Mukhauta - 14 in Hindi Women Focused by S Bhagyam Sharma books and stories PDF | मुखौटा - 14

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मुखौटा - 14

मुखौटा

अध्याय 14

अप्रत्यक्ष रूप से उसने आज्ञा दी ‘तुम नहीं बोलोगी।‘

"कृष्णन 4 दिन में अमेरिका चला जाएगा। हमारा संबंध सीरियस वाला नहीं है। हम दोनों के परिवारिक जीवन इससे बाधित नहीं होंगे ।"

लगा जैसे यह करीब-करीब सुभद्रा जैसी बात कर रही है । परंतु, सुभद्रा जैसे सिद्धांत बताना इसको नहीं मालूम। कृष्णन का फैलाया जाल है यह। यह प्रेम के लिए तड़प गई है ऐसा उसे अंदाजा है। ‘यह शरीर जो है सिर्फ एक कपड़ा है, इसको कोई महत्व नहीं देना चाहिए’ ऐसे तत्व की उसने बातें की होगी, इसकी सुंदरता की तारीफ करके। मन में चल रहे झंझावातों से मुझे बहुत थकावट लगी, ऐसा लगा जैसे मेरी उम्र ज्यादा हो गई है। मन अभी भी अधीर हो रहा था। इन 10 दिनों में रोहिणी ने अचानक एक नया रूप धारण कर लिया है। 'कौन सा कोर्ट मुझे ड्राइवर्स दिलायेगा ?' अब यह बदला रूप ऐसा बोलकर आंसू नहीं बहायेगा। अपने जीवन में उत्सुकता लाने के लिए इतनी बड़ी कीमत देने की जरूरत नहीं।, "क्यों-क्या'' मैं पूछूँ तो वह 'आई एम जस्ट हैविंग फन !' ऐसा वह बोलेगी। हंगम्मा के पति को इस तरह की ही इच्छा रही होगी। 'एक दूसरी स्त्री के साथ मेरे सोने के कारण मैं तुम्हें अलग नहीं करूंगा।' आदमियों के वर्ग से बदला लेने के लिए ही सुभद्रा के रूप में, रोहिणी के रूप में हंगम्मा ने दूसरा जन्म लिया होगा। लगता है जैसे हंगम्मा की जगह पर अब दुरैई रह रहा है।

मैं रवाना होने के लिए तैयार हुई। "दुरैई बहुत अच्छा है।" मैं कांच को देखते हुए बोली । मुझे जरा भी उम्मीद नहीं थी कि रोहिणी रोना शुरू कर देगी । वो रोना स्वयं के पश्चाताप का या स्वयं को दोषी मानने के कारण था, मेरी समझ में नहीं आया।

रोते हुए बोली, "दुरैई अच्छा आदमी हैं ! अच्छा किसे कहते हैं ? किसी को भी कैसे भी परेशान न करने वाले आदमी को ? उसकी अच्छाइयां नॉर्मल नहीं है। किसी चीज को तोड़ो, कोई चीज गुम गई हो, उसे गुस्सा नहीं आएगा। अच्छी साड़ी पहनकर सामने खड़े हो जाओ, 'सुंदर लग रही हो' उसे अप्रिशिएट करना नहीं आता। मेरे अंदर भावनाएं हैं, ऐसा उसे नहीं लगता। उसको अपने ऑफिस के अलावा, और किसी चीज के बारे में बात करने के लिए उसके पास समय होता है ? मैं बोर होती हूं। मैं साधारण मनुष्य हूं।"

मैं धीरे से बाहर निकली। मन अभी तक पत्थर से मार खाया जैसे स्तंभित था। 'ओ-ओ' की आवाज कर जोर-जोर से रोऊं, लगता है तभी मेरे मन का भार कम होगा । परंतु मुझे रोने की आदत नहीं। कृष्णन-रोहिणी के व्यवहार के बारे में दुरैई को बताना मेरी ही कमजोरी होगी। इसको मैं अपने अंदर ही गाड़ दूं, यह कैसी समझ है ? शायद यही मेरा धार्मिक कर्तव्य है । अच्छी बात है, कृष्णन बाहर चला जाएगा...अधिक नुकसान होने के पहले। रोहिणी गाना सीखने में अपना मन लगा लेगी। अपने दोषी मन को संतुलित करने के लिए वह दुरैई के साथ दया से पेश आए तो आश्चर्य की बात नहीं।

मुझे लगा जैसे अचानक कोई रस्सी कट गई, किसी बंधन का आख़िरी आभास भी टूट गया । कृष्णन ने मेरा भी उपयोग किया, यह बात मेरी समझ में अभी आई । मैं उसके साथ मिल कर रही तब मैंने जो सुख का अनुभव किया क्या वह एक सपना था ? मुझे वह बात बहुत ही परेशान कर रही है। असंतोष का कारण वह नहीं है। शरीर का कामी होने की वजह से जो संतुष्टि मिली वही उसका कारण है। बिना जिम्मेदारी के किसी सामिप्य में संतुष्टि ज्यादा होती है। आज ऐसा महसूस हुआ जैसे मेरा सपना टूट गया ।

मैं घर पहुंची तब तक नलिनी नहीं आई थी। लेटर बॉक्स में मेरे लिए एक पत्र था. मैंने देखना चाह उसमें हस्ताक्षर किसका है, पहचान नहीं पाई. वह श्रीकांत का पत्र था। शादी का इनविटेशन होगा सोच कर खोला।

यहां जितनी लड़कियां मैंने देखी उससे मैं संतुष्ट नहीं हुआ। आपको मैं पसंद करता हूं। आपको मुझसे शादी करने की इच्छा हो तो मैं बहुत खुश होऊंगा। बस इतना सा लिखकर ही साइन किया हुआ था पत्र में । मुझे बहुत आश्चर्य हुआ। फिर मुझे हंसी आई। इसको मेरे बारे में क्या पता है ? आपको मैं पसंद करता हूं- यह एक विचित्र घटना मुझे खुशी दे रही थी । बिना उम्मीद के मिली प्रशंसा जैसे। परंतु उसको मेरे बारे में कुछ भी तो नहीं पता। ‘अम्मा के जैसी लड़की नहीं चाहिए’ बोलते समय अपनी अम्मा की छवि ही उसके मन में रखी होगी । दस साल से दूसरे देश में रहा हुआ है फिर भी उस संस्कृति में पली-बढ़ी लड़की नहीं चाहिए। भारतीय लड़की ही चाहिए। इसका मतलब इसके मन में रहने वाली लड़की बहुत पवित्र होगी।

पवित्रम - बहुत ही निंदनीय नाम ही नहीं-यह तो बड़ी ऊंची चीज लगी। क्या गलत, क्या सही, जैसे रोहिणी ने पूछा, ‘वैसे पवित्रता से उसका क्या मतलब है, उसका परिणाम क्या है ?’ यह सब जानने समझने में मुझे कोई रुचि नहीं। मैं सच बोले बिना नहीं रह सकती। कृष्णन और मेरा अभी कोई संबंध नहीं है फिर भी, उसके साथ मेरी रही घनिष्ठता के बारे में बिना बताए मैं नहीं रह सकती। उसको हजम करने की शक्ति उसमें हो तो मुझे शादी करने में कोई परेशानी नहीं। उससे शादी करूं तो कन्नड़ नहीं भूल पाऊंगी ऐसा एक बचकाना ख्याल मुझमें उठा। उस दिन जो मन की परेशानी थी उसे भूल मैंने श्रीकांत को बिना कुछ छुपाए एक पत्र लिख डाला। उस पत्र को देखकर उसे कैसा लगेगा, यह सोचते हुए मैं गली के कोने में जो लेटर बॉक्स था, उसमें डालने के लिए रवाना हुई। सच को नंगा देखने का साहस किसी में नहीं। नंगा दिखाना कुरूपता है इसीलिए इस बात को मन में रखकर लोग झूठे चेहरे ढूंढते हैं। या मुखौटा पहनते हैं, एक ही बात है। असली चेहरा देख कर भी नहीं देखा जैसे मिलते रहो, यही दुनिया है। रोहिणी-कृष्णन के बारे में दुरैई को पता चले तो वह क्या करेगा, मैंने सोचा । जान कर भी अनजान बनकर रहेगा, और क्या । 'उसकी एक अच्छाई है जो नॉर्मल नहीं है। कोई चीज टूट जाए या गुम हो जाए तो उसे गुस्सा नहीं आता, वह पहले टकराव से बचना चाहता है।‘ यह आंख-मिचौनी का खेल आदिकाल से चला आ रहा है। जाने कहाँ से एक अवधूत स्वामी जी की कहानी मुझे याद आ रही है। कहानी नहीं, एकदम सत्य घटना । उस समय मेरी उम्र 10 साल थी। अम्मा के साथ गांव गई थी। दूर के रिश्तेदार के घर गए थे । उनके घर में सिर्फ एक लंगोटी बांधे मस्त मौला शरीर वाला बीच उम्र के एक स्वामी जी आए थे। ‘ये ही भगवान हैं’, ऐसे घर वाले कह रहे थे। गांव के लड़कियों-लड़कों को दर्शन देने के लिए आए थे। रिश्तेदार के लड़की अभी कुंआरी थी। उसके 2 महीने का बच्चा था। ‘यह स्वामी जी का दिया प्रसाद है’, उसकी मां ने बताया था । भगवान ही पैदा हुए हैं। इसके चेहरे पर कितना तेज है देखिए ! ‘मेरा झूठा खाओ ऐसा कह एक केला आधा खा कर उन्होंने दिया..... बेंगलुरु वापस आने पर, एक दिन मेरे मामा ने एक अमरुद आधा खाकर बचा हुआ आधा अमरुद मुझे दिया। "नहीं रे, मुझे नहीं चाहिए फिर मुझे बच्चा हो जाएगा।" ऐसा कह मैंने मना किया।

श्रीकांत के पास से आने वाले प्रस्ताव को अधिक महत्व नहीं देते हुए बात मैंने नलिनी को नहीं बताया। मैं रोहिणी के घर गई वह भी मैंने नहीं बताया, बात बताते समय कहीं मुझे गुस्सा ज्यादा न आ जाए।

दूसरे दिन मैंने दुरई को फोन किया।

"रोहिणी के लिए साड़ी लेने के जाना था ना ?”

"नहीं, कल घर लौटते वक़्त लेकर आ गया", वह उत्साह से बोला।

"साड़ी लेने से ही नहीं हो जाता दुरैई", प्रेम से समझाते हुए मैं बोली। "उसके साथ तुम्हें समय बिताना चाहिए, कुल्लू-मनाली कहीं हॉलीडे मना कर आओ।"

” इस साल नहीं हो सकेगा। कुल्लू-मनाली कहां भाग कर जाएगा ?” वह बोला। "यू नो समथिंग ? मैं ज्यादा देर उसके साथ रहूं तो वह बोर हो जाती है।"

मेरा दिल धक से रह गया। "यह क्या कल्पना है दुरैई", नरमी के साथ बोली। "उसके पसंद के विषय में तुम भी इंटरेस्ट दिखाओ। सब रिश्तों को निभाने के लिए परिश्रम की जरूरत होती है दुरैई।सही समय का इंतजार नहीं कर सकते।"

"यू आर राइट", उसकी आवाज में उदासी उतर आई थी। "कभी-कभी लगता है, मैं उसके लिए उपयुक्त पुरुष नहीं हूं, मालिनी।"

"नॉनसेंस ! तुम्हें पसंद करके तो उसने शादी की । काम को भूलकर ज़रा कहीं घूम-फिर आओ साथ । दोनों के लिए अच्छा होगा ।"

"ओके, देखेंगे। उसके बर्थडे के दिन कनिष्का में खाना खाएंगे। आप और नलिनी भी आइए ना।"

"हम क्यों ?"

"वैसे ही आईए ! हॉलीडे में मत आना।", कह कर वह हंसा।

नलिनी को पार्टी के बारे में बताया तो उसने उत्साह से सीटी बजाई। "रोहिणी के नाम पर अच्छा खाना खाएंगे ! प्रेजेंट भी तो लेना पड़ेगा ? मेरा एक दोस्त बेंगलुरु से इलेक्ट्रॉनिक बाजा लेकर आया है। ले लें क्या? " उसने पूछा ।

कीमती होने पर भी रोहिणी के उपयोग की चीज है सोच कर मैंने खरीदने को हाँ कर दिया । अचानक मुझे अम्मा की याद आई। मेरी जगह वह होती तो बाजे को भूलकर पूछती, ‘कौन है वह दोस्त ?’ नलिनी के लिए लड़का-लड़की बराबर ही है। मुझे तो लगता है किसी भी आदमी के साथ अभी तक उसका संबंध नहीं हुआ । होता तो मुझे बताती जरुर ।

"दीदी आप मेरी फ्रेंड गीता को जानते हो ना ? उसकी शादी रुक गई है ।", वह बोली।

"क्यों?”, चौंक कर मैंने पूछा‌। "वह लड़का अमेरिका में पढ़ रहा था ना?"

"हां। उसे पता चला कि वहां वह बहुत सी लड़कियों के साथ घूमता था । इसीलिए गीता ने कह दिया कि शादी नहीं कर सकती । फोन पर गीता को क्या कहता है मालूम ? ‘इन सब बातों को इतना सीरियसली मत लो, यह सब ऐसे ही फन है ।‘ यहाँ यह ऐसे घूमती होती तो वह चुप रहता क्या, रास्कल !"

मैं कुछ नहीं बोली। मुझे परितोष की याद आई। आदमी-औरत का रिश्ता, धार्मिक दृष्टि से बहुत ही कॉम्प्लिकेटेड है ; पुराने जमाने में और इस जमाने में अपने-अपने ढंग से उसकी आकृति प्रकृति लेने के कारण विषय बदल जाता है।

"वह तो वचनों को तोड़ना हो गया न ?", नलिनी बोलती जा रही थी । "अभी से अनुशासित नहीं होने वाला शादी के बाद ठीक कैसे रहेगा भला ?"

‘कृष्णन इसी तरह का आदमी है’, मैंने अपने मन में सोचा। मेरे मन में आशंका थी कि उसकी पत्नी कैसी होगी । कहाँ पता था कि उससे दूसरे दिन ही मुलाक़ात हो जाएगी ।

रोहिणी के जन्मदिन का गिफ्ट उसके घर जाकर ही दे कर हम शाम को कनिष्का होटल जाएंगे। नई साड़ी में रोहिणी सितारे-सी चमक रही थी । दो दिन पहले जो कुछ हुआ था उसे मैंने और रोहिणी, दोनों ने भूल जाने का नाटक किया। दुरैई अपने हमेशा जैसे भोलेपन से बात कर रहा था। डिनर आर्डर कर हम इंतजार कर रहे थे तभी अचानक वहां अपनी पत्नी के साथ कृष्णन आया। जहाँ रोहिणी का चेहरा एकदम खिल गया वहीँ उसे देख मैंने अपमानित महसूस किया।

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