कुछ ही देर बाद उस घर के अंदर से एक आदमी एक औरत के साथ सलाम अर्ज़ करता हुआ बाहर आया। और भाईजान से कहने लगा "मैं क़ासिम और ये मेरी बीवी रज्जो है" हम दोनों ही इस बँगले की देख रेख करते हैं साहब! वैसे आपने बहुत देर कर दी आने में, भाईजान ने कहा हाँ दराशल हमें इस घर का पता ढूंढ़ने में ज़रा सी देर हो गयी, आप ऐसा करिये हमारे सामान गाड़ी से निकाल कर रखवाइए। फिर मैंने कहा भाईजान आप सब अंदर जाईये मैं और क़ासिम चाचा गाड़ी से सामान लेकर आते हैं। सब अंदर चले गए। मैंने डिक्की खोला और दो बैग निकाल कर "क़ासिम चाचा" को दिए। और दो बैग मैंने उठाए फिर मैंने कहा चलिए चाचा अब हम इसे लेकर कर चलते हैं। जैसे हम अंदर गए तभी मुझे ख्याल आया कि भैया का टाइपराइटर भी लाना है। तो मैंने "क़ासिम चाचा" को कहा, "चाचा गाड़ी में एक सामान और है, वो जाकर ले आईये। फिर भाईजान कहने लगे छोटी और हामिद तुम दोनों अपने रूम पसंद करलो तभी छोटी ने कहा "मैं लुंगी सबसे बड़ा वाला रूम" और तेजी से भाग कर रूम देखने चली गयी, सब उसकी नादानी देखकर हँसने लगे, भाभी भी उसके पीछे-पीछे कमरों को देखने चली गयी। फिर भैया ने अम्मी-अब्बू से कहा "अम्मी अब्बू आप दोनों का रूम दायीं तरफ है, आप लोग फिलहाल आराम करिये तो अब्बू ने कहा "ठीक है बेटा" हम चलते हैं। तुम क़ासिम को कहकर हमारा सामान पहुँचवा दो, भैया ने कहा "ठीक है अब्बू मैं पहुँचवा देता हुँ। अब आपलोग जाइये और आराम करिये। तभी "क़ासिम चाचा" टाइपराइटर लेकर दरवाजे पर गिर जाते हैं। तभी भैया और मैं भागकर उन्हें उठाने जाते हैं।
अख्तर भाईजान : आपको चोट तो नहीं लगी?
क़ासिम चाचा : नहीं साहब..! यहाँ शायद पानी गिरा हुआ था। इसलिए मेरा फ़िसल गया। मगर अचानक से यहाँ पानी कैसे गिर गया मुझे समझ नहीं आ रहा है।
फिर भैया अपना टाइपराइटर उठाया और कहा, लगता है हामिद मेरा टाइपराइटर खराब हो गया। गिरने की वजह से इसके बटन भी ऊपर नीचे नहीं हो रहे। तभी भाभी रूम से बाहर आती हैं।
सादिया भाभीजान : अरे ये क्या हुआ तुम्हारा टाइपराइटर कैसे गिर गया?
अख्तर भाईजान : वो "क़ासिम चाचा" ये टाइपराइटर लेकर आ रहे थे, तो उनका दरवाजे पर पैर फिसल गया। मगर चलो कोई बात नहीं मैं सुबह इसे ठीक कराने लेकर जाऊँगा। तुम इसे लेकर जाओ और मेरे कमरे में रख दो, तो भाभी वो टाइपराइटर लेकर कमरे कि तरफ चली जाती है।
अख्तर भाईजान : वैसे "क़ासिम चाचा" मानना तो पड़ेगा, ये जगह बहुत कमाल कि है।
तभी दरवाजे पर एक आदमी भाईजान का नाम लेकर अंदर आया,अस्सालमुअलैकुम..! अख्तर साहब आपलोग आ गए। मगर आपने यहाँ आने में बहुत देर कर दी, मगर चलिए कम से कम आप सही सलामत तो पहुँच गए।
अख्तर भाईजान : वालेकुमअस्सलाम मैंने आपको पहचाना नहीं? आपकी तारीफ,
फिर उस अनजान शख्स ने कहा "जी मैं अब्बास मैं इस घर का आधा मालिक समझ लीजिये पूरा..! इस घर के असली मालिक तो बाहर रहते हैं। तो ये घर मेरी निगरानी में रहता है। वैसे आपको किसी भी चीज कि ज़रुरत हो तो आप मुझसे कह सकते हैं।
अख्तर भाईजान : हाँ वैसे आपसे एक काम था। मेरा टाइपराइटर "क़ासिम चाचा" के हाथ से गिर गया और खराब हो गया। आप इसे ज़रा ठीक करवा देंगे?
अब्बास : ओहो..! ये क़ासिम चाचा भी ना उम्र के साथ साथ बहुत कमज़ोर होते जा रहे हैं। कोई भी चीज नहीं संभाली जाती इनसे,
फिर मैंने कहा ऐसी बात नहीं क़ासिम चाचा का पैर पानी पर फिसल गया। इसलिए वो गिर गए।
अख्तर भाईजान : हाँ अब्बास साहब कुछ ऐसा ही हुआ मगर चलिए कोई बात नहीं। आप इसे सुबह जल्द से जल्द ठीक करवा दीजिये। मुझे बहुत से काम करने हैं।
अब्बास : ठीक है अख्तर साहब बेफिक्र रहिये। मैं सुबह तक इसे ठीक करवा दूंगा।
फिर वो मेरी तरफ देखने लगा अख्तर भाईजान ने कहा "अब्बास साहब ये मेरा छोटा भाई हामिद है। तो उसने मुझसे हाथ मिलाया और कहने लगा "आपसे मिलके अच्छा लगा जनाब!
अख्तर भाईजान : वैसे अब्बास साहब इस इस घर को देख कर लगता है ये शायद बहुत सालों तक बंद था।
भाईजान के इस सवाल से वो घबरा सा गया और कहने लगा नहीं ऐसा नहीं है। हमारे नौकर यहाँ रोज़ साफ सफाई करते हैं। और वो कहने लगा क्यों "क़ासिम चाचा" ऐसा है कि नहीं? तो "क़ासिम चाचा" सेहमे सेहमे से बोले हाँ साहब..! मैं और मेरी बीवी इस घर का सालों से देखभाल करते आ रहे हैं।
अब्बास : ये ठीक कह रहे हैं। ये लोग सालों से यहाँ काम कर रहे हैं, वैसे "अख्तर साहब" मैं चलता हुँ। रात होने वाली है। और मुझे घर भी पहुँचना है।
अख्तर भाईजान : ठीक है अब्बास साहब।
फिर भैया ने उनसे हाथ मिलाया और उन्हें दरवाज़े तक छोड़ने चले गए।
क़ासिम चाचा ने मुझसे कहा "छोटे साहब मैं ज़रा बगीचे कि तरफ जा रहा हुँ, मैंने कहा "ठीक है चाचा" जैसे ही उनके कदम आगे बढ़े तो मैंने कहा ज़रा रुकिए..! एक बात पूछनी थी। उन्होंने कहा पूछिए साहब..! मैंने कहा वैसे "क़ासिम चाचा" जब हम फतेहपुर पहुँचे तो एक आदमी मिला। जब भैया ने उनसे इस घर के बारे में पूछा तो वो घबराया और कहने लगा कि यहाँ जिनों का बसेरा है? आपको क्या लगता है। ये बात सुनते ही "क़ासिम चाचा" घबरा गए और कहने लगे "नहीं छोटे साहब ये आपका वेहेम है" यहाँ ऐसा कुछ भी नहीं है। इतना कहकर वो बगीचे कि तरफ चले गए। तभी अख्तर भाईजान आए और कहने लगे "हामिद" तुमने अभी तक अपना कमरा नहीं देखा? मैंने कहा हाँ भैया मैं जा ही रहा था।
अख्तर भाईजान : तुम जाओ और आराम करो।
फिर मैं और भाईजान अपने कमरों कि तरफ चले गए।
अख्तर भाईजान : अरे..! ये सादिया कहाँ चली गयी? और इस टाइपराइटर को अलमारी में भी नहीं रखा, ज़रा देखूँ शायद कुछ करने से ठीक हो जाए। अरे ये तो काम करने लगा। पर कैसे? ये तो खराब हो चूका था, पता नहीं इतनी जल्दी ये कैसे ठीक हो गया? शायद ये घर मेरे लिए लक्की है।
सादिया भाभीजान : अरे..! आप आ गए।
अख्तर भाईजान : सादिया तुम कहाँ थी?
सादिया भाभीजान : मैं किचन में थी। रज्जो चाची के साथ।
अख्तर भाईजान : सादिया तुमने टाइपराइटर के साथ कुछ छैर-छाड़ कि है क्या?
सादिया भाभीजान : नहीं..! पर क्या हुआ?
अख्तर भाईजान : देखो ना ये टाइपराइटर अपने आप ही ठीक हो गया। मैं आज से अपना काम शुरू कर सकता हुँ। ये जगह सचमुच सादिया..! हमारे लिए लक्की है। तुम्हे क्या लगता है?
सादिया भाभीजान : मुझे तो ऐसा नहीं लगता, मुझे तो इस घर की चार दीवारी में खौफ सा लगता है।
अख्तर भाईजान : देखो ऐसा कुछ भी नहीं है मैं तुम्हारे साथ हुँ ना घबराओ मत, तुम्हे ये जगह पसंद नहीं तो कोई बात नहीं मेरी नॉवेल पूरी हो जाएगी तो हम सब यहाँ से वापस लौट जायेंगे।
सादिया भाभीजान : चलिए खाना लग चूका होगा सब हमारा इंतेज़ार कर रहें होंगे।
अख्तर भाईजान : तुम चलो..! मैं कपड़े बदल कर आता हुँ।
सादिया भाभीजान : ठीक है..! मगर ज़्यादा देर मत करियेगा।