रश्मि के जाने के बाद चांदनी को चिंतित और परेशान देख विशाल ने इसका कारण जानना चाहा तो चांदनी ने उसे सारी बातें बता दी। सुनकर विशाल ने शांत भाव से कहा
"चांदनी, रश्मि सही कह रही है। तुम्हें आकाश से मिलने जरूर जाना चाहिए।"
विशाल के मुंह से ऐसी बात सुन चांदनी हैरान हो उसकी तरफ देखते हुए बोली
" विशाल यह तुम कह रहे हो। तुम्हें बिल्कुल बुरा नहीं लगेगा अगर मैं उससे मिलने जाऊं तो!"
"चांदनी इसमें बुरा लगने वाली कौन सी बात है। माना आकाश से तुम्हारा अब कोई नाता नहीं लेकिन मानवता के नाते तुम्हारा फर्ज बनता है कि एक बार उसके मन की बात सुन, उसके दुख को कम करने में उसकी मदद करो।"
"विशाल, मेरा दिल तुम्हारे जितना बड़ा नहीं है । मैं उस इंसान द्वारा दी गई मानसिक यात्नाओं को जब भी याद करती हूं, मेरा दिल, उसके लिए नफरत से और भर जाता है। फिर उससे मिलना, मेरे लिए कितना कष्ट कर होगा तुम समझ नहीं सकते।"
"चांदनी वह पहले ही अपने कर्मों की सजा भुगत रहा है। और मुझे यह सुनकर अच्छा नहीं लगा कि मेरे साथ रहते हुए भी तुम उन दुखों को नहीं भूल पाई। इसका मतलब तो यही हुआ ना कि मेरे प्यार में कहीं न कहीं कमी रह गई है। चांदनी नफरत की आग को ज्यादा हवा मत दो । यह जितनी जल्दी शांत हो उसी में सबकी भलाई है। यह आग इंसान को अंदर से खोखला कर देती है। हमने सामाजिक सेवा का जो संकल्प लिया है, उसके लिए तो ऐसे विचारों का मन में आना भी , हमारे किए कार्यों पर पानी फेर देंगे। जब तक तुम आकाश से मिल , उसकी बात नहीं सुनोगी या अपने मन की नहीं कहोगी, यह आग तुम्हें यूंही जलाती रहेंगी। हम सबकी भलाई के लिए जितनी जल्दी हो सके तुम उससे मिल आओ।"
विशाल की बातों ने चांदनी को सोचने पर मजबूर कर दिया और दो-तीन दिन बाद ही उसने आकाश से मिलने का फैसला कर लिया। रश्मि से फोन कर वह उससे मिलने के लिए निकल पड़ी।
रश्मि उसे हॉस्पिटल के बाहर ही मिल गई। यह वही हॉस्पिटल था, जहां कितने ही दिन चांदनी ने शारीरिक व मानसिक पीड़ा में गुजारे और आकाश के इंतजार में। हॉस्पिटल के अंदर जाते ही पुरानी यादें चलचित्र की भांति उसकी आंखों के सामने घूम गई। अपनी लाचार मां का बेटी को पीड़ा मुक्त करने का झूठी मुस्कान लिए दर्द भरा चेहरा। आकाश के इंतजार में हमेशा दरवाजे पर टकटकी लगाए , उसकी आंखें। कैसे इस हॉस्पिटल ने उसकी जिंदगी बदल दी थी। तभी सामने से उसे वही डॉक्टर आता दिखाई दिया जो उसका इलाज कर रहा था और जिसने उसकी झूठी रिपोर्ट आकाश को दी थी।
चांदनी के पास आ उसे पहचानते ही एकदम से उसके कदम ठिठक गए। चांदनी को मुस्कुराते देख,वह किसी तरह नजरें चुराता हुआ , चुपचाप वहां से निकल गया।
रश्मि उसे आकाश के कमरे की ओर ले गई। जैसे ही वह कमरे में जाने लगी तभी आकाश की दोनों बहने बाहर निकली। चांदनी को देखते ही दोनों की नजरें झुक गई। फिर किसी तरह हिम्मत जुटा दोनों ने कहा "कैसी हो आप!" कहते हुए उनके आंसू निकल गए।
चांदनी ने दोनों के आंसू पोंछे और तसल्ली देते हुए कहा "हिम्मत रखो सब सही हो जाएगा।"
"हो सके तो मम्मी और हम सब को माफ कर देना!" दोनों ने हाथ जोड़ते हुए कहा और वहां से चली गई।
जैसे ही चांदनी अंदर गई ,आकाश पर नजर पड़ते ही वह एकदम से कांप गई। यह वही आकाश है! हे भगवान! क्या हालत बना ली है इसने अपनी। कपड़ों में लिपटा हड्डियों का ढांचा मात्र दिख रहा था। रंग एकदम से स्याह पड़ गया था उसका , सूखे पपड़ीदार होंठ, धंसी आंखें। कोई देखकर पहचान ही नहीं सकता। यह वही आकाश है।उसे इस हालत में देख चांदनी की नफरत, आंसू के रूप में बह निकली। उसे उसका यह अवस्था देख बहुत पीड़ा हो रही थी । माना अब वह उसके लिए एक भूली दास्तां मात्र बनकर रह गया था लेकिन कभी तो टूट कर प्यार किया था उसने आकाश से।
चांदनी की आंखों से निकले आंसू, जैसे ही आकाश के हाथों पर गिरे और कमरे में कुछ सुगबुगाहट महसूस कर आकाश ने धीरे से आंखें खोली। सामने बैठी रश्मि और चांदनी को पहचानने की वह अथक कोशिश करने लगा।
उन दोनों को हैरानी भरी नजरों से काफी देर तक देखता रहा लेकिन बोला कुछ नहीं । चांदनी को लग रहा था कि शरीर के साथ-साथ आकाश की आंखें भी उसका साथ नहीं दे रही थी।
उसकी तकलीफ को काम करते हुए चांदनी ने उससे कहा "आकाश जी, कैसे हो आप और यह क्या हाल बना लिया है आपने अपना!"
जैसे ही चांदनी के आवाज आकाश के कानों में पड़ी, अपनी अधमुंदी आंखों को अच्छे से खोलते हुए आकाश ने चांदनी की ओर देखा और कुछ देर तक देखता ही रहा। उसे पहचानते ही उसके चेहरे पर आत्मग्लानि के भाव उभर आए
और उसकी आंखो से आंसू बहने लगे।
"आकाश ये क्या! मैं इतनी दूर से तुमसे मिलने आई और तुम मुझे देख खुश होने की बजाय रो रहे हो! क्या तुम्हें मुझे देख कर खुशी नहीं हुई।" चांदनी उसकी पीड़ा कम करते हुए बोली।
"चां_ द _ नी , तुम आ गई। तुमने मुझे माफ कर दिया। मुझे...
मुझे.. माफ कर दो। मैं तुम्हारा गुनहगार हूं। और आज तुमसे अपने हर गुनाह की माफी मांगता हूं। मुझे माफ कर दो!!!" कहते हुए आकाश ने अपने दोनों हाथों को उसकी ओर जोड़ दिया और रोने लगा। रोते-रोते उसे जोर-जोर से खांसी का दौरा उठने लगा।
"आकाश संभालो अपने आप को! मुझे तुमसे कोई शिकायत नहीं। मैं सब बातें भूल चुकी हूं। जो हो चुका है, तुम भी उसे भूल जाओ। शायद वही हम दोनों की नियति थी। एक बुरा दौर था, जो गुजर गया। उस गुनाह की आग में अपने जीवन को स्वाहा मत करो।" चांदनी उसे समझाते हुए बोली।
आकाश की खांसी रुक ही नहीं रही थी। चांदनी और रश्मि ने सहारा देकर उसे बिठाया और पानी दिया। चांदनी ने रश्मि से कहा
" रश्मि एक बार तुम जाओ और डॉक्टर को बुला लाओ।"
पानी के 2-4 घूंट पीने के बाद आकाश ने किसी तरह से अपने उखड़ी सांसो को संभालते हुए कहा
"चांदनी तुम तो सदा से ही अच्छी थी। मैंने तुम्हारी जिंदगी बर्बाद कर दी। उसके बाद भी तुम्हें मुझसे शिकायत नहीं!! तभी तो तुम मेरे और मेरी मां के गुनाहों को नियति का नाम दे रही हो। मैंने तो तुम्हें तूफानों में छोड़ दिया था। यह भी ना सोचा तुम अकेली कैसे मझधार से निकल पाओगी। मैं कायर और स्वार्थी बस अपने बारे में ही सोचता रहा। तुम्हारे दर्द को तुम्हारी तड़प को समझ ही ना सका या कहूं समझ कर भी अनजान बनने की कोशिश करता रहा और देखो विधाता का खेल आज मैं उसी जगह हूं और उसी दर्द को झेल रहा हूं , अकेले! मैं तो कभी तुम्हारे लायक था ही नहीं । तभी तो तुम्हारे निस्वार्थ प्रेम को ना समझ , केवल शारीरिक......!" कहते हुए आकाश फिर से फफक-फफक कर रो पड़ा।
"आकाश क्यों बीते हुए समय को याद कर दुखी हो रहे हो। वह दुख मेरी किस्मत में लिखा ही था। तुम अपने आप को दोष मत दो। देखो तुम फिर से खड़े हो जाओ। नया जीवन शुरू करो। तुम्हारी बहनों को तुम्हारी जरूरत है । मुझे पूरा विश्वास है कि तुम सही हो जाओगे!"
"चांदनी वह किस्मत का लिखा नहीं था मेरे बोए बबूल के पेड़ थे, जो आज मेरे जीवन को शूल बन डस रहे हैं। मर तो मैं तभी गया था, जब तुम्हें छोड़ा था । मैंने अपनी सांसो को बस तुमसे माफी मांगने के लिए बचा कर रखा था।
देखो, मैं फिर से स्वार्थी हो गया! अपने इतने बड़े गुनाहों को माफ करवाने अपनी आत्मा का बोझ कम करने में लगा हूं। भगवान से मेरी प्रार्थना है तुम्हारे जीवन में फिर कभी कोई दुख ना आए और हमेशा तुम्हारी झोली खुशियों से भरी रहे।" कहते कहते आकाश की आंखें बंद होने लगी।
यह देख चांदनी एकदम से घबरा गई। उसने आकाश के सिर को अपनी बाहों का सहारा दिया और रोते हुए बोली
"आकाश, आकाश आंखें खोलो! यूं हिम्मत मत हारो!"
इतनी ही देर में रश्मि डॉक्टर को लेकर आ गई। डॉक्टर को देखते हैं चांदनी रोते हुए बोली "डॉक्टर देखिए ना! यह कुछ बोल क्यों नहीं रहे! सब ठीक है ना!"
डॉक्टर ने आकाश को बिस्तर पर लिटा, उसकी धड़कन और आंखें चेक की और फिर चादर उसके मुंह पर ढकते हुए धीरे से कहा
He is no more...!
चांदनी को डॉक्टर की बात पर विश्वास ही नहीं हो रहा था।
वह आकाश के चेहरे को अपलक निहार रही थी
उसे आज आकाश की वह बात याद आ रही थी, जो अक्सर वह उसे प्यार जताते हुए कहता था_
"देखना चांदनी, मेरा दम तुम्हारी बाहों में ही निकलेगा!" और आज!!!!
रश्मि ने उसे झिंझोडा तो वह अतीत से बाहर निकली और आकाश के मृत शरीर से लिपट फफक-फफक कर रो पड़ी। रश्मि भी अपने आंसुओं को ना रोक सकी और किसी तरह चांदनी को सहारा दे दोनों बाहर निकल गई।
समाप्त
सरोज ✍️