोनों चल देते हैं|
आतिश मार्केट की एक रिहायशी कॉलोनी जिसमें डूप्लेक्स मकान बने होते हैं|
महिपाल एक घर का मेन गेट खोल कर बगीचा पार करता हुआ अन्दर जाता है और कई बार घंटी बजाता है पर कोई जवाब नहीं मिलता है….ध्यान से देखता है तो इन्टरलॉक लगा होता है|
“भाग तो नहीं गया सर….” मनोज बोलता है|
महिपाल इधर –उधर नज़र घुमाता है फिर बाहर निकलता है और पड़ोस वाले घर का गेट खटखटाता है|
एक अधेड़ उम्र की औरत बहार निकल कर बाहर आती है|
“नमस्ते!…ये आपके पड़ोस में जो दिवाकर जी रहते हैं कैसे आदमी है?” महिपाल सीधे पूछता है|
“क्या हो गया?…क्यूँ पूछ रहे हो?…”बूढ़ी औरत बोली|
“नहीं बस जानकारी लेनी थी…वो पासपोर्ट के लिए अप्लाई किया था तो रूटीन पूछ-ताछ थी|” महिपाल इधर –उधर देखते हुए पूछता है|
“अच्छा है….ज्यादा किसी से बोलता नहीं है…कभी कभी मेरे लिए भी सब्जी ले आता है….मैं भी अकेले रहती हूँ…बेटा बैंगलोर में है और बेटी ऑस्ट्रेलिया में…” बूढ़ी औरत बोली|
महिपाल मुस्कराता है और बोलता है. “अच्छा….और इनका परिवार?”
बूढ़ी औरत बोलती है, “फैमिली शायद कोटा में है..अभी तो दो –तीन दिन से दिखा भी नहीं…शायद घर गया होगा|”
“जी बहुत अच्छा…वो आए तो बोलिए श्याम नगर थाने में एक बार मिल ले….” महिपाल बोलता है फिर मनोज को दिवाकर के घर का दरवाज़ा बंद करने का इशारा करता है|
बूढ़ी औरत हाँ में सर हिलती है और गेट बंद कर लेती है|
“और हाँ माता जी….हर किसी को मत बोला करो अकेली रहती हो..जमाना ठीक नहीं है…” मनोज चलने से पहले उस औरत को सलाह देता है|
महिपाल घड़ी देखता है फिर मनोज से बोलता है, “इसका ऑफिस खुलने में अभी एक घंटा है…. एक घंटे में राजा पार्क चौराहे पर मिलते हैं..”
“चलिए में आपको छोड़ देता हूँ..” मनोज बोलता है
“नहीं- नहीं मैं चला जाऊंगा…बाहर मार्केट से ऑटो पकड़ लूँगा….तुम पहुँचो…देर मत करना” महिपाल बोलता है|
“ओके सर!” मनोज बाइक स्टार्ट करता है और चला जाता है|
महिपाल भी टहलता हुआ गली पार कर जाता है|
स्वरचित कहानी
स्वप्निल श्रीवास्तव(ईशू)
कॉपी राईट
भाग 9/14 : सुराग