Dah-Shat - 38 in Hindi Thriller by Neelam Kulshreshtha books and stories PDF | दह--शत - 38

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दह--शत - 38

एपीसोड --—38

कैसा भयानक शातिर दिमाग पाया है कविता ने वह किसी नशीली चीज के नशे में अभय को विश्वास दिला चुकी थी कि उन्हें घर में कोई नहीं पूछता । बड़ा घमंड था उसे अपने आप पर कि वह घर में रहकर अपने घर व बच्चों की बहुत अच्छी तरह देखभाल कर रही है । घर में आहिस्ता से सेंध लगती रही, वह बमुश्किल पहचान पा रही है वह भी टुकड़ों, टुकड़ों में ।

बरसों से ड्रग के नशे की आदी कविता से नशा व अपना नशा देकर दूसरों को पशु बनानेवाली कविता इसी लत से दरिंदा बन चुकी है पूरी हैवान । रात को अहमदाबाद से लौटकर वह पास में लेटे अभय की छाती पर हाथ फेरने लगती है , उस की एक बाजू कसकर पकड़ लेती है । इस घर से कुछ जाते-जाते रह गया है ...,,क्या ? शायद एक जान... या दो जानें ।

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वर्मा का ट्रांसफ़र यहां से तो होना नहीं है । मुम्बई में हैड ऑफ़िस में कोशिश की जाये । वहाँ तो रिश्ते का भाई साहिल उच्च पद पर है । समिधा के परिवार से स्नेह भी रखता है ।

साहिल फोन पर उसकी बात सुनकर चौंक जाता है, “ये मामला डेढ़ वर्ष से चल रहा था तो आप क्या कर रही थीं ? ”

“ साहिल! ये बात इतनी नाजुक है । एकदम बताना भी मुश्किल था ।”

“बस मैं अभी वहाँ आ रहा हूँ ।”

“नहीं, नहीं , ऐसी जल्दी नहीं है कुछ ट्रिक कर दी है स्थिति नियंत्रण में हैं । तुम इस वर्मा का ट्रांसफ़र करवा दो ।”

“आप कहें तो विकेश का ट्रांसफ़र मैं अभी करवा सकता हूँ । वर्मा के लिए पूछना पड़ेगा ।”

“विकेश का ट्रांसफ़र हो न हो, चलेगा । वर्मा का यहाँ से जाना बहुत ज़रूरी है ।”

“मैं देखता हूँ क्या कर सकता हूँ । पंद्रह दिसम्बर को मैं व कोमल आपके

शहर एक शादी में आ रहे हैं । सुबह सब से पहले आप के पास आयेंगे । एक बात बताइए ये बात कोमल को बताऊँ नहीं ।”

“मैं तुम पर जितना विश्वास करती हूँ उतना ही उस पर करती हूँ ।”

अभय को जब पता लगेगा कि साहिल के पास हैड ऑफ़िस बात पहुँच गई है तो अभय को रूकना पड़ेगा । साहिल मुम्बई से उनके घर आकर वही बात समझाता है, “वर्मा का तो ट्रांसफर नहीं हो सकता । जीजा जी का ट्रांसफ़र तो कहीं भी करवा सकता हूँ ।”

समिधा भी जिद करती है, “इन गुंडों के डर से हम लोग क्यों जाँये ।”

कोमल भी ये बात सहमी सी सुन रही है, “कोई खौफ़नाक दरिंदा है ये औरत दीदी । जब मुम्बई में साहिल ने मुझे ये बात बताई तो मैं तो उस दिन ‘स्लीपिंग पिल’ खाकर सो पाई थी । ”

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सुमित के माँ-बाप की तरफ़ से सूचना आती है कि वे सब रोली को देखने आ रहे हैं । रोली व सुमित एक दूसरे से मिलकर खुश हैं । शादी की तारीख भी तय हो गई है । समिधा के हाथ-पैर फूल रहे हैं इतने कम समय में कैसे इंतज़ाम कर पायेगी बिटिया की शादी का ? शादी की ख़बर वह समिति की अध्यक्ष को फ़ोन पर देती है । वे आश्चर्य कर उठतीं हैं , “अभी-अभी तो आप के यहाँ ‘तलाक’, ‘तलाक’ हो रहा था । अब बेटी की शादी कर रहे हैं ? ”

“हाँ मेम ! सब सितारों का चक्कर है । जब मुम्बई से ज़ोनल चीफ की पत्नी आये तो बताइए ।”

“आप पहले बिटिया की शादी कर लीजिए । उस के बाद उन से मिल लीजिए ।”

समिधा कुछ ज़रूरी शॉपिंग कर के बाजार से लौटी है । अभय व्यंग करते हैं, “तो एम.डी. से शिकायत कर के आ रही हो ?”

“कुछ भी समझ लो ।”

“तुम कान खोलकर सुन लो, मैं शादी में शामिल नहीं हूँगा ।”

“ तो मत होना ।”

“मैं एक रुपया भी शादी में नहीं लगाऊँगा । यदि रुपया चाहती हो तो ‘इन्क्वायरी’ रुकवा दो । ”

“तुम तो कहते थे कि ये बात झूठ है फिर ‘इन्क्वायरी’ से क्यों डर रहे हो ? ”

“मैं शादी के लिए एक भी रुपया नहीं दूँगा । मैं भाई साहब के पास दिल्ली चला जाऊँगा ।”

“मत देना ये शादी होकर रहेगी । तुम्हें कब दिल्ली जाना है लाओ मैं रिज़र्वेशन करवा देती हूँ ।”

“तुम मज़ाक समझ रही हो ?”

“देखो ! मुझमें इतनी हिम्मत है कि सुमित के पेरेन्ट्स को सच बता दूँ । यदि बाप ‘आउट ऑफ़ ट्रेक’ होता है तो बच्चों की शादी नहीं रुकती है यदि माँ बदमाश हो तो सोनल की शादी तो नहीं हो पायेगी । ”

“तुम उनके लिए क्यों चिन्ता कर रही हो ?”

हे भगवान ! समिधा अपना माथा पीट ले ? अभय के दिमाग़ को क्या से क्या कर दिया गया है, “मैं उनकी चिन्ता नहीं कर रही । उन्हें उनका भविष्य दिखा रही हूँ ।”

अभय की खोपड़ी जब खिसका दी जाती है तो अक्षत को फोन करते हैं ।

“अक्षत मैं रुपये तो दे दूँगा लेकिन शादी की तैयारियाँ नहीं करवाऊँगा ।”

अक्षत समिधा को घबराकर फोन करता है, “मॉम! शादी में इतने कम दिन रह गये हैं मुझे छुट्टी नहीं मिल रही । कैसे तैयारी होगी ?”

“बेटे! घबरा मत, सब अच्छी तरह हो जायेगा । प्राचीन काल में भी राक्षस यज्ञ में बाधा डालते थे लेकिन यज्ञ हमेशा सम्पन्न होते रहे हैं ।”

कुछ दिनों बाद अपने आप ही अभय ज़िम्मेदारी से कहते हैं, “मैं शादी की तैयारी के लिए कम से कम बीस दिन की छुट्टी तो लूँगा ही । बच्चों को तो फुर्सत नहीं है ।”

समिधा को चैन पड़ता है, अभय को ये बात समझ में आ गई है । कुछ दिनों बाद वह छुट्टी लेने की बात याद दिलाती है तो कहते हैं, “तुम्हें तो काम से मतलब है, इतनी लम्बी छुट्टी लेकर क्या करुँगा ?”

शादी की तैयारी में दोनों लग गये हैं । समिधा ने अभय का चेहरा पढ़ना छोड़ दिया है । शादी के हफ़्ते भर पहले से अभय ने छुट्टी ली है । सोमवार को वे उसे बताते हैं, “मैं अपने ऑफ़िस में कार्ड बाँटने जा रहा हूँ ।”

दूसरे दिन ही सुबह नौ बजे वे विभागीय फोन पर विलियम से बात कर रहे है, “तुम भास्कर की स्कूटर रिपेयरिंग शॉप पहुँचो, मैं अपना स्कूटर वहाँ डालना चाहता हूँ, तुम्हारे साथ वापिस आ जाऊँगा ।”

वह अभय से कहती है, “अभय मैं भी तुम्हारे साथ चल रही हूँ । कोचिंग इंस्टीट्यूट उसी तरफ है । वहां मैं कार्ड देकर ‘इनवाइट’ कर आऊंगी ।”

अभय द्विविधा में है, “इतनी सुबह वह कहाँ खुलता होगा ?”

“वह सुबह नौ बजे खुल जाता है ।”

भास्कर को स्कूटर की कमियाँ बताकर अभय विलियम का इंतजार कर रहे हैं । उस चौराहे की कोने की शॉप में खड़े अभय का चेहरा तनाव से भर गया है । वह क्रोधित आँखों से समिधा को देख रहे हैं । समिधा लापरवाह है लेकिन आश्चर्यचकित भी, इन भस्म करने वाली नज़रों को वह खूब पहचानती है लेकिन वह तो सच ही कार्ड्स देने साथ आई थी । वह सोच भी नहीं सकती थी कि अभय इन व्यस्तताओं वाले दिनों में घेर लिए जायेंगे । या अभय स्वयं घिर भी जायेंगे । वह

अपनी बिटिया की शादी से पहले ? विलियम के आते ही अभय उससे कहते है, “ तुम चलो मिसिज साथ में आई है, हम लोग ऑटो से जा रहे हैं।”

ऑटो में वह सख्ती से मुँह बंद किये बैठी है। कॉलोनी में आते ही उस घर की तरफ उसकी नज़र जाती है। उसका हर दरवाज़ा, खिड़की बंद है। समिधा ऊपरवाले को धन्यवाद देती है। आज भी यज्ञ में बाधा डालने वाले राक्षस ज़िन्दा है। समिधा ने कब से तय कर लिया है। इन राक्षसों को मात देकर रोली का विवाह सम्पन्न करेगी।

दोपहर में आलमारी खोलती है। अभय की कमीज़ों के बीच छिपा है एक छोटा सा ब्रीफ़केस। वह उसे उत्सुकता से खोलती है, देखती है अभय के विभाग के लोगों के कार्ड उसमें जैसे के तैसे हैं तो क्या सच ही ऊपर वाला पहले भी यज्ञ सम्पूर्ण करने के लिए हमेशा अच्छे लोगों का साथ देता रहा था?

एक हृदयरोगी व्यक्ति को बातों में फँसा कर लम्बी छुट्टी लेने से रोका गया है। अभय को बाज़ार, ऑफ़िस व दूसरे काम करते, उन्हें भागते, दौड़ते देखकर वह सहमती रही है । अक्सर रात को वह अपनी तेज़ चलती ‘पल्सरेट’ गिनते रहते हैं । वह स्वयं एक तीखी तकलीफ़ से घिरी रहती है।

शादी बढ़िया ही नहीं, ख़ूब धूमधाम से होती है। रोली की विदाई से पहले गिफ्ट़ पैक इकट्ठे करके उनकी लिस्ट बनाई जा रही है। एक बड़े पैकैट पर कार्ड पर लिखा है। ‘अज्ञात’ उसके रैपर पर बने हैं तीर बिंधे दिल व जगह जगह छपा है। ‘आइ लब यू’ अभय उस पैकेट को उसके साथ से छीनकर बेसब्री से खोलने लगते हैं। अंदर की बेहद महँगी लैम्प को देखकर समिधा समझ जाती है। विभाग के ‘पिम्प’ यानि विकेश ने अभय की भावनाओं को और भी भड़काने के लिए ये रुपये खर्च किये होंगे वर्ना वर्मा के परिवार के किसी सदस्य की विवाह में आकर उपहार देने की हिम्मत नहीं थी। वह मन ही मन बुदबुदाती है, “विकेश! तुम अपनी इस हैवानियत से मेरी ताकत को और भी दृढ़ कर रहे हो।”

अपनी बिटिया ही कितनी अनजानी लग रही है भारी साड़ी व जड़ाऊ ज़ेवरों मे गुलाब के फूल सी महकती हुई, चेहरे पर नवविवाहित की लुनाई लिए हुए। वह एकांत मिलते हुए समिधा के गले में बाँहें डालकर रो पड़ती है, “मॉम! मुझे आपकी व पापा की बहुत चिंता है। आपको कभी भी ज़रुरत पड़े तो फ़ोन कर दीजिए। फ़्लाइट से आ जाऊँगी। आप मुझसे प्रॉमिस कीजिए कभी आप अपनी जान लेने की कोशिश नहीं करेंगी।”

वह भी रोते-रोते मुस्करा उठी, “पगली! वे भयंकर दिन तो निकल गये जब जान पर बन आई थी। अब कुछ न कुछ तो होगा ही।”

“आप बार-बार कहती है आखिरी शॉट मारा है।”

“नहीं, तू बेफ़िक्र होकर जा । अब सब ठीक हो जायेगा ।”

समिधा अनुमान नहीं लगा पाती कि अभी आगे और लम्बी काँटो भरी राह बिछी हुई है।

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नीलम कुलश्रेष्ठ

ई मेल –kneeli@rediffamail.com