Jindagi se mulakat - 4 in Hindi Fiction Stories by Rajshree books and stories PDF | जिंदगी से मुलाकात - भाग 4

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जिंदगी से मुलाकात - भाग 4

रिया को आज पूरी रात नींद कहां आने वाली थी उसका दिमाग तो जीवन के 10 मिनट की बात पर ही अटका हुआ था ।
आकाश में चांद साफ-साफ नजर आ रहा था उस चांद की रोशनी में आँँसु मोतियों से चमक रहे थे।
उसका मन उसका दिमाग सिर्फ जीवन के ख्यालों में उलझा हुआ था।
रिया जगह बदल के सोने की बहुत कोशिश कर रही थी पर उसका चैन कब का उड चुका था।
अचानक उसके सीने में दर्द होने लगा उसने सिने पर कसके हाथ पकड़ लिया।
मैंने अगर माफी मांगी तो इतना दर्द क्यों? इंसान जब भी कभी दर्द में होता है तो गुस्सा दूसरो पर निकलता
है लेकिन अस्सल में वो गुस्सा अपने आप पर होता है।
रिया भी कुछ तो ऐसा ही कर रही थी अपना गुस्सा
आजू बाजू के बेजान पड़ी चीजों पर निकाल
कर जोर जोर से चिल्लाने रोने लगी।
कहां हो तुम जीवन? प्लीज आ जाओ ना मेरे पास? मान लिया सारी गलती मेरी थी? अब तो मुझे माफ कर दो।
रिया खुद के मन के साथ ही चल रही बातचीत में और भी कमजोर पड़ती जा रही थी।
रिया के आंसुओं को पोछने वाला उसको सहारा देने वाला वहां कोई नहीं था।
जब इंसान अकेला होता है तो उसे खुद के दर्द के साथ ही समझौता कर लेना पड़ता है और एक बार समझौता कर लेने के बाद उसको उसके दर्द के कोई मायने नहीं उरते।
रिया रो रो के थक गई उसकी आंख कब लग गई उसे पता भी नहीं चला। चांद भी बादलों में कुछ देर के लिए छुप गया।

आधी रात गुजर गई।
बाहर सुकून भरी शांति थी, रातकीड़े किर-किर की आवाज के साथ गा रहे थे और पेड़ों के पत्ते हवा की वजह से जोर-जोर से हिल रहे थे।
चांद भी लिपाछिपी खेलने के मूड में था अपना आधा सिर उसने बादलों से बाहर निकाल लिया था।
अचानक रिया के कमरे का दरवाजा खुला एक परछाई रोशनी के साथ आगे चलकर आयी।
रिया के चेहरे पर तकलीफ थी पर तब भी उसके चेहरे की खूबसूरतता कम नहीं हुई थी।
कंधे तक बिखरे हुए बाल, गुलाबी होंठ, बड़ी गहरी आंखें , नाजुक हाथ, गले के ठीक बिचोबीच तील
इतनी सुंदरता देख वह परछाई मुस्कुराई।
वह परछाई उसके नजदीक जाने लगी और भी नजदीक। उसने उसके होठों को अपने होठों से गुलाब की कली की तरह चुम लिया।
उस परछाई ने उसके और भी नजदीक जाकर कान में फुसफुसाया- "I love you Riya." तुम सिर्फ मेरी हो।
रिया ने आंखें खोली उसकी आंखों मे आंसू थे।
अचानक जीवन को सामने देख वो चौक गई।
उसने उसके गालों को कस के पकड़ लिया-
"आ गए तुम...."
जीवन मुस्कुराने लगा।
रिया उठके बिस्तर पर बैठ गयी।
रिया जीवन की आंखों में वही प्यार खोजने की कोशिश कर रही थी जिस प्यार को वो काफी पीछे छोड़ कर आई थी।
उसने उसके दोनों गालों को कस के पकड़ लिया और उसे किस करने की कोशिश करने लगी कि तभी जीवन ने अपना हाथ उसके होठों पर रख दिया -"आज मुझे सिर्फ तुमसे बात करनी है" वो उसको एकतरफा देखने लगा उसका का मन उससे ही शिकायत कर रहा था - "क्या तुम मुझसे सच में प्यार करती हो?"
रिया को तो अपना जवाब चाहिए था बस- "क्यों? क्यों? क्यों जीवन? ऐसा क्यो?" कह के उसकी छाती पर जोर-जोर से मारने लगी। उसका गला भर आया बात करना भी मुश्किल हो रहा था पर तब भी उसने जीवन पर अपना हक जताने के लिए उसे कस के अपने बाहों में भर लिया हवा को भी इजाजत नहीं थी उसे छूने की।
"क्यों, क्यों?" "क्यों सिर्फ बात करनी है तुम्हें?" "
क्यौ सिर्फ 10 मिनट है तुम्हारे पास?"
जीवन ने भी रिया को कस के गले लगा लिया उसके पीठ पर हाथ थपथपाते हुए धीरे से बोला-"मुझे डर लगता है।"
"किस बात का डर?" रिया ने अपने आंसू पोछते हुए पूछा।
अचानक जीवन की आंखों में आंसू आ गए खुद के ओठो को दबाते हुए - "प्यार से भी ज्यादा आदत लग गई थी तुम्हारी? आदत छूटने मे कहीं साल लग गए । अगर तुम्हारी आदत फिरसे लग गई और तुम मुझे एकबार फिर छोड़ कर चली गई तो मेरी जान हमेशा हमेशा के लिए तुम्हारे साथ चली जाएगी।
रिया उसे दिलासा देते हुए अपनी बात को समझाते हुए - "नहीं... नहीं... मैं.... तुम्हें.. कही छोड़कर नहीं जाऊँगी।"
सच... जीवन की आंखे दु:ख में भी चमक उठी।
"हाँ,जीवन"
जीवन ने रिया के आंखों पर अपने हाथों का पर्दा कर उसके होठों को अपने होठों से छु लिया जो होठ आंसुओं के वजह से हल्के गीले हो चुके थे ।
जीवन ने हल्के से अपना हाथ हटाया और हाथ हटाते ही वो वहां से गायब हो गया।
रिया सपने से अचानक जाग गई और जोर जोर से रोने लगी। रिया ने दर्द को अपने अंदर समाने के लिए मुंह पर हाथ कस के पकड़ लिया जिससे कर उसका दर्द सिर्फ आंखों तक ही सीमित रहे।
रिया को पता था कि जीवन जरूर आएगा फिर क्यों इतनी तकलीफ? इतनी तकलीफ क्यों?
क्या रिया ने आज ही जीवन से बात करने की कोशिश की थी? क्या उसे सिर्फ आज लगा की उसे जीवन की कितनी जरूरत है? या फिर कोई और बात थी जिस कारण रिया को आज खुद पर से विश्वास पूरी तरह उठ चुका था।
जीवन को छोड़कर अपनी नई लाइफ के साथ रिया तो काफी खुश थी।
रिया को पता था जीवन जरूर आएगा फिर भी उसे इतना दुःख क्यों हो रहा था ?
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जीवन को छोड़ देने के बाद रिया अपने जीवन में काफी खुश थी गम करने जैसा उसके पास कुछ नहीं था कंपनी में नया औदा, कंपनी द्वारा दिया गया नया फ्लँट, आने जाने के लिए बस सब कुछ था उसके पास।
ब्रांच मैनेजर के हैसियत से लोग उसकी काफी इज्जत किया करते थे।
कंपनी को नए नए प्रोजेक्ट, फाइनेंस सिर्फ उसकी एक स्माइल के साथ दिए गए प्रेजेंटेशन से मिल जाते थे।
पर रिया उस नाव पर सवार थी जिस नाव का नाम था "नॉर्मल लाइफ" जब तक हम उस नाव पर सवार नहीं होते हमें लगता है हमारा जीवन बेकार है, हमें कुछ करना चाहिए, मैं एक नॉर्मल और हैप्पी लाइफ जीना चाहता हूं लेकिन जब हम उस नाव पर सवार होते हैं और थोड़ा दूर चले जाते हैं तब हमें पता चलता है हम काफी कुछ पीछे छोड़कर आए है।
पीछे छोड़ने की तकलीफ हमारे मन को बार-बार उसी समय में ले जाने की कोशिश करती हैं और हम जैसे जिंदगी चाहते थे वो जिंदगी जीने के बाद भी खुश नहीं रह पाते।
एक साल बाद रिया के साथ भी ऐसा ही होने लगा रिया अपनी रोजमर्रा की जिंदगी से थक चुकी थी
फिर तलाश शुरू हो गई सुकून की।
जब भी कभी वो एक्सेल शीट या प्रोग्राम बनाते बनाते
थक जाती तो उसे याद आती जीवन की।
अकेले में बैठ कर कभी-कभी घंटे निकाल दिया करती थी जीवन की याद में।
रिया और जीवन एक ही डाल पर बैठे दो परिंदे थे बस जरा एक दूसरे से रूठ गए थे।
रिया जिस कंपनी में प्रमोशन पाकर ब्रांच मैनेजर बनी थी उसी कंपनी के दूसरे ब्रांच में जीवन सॉफ्टवेयर इंजीनियर का काम कर रहा था।
जब कभी रिया अकेले में बैठे रहती तो जीवन के बारे में ही सोचा करती थी-
जीवन क्या कर रहा होगा? वह मेरे बिना खुश तो होगा ना ? जीवनी ने move on तो नहीं कर लिया होगा?
ऐसे सारे सवाल उसके मन में घर कर जाते।
फिर भी उसे उसका ज्यादा फर्क नहीं पड़ता क्योंकि आधा समय काम में ही निकल जाता एक्सेल शीट्स, प्रोग्राम बनाते बनाते हैं वो तो कभी-कभी इतना थक जाती कि बनाया हुआ खाना तक उसे खाना दुश्वार हो जाता।
दिन बीतते गए जीवन भी अपने ऑफिस में तरक्की करने लगा। जीवन अब न्यू प्रोग्राम का हेड बन चुका था।
एक बार फिर से उसने हंसना बोलना चालू कर दिया था जो चेहरा रिया के जाने के बाद मुरझा गया था अब वो फिरसे एकबार खिल चुका था ऐसे लगता था मानो जीवन एक बैचलर हैप्पी इंसान है।
दोस्तों के साथ मूवी देखने जाना, शॉपिंग करने जाना,
दोस्त की वेडिंग पार्टी अटेंड करना यह सारी खबर रिया को जीवन की फेसबुक अकाउंट से मिल जाती थी।
बहुत बार रिया ने जीवन को मैसेज भी डालें पर उसका कोई रिप्लाई नहीं आया।
"हाय जीवन कैसे हो?"
पाच दिन हो जाते थे जीवन का कोई रिप्लाई नहीं आता "क्या कर रहे हो?"
कोई जवाब नही।
और एक दिन आखिरकार जीवन का मैसेज आया
" ठीक हूं, खुश हूं।"
"और बाकी सब कैसे चल रहा है?" रिया ने बात बढ़ाते हुए आगे पूछा।
लेकिन जवाब देने की वजह जीवन उससे शिकायत करने लगा-
"मैंने तुम्हें काफी फोन ट्राई किए पर तुमने मुझे ब्लॉक कर दिया था।"
"नहीं जीवन,कंपनी के लोगों ने नया नंबर लेने को कहा था।" रिया अपनी सफाई पेश करने की कोशिश कर रही थी।
"अब तो हम बात कर सकते हैं ना!?" रिया ने काफी आशा के साथ पूछा।
काफी सोचने के बाद जीवन ने रिप्लाई दिया-
"वो मुझे प्रोग्राम का हेड चुना गया है टाईम नही मिलता।" जीवन ने रिया को टालने की कोशिश की।
रिया ने एक बार फिर से हिम्मत जुटाते हुए कहा-
"I Love you Jivan."
"No reply."
रिया ने ऑफिस मे लंच टाइम से लेकर घर के डिनर टाइम तक सिर्फ उसके एक रिप्लाई का इंतजार किया।
जैसा बोओगे वैसा ही पाओगे यह मुहावरा ठीक रिया के जिंदगी पर लागू पड़ गया-
एक साल पहले जीवन ने रिया को काफी मैसेज किए,काफी बार फोन भी ट्राई किया।
मैसेंजर को भी तक नहीं छोड़ा रिया की टाइमलाइन पर जाकर खुद की गलती की माफी मांगी पर रिया का दिल नहीं पसीजा उल्टा मेरा मन जीवन की तरफ फिर से ना झुक जाए इसलिए उसने जीवन को पहले अपने कांटेक्ट और फेसबुक से ब्लॉक किया और आखिरकार अपनी जिंदगी से।
एक साल बाद जीवन ने भी वही किया, नो रिप्लाई ऑन शॉर्ट मैसेजेस। और एक दिन बिना कुछ बोले उसने उसे ब्लॉक करने की बजाय अपना अकाउंट बंद कर दिया।
रिया को इस बात पर गुस्सा आया पर वो क्या कर सकती थी।
अगर रिया सॉरी बोल देती तो किस्सा कब का खत्म हो जाता लेकिन जिंदगी में कभी कभी कुछ आसान शब्दों को दिल से जुबान तक लाना बहुत मुश्किल हो जाता है क्योंकि हमे पता होता है वो शब्द ज्यादा ही आसान है।
उसका मन अब बस एक सवाल पर अटका हुआ था- "क्या जीवन मुझसे अभी भी प्यार करता है?"
अब रिया को दिन छोटे और रात लंबी लगने लगी थी।
अक्सर कहीं बार वो ऑफिस में ही काम करते-करते सो जाती थी, रातों में उसे नींद नहीं आती, पब में जाना पार्टी करना अब उसका रूटीन बन चुका था।
खुद की सेहत पर अब वह ध्यान देना पुरी तरहभूल चुकी थी।
उसके काम पर भी इसका असर दिखना चालू हो गया था।
अपने कलिक्स पर चिल्लाना, अचानक से रात में उठ कर रोना, शराब का आदी होना, आईने में एकतरफा खुद को देखते रहना। रिया खुद को खोती जा रही थी।
रिया की हालत देख उसके कंपनी में काम करने वाली उसकी दोस्त ने उसे साइकेट्रिक के पास जाने की सलाह दी।
रिया सलाह मान साइकेट्रिक के पास गई।
साइकेट्रिस्ट ने उसे ज्यादा काम ना करने की सलाह दी और रात को नींद आए इसलिए नींद की गोलियां भी।
अब रिया नींद के लिए भी गोलियों की आदी बन चुकी
थी; डिप्रेशन उसे अंदर से खाने लगा था।