30 Shades of Bela - 18 in Hindi Moral Stories by Jayanti Ranganathan books and stories PDF | 30 शेड्स ऑफ बेला - 18

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30 शेड्स ऑफ बेला - 18

30 शेड्स ऑफ बेला

(30 दिन, तीस लेखक और एक उपन्यास)

Day 18 by Suman Bajpai सुमन बाजपेई

कैनवास पर उभरने लगे हैं कुछ रंग

रिया जैसे ही पार्क से लौटी उसने उसने कसकर उसे सीने से लगा लिया। “मम्मी, ” कह कर वह भी उसे बेतहाशा प्यार करने लगी। “ आई मिस्ड यू मम्मी।”

“ आई मिस्ड यू बेटा। सॉरी मुझे आपको छोड़कर नहीं जाना चाहिए था। अब कभी ऐसा नहीं करूंगी।” बेशक नाना-नानी के साथ मस्ती कर वह बहुत चहचहाते हुए लौटी थी, पर उसके चेहरे पर एक अजीब तरह की थकावट थी। उसकी नन्ही सी कली कैसे कुम्हला गई है। आशा मां और पापा के आगे एक फीकी-सी मुस्कान फेंक वह रिया को लेकर अपने कमरे में चली गई। इस समय वह अकेले उसके साथ वक्त बिताना चाहती थी। वैसे भी उसे इस हालत में अकेले छोड़कर बनारस जाना उसे एक अपराधबोध से भर रहा था। छि...क्या जरूरत थी उसे बनारस जाने की, क्या करेगी वह भीतरी तहों को उघाड़कर, वैसे भी खुल तो गईं इतनी बंद परतें...परतों को ज्यादा उघाड़ो तब भी खरोंचें खुद को लगती ही हैं।

आखिर कब तक वह रिश्तों के अनबूझे रहस्यों को खोलने के लिए यहां-वहां भागती रहेगी। अपने काम के साथ-साथ उसे अब रिया पर भी ध्यान देना होगा। और समीर...उसके बारे में अखिर बेला सोच क्यों नहीं पा रही है...क्या वह उसके जीवन के अहम हिस्सा नहीं है...या वह उसे अपने पास नहीं आने देना चाहती...कहां हाथ बढ़ाया है उसने कभी समीर की ओर, एक अविश्वास का ही रिश्ता पनप पाया उनके बीच आज तक। वह यह भूल ही नही पा रही है कि समीर ने उसे धोखा दिया...उससे सच छुपाया.

रिया थक गई थी, इसलिए दूध और उसे दवाई पिलाकर बेला ने उसे सुला दिया था।

“आजकल बहुत ज्यादा सोचने लगी हो? किस उधेड़-बुन में लगी रहती हो? ” समीर की आवाज ने बेला को चौंका दिया। उसे पता ही नहीं चला था कि वह कब कमरे में आ गया था।

“ मैं जानता हूं कि तुम रिया को लेकर बहुत परेशान हो और जो गुत्थियां तुम्हारे सामने खुली हैं वे भी तुम्हें तंग कर रही हैं। चाहो तो बांट सकती हो मेरे साथ।”

अविश्वास से बेला ने समीर के चेहरे पर नजरें टिका दीं, मानो कुछ ढूंढने की कोशिश कर रही हो। प्यार, विश्वास, भरोसा...समीर की आंखों में कभी उसे दिखा ही नहीं...पर आज जब वह ध्यान से उसकी ओर देख रही थी तो लगा कि उसकी आंखों में ढेर सारा दर्द तैर रहा था...उसकी आंखें उसे भरोसा दिला रही थीं...बेला का मन हुआ कि समीर की मजबूत बांहों में जाकर समा जाए। बह जाने दे अपने सारी पीड़ाओं को, अपने सारे गिले-शिकवों को और अपने भीतर छिपी सारी कड़वाहट को जो उसे जीने नहीं दे रही है...आखिर उसे भी तो रोने के लिए एक कंधा चाहिए...चाहे कितना ही वह खुद को स्ट्रांग दिखाने का प्रयास करे पर एक सहारे की चाह तो उसे भी तोड़ती रहती ही है।

“ डॉक्टर ने सलाह दी है कि रिया को एक चेंज की जरूरत है। कितने दिन हो गए हैं उसे अस्पताल के चक्कर लगाते हुए। सबको उदास और परेशान देख अकसर वह घबरा जाती है। कल भी मुझसे पूछ रही थी कि पापा क्या मैं मरने वाली हूं। इतने सारे लोगों के बीच बेशक वह एंज्वाय कर रही है, पर सबकी बातें सुन वह नॉर्मल नहीं फील कर पाती। क्या इस समय में हम तीनों का कहीं बाहर घूमने जाना रिया की बेहतरी के लिए ठीक नहीं होगा? हम दोनों की भी...” समीर ने थोड़ा झिझकते हुए कहा.

“तुम मेरे साथ नहीं जाना चाहतीं तो कोई बात नहीं... ” समीर ने एक बार फिर प्रयास किया. उसके चेहरे पर दुविधा, पीड़ा और हताशा के मिले-जुले भाव थे। सही भी तो है अपनी ही पत्नी से इतनी विनती-चिरौरी करनी पड़ी तो किसी भी पति को खुद की ही हालत पर तरस आ जाएगा।

“ठीक है, तो फिर चलते हैं न डलहौजी। वैसे भी कब से मन था वहां जाने का। अगले वीक दो छुट्टियां हैं, सेडरडे, संडे क्लब कर लेते हैं। बोलो? ” समीर के हाथों को धीरे से छूते हुए उसने कहा। समीर ने भी उतने ही प्यार से सिर हिला दिया।

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धौलाधार पर्वत श्रृंखला के साये में पांच पहाड़ियों पर बसा डलहौजी के चीड़ और देवदार के ऊंचे वृक्ष हरे रंग के अलग-अलग शेड दर्शाते हैं। सफर की थकान दूर कर उन्होंने रिसोर्ट में थोड़ी देर आराम किया और लंच कर बाहर निकल गए। रिया सुपर एक्साइटेड थी। लगातार बोले ही जा रही थी। डलहौजी आने की खुशी उसे ज्यादा थी या मम्मी-पापा के साथ होने की...पर उसे हंसते-खिलखिलाते देख बेला बहुत ही अच्छा महसूस कर रही थी। एकदम रिलैक्स...कितने दिन हो गए थे इस तरह सब कुछ भूलकर हंसे. उसने चुपके से समीर की ओर देखा, वह भी एकदम सहज लग रहा था। कोई दूसरा देखे तो यही सोचेगा कि कितनी हैप्पी फैमिली है...

धौलाधार के धवल शिखरों की अटूट श्रृंखला को देख लग रहा था मानो नीले आकाश के कागज पर प्रकृति ने हिम लिपि से कोई महाकाव्य रच दिया हो। हिम शिखरों के सामने फैली हरी-भरी पहाड़ियां महाकाव्य की व्याख्या करती हुई सी लग रही थीं। किसी ने कहा था कि डलहौजी की खूबसूरती को आत्मसात करना हो तो किसी यायावर की तरह यहां की सड़कों पर भटक जाएं। हरे-भरे वृक्षों से घिरी घुमावदार साफ-सुथरी सड़कें यूं भी सैलानियों को चहलकदमी के लिए आमंत्रित करती हैं।

रिया थोड़ी थकावट महसूस कर रही थी इसलिए वे जल्दी ही रिसोर्ट लौट आए। सोती हुई रिया के सिर को सहलाते हुए बेला फिर ख्यालों में गुम हो गई थी। समीर रिसोर्ट के लॉन में बैठा था। उसे लगता है कि इतने पड़ावों, इतने संघर्षों और इतने मोड़ों को तय करने के बावजूद उसकी जिंदगी एक खाली कैनवास की तरह है। जब-तब उस पर एक आकृति-विहीन चित्र-सा उभर आता है पर कूची न जाने कितने लोगों के हाथों में है, इसलिए जब भी जिसका दिल करता है, उस पर रंग फेंक देता है। न रंगों में कोई संयोजन है, न ही कोई मेल। कंट्रास्ट भी नहीं हैं...बस धब्बे हैं...हर रंग के धब्बे...फिर पूर्ण चित्र कैसे बनेगा। फिर कोई आकृति कैसे उभरेगी...बिना अनुपात को अगर रंगों को भी छिड़का जाए तो वे डरावने लगने लगते हैं। उसे रंग अच्छे लगते हैं, आखिर नियित मां के जीवन के एहसास उसमें में तो घुले हुए हैं न। शुक्र है कि इतने सारे रंगों के चलते उसकी जिंदगी कम से कम रंगहीन और फीकी तो नहीं, गड्डमड्ड रंगों का एक कैनवास तो है।

लेकिन बेला ने एक बार फिर अपने को झटका ...कुछ गलत सोच रही है वह...अब तो कैनवास पर उभरती आकृतियों के चेहरे स्पष्ट आने लगे हैं- दादी, नियति मां, आशा मां, पापा, इंद्रपाल, कृष, पद्मा...तो फिर, उसने स्वयं को मथा...हां एक चेहरा अभी भी नहीं है. बेढंगी आकृतियों में भी नहीं, उसका कोई रंग नहीं है...तो क्या वह उसकी जिंदगी का हिस्सा नहीं है? क्यों नहीं दिख रहे हो तुम ?

“ कहां हो तुम समीर?” अचानक उसके मुंह से निकला। पर इतनी जल्दी उससे उम्मीद करना बेला के लिए संभव नहीं है। पर उसे संबंध ठीक करने ही होंगे।

सही कहता है समीर वी डोंट गिव टाइम टू इच-अदर। इसीलिए शायद वह उसे समझ ही नहीं पाई है। आज रिया का ख्याल रखते हुए, उसके साथ खेलते हुए और बेला की भी केयर करते हुए समीर का उसने एक नया ही रूप देखा है। गलत थी वह...वह रिया से बहुत प्यार करता है और शायद उससे भी...

“ उसे संबंध ठीक करने ही होंगे। आखिर कब तक वह केवल संबंधों को संवारते हुआ पूरी जिंदगी बिता देगी, सब कुछ सहज एक दिशा में चलने के लिए जरूरी है कि तुम भी मेरी जिंदगी में हो समीर। ” बेला ने खुद से कहा.

वह समीर के पास बाहर लॉन में जाने के लिए उठी। समीर किसी से फोन पर बात कर रहा था। समीर की आवाज उसे स्पष्ट सुनाई दे रही थी—तुम्हें पता नहीं है तुमने मेरे लिए क्या किया है...आइ रियली एडमायर यू।

समीर किससे बात कर रहा है? किसी महिला से? कौन है वो?

समीर फोन पर कुछ चहक कर बोल रहा था—मैं मुंबई लौटते ही तुमसे मिलूंगा। तुम अपना ध्यान रखना... पद्मा...