Google Boy - 8 in Hindi Moral Stories by Madhukant books and stories PDF | गूगल बॉय - 8

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गूगल बॉय - 8

गूगल बॉय

(रक्तदान जागृति का किशोर उपन्यास)

मधुकांत

खण्ड - 8

सुबह-सुबह गूगल माँ के साथ उठ बैठा। माँ की आदत थी सुबह साढ़े चार बजे से पाँच के बीच उठने की। घर के आवश्यक काम करती। प्रतिदिन स्नान करना, पूजा-पाठ करना, फिर नाश्ता तैयार करना, भगवान को भोग लगाना और सबको प्रसाद खिलाना।

गूगल को बिस्तर पर बैठा देखा तो माँ ने टोक लिया - ‘गूगल, रात को तो तुम कहानी सुनते-सुनते ही सो गये थे।’

‘हाँ माँ, तुम्हारे वीर बालक बादल की कहानी थी ही इतनी मज़ेदार की सुनते-सुनते ही नींद आ गयी। परन्तु मुझे वहाँ तक तो ध्यान है जब वीर बादल दुश्मन की सेना को मारते-काटते अपने दुर्ग में लौट आया। उसके बाद क्या हुआ..?’

‘बेटे, बहादुर बादल का काम तो यहीं पूरा हो गया। वैसे इतिहास की कहानी तो इस प्रकार है कि इस घटना से क्रोधित होकर अल्लाउद्दीन ख़िलजी ने रानी पद्मावती को पाने के लिये पुनः चितौड़ के क़िले पर आक्रमण किया। लड़ते-लड़ते उसने क़िले पर तो विजय प्राप्त कर ली, परन्तु महल में रहने वाली सभी नारियों ने अपने आपको जौहर ने डालकर स्वाह कर दिया। दुश्मन से तन की रक्षा के लिये अपने आपको बलिदान कर दिया।’

‘वाह माँ, हमारे देश में नारियों का बलिदान भी अमर है’, कहते हुए गूगल ने कहानी से अपना ध्यान मोड़ दिया और कहा - ‘माँ, मैं क्या सोच रहा था कि हमारी दुकान में दो मशीन आ जाएँ तो घंटों का काम मिनटों में होने लगेगा।’

‘तो ले आओ, कितने की आएँगी?’

‘एक लकड़ी चीरने की मशीन और दूसरी रंदा लगाने वाली। दोनों मशीनें बिजली से चलती हैं। बीस-बाइस हज़ार की आ जायेंगी।’

‘पर बेटे, मैं एक बात कहती हूँ कि अभी तुझे दस-बीस दिन और आई.टी.आई. में जाना है, कोर्स भी पूरा हो जायेगा। फिर तू निश्चिंत होकर दुकान में लग जाना।’

‘यह बात तो ठीक है। करूँगा तो बाद में ही, वैसे मैंने एक पुरानी मशीन भी देख रखी है, लगभग आधी क़ीमत में मिल जायेगी।’

‘नहीं बेटे, पुरानी मशीन ठीक नहीं। तू पैसों की चिंता मत कर। मैं दूँगी मशीन के पैसे। नयी मशीन ही ठीक है।’

‘ठीक है माँ, मशीन आने से काम बहुत बढ़ जायेगा’, गूगल उल्लास के साथ उठ बैठा।

‘ठीक है, अब मैं स्नान आदि करके तेरे लिये नाश्ता बना देती हूँ।’

‘माँ, मैं भी अपनी दुकान में जाकर उस कुर्सी की सफ़ाई कर लेता हूँ। थोड़ा गर्म पानी मुझे दे देना।’

दुकान का अन्दर वाला गेट घर में ही खुलता है। पुराना कपड़ा, कास्टिक सोडा लेकर गूगल दुकान में आ गया। लाइट जलाई तो पीछे-पीछे माँ गर्म पानी लेकर आ गयी। गर्ग पानी में सोडा डालकर गूगल कपड़े से सोफ़ा-कुर्सी को साफ़ करने लगा। जैसे-जैसे कुर्सी की धूल-मिट्टी और मैल निकल रही थी, उसकी चमक बढ़ती जा रही थी। साफ़ हो जाने पर उसकी कलात्मकता निखर कर दिखायी देने लगी।

कुर्सी के निचले भाग में लगी हुई प्लाई लगभग गल चुकी थी। इसको बदल देने से सोफ़ा-कुर्सी मज़बूत भी हो जायेगी और इसकी पौराणिकता पर भी कोई प्रभाव नहीं पड़ेगा, सोचकर गूगल ने प्लाई की कीलें निकाल दीं। जैसे ही उसने बसोले से एक चोट मारी, प्लाई टूट कर धड़ाम से ज़मीन पर गिरी। टूटी प्लाई से छिटक कर एक सिक्का फ़र्श पर दौड़ने लगा, जिसे गूगल ने अपना हाथ बढ़ाकर पकड़ लिया। प्रथम दृष्टि में उसने अनुमान लगाया कि सिक्का चाँदी का होगा, फिर उसने सोडे के पानी में डालकर सिक्के को रगड़ा तो उसका पीलापन नज़र आया, शायद सोने का भी हो..आश्चर्य से उसकी धड़कनें तेज हो गयीं। फिर उसकी नज़र टूटी प्लाई पर पड़ी तो उसने देखा, ऐसे अनेकों सिक्के प्लाई के साथ चिपके हुए थे।

‘ले गूगल, बिहारी जी का प्रसाद ले ले’, द्वार से प्रवेश करते हुए माँ ने कहा।

‘माँ, प्रसाद तो बाँके बिहारी ने मुझे पहले ही दे दिया है। देखो’, गूगल ने सिक्का माँ की हथेली पर रख दिया। माँ ने उसे उलट-पलट कर देखा और कहा - ‘अरे बेटे, ये तो सोने की गिन्नी है। तू कहाँ से लाया?’

गूगल ने सामने टूटी हुई प्लाई से चिपकी सभी गिन्नियों की ओर संकेत करके कहा - ‘माँ, ये हमारे बाँके बिहारी का प्रसाद है।’

‘हे बाँके बिहारी, तेरी जय हो’, माँ ने मन्दिर की ओर मुँह करके दोनों हाथ जोड़ दिये। ‘तेरी लीला अपरम्पार है।’

गूगल का नाश्ता स्टूल पर रखकर माँ वहीं बैठ गयी। ‘बेटे गूगल, अब तो दिन निकलने वाला है। सारी गिन्नियाँ एक थैली में डालकर बाँके मन्दिर की गुप्त तिजोरी में रख दें। रात को तसल्ली से विचार करेंगे कि हमें इस धन का क्या करना चाहिए।’

‘हाँ माँ, मैं भी यही सोच रहा था। हमें बहुत सोच समझकर काम करना पड़ेगा’, कहते हुए गूगल उन सभी गिन्नियों को प्लाई से उतारकर कपड़े की एक थैली में डालने लगा। थैली में डालते हुए वह गिन भी रहा था। सारी गिन्नियों को थैली में डालने के बाद उसने कहा - ‘पूरी सौ हैं माँ ।’ और उसने थैली माँ को सौंप दी। माँ थैली को रखने के लिये मन्दिर की ओर चली गयी। गूगल सामने स्टूल पर रखा प्रसाद खाने लगा। उठते हुए एक भरपूर दृष्टि उसने सोफ़ा-कुर्सी डाली और उसको ज्यों की त्यों छोड़कर वह घर में आ गया।

माँ अपनी दिनचर्या में लगी थी और गूगल आई.टी.आई. जाने के लिये तैयार हो रहा था, परन्तु दोनों का ध्यान बाँके बिहारी की हुंडी अटका हुआ था। इस धन का क्या किया जाये, कहाँ और कैसे खर्च किया जाये? तेज़ी से दोनों के दिमाग़ इस दिशा में दौड़ रहे थे। आपस में बतियाने के सिवा दोनों इस विषय पर किसी के साथ विचार-विमर्श भी नहीं कर सकते थे।

गूगल का आज अंतिम प्रेक्टिकल था। उसके बाद दस दिन तक अभ्यास वर्ग, फिर छुट्टी। उसका प्रेक्टिकल पूरा होने ही वाला था कि प्राचार्य का बुलावा आ गया। गूगल ने मन बना लिया था कि वह प्राचार्य से निवेदन करेगा कि उसको अभ्यास वर्ग न करने की छूट मिल जाये।

गूगल के शिक्षक ने भी प्राचार्य के कार्यालय में प्रवेश किया। प्राचार्य महोदय ने उत्साह से दोनों का स्वागत किया और कहा - ‘आओ गूगल, तुम्हारे लिये ख़ुशी का समाचार है। मुख्यमंत्री कार्यालय से यह तुम्हारे नाम का सर्वश्रेष्ठ कारपेंटर छात्र का सम्मान पत्र आया है। इसे देने के लिये ही मैंने तुम्हें बुलाया है।’

प्राचार्य ने गूगल के साथ अध्यापक को भी अपने साथ खड़ा किया। बाहर से चपरासी को बुलाकर सम्मान पत्र देते हुए अपने मोबाइल से फ़ोटो खिंचवाया। उचित समय जानकर गूगल ने उनके सामने अपनी इच्छा प्रकट कर दी - ‘सर, पापा के चले जाने के बाद दुकान का सारा काम मुझे ही देखना पड़ता है। यदि आप अभ्यास कार्य से मुझे मुक्त कर दें तो मैं अपनी दुकान को ठीक-ठाक करके सँभाल लूँ।’

‘अरे, इसमें क्या है।यहाँ से अच्छा अभ्यास कार तो तुम्हारा दुकान पर हो जायेगा। क्यों मिश्रा जी?’ उन्होंने अध्यापक से भी स्वीकृति दिलवा दी।

‘ठीक है सर। यह तो कोई विशेष बात नहीं है। मैं प्रतिदिन की हाज़िरी लगा दिया करूँगा।’

‘धन्यवाद सर।’

‘बेटे गूगल, हमारी संस्था के बहुत से बेंच-डेस्क टूट गये हैं। उनकी मरम्मत होनी है। क्या यह काम तुम कर सकते हो?’ प्राचार्य ने प्यार से पूछा।

‘सर, अगले सप्ताह तक मेरी मशीन आ जायेगी। यह काम तो मैं एक दिन में ही कर जाऊँगा।’

‘लगभग पच्चीस-तीस हैं और सबके पेच हमने मँगवा रखे हैं।’

‘फिर तो कोई खर्च भी नहीं आयेगा। वैसे भी अपनी संस्था में सेवा करना एक विद्यार्थी के लिये गर्व की बात होती है। आप चिंता न करें, मैं स्वयं आकर ठीक कर जाऊँगा।’

‘शाबाश बेटे गूगल, तुम जैसे छात्रों पर हमें गर्व होता है।’ प्राचार्य जी सोच रहे थे - कम-से-कम पाँच-छ: हज़ार की बचत हो जायेगी।

गूगल ने माँ को आकार यह समाचार सुनाया तो वह भी बहुत खुश हुई - ‘बेटे, कल ही अपनी मशीन ख़रीद ला।’

‘वो तो मैं ले आऊँगा परन्तु माँ, उस बाँके बिहारी के प्रसाद का क्या करना है? इस पर भी कुछ विचार करो’, घर में आते ही गूगल को सुबह वाली घटना याद आ गयी।

‘रात को विचार करेंगे। पहले भोजन कर ले, फिर दुकान के कुछ आवश्यक काम निपटा दे। रात को ठंडे दिमाग़ से विचार करेंगे,’ कहते हुए माँ उसे अपने साथ रसोई में ले आयी।

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