Chhoona hai Aasman - 8 in Hindi Children Stories by Goodwin Masih books and stories PDF | छूना है आसमान - 8

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छूना है आसमान - 8

छूना है आसमान

अध्याय 8

रोनित के जिद् करके पूछने पर चेतना एकदम भावुक हो उठी, उसकी आँखों में आँसू भर आये, जिन्हें देखकर रोनित बोला, ‘‘देखा, मुझे मालूम था कि कोई-न-कोई बात जरूर है, वरना तुम इतनी जल्दी हिम्मत हारने वाली लड़की नहीं हो......जरूर तुम्हारी मम्मी ने तुमसे कुछ कहा होगा, क्यों यही बात है न......?’’

चेतना ने एकदम हाँ में अपनी गर्दन हिलायी तो रोनित ने कहा, ‘‘देखा, मुझे तो मालूम था कि कोई-न-कोई गड़बड़ जरूर है। ......क्या कहा तुम्हारी मम्मी ने......?’’

‘‘जी, कल रात को मैंने पापा को अपना आॅडिषन फाॅर्म दिखाया और कहा, कि इसे कम्पलीट कर दीजिए। पापा फाॅर्म देखकर बहुत खुष हुए और कहने लगे, कि मेरी भी तमन्ना है कि तुम ऐसा कुछ करके इतनी ऊँचाइँयों पर पहुँच जाओ, जहाँ मैं गर्व से कह सकूँ कि मैं इसी चेतना का पापा हूँ।’’ पापा मेरा फाॅर्म भरने लगे। उसी समय मम्मी वहाँ आ गयीं उन्होंने पापा के हाथ से फाॅर्म छीन लिया और बोलीं, ‘‘कोई फाॅर्म-वार्म नहीं भरा जायेगा। यह कुछ नहीं कर सकती, खांमखां आॅडिषन में जाकर हमारी नाक कटवा देगी।’’ कहते-कहते चेतना सिसकर कर रो पड़ी।

उसे रोता हुआ देखकर रोनित का भी मन भर आया फिर भी उसने अपने आप पर काबू पाते हुए चेतना से कहा, ‘‘चेतना, तुम तो बहादुर लड़की हो और बहादुर बच्चों की आँखों में आँसू नहीं बल्कि मजबूत इरादे और कुछ कर गुजरने का दृढ़ संकल्प होना अच्छा लगता है। समझने की कोषिष करो चेतना, हर इंसान के सोचने का अपना अलग दृष्टिकोण होता है। तुम्हारी मम्मी तुम्हारे लिए क्या सोचती और कहती हैं, इस बारे में मैं कुछ नहीं कह सकता......, हाँ, इतना जरूर कहंँगा कि अगर इंसान के अन्दर कुछ कर गुजरने का हौसला होता है, तो उसे सफलता जरूर मिलती है। मैं तुम्हारी मम्मी के इस भ्रम को कि तुम कुछ कर नहीं सकतीं, तोड़कर दिखाऊँगा। इसके लिए चाहे मुझे कोई भी जोखिम क्यों न उठाना पड़े।’’

‘‘सर, यह क्या कह रहे हैं आप......?’’ चेतना ने चैंकते हुए कहा।

‘‘चेतना, मैं बिल्कुल ठीक कह रहा हूँ। बस तुम्हें वो करना होगा, जो मैं कहूँगा......और......।’’

‘‘......और क्या सर......?’’ चेतना एकदम बोली।

‘‘......और यही कि अगर तुम्हें कुछ करके दिखाना है, तो अपनी मम्मी के भ्रम को चुनौती देनी होगी, उनकी नकारात्मक सोच को अस्वीकार करना होगा और तुम्हें अपने मकसद को पूरा करने के लिए खुद को तैयार करना होगा।’’

रोनित के शब्दों में न जाने कौन-सा जादू था, कौन-सा ऐसा चुम्बकीय आकर्षण था, जिसने चेतना के ध्वस्त होते इरादों को चट्टान की तरह मजबूत कर दिया। वह एकदम बोली, ‘‘ठीक है सर, अगर ऐसी बात है, तो मैं सिंगिंग काॅम्पटीषन के आॅडिषन में पार्टीसिपेट जरूर करूंगी, इसके लिए मुझे चाहे कुछ भी क्यों न करना पड़े।’’

‘‘ये हुई न बात। चेतना मैं तुम्हें कल ही एक आई पाॅड और ईयर फोन लाकर दूँगा, तुम उससे अपने गाने की खूब प्रैक्टिस करना। इसके अलावा, मैं अपने दोस्त को भी बीच-बीच में यहाँ लाता रहूंगा। वह तुम्हें गाने की प्रैक्टिस करवा दिया करेगा।’’

‘‘......और सर फाॅर्म, फाॅर्म का क्या होगा, बिना फार्म आॅडिषन में मेरी एन्ट्री कैसे होगी ? कौन भरेगा मेरा आॅडिषन फार्म ? चेतना ने पूछा।

‘‘अब तुम अपने फाॅर्म की चिन्ता करना छोड़ दो चेतना। तुम्हारा आॅडिषन फाॅर्म भर जायेगा। मैं भरूँगा तुम्हारे पापा के नाम से तुम्हारा दूसरा आॅडिषन फाॅर्म और मैं ही उसको पोस्ट भी करूँगा।’’

रोनित की बातों से चेतना का भारी मन अब कुछ नहीं बहुत हल्का हो चुका था। जब-जब चेतना का मन दुःखी होता है, तब-तब उसके रोनित सर उसको प्यार से समझाते हैं, उसे तसल्ली दिलाते हैं। यही वजह है कि चेतना अपने रोनित सर के ऊपर खुद से ज्यादा भरोसा करती है। वह जानती है कि उसके रोनित सर कभी उसका बुरा नहीं चाहेंगे। वह उसको दिल से खुष देखना चाहते हैं, वह चाहते हैं कि सिंगर बनकर अपना और अपने परिवार का नाम रोषन करे और खुद को आत्मनिर्भर बनाये। इसीलिए चेतना अब पूरी तरह निष्चिंत हो गयी थी कि उसके रोनित सर उसको सिंगिंग आॅडिषन में पार्टीसिपेट जरूर करवायेंगे।

अगले दिन षाम जब चेतना के रोनित सर उसको पढ़ाने के लिए आये तो उनके पास एक खूबसूरत-सा, प्यारा-सा आई पाॅड था। कमरे में आते ही रोनित सर ने चेतना से कहा, ‘‘चेतना, यह लो, यह तुम्हारा आई पाॅड है। आज से तुम इसके साथ अपने गाने की तैयारी करोगी। इस आई पाॅड की चिप में कई फिल्मों के गाने भी लोड कर दिये थे, जिनको सुनकर तुम्हारी और भी गानों की प्रैक्टिस हो जायेगी।’’

‘‘थैंक्यू सर।’’ चेतना एकदम बोली।

चेतना ने रोनित सर से आई पाॅड लेकर उसे ध्यान से देखा। फिर उसने अपने आई पाॅड को प्यार से चूमा और फिर एक बार उसने अपने रोनित सर को थैंक्यू बोला। आई पाॅड पाकर चेतना बहुत खुष थी। आज पहली बार किसी ने उसे उसकी इच्छानुसार कोई गिफ्ट लाकर दिया है। खुषी से चेतना का चेहरा फूल की तरह खिल गया। उसके चेहरे पर रौनक आ गई। आज पहली बार रोनित को भी चेतना का खिला हुआ चेहरा देखकर बेहद प्रसन्नता हो रही थी। नहीं, तो चेतना हमेषा अपने आप में गुम-सुम रहती थी। उसका गुम-सुम रहना रोनित को बहुत अखरता था इसलिए उसका यही प्रयास था कि चेतना अभी छोटी बच्ची है। अभी उसकी हँसने-खेलने की उम्र है। अभी उसे किसी तरह का अवसाद नहीं होना चाहिए। चेतना को हर हाल में खुष रहना चाहिए।

उस दिन चेतना का मन पढ़ाई में बिल्कुल नहीं लग रहा था। उसका मन कर रहा था कि वह जल्दी-जल्दी अपनी पढ़ाई खत्म करके आई पाॅड पर अपने मन-पसंद गाने सुने। षायद रोनित भी चेतना के मन की बात समझ गया था कि चेतना का मन पढ़ाई में नहीं लग रहा है, बल्कि आई पाॅड में गाने सुनने के लिए बैचेन हो रहा है यही सोचकर रोनित ने चेतना को ज्यादा पढ़ाई न करवाकर, आई पाॅड में गाने सुनवाये।

वैसे तो रोनित के चले जाने के बाद चेतना एकदम अपने पापा के पास आ जाती थी। और उनसे खूब बातें करती थी। क्योंकि उसके पापा ही थे, जो उसके मनोभावों को सुनते थे। उसकी मम्मी तो उसकी परछाईं से भी चिढ़ती थीं। रही बात उसकी छोटी बहन अलका की, तो अलका तो उससे बात करना चाहती थी। उसके पास उठना-बैठना चाहती थी, लेकिन वह अपनी मम्मी से डरती थी। वह नहीं चाहती थी कि उसकी वजह से उसकी चेतना दीदी को मम्मी की डांट खानी पड़े। इसीलिए चेतना दिन भर अपने कमरे में अकेले ही रहती थी। षाम को उसके पापा जब अपने आॅफिस से घर आ जाते थे, तब वह अपने से मिलने और बात करने के लिए अपने कमरे से निकल कर उनके पास चली जाती थी।

लेकिन आज चेतना अपने पापा से मिलने नहीं गयी। रोनित सर के जाने के बाद भी वह बहुत देर तक आई पाॅड पर गाने सुनती रही। रात को उसके पापा ने उसको खाना खाने के लिए आवाज लगाई, तब ही वह अपने कमरे से निकल कर बाहर आई।

जब से चेतना के हाथ में आई पाॅड आया है, तब से चेतना सुबह को जल्दी उठने लगी और अपने कमरे में जाकर आई पाॅड में गाना प्ले करके अपने गाने की प्रैक्टिस करती। अब चेतना अधिक-से-अधिक वही टी.वी. चैनल देखती, जिन टीवी चैनलों पर गाने आते। कभी-कभी उसे रोनित का दोस्त अजय, जो नृत्य और संगीत की कोचिंग चलाता था, आकर संगीत की बारीकियों के बारे में बता जाता था। और जब कभी अजय उसके घर नहीं आ पाता तो रोनित सर चेतना को बाहर ेघुमाने के बहाने घर से बाहर ले जाते और अपने दोस्त अजय के संगीत स्टूडियो में ले जाकर चेतना के गाने की प्रैक्टिस करवाते हैं।

जैसे-जैसे आॅडिषन का समय नजदीक आ रहा था, वैसे-वैसे चेतना की बेचैनी के साथ-साथ पै्रक्टिस भी बढ़ती जा रही थी। उसकी एक ही तमन्ना थी कि वह उस सिंगिंग रियलिटी शो के लिए सेलेक्ट हो जाये बस। इसलिए दिन-रात, सुबह-षाम, जब भी उसको मौका मिलता, वह अपने गाने की पै्रक्टिस में लग जाती। लेकिन उसकी इस प्रैक्टिस के बारे में न तो उसकी मम्मी को मालूम था, न उसके पापा और न ही उसकी छोटी बहन अलका को, क्योंकि रोनित ने चेतना के दिलो-दिमाग में यह बात अच्छी तरह बैठा दी थी कि वह इस सिंगिंग काॅम्पटीषन के आॅडिषन में पार्टीसिपेट कर रही है, इस बात की जरा भी भनक किसी को न लगे, विषेषकर उसकी मम्मी को, वरना किसी भी हालत में वह उसे इस आॅडिषन में शामिल नहीं होने देंगी।’’ इसलिए चेतना चुपचाप अपने कमरे में अपनी प्रैक्टिस इस ढंग से करती कि किसी को उसके गाने-बजाने की जरा-सी भी भनक तक नहीं लग पाती थी।

आॅडिषन से एक दिन पहले शाम को जब चेतना अपने कमरे में अपने गाने की प्रैक्टिस में लीन थी, उसी समय उसकी मम्मी चुपचाप उसके कमरे में आ गयीं और उसका गाना सुनने लगीं। चेतना अपनी आँखें बंद करके गाने में इस कदर खोई हुई थी कि उसे इस बात का आभास भी नहीं हुआ कि कब उसकी मम्मी उसके पास आकर खड़ी हो गयीं।

चेतना ने जब पूरा गाना गाकर अपनी आँखें खोली और सामने अपनी मम्मी को खड़े हुए देखा, तो वह एकदम सकपका गयी। उसका चेहरा एकदम ऐसे उतर गया, जैसे किसी ने उसे कोई चोरी करते हुए पकड़ लिया हो। वह डर के मारे थर-थर काॅपने लगी।

‘‘तो यह बात है, कमरे में चुपचाप गाने की पै्रक्टिस चल रही है। सिंगर बनने के ख्वाब देखे जा रहे हैं।’’ उसकी मम्मी ने आँखें तरेरते हुए कहा।

‘‘नहीं मम्मी, मैं तो ऐसे ही गा रही थी।’’ चेतना ने डरके मारे अपनी सफाई देते हुए कहा।

‘‘ऐसे ही की बच्ची, एक बात कान खोलकर सुन ले, तेरा सिंगर बनने का सपना कभी पूरा नहीं होगा। इसलिए सिंगर बनने की तू कभी कल्पना भी मत करना, और हाँ, आज के बाद गाना गाना तो दूर रहा, अगर तूने गाना गुनगुनाया भी तो समझ लेना, तेरी अक्ल ठिकाने लगा दूँगी। खींच लूंगी तेरे हलक में से तेरी जुबान, फिर देखूँगी, तू बिना जुबान के कैसे बोलेगी और कैसे गायेगी।’’ चेतावनी भरे लहजे में चेतना की मम्मी ने उससे कहा और कमरे से बाहर चली गयीं।

अपनी मम्मी की जली-कटी बातें सुनकर चेतना की हालत ऐसे हो गयी, जैसे किसी ने उसके षरीर से उसके प्राण निकाल लिए हों। वह एकदम खामोष हो गयी और पत्थर की मूर्ति की तरह जड़ बनकर कुर्सी पर बैठी रही।

उसकी मम्मी के कमरे से बाहर जाते ही उसके रोनित सर आ गये। उन्होंने चेतना को गुमसुम और उदास बैठे देखा तो उनका भी खिला-खिला चेहरा उतर गया। वह समझ गये कि आज फिर चेतना के गाने को लेकर घर में कुछ हुआ है ?

अपने रोनित सर को देखते ही चेतना की आँखें आँसुओं से डबडा आयीं। उसके रोनित सर ने खुद को नार्मल किया फिर चेतना से पूछा, ‘‘चेतना, क्या बात है, बड़ी खामोष बैठी हो, क्या मम्मी ने कुछ कह दिया?’’

रोनित के पूछते ही चेतना खुद को रोक नहीं पायी। वह एकदम भावुक हो उठी और उसकी मम्मी ने उससे जो भी कहकर गयी थीं, वो सब उसने अपने रोनित सर को विस्तार से बता दिया।

चेतना की बात सुनकर रोनित का दिमाग खराब हो गया। उसके मन में तो आया कि वह अभी जाकर उसकी मम्मी को खूब खरी-खोटी सुना दे, लेकिन उसने अपने गुस्से पर काबू पा लिया और चेतना से बोला, ‘‘चेतना, मुझे मालूम था कि तुम्हारी मम्मी कोई-न-कोई अड़चन जरूर लगायेंगी, लेकिन तुम्हें निराष होने की कोई जरूरत नहीं है, क्योंकि तुम इस आॅडिषन में हिस्सा लोगी और जरूर लोगी, क्योंकि तुमने मेहनत की है और मैं तुम्हारी मेहनत को बेकार नहीं जाने दूँगा।’’

‘‘लेकिन सर, मम्मी बहुत नाराज हैं। मुझे मालूम है, मैं कितनी भी जिद कर लूँ पर वह मुझे आॅडिषन में नहीं जाने देंगी। बताइए, अगर मम्मी ने मुझे आॅडिषन में नहीं जाने दिया तो......?’’ चेतना ने निराष मन से कहा।

‘‘चेतना, तुम इतना मत सोचो। मैंने कहा न, तुम्हें आॅडिषन का हिस्सा बनना है, तो बनना है। बस तुम अपनी पै्रक्टिस जारी रखो, और जो-जो कमियाँ सुधारने के लिए तुमसे कहा गया है, उन कमियों को सुधार लो बस।’’

‘‘हाँ सर, वो सारी कमियाँ मैंने दूर कर ली हैं, और अब मेरा गाना भी बहुत अच्छा हो गया है। अगर आप कहेंगे तो मैं आपको अपना गाना गाकर सुना सकती हूँ।’’

‘‘मुझे मालूम है चेतना तुम अच्छा नहीं बहुत अच्छा गा रही हो। मुझे अजय ने कल फोन करके बताया था कि अब तुम पूरी तरह सुर और ताल के साथ गा रही हो और यह मेरे लिए अच्छी जानकारी है। इसीलिए मैं आज तुम्हें पढ़ाने के इरादे से नहीं, बल्कि तुम्हारा गाना सुनने के लिए ही आया हूँ।

‘‘ठीक है, सुनाओ।’’ कहकर रोनित अन्दर से दरवाजा बंद कर लेता है ताकि किसी को चेतना के गाने की आवाज न सुनाई दे।

चेतना गाना गाती है, रोनित उसके गाने को बड़े ध्यान से सुनता है। चेतना का गाना सुनकर रोनित को बहुत खुषी होती है। खुषी के मारे रोनित चेतना को खुद से चिपटा लेता है और कहता है, ‘‘वैरी गुड चेतना, सचमुच मजा आ गया। बस तुम आॅडिषन में ऐसे ही गाना, बिल्कुल भी न झिझकना और न शरमाना।’’

‘‘लेकिन सर......?’’

‘‘लेकिन-वेकिन कुछ नहीं, अब मैं जा रहा हूँ। अब हमारी मुलाकात आॅडिषन वाले दिन ही होगी। तब तक तुम जमकर अपने गाने की पै्रक्टिस करना।’’

‘‘ठीक है सर, सर, अगर मुझे आॅडिषन में गाने का मौका मिला, तो यकीन करना मैं आपका नाम और आपकी मेहनत को जाया नहीं जाने दूँगी।’’

मैं तुमसे यही उम्मीद भी करता हूँ।’’ कहकर रोनित वहाँ से चला गया।

क्रमशः ...........

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बाल उपन्यास: गुडविन मसीह