Dastango - 3 in Hindi Moral Stories by Priyamvad books and stories PDF | दास्तानगो - 3

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दास्तानगो - 3

दास्तानगो

प्रियंवद

जब दरवाजे पर दस्तक हुयी शाम का धुंधलका शुरू हो गया था। द्घर इतना बड़ा और खुला हुआ था कि दरवाजे की दस्तक पत्तियों के गिरने या लहरों के शोर में खो जाती थी। आने वाला किसी और तरह से उन्हें बुला सके, इस पर उन दोनों ने कभी नहीं सोचा, क्योंकि वहाँ कोई आता भी नहीं था। पाकुड़ की बीवी आती, तो पीछे के कच्चे रास्ते से सीधे उसके कमरे में चली जाती थी।

दस्तक का शक पहले वामगुल को हुआ-

'तुमने सुना?' उसने पाकुड़ से पूछा। वाम एक कुर्सी पर बैठा था। सामने

नक्काशीदार आबनूस की छोटी मेज पर उसके पैर पफैले थे। मेज के दूसरी तरपफ एक चौकी पर पाकुड़ बैठा था। वह वाम के पंजों में जैतून के तेल की मालिश कर रहा था जो शहर के एक दुकानदार ने अपने बेटे की शादी में बजाए जाने वाले शंख के बदले उसे दिया था।

'क्या?'

'किसी ने दस्तक दी है'

पाकुड़ ने वामगुल के बाएँ पाँव की उंगलियों के बीच की सपफेद और सूख कर पफटी हुयी खाल पर तेल रगड़ते हुए अविश्वास से उसकी ओर देखा

'आज हवा तेज है। उड़ते हुए पत्ते होंगे... या किसी भूखे कौए ने चोंच मारी होगी।' दस्तक पिफर हुयी। इस बार किसी की आवाज भी थी।

'देखो' वाम ने मेज से अपने पैर खींच लिए। पाकुड़ मेज का सहारा लेकर उठा। तेल से भीगी हथेलियाँ सर पर रगड़ते हुए बाहर बरामदे में और पिफर दो सीढ़ियाँ उतर कर कच्ची, खुली जगह पर आया। सूखे हुए पफव्वारे के पास के छोटे कच्चे रास्ते से होता हुआ दरवाजे पर आया। उसके नथुनों में एक तेज गंध द्घुसी। यह गंध वहाँ की नहीं थी। न मत्स्यकन्याओं की देह की थी, न सड़ते हुए नारियल की, न सुखायी जा चुकी मछलियों की, और न भूखे कौओं की बीट की। दरवाजे पर कोई था।

लकड़ी के ऊँचे और बड़े दरवाजे के एक पल्ले के बीच में बनी छोटी खिड़की को उसने खोला। वह झुका और खिड़की से उसने आधा धड़ बाहर किया। उधर से भी कोई झुका। अब पाकुड़ के सामने एक लड़की का चेहरा था।

'मैं अंदर आऊँ?' उसने पूछा

सर हिलाकर पाकुड़ ने अपना धड़ वापस अंदर खींचा और एक ओर हट गया। लड़की झुककर खिड़की से अंदर आ गयी। अंदर आकर वह सीधी हुयी। कुछ क्षण पाकुड़ उसे और वह पाकुड़ को देखती रही। उसने पाकुड़ की उभरी पीठ, सपफेद बाल, छोटा कद, भारी चेहरे के मोटे होठ, थकी हुयी अधखुली आँखें देखीं। पाकुड़ ने लड़की की समुद्र की सतह पर न आने वाली सुनहरी मछली जैसी चिकनी खाल, आँखों में भरा पूरा समुद्र, शंख की तरह एक के ऊपर दूसरा होठ और छोटी नावों की पतवार जैसी गोल बाँहें देखीं।

'तुम्हें पता है?' उसने पाकुड़ से पूछा। पाकुड़ ने हैरानी से चारों ओर देखा।

'क्या?'

'पुल पर चावल के बोरों से लदी एक द्घोड़ा गाड़ी पलट गयी है।' लड़की पफुसपफुसा रही थी 'मेरे सामने दोनों द्घोड़े हवा में उठे पिफर वहीं लटक गए। पूरी गाड़ी पीछे झुक गयी थी। उनके पैर हवा में हिल रहे थे। वे चीख रहे थे। पफेन बहा रहे थे। नीचे की ओर आने के लिए पूरी ताकत लगा रहे थे। उनकी आँखें बाहर निकलने लगी थीं। गाड़ी पर बैठा लड़का पीछे से कूदकर आगे आया। उसने पहले एक ओर से गाड़ी को पूरी ताकत से दबाया। गाड़ी नीचे नहीं आयी। वह पिफर पीछे लौटा। गाड़ी पर चढ़कर उसने बोरों को गिराना शुरू किया। कई बोरे उसने पुल पर पफेंक दिए। वह पिफर बाहर कूदकर आगे आया। पिफर गाड़ी को नीचे खींचने लगा। पिफर चढ़ा। पिफर बोरे पफेंके। पिफर गाड़ी खींची। वह रो रहा था... हाँपफ रहा था... पूरी ताकत लगा रहा था। पिफर गाड़ी एक झटके से नीचे आ गयी। पर तब तक देर हो चुकी थी। दोनों द्घोड़े, मुड़े द्घुटनों के साथ गिर पड़े। लड़का भी लड़खड़ा गया। वह भी गिरा और द्घोड़ों के नीचे दब गया। द्घोड़े शायद मर चुके हैं। लड़का उनके नीचे दबा है। पफेंके हुए बोरे पफट गए थे। उनका चावल पफैल गया है।' लड़की चुप हो गयी। एक गहरी सफ़ांस ली उसने।

पाकुड़ आश्चर्य से उसकी आवाज सुन रहा था। उसमें वैसा ही गाढ़ापन था जैसा समुद्र के बहुत अंदर रहने वाली भंवर में होता है। पाकुड़ को लगा कि अगर उसे दस पंखुरियों वाले पफूल की शक्ल का काला शंख मिल जाए तो वह उससे

बिल्कुल ऐसी ही आवाज निकाल सकता है।

दरवाजे की छोटी खिड़की अभी खुली हुयी थी। पाकुड़ ने पिफर आधा धड़ बाहर निकाला। बाहर लाल रंग की एक कार खड़ी थी। धूल से सनी हुयी। पाकुड़ ने धड़ वापस अंदर खींच लिया। इस बार उसने खिड़की बंद कर दी।

'अब क्या होगा?' लड़की द्घबरायी हुयी थी 'पुल पहले भी बंद होता होगा। क्या होता है तब? कितनी देर लगती है पुल खुलने में?'

'पता नहीं... ऐसा पहली बार हुआ है'

'क्या?'

'पुल पर द्घोड़ों का मरना। क्या वे सचमुच मर गए थे?'

'हाँ... वे जिस तरह गिरे उस तरह मरे हुए ही गिरते हैं'

'पर वह लड़का पुल से क्यों आया? तुम भी क्यों आयीं?'

'क्यों?'

'यह पुल सिपर्फ पैदल चलने वालों के लिए बना है।' लड़की कुछ नहीं बोली। उसने अब चारों ओर देखा

'यह किसका द्घर है?'

'पता नहीं' पाकुड़ ने सर हिलाया। लड़की ने हैरानी से पाकुड़ को देखा। उसे लगा पाकुड़ बताना नहीं चाहता, शायद इसलिए कि वह उसे अपनी बात अच्छी तरह समझा नहीं पायी है या वह उस पर विश्वास नहीं कर रहा है। उसने पिफर

कोशिश की। इस बार वह शब्दों को रोकते हुए बोल रही थी। हाथों के इशारे से भी समझा रही थी।

'मैं मिट्टी में दबा शहर देखकर लौट रही थी। मुझे देर हो चुकी थी। मैं अगर बड़े रास्ते से जाती तो तीन द्घंटे ज्यादा लगते। मैं शायद चली भी जाती, पर एक मस्जिद की सीढ़ियों पर सूरज, चाँद और दूसरे बहुत से नक्षत्रा बिछाकर, उनसे बातें करते हुए एक नजूमी ने बताया, कि उस रास्ते पर हथियार बनाने वाले तीन कारखानों की छुट्टी होती है। हजारों लोग एक साथ निकलते हैं इसलिए गाड़ियों के लिए वह रास्ता दो द्घंटों के लिए बंद हो जाता है। उसी ने इस रास्ते के बारे में बताया कि यह छोटा और खुला है। इससे कोई नहीं जाता। मैं चली आयी। अब वापस भी नहीं लौट सकती। पूरे छह द्घंटे लगेंगे। इतना पेट्रोल भी नहीं है। पुल खुला होता तो मैं डेढ़ द्घंटे में पहुँच जाती। मेरा यकीन करो। मैंने सब अपनी आँखों से देखा है। पुल से ही मैंने इस चर्च को देखा, जंजीर से लटके द्घंटे और मरियम की मूर्ति को देखा। इस इमारत को भी देखा। मुझे लगा यहाँ कोई होगा ही। मैं अब कैसे जाऊँगी? क्या पुल खुल जाएगा?''

डूब चुके दिन के आखरी धुंधलके में पाकुड़ ने देखा... उत्तेजना, संशय और लगातार बोलने से लड़की के चेहरे की खाल सुर्ख हो गयी थी। उस सुर्खी में उसके गले की नीली नसें उभर आयी थीं। उनके उभरने से उसकी आवाज का गाढ़ापन और उदासी बढ़ गयी थी। पाकुड़ ने सोचा कि अगर वह काला शंख बनाएगा तो उस पर सुनहरे रंग की ऐसी धारियाँ भी डाल देगा जिससे लगे कि शंख के भी नसें हैं और आवाज इन्हीं नसों से पफूट रही है। उदासी के लिए वह शंख पर राग मारवा बजाया करेगा।

'तुम कौन हो?' लड़की ने अचानक पूछा।

पाकुड़ ने इस पर कभी नहीं सोचा था। कुछ देर वह अवाक्‌ लड़की को देखता रहा पिफर उसने सर ऊपर उठाया। अब तक एटिक चाँद की विलक्षण सपफेदी में डूब गया था।

'क्या आज पूरा चांद है?' पाकुड़ धीरे से बड़बड़ाया।

'आज चांद धरती के सबसे पास है। इतना पास कि चांद में बैठी बुढ़िया को धरती पर सब कुछ बहुत सापफ दिखायी देता है। पूरी रात वह खुशी से हँसती है। तुमने देखा है उसे हँसते हुए कभी?' लड़की अवाक्‌ पाकुड़ के नीचे वाले थोड़े ज्यादा भारी होठ को देख रही थी जो गाय के थन की तरह लटका था।

'अब क्या करोगी?' पाकुड़ ने पूछा

'मुझे क्या पता?'

'पिफर?'

'पुल कैसे खुलेगा?'

'पता नहीं।'

'पुलिस कहाँ मिलेगी?'

'मछुआरों वाली बस्ती की उस चौकी में जहाँ से मछलियाँ जाती हैं।''

'क्या वह दूर है?'

'बहुत'

'अगर उन्हें पता चल जाए तो वे पुल खोल देंगे।'

पाकुड़ कुछ देर सोचता रहा पिफर बोला-

'कभी कभी यूं ही गश्त के बहाने वे इधर आ जाते हैं। उन्हें मालूम है कभी-कभी यहाँ फ़ांस की अलूचे के रस में डूबे हुए अंगूरों की शराब मिल जाती है।'

लड़की ने निराशा में सर हिलाया

'कहीं पफोन है?'

'नहीं।'

'क्या करते हो जब कुछ होता है?'

'क्या होता है?'

'अगर मैं तुम्हें अभी कत्ल कर दूँ तो क्या होगा? पुलिस को कैसे पता लगेगा?' लड़की ने दाँत पीसे पाकुड़ ने आँखें

सिकोड़ कर लड़की की आँखों में देखा। उसमें अपने कत्ल किए जाने की संभावना को टटोला पिफर लापरवाही से कंधे हिलाए 'कोई भी राहगीर बता देगा। शंख बजाकर मेरी बीवी बता देगी। हो सकता है यहाँ से गुजरने वाली हवाएँ बता दें। वर्ना चाँद की बुढ़िया तो बता ही देगी।'

लड़की ने झुंझला कर सर झटका

'चलो... इसी तरह सही... पुलिस को बताओ कि पुल पर द्घोड़े मरे पड़े हैं।'

पाकुड़ ने एक क्षण लड़की को देखा पिफर चाँद की तरपफ सर उठाकर कुछ बुदबुदाया

'यह क्या था?' लड़की ने द्घूरा उसे

'मैंने बुढ़िया से कह दिया है। वह बता देगी उन्हें।'

'मैंने कुछ नहीं सुना।'

'मैंने तुमसे कुछ कहा भी नहीं। उसने सुन लिया है। हम ऐसे ही बातें करते हैं।'

'क्या वह उसे भी बता सकती है?'

'किसे?'

'मेरे पति को'

'क्या?'

'यही... कि पुल पर द्घोड़े मर गए हैं और मैं यहाँ पफंस गयी हूँ। हो सकता है रात को द्घर न आ पाऊँ' 'हो सकता है नहीं... यकीनन ही'

'वह मुझे मार डालेगा' लड़की बड़बड़ायी 'वह इस बात पर कभी विश्वास ही नहीं करेगा। वह सोचेगा मैं किसी आदमी के साथ रात भर एक्षयाशी करने के लिए मक्कारी भरा झूठ बोल रही हूँ।'

'क्या पफोन करने से उसे यकीन हो जाता कि तुम सच बोल रही हो।'

लड़की ने हैरानी से पाकुड़ को देखा। कुछ देर चुप रही पिफर बोली

'तुम ठीक कहते हो। उससे भी क्या होता? तब भी वह यही सोचता।'

'छोड़ो पिफर... पुलिस वाले आएँगे तो उसे बता देंगे। उनके पास अपना पफोन होता है। पुलिस के बताने से उसे यकीन भी आ जाएगा।'

'और तुम्हें यकीन है कि बुढ़िया पुलिस को बता देगी'

'हाँ'

लड़की ने एक गहरी साँस ली। हाथ हिलाकर गहरी बेचारगी में उसने दोनों कंधे झटके।

'यहाँ कोई जगह है जहाँ रात को रुका जा सकता है।'

'यहाँ सिपर्फ यही जगह है। क्या तुम यहाँ रुकने के लिए सोच रही हो?'

'इसमें सोचना क्या है? मैं और कर भी क्या सकती हूँ... या पिफर बाहर गाड़ी में रात भर बैठी रहूँ।'

'मुझे पूछना पड़ेगा'

'किससे?'

'जो यहाँ रहता है। वैसे हमारे पास कमरा है और हमने अभी खाना भी नहीं खाया है। पर अगर उसने मकड़ी वाली शीशी में उंगली डाल ली होगी तब मत रुकना।'

'क्यों?'

'तब उसे किसी औरत की बहुत सख्त जरूरत पड़ती है। पहले मुझे देख लेने दो' पाकुड़ बोला।

पाकुड़ लौटा नहीं था। उसे देखने वामगुल बरामदे में आ गया। उसने लड़की को कुछ अंधेरे, कुछ उजाले में देखा। वह उसे जितनी उजाले में दिखी उसमें उसके सीने के उभार, खुले बाल, सापफ और मुलायम खाल वाली गर्दन और पफूली नसों वाला चेहरा दिखा। उसे अंधेरे में जो दिखी, उसमें उसकी मजबूत और एक दूसरे से सटी हुयी गोल जाँद्घें, पतली कमर और बड़े नितम्ब दिखे।

पाकुड़ कच्चा रास्ता पार करके वामगुल के पास आया। कुछ देर उसके साथ बातें करने के बाद पिफर लड़की के पास आ गया।

'तुम्हारा सामान कहाँ है?'

'गाड़ी में'

'चलो... निकाल लेते हैं'

लड़की कुछ क्षण खड़ी रही। सर द्घुमाकर उसने बरामदे के अंधेरे में खड़े वामगुल को देखा पिफर धीरे से पफुसपफुसायी

'क्या वह मकड़ी की शीशी में उंगली डाल चुका है?'

बाहर की तरपफ चलते हुए पाकुड़ रुक गया। उसने लड़की को देखा पिफर मुस्कराया-

'नहीं... तुम्हारी किस्मत अच्छी है।'

वामगुल वापस कमरे में चला गया था।

पाकुड़ ने लड़की का छोटा बैग और पानी की बोतल कार से निकाल कर छोटे कमरे में रख दी। कमरे की बत्ती जला दी। लड़की ने चारों ओर देखा। कमरे के एक तरपफ दो बड़े सोपफे पड़े थे। दीवार से लगी सैटी थी। दोनों सोपफों के बीच गोल मेज थी जिसके पैर भी गोल थे। कमरे के दूसरी तरपफ खाने की गोल मेज थी... उसके चारों ओर चार कुर्सियाँ थीं। पूरे कमरे की लम्बाई में एक दीवार थी। इसमें काँच के पल्लों वाली तीन खिड़कियाँ बनी थीं। ये खिड़कियाँ ऊँची और चौड़ी थीं। दो खिड़कियों के पल्ले बंद थे। एक का खुला था। कमरे में एक और छोटा दरवाजा था जो बाहर खुले में निकलता था। उसके पार पाकुड़ का कमरा था।

'तुम यहाँ सो सकती हो' पाकुड़ ने सैटी की ओर इशारा किया 'अभी पफौरन कुछ खाओगी या कुछ पीना चाहोगी?'

'मैं सबसे पहले नहाऊँगी, पिफर अगर तुम मुझे ज्यादा सी गर्म काली कापफी पिला सको।'

पाकुड़ ने साथ के बाथरूम की ओर इशारा किया 'तुम्हारे पास तौलिया नहीं

होगा।'

लड़की ने झुककर बैग से एक तौलिया निकाला। कुछ कपड़े भी, जो पहली नजर में ही सोने वाले दिखते थे।

'सिपर्फ तुम दो लोग हो?' उसने पूछा

'हाँ'

'वह यहाँ क्या करता है?'

'किताबें पढ़ता है... पुराने काग़ज पलटता है। उन दस कब्रों के बारे में लिखने के लिए रखा गया है' पाकुड़ ने खिड़की के बाहर सीमेट्री की ओर इशारा किया 'मैं कापफी बनाता हूँ' छोटे दरवाजे से वह बाहर निकल गया।

लड़की उस खिड़की पर आयी जिधर पाकुड़ ने इशारा किया था। वह बंद थी। काँच के बाहर पूरी सीमेट्री दिख रही थी। एक ओर ऊँचे, बड़े और मजबूत पत्थरों से बने मकबरों वाली कब्रें थीं। उनसे थोड़ी दूर उखड़े या समतल पत्थरों वाली एक दूसरे से सटती हुयी छोटी कब्रें थीं। लड़की ने गिनीं। वे दस थीं। वे पुरानी होकर टूट चुकी थीं। उनके पत्थरों के बीच में द्घास उग आयी थी। उन पर शाम की तेज हवा में टूटते पत्ते गिर रहे थे। उन पर समुद्र किनारे की उठायी हुयी बोटी लेकर भागे हुए कौए लड़ रहे थे। उन पर खुदे नामों में नमक जमा हो चुका था। वे धुंधले होकर न पढ़े जा सकने वाले हो गए थे।

'क्या द्घोड़े मर गए थे?' लड़की ने सुना। उसे लगा किसी कब्र के अंदर से कोई बोला। वह उस कब्र को पहचानने की कोशिश करने लगी। पिफर पूछा किसी ने। अब द्घूम कर देखा उसने। दरवाजे पर वामगुल खड़ा था। खिड़की छोड़कर दरवाजे तक आयी वह। अब वह उसे ठीक से देख सकती थी।

'पता नहीं... शायद मर ही गए होंगे।'

'वह लड़का?'

'वह जिं़दा था... पर एक द्घोड़े के नीचे दब गया था।'

'पुल पूरी तरह बंद हो गया था?'

'हाँ... बहुत सा चावल पुल पर पफैल गया था', लड़की ने वामगुल की उंगलियाँ देखीं। उसने उस उंगली को पहचानने की कोशिश की जिसे वह शीशी में डालता

होगा।

'तुम यहाँ इत्मिनान से रुक सकती हो' वामगुल अभी दरवाजे पर ही था।

'वह कॉपफी ला रहा है' लड़की एक ओर हट गयी। वामगुल अंदर आ गया।

'मैं नहा लूँ तब तक?' लड़की ने विनम्रता से पूछा।

'मैं बाहर हूँ' वामगुल कमरे से बाहर निकलने लगा।

'नहीं... आप रुकिए। बस मैं अभी आयी' लड़की तौलिया और कपड़े लेकर बाथरूम में चली गयी। वह लौटी तो उसके कपड़े बदले हुए थे। वह ढीले कपड़ों में थी। इसकी कमीज में कई जेबें थीं। उसकी तरपफ वामगुल की पीठ थी। वह खिड़की पर खड़ा चर्च और सीमेट्री की दीवार के पास लगे तीन बेहद द्घने पेड़ों पर चीखते हुए परिन्दों को देख रहा था। वह भी पास आकर परिन्दों को देखने लगी। वे पेड़ों के ऊपर खुले नीले आकाश में ऊपर तक जाते पिफर नीचे आते। उनकी आवाजों से ज्यादा शोर उनके पंखों के पफड़पफड़ाने का था।

कॉपफी की तेज महक के साथ पाकुड़ अंदर आया। उसके हाथ में ट्रे थी। उस पर दो बड़े मग रखे थे। उनसे धुंआ उठ रहा था। उसने ट्रे बीच की गोल मेज पर रख दी। वे दोनों खिड़की से हटकर आमने सामने सोपफे पर बैठ गए। पाकुड़ ने दोनों बंद खिड़कियों के पल्ले भी खोल दिए। तेज और ठंडी हवा का झोंका अंदर आया।

'वही हुआ जो तुम कह रही थीं' पाकुड़ ने एक मग उठाया और लड़की को पकड़ा दिया। लड़की ने हैरानी से देखा उसे। पाकुड़ ने दूसरा मग वामगुल को दिया। कोने में रखे दो छोटे स्टूल उठाकर उनके सामने रख दिए पिफर झुककर लड़की के कान में पफुसपफुसाते हुए बोला 'सुनते ही वह चीखने लगा। देर तक गंदी गालियाँ देता रहा। छिनार है वह... झूठ बोलती है... उसे अब रोज नए मर्दों की जरूरत है। आएगी तो जिं़दा नहीं छोड़ूँगा'। पाकुड़ सीधा हो गया 'तुम चाहती थीं इसलिए मैंने चाँद की बुढ़िया से यह भी कह दिया था। उसी ने अभी मुझे यह सब बताया।'

लड़की के होठ काँपे। आँखों में पानी आ गया। उसने अपना चेहरा मग में द्घुसा दिया। कमरे में गहरी खामोशी छा गयी।

'हो सकता है द्घोड़े हट गए हों' सन्नाटे में उछलती हुयी गहरी साँसों से द्घबरा कर पाकुड़ बुदबुदाया 'हम दूरबीन से देख सकते हैं। हमें देखना चाहिए।'

लड़की दूरबीन के बारे में नहीं जानती थी। उसने वामगुल को देखा।

'ऐसा हो सकता है' वामगुल ने कापफी के द्घूंट लिए। कमरे में पिफर खामोशी हो गयी।

'खाने में क्या बनाऊँ?' पाकुड़ ने पिफर द्घबरा कर पूछा। किसी ने जवाब नहीं दिया।

'सिपर्फ इसी समुद्र में मिलने वाले खास झींगे भूनता हूं। नारियल की चटनी और साबूदाने की खिचड़ी भी बनाता हूँ।'

दोनों में कोई नहीं बोला।

'मैं अपनी औरत को भी बुला लेता हूँ' उसने वामगुल को देखा, 'भुने हुए झींगे उसे बहुत पसंद हैं। पिफर उसे मेरे बनाए शंख भी ले जाने हैं', सर हिलाता हुआ पाकुड़ छोटे दरवाजे से बाहर चला गया। कुछ देर में शंख की आवाज आयी जो तैरती हुयी दूर तक चली गयी।

'क्या वह सच कह रहा था?' लड़की ने पूछा 'हम देख सकते हैं?'

'हाँ... कापफी खत्म करके चलते हैं'

कुछ ही देर में वामगुल ने कापफी खत्म कर दी। लड़की ने भी जल्दी जल्दी कुछ द्घूंट लिए पिफर मग स्टूल पर रखकर उठ गयी। वामगुल भी उठ गया। वह कमरे से बाहर आया। बरामदे की दो सीढ़ियाँ उतर कर कच्चे रास्ते से होता हुआ एटिक की सीढ़ियों तक आ गया। द्घूमकर देखा उसने। लड़की पीछे थी। वह कुछ क्षण रुका रहा, अगर सीढ़ियों पर वह साथ चढ़ना चाहे। लड़की पीछे ही खड़ी रही। वामगुल सीढ़ियाँ चढ़ने लगा। उसके पीछे लड़की भी सीढ़ियों पर आ गयी।

सीढ़ियाँ गोलाई में द्घूमती हुयी ऊपर चली गयी थीं। उन पर लगे पत्थर कई जगह उखड़ गए थे। जहाँ पत्थर उखड़े हुए थे वहाँ भुरभुरी मिट्टी और छोटे कंकर थे। दीवारों को नमक ने कई जगह गला कर खुरदुरा कर दिया था। वे एक छोटे कमरे में जाती हुयी दिख रही थीं।

वामगुल एटिक में आकर एक ओर खड़ा हो गया। लड़की पीछे आयी। वह भी एक ओर खड़ी हो गयी। उसने चारों ओर निगाह दौड़ायी। कमरे की सामने वाली बड़ी खिड़की से चाँदनी अंदर गिर रही थी। उसकी रोशनी में कमरे का पुरानापन दिख रहा था। दीवारों के कोनों पर जाले लगे थे। पुराने काग़जों की गंध थी। पफर्श पर बिखरी धूल और हवाओं का छोर नमक था। कुछ खाली डिब्बे, बिजली के तारों के टुकड़े, पुराने पफोटो ेम, पीतल का बड़ा हुक्का, टूटी कुर्सियाँ आदि पड़े थे। कमरे में दो खिड़कियाँ थीं। एक सामने और एक पीछे जो बंद थी। सामने खिड़की के पास स्टैन्ड पर एक लम्बी दूरबीन रखी थी। स्टैन्ड में पहिए थे। उसे कहीं भी ले जाया जा सकता था। दूरबीन से देखने के लिए स्टैन्ड के पास एक स्टूल रखा था।

वामगुल स्टूल पर बैठ गया। उसे लगा कि लड़की पहले द्घोड़े और पुल देखना चाहेगी।

'मैं समुद्र देखूँगी' लड़की ने कहा।

वामगुल स्टूल से उठ गया। लड़की स्टूल पर बैठ गयी

अनाड़ी की तरह उसने अपनी दोनों आँखें दूरबीन के लेन्स से चिपकायीं पिफर एक झटके से अपना सर पीछे खींच लिया। हरहराता हुआ समुद्र उसकी आँखों में द्घुस गया था।

'पहली बार ऐसा ही होता है। हम होते नहीं... पर हमें लगता है हम समुद्र के अंदर हैं... बिल्कुल उसी तरह जिस तरह हमें पहली बार अपने समय को देखने पर लगता है।' वाम ने दूरबीन पर लगी एक छोटी गोल चरखी द्घुमायी। लड़की ने सर पिफर दूरबीन से सटा दिया। वाम चरखी द्घुमा रहा था। एक जगह लड़की ने हाथ उठाकर उसे रोक दिया। अब वह समुद्र को थोड़ा दूर से देख पा रही थी, जैसे उसे देखा जाता है। लड़की ने अब धीरे-धीरे दूरबीन को द्घुमाना शुरू किया। एक जगह उसने दूरबीन रोक दी। उसे पानी में लकड़ी के कुछ खम्भे दिखे। वाम समझ गया वह क्या देख रही है।

'यह पुराना बंदरगाह था जब यहाँ सिपर्फ यह इमारत थी। जहाज यहां रुकते थे। यह लकड़ी अभी तक खराब नहीं हुयी है।'

लड़की को लहरों पर उछलती तीन नावें दिखीं। चट्टानों पर बैठे केकड़े दिखे। बहुत बड़े सितारों से भरा हुआ नीला आकाश दिखा।

लड़की ने दूरबीन को थोड़ा बाएँ द्घुमाया तो उसे बस्ती दिखने लगी। उल्टी पड़ी रंगीन तलों वाली नावें... पफैले हुए जाल... मछलियों के ढेर पर सोते हुए आदमी दिखे। वाम ने दूरबीन को थोड़ा और पफोकस किया। लड़की को किनारे की चौड़ी सड़क... डूप्ले की मूर्ति... द्घरों की छतें... खिड़कियाँ दिखने लगीं। खिड़कियों के अंदर रोशनियों में चलते पिफरते लोग दिखने लगे।

'तुम्हें नीले रंग की कोई खिड़की दिखे तो बताना' वाम ने कहा। लड़की ने दूरबीन को द्घरों के चारों तरपफ द्घुमाकर देखा। दूसरे रंग थे... नीला नहीं था।

'शायद रंग बदल गया हो' लड़की ने कहा।

वाम कुछ नहीं बोला। वह दूसरी तरपफ की बंद खिड़की पर आया। इस खिड़की से पुल दिखता था। खिड़की के पल्ले बंद थे। उन पर जमी धूल बता रही थी कि खिड़की को सालों से खोला नहीं गया है।

वाम ने की। पफर्श पर पड़ी कपड़े की कतरनों को उठाकर धूल सापफ धूल सापफ करने के बाद वह खिड़की के पल्लों को खींच कर खोलने की कोशिश करने लगा। लड़की द्घोड़ों को भूल चुकी थी। वह दूरबीन से पूरी सृष्टि देख रही थी। उसने खेतों में पड़ा नमक देखा, चर्च की मीनारों के पार सात आँषियों को तारों में देखा, चाँद को देखा। उसे चाँद में रहने वाली बुढ़िया बहुत सापफ दिखायी दी। वह सचमुच हँस रही थी। उसने उसके दो दाँत भी देखे। उसने देखा बुढ़िया उसे इशारे से चाँद पर बुला रही थी। लड़की की साँस पफूलने लगी। उसे लगा उसने कुछ देर और बुढ़िया को देखा तो वह खिड़की से कूद जाएगी। द्घबराकर वह स्टूल से उठ गयी।

तेज आवाज के साथ खिड़की के पल्ले खुल गए। हवा का एक झोंका अंदर आया। कुछ देर खिड़की से छूटी धूल हवा में उड़ी पिफर धीरे-धीरे पफर्श की धूल में चली गयी। लड़की वाम के पास आ गयी। वामगुल ने स्टैन्ड खींचकर दूरबीन को इस खिड़की के पास रख दिया। स्टूल भी उठाकर रखा। स्टूल पर बैठकर उसने आँखें लेन्स से चिपका दीं। चरखी द्घुमाते हुए उसने दूरबीन को पफोकस किया। कुछ देर दूरबीन से देखता रहा पिफर सर उठाया उसने।

'वे सचमुच मर गए हैं। उनके नथुनों से खून बहता दिख रहा है। लड़का अभी तक द्घोड़े के नीचे दबा है' वाम स्टूल से उठ गया 'तुम चाहो तो देख लो।'

लड़की की दिलचस्पी पुल में खत्म हो गयी थी। वह वहाँ से हटकर उस दीवार से चिपक कर खड़ी हो गयी जिस पर पेंटिंग लटक रही थी।

चाँद अब और ऊपर आ गया था। उसकी रोशनी पूरे एटिक में भर चुकी थी। लड़की इस रोशनी को देख रही थी। पेंटिंग की लड़की उसके सर के ठीक ऊपर थी। उसकी गर्दन एक ओर जरा सी झुकी थी। इस तरह, कि वह सीधे वाम को देख रही थी। दीवार में चिपकी लड़की की गर्दन एक ओर झुकी थी। वह भी वाम को देख रही थी। वाम ने एक क्षण में पहचान लिया। यह वही थी। बिल्कुल वही। एक क्षण के लिए वाम का चेहरा सपफेद हो गया। वह थोड़ा आगे बढ़ा। दीवार से चिपकी और रोशनी में डूबी हुयी लड़की को लगा वाम उसके पास आना चाहता है। वाम ने दीवार पर दोनों हथेलियाँ रखकर हाथ पूरे खींच लिए। लड़की अब वाम के हाथों के नीचे थी। उदास आँखों से वाम पेंटिंग की लड़की को देखने लगा। पलंग पर वह निर्वसन थी। उसकी पूरी देह मफ़ांसल थी। मजबूत चिकनी और चमकती हुयी। हल्के पीले रंग की सिल्क की चादर पर कत्थई रंग के दो ऊँचे तकियों के सहारे वह लेटी थी। उसके द्घुंद्घराले बाल सर के दोनों ओर पड़े थे। उसका गोल और मफ़ांस से भरा दांया हाथ सर के पीछे था। इस तरह हाथ उठ जाने से उसके कंधे के नीचे का हिस्सा दिख रहा था। वह सपाट, सापफ और बिना सलवटों का था। उसके दो नन्हें स्तन ऊपर की ओर उठे और दोनों ओर थोड़ा सा झुके थे। उसका बांया हाथ पैरों के बीच था। इस हाथ की उंगलियाँ मुड़ी थीं। अंगूठा उससे अलग था। पफैला हुआ दांया पैर द्घुटने से अंदर की ओर थोड़ा मुड़ा था। इस द्घुटने के ऊपर पूरा बांया पैर रखा हुआ था। उसकी जांद्घें मोटी और केले के तने की तरह गोल और चिकनी थीं। उसके हल्के रोएं चमक रहे थे। उसका बांया पंजा दिख रहा था। तलुए की गद्दी अंदर धंसी हुयी थी। उसकी नाभि तालाब की तरह गहरी थी। स्तनों और नाभि के बीच भी एक गड्ढा था। उस पर एक चमक ठहरी हुयी थी। उसके सामने की दीवार पर एक लैंडस्केप लगा था। कत्थई, हल्के हरे और नीले रंग का। उसमें कुछ कच्चे मकान... धूल भरी कच्ची सड़क... तीन पेड़... थोड़ा सा पानी और उसके बाद द्घास के मैदान थे। लड़की के नन्हें और गोल चेहरे पर निर्वस्त्रा होने की कोई लज्जा नहीं थी। वहाँ एक ठंडा दर्प था। अपने सौंदर्य, अपनी तराशी हुयी देह की शक्ति का बोध और आश्वस्ति थी। उसमें विजय और अभिमान का अहंकार था। वह चित्राकार को एक साम्राज्ञी की तरह कृतज्ञ करने के भाव से देख रही थी। उसकी जांद्घों के मोड़ और होंठ की मुस्कराहट चित्राकार की उपस्थिति को नगण्य बता रही थी। उसकी रोशनी पफेंकती देह बता रही थी कि वह यह जानती है कि उसका जीवन अपने पवित्रातम, अपने श्रेष्ठतम रूप में उसकी देह में ही है। इसीलिए उसकी आँखों में प्रेम नहीं था... उत्सुकता... शांति... वीतराग नहीं था। मैथुन के पहले की उत्तेजना या बाद की शिथिलता भी नहीं थी। उसके चेहरे पर जीवन को समझ लेने की सतर्क चेतना थी। देह में उस आदिमराग का निरंकुश नर्तन था जहाँ सब कुछ देहातीत हो जाता था।

वाम ने न८ार झुका कर दीवार से चिपकी लड़की को देखा। वाम के अंदर उसके लिए गहरी करुणा जागी। लड़की को पता नहीं था कि दो सौ साल पहले उसकी देह बनायी जा चुकी है।

'तुमने कभी प्रेम किया है?' वाम पफुसपफुसाया

'नहीं'... लड़की ने कहा 'मुझे प्रेम से द्घृणा है।'

वाम उदास हो गया

'तुमको दो सौ साल पहले भी प्रेम से द्घृणा थी' वाम पिफर पफुसपफुसाया। इस बार उसकी पफुसपफुसाहट, उसकी भारी साँसों, गहरी उदासी और उन दोनों के बीच पसरे चाँदनी के दलदल को पार नहीं कर पायी। लड़की ने सुना नहीं। वामगुल धीमी और रुकी हुयी आवाज में बोल रहा था।

'हम सब, हर समय में होते हैं... पर हमें यह सच पता नहीं होता। बहुत पहले बीत चुके किसी समय को हम हमेशा एक अजनबी की तरह देखते हैं, हालांकि हम उसमें जी चुके होते हैं... बिल्कुल उसी तरह, जैसे इस समय में जी रहे होते हैं। सब कुछ हमेशा वैसा ही होता है जैसा होता आया था। कहीं कुछ नहीं बदलता। हम हर समय का सबसे बड़ा सच होते हैं, पिफर भी कोई समय हमारा या हमारे लिए नहीं होता। हमसे नहीं पहचाना जाता, उसी तरह, जैसे समुद्र लहरों से होता है, पर किसी लहर से नहीं पहचाना जाता। हजारों सालों से हर लहर बार-बार उसी समुद्र में, उसी तरह लौटती है, पर वह समुद्र नहीं है। इसी तरह हम हर समय में बार-बार लौटते हैं, पर कोई समय नहीं हैं।''

लड़की ने वामगुल के मुँह से समुद्र सुना। लड़की ने दूरबीन से समुद्र देखा था। लड़की समुद्र का हरहराता शोर सुन रही थी।

वामगुल के पार नीला आकाश था। उसमें भूने जाते झींगों का धुंआ था... मसालों की गंध थी... शंख से छूटी प्रेम की गुहार थी और मटमैले चर्च की निस्पन्द दीवारों से ऊबा हुआ ईश्वर था।

'मुझे प्रेम से द्घृणा है' लड़की ने दोहराया 'मैंने अपनी माँ को प्रेम में नष्ट होते देखा है। उस नष्ट होने में भी उसे खुशी और गर्व महसूस करते देखा है। कितना कुशल हत्यारा होता है महान प्रेम, जो उसको भी मरने का सुख देता है, जिसकी वह हत्या कर रहा होता है। ऐसा महान प्रेम सिपर्फ मनोरोगी कर सकता है। मेरी माँ मनोरोगी थी। उसने महान प्रेम किया था। उसका चिकित्सक मनोरोगी था। वही अब मेरा पति है। वह भी मुझसे एक महान प्रेम करता है।'

लड़की दीवार से चिपक कर सरकती हुयी पफर्श पर बैठ गयी। उसने अपने द्घुटने मोड़ लिए। चेहरा द्घुटनों पर टिका दिया। उसकी आँखों का पानी सतह पर आ गया था। दीवार से हटकर वाम स्टूल पर बैठ गया। लड़की कुछ देर आँखों के पानी के साथ उसे देखती रही पिफर बोलने लगी।

'तीसरी ही रात मेरे होठ चूमने के बाद अचानक वह मेरे सामने द्घुटनों के बल बैठ गया। वह गिड़गिड़ा रहा था 'तुम्हारे होठ चूमने के बाद मुझे विश्वास हो गया कि मैं अपने मरीजों की बीमार, पीली और दुर्गंध भरी आत्माओं से भी ज्यादा प्रेम तुमसे करता हूँ। बिल्कुल अभी, जब मैंने तुम्हारे होठ अपने होठों में दबाए, तो मुझे समझ में आया कि जीवन तो बस यही है। इसी तरह मैं तुम्हारे होठ चूमता लेटा रहूँ। कितना रस है इनमें। तुम्हारा कितना दुर्भाग्य है कि तुम्हें अपने ही होठों का स्वाद नहीं पता। जैसे एक ताजा आड़ू या पिफर शराब में भीगा हुआ सख्त केक का टुकड़ा। मैं कभी कभी कितना लाचार महसूस करता हूँ। जैसे इस समय। काश मैं इन्हें काटकर तुम्हारे मुँह में दे सकता। और पिफर होंठ ही क्यों? तुम्हारी छातियाँ... जांद्घ... पंजे।' वह उसी तरह काँपते हुए गिड़गिड़ा रहा था। मैंने उसके बाल छुए। वह एक कुत्ते के पिल्ले की तरह चुपचाप उठ गया। उसका नीचे का होंठ लटक गया था। थूक की एक धार उसके लटके होंठ से गिर रही थी।' लड़की की आँखों से बूंदें गिरीं। लड़की हाँपफने लगी। उसने तेज गहरी साँसें लीं। अपना सर द्घुटनों से हटाकर उसने दीवार से टिका दिया। कुछ देर वह चुप रही। अपनी कमीज की बड़ी जेब में हाथ डालकर एक चाकलेट

निकाली। उसका काग़ज उतारकर उसका बड़ा हिस्सा मुँह में रख लिया। उसने अपना चेहरा पोछा पिफर थकी और धीमी आवाज में बोली। 'उसका महान प्रेम लार के साथ बह रहा था। प्रेम उसकी हत्या कर चुका था। प्रेम सिपर्फ हत्या करता है।'

'प्रेम आत्महत्या भी करता है... बल्कि अक्सर अचानक मर भी जाता है। क्यों, यह पता नहीं होता। और जब ऐसा होता है तब कुछ भी नहीं बचता, सिवाय अपने ही जीवन के प्रति एक गहरे अविश्वास के।' वामगुल स्टूल से उतर कर पफर्श पर बैठ गया। उसने अपने दोनों पैर पफैला लिए। एक बाँह स्टूल पर रख ली। उसकी दूसरी हथेली पफर्श पर थी।

'इसलिए तुम मकड़ी से उंगली डसवाते हो।... दस सिपाहियों का प्रशस्ति इतिहास लिखते हो। समय के आर-पार देख लेते हो।' लड़की ने वाम के पफैले पैर के पंजे छुए। उसकी उंगलियों पर चिपकी चाकलेट का कत्थई रंग वाम के पंजों पर लग गया।

'मुझे बताओ क्या हुआ था?' अब वह काया और माया के संधिस्थल से बोल रही थी।

वाम ने कुछ क्षण के लिए आँखें बंद कीं पिफर खोल ली।

'उस शाम हवन के धुंए और द्घी की गिरती हुयी धार के पीछे मुझे उसकी आँखें दिख रही थीं। उनमें मृत्यु की छूटी हुयी उदासी बाकी थी। उसे पता था कि मैं कुंड में हव्य डालने इसलिए बैठा हूँ कि उसे देख सकूँ। बीच में क्षण भर के लिए कभी उसकी आँखें मुझ पर रुकतीं पिफर कुंड की अग्नि देखने लगतीं। धीरे-धीरे उसकी आँखों के चारों ओर पसीने की बूंदें आ गयीं। उसकी खाल लाल होने लगी। जहाँ वह बैठी थी उसके पीछे सीढ़ियाँ ऊपर एक कमरे में जा रही थीं। हवन से पहले मैंने उसी कमरे में उससे कहा था। 'मुझे अपना स्तन देखने दो।' वह एक बड़ी चादर लपेटे थी और नहाने जा रही थी। मैं अपलक उसकी आँखों में देख रहा था। उसने कुछ क्षण मुझे देखा पिफर कंधे के एक ओर की चादर सरका दी। हल्के उजाले में देखा मैंने। वह नन्हा स्तन चन्दन लेपित था। उससे एक आभा पफूट रही थी। एक अप्रतिम आलोक। 'तेरा यह स्तन किसी ने नहीं पाया इसलिए यह सुप्त है। यस्ते स्तनः शशयो... जो किसी को नहीं मिला मुझे लेने दे।' बुदबुदाते हुए मैं थोड़ा झुका। मैंने उसके स्तन पर अपने होंठ कुछ देर रखे। रखे रहा, पिफर हटा लिए। मैंने सर उठाकर देखा। उसकी आँखें भीग गयी थीं। उनमें उदासी थी... करुणा थी... ममता थी... वैसी ही जैसी हवन के धुंए के पीछे दिखती उसकी आँखों में थी' वामगुल ने एक साँस ली। 'हवन के बाद मैं छत पर चला आया। सूनी आँखों से मैं सामने पफैली, खाली बियाबान छतों को देख रहा था। उन पर सदियों से कोई नहीं गुजरा था। उस पर कुछ नहीं था, सिवाय पक्षियों के टूटे पंख, कुछ टूटे नक्षत्रा, न सुनी गयी प्रार्थनाएँ, न दिए गए पत्रा और मृत्यु के विलम्बित राग के। हवन खत्म होने के बाद मुझे ढूंढ़ते हुए वह ऊपर आयी। मेरे पास ही छत की मुंडेर पर कोहनियाँ टेक कर खड़ी हो गयी।

'सब गए?' मैंने पूछा

'हाँ'

'तुम रुकोगे?' उसने मेरी तरपफ देखा। वह भी मुंडेर से हट गयी। हवन के धुंए और हवा की गंध उसकी देह में भरी थी। वह थक चुकी थी। गहरे दुख में थी। मेरे अंदर अचानक ऐसी देह के लिए गहरी लालसा जागी। वह कुछ देर मेरी आँखों में देखती रही।

'तुम जाओ अब' उसने कहा। मैंने सर हिला दिया। हम नीचे उतर आए। पर मुझे बाहर तक छोड़ने आयी। दरवाजे के हरसिंगार की शाखों के नीचे उसने मेरा हाथ पकड़ लिया। मेरे होठों पर अपने होठ रखे पिफर हटा लिए।

'अब जीवन में मुझसे कभी मत मिलना' वह पफुसपफुसायी और चली गयी। उसने हवन के बाद सबको कुछ दिया था। यह मेरा दाय था।

'पूरी रात मैं सड़कों पर द्घूमता रहा। नगण्य... अस्तित्वहीन... निरर्थक। जागृति और स्वप्न... स्मृति और विस्मरण... आत्म और अनात्म के बीच। जीवन पर, उस सब पर विश्वास करने की कोशिश में जो हुआ था।

वामगुल ने एक सफ़ांस ली। 'मैं उससे पिफर कभी नहीं मिला' उसने सूखे होठों पर जीभ पफेरी। अपनी बाँह स्टूल से हटाकर जमीन पर रखी। अब उसकी दोनों हथेलियाँ पफर्श पर थीं। चौपाए जानवर की तरह द्घुटनों के बल चलते हुए वह लड़की के बिल्कुल पास आ गया। उसकी कमीज के ऊपर के दो बटन खोले उसने। सर झुका कर लड़की का स्तन चूमा 'बिल्कुल ऐसा ही था वह' वह बुदबुदाया।

द्घोड़ों के हिनहिनाने की आवाज छायी।

'वे ज़िंदा हैं' लड़की झुके हुए वाम के कान में धीरे से बोली। उसकी गर्म साँस के साथ दो गर्म बूंदें भी वाम की गर्दन पर गिरीं। वाम ने सर उठाया। लड़की से अलग होकर उसी तरह द्घुटनों के बल चलता हुआ वापस लौट आया।

सीढ़ियों पर तेजी से चढ़ने की आवाज आयी। दौड़ता हुआ पाकुड़ एटिक के दरवाजे पर रुक गया। बुरी तरह हॉपफ रहा था वह।

'बुढ़िया ने उनसे कह दिया। वे आ गए हैं।'