Pata Ek Khoye Hue Khajane Ka - 20 in Hindi Adventure Stories by harshad solanki books and stories PDF | पता, एक खोये हुए खज़ाने का - 20

Featured Books
  • स्वयंवधू - 31

    विनाशकारी जन्मदिन भाग 4दाहिने हाथ ज़ंजीर ने वो काली तरल महाश...

  • प्रेम और युद्ध - 5

    अध्याय 5: आर्या और अर्जुन की यात्रा में एक नए मोड़ की शुरुआत...

  • Krick और Nakchadi - 2

    " कहानी मे अब क्रिक और नकचडी की दोस्ती प्रेम मे बदल गई थी। क...

  • Devil I Hate You - 21

    जिसे सून मिहींर,,,,,,,,रूही को ऊपर से नीचे देखते हुए,,,,,अपन...

  • शोहरत का घमंड - 102

    अपनी मॉम की बाते सुन कर आर्यन को बहुत ही गुस्सा आता है और वो...

Categories
Share

पता, एक खोये हुए खज़ाने का - 20

तभी राजू का खुराफाती दिमाग डोड़ा. उसकी आँखे चमक उठी. उसने सब को अपने साथ चलने के लिए कहा. फिर अपने साथियों को साथ लिए वह कहीं चल पड़ा.
*************
वे आदिम मनुष्य अपने उस त्यौहार के उत्सव में व्यस्त थे. अपने देवी देवता एवं पूर्वजों को जंगल में पाए जाने वाले सूअर और अन्य प्राणियों की बलि एवं भोग लगाने के बाद खुद मिज़बानी उड़ा रहे थे.
तभी उनके दो चार बच्चे कहीं से दौड़ते हुए आये और मिज़बानी में मस्त लोगों को कुछ बताया. जिनको सुन, वे कोई गहरी सोच विचार में पड़े. फिर कुछ लोग खड़े हुए और उन बच्चों के पीछे चले. थोड़ी देर बीती, पर जाने वालों में से कोई वापस नहीं हुआ. फिर दूसरे लोग भी खड़े हुए और उन पहले जाने वालों के पीछे चले.
उस बच्चों की बातों ने कुछ ऐसा जादू किया था कि धीरे धीरे सभी लोग एक के पीछे एक करते वहां से चल पड़े. यहाँ तक की देवी की खोह में मौजूद लोग भी खोह से निकल कर उन आगे जाने वालों के पीछे बिदा हो गए.
राजू और उनकी टीम सायद इसी मौके की राह देख रही थी. तुरंत पांच साथी खोह में अन्दर घूसे. अन्य लोग बाहर चौकी करते बैठे. इस बार संघर्ष की संभावना को ध्यान में रखते हुए हर प्रकार के हथियार उन्होंने अपने पास मौजूद रखे थे.
अब खोह के अन्दर उन आदिम इंसानों में से कोई भी नहीं था. यह अच्छा मौका था. वे संदूकों की तोह लेने लपके. सभी संदूकें मजबूत लोहे से बनी हुई थी और उनपर ताला भी मजबूत लगा हुआ था. जिन पर चाबी लगाने की जगह नहीं थी, पर चाबी की जगह नंबरों वाली चक्रियाँ बनी हुई थी. जिनका मतलब था कि ये ताले इन पर लगी चक्रियों को विशेष नंबर में घुमाने से ही खुल सकते थे.
पर ये नंबर कहाँ? नंबर तो नहीं थे. फिर परेशानी की वजह [पैदा हुई. सब सोच में पड़े.
तभी पिंटू को मेघनाथजी की इकादसी और कृष्ण बानी की बात याद आई. जिसमे इकादसी का मतलब तो यह ग्यारह संदूकें थी, फिर तो कृष्ण बानी में ही तालों को खोलने वाले नंबर होने चाहिए. पर कृष्ण बानी का मतलब क्या? पता नहीं.
"अरे! कृष्ण बानी का मतलब तो भगवद् गीता होना चाहिए. जो स्वयं श्रीकृष्ण के मुख से निकली हैं. और जिसमे अठारह अध्याय और सात सो श्लोक हैं." संजय ने अपने दिमाग पर जोर डालते हुए कहा.
सभी के चेहरों पर संजय की बात सुन चमक आ गई. उन्होंने अठारह और सात सो नंबर लगाकर ताला खोलना चाहा. पर कुछ न हुआ. अठारह और सात सो नंबरों को अदल बदल करके भी कोशिश की. पर फिर भी ताला खुला नहीं. फिर सब परेशान हुए. तभी भीमुचाचा के चेहरे पर हलकी हंसी दिखाई दी. सायद उनके दिमाग में कोई खयाल पैदा हुआ था. वह बोला.
"पर इन सात सो श्लोकों में श्रीकृष्ण के मुख से तो सिर्फ पांच सो चौहत्तर श्लोक ही निकले थे!"
"मतलब इस पांच सो चौहत्तर श्लोकों को ही कृष्ण बानी कही जा सकती हैं!" राजू उत्साह से बोल पड़ा.
अब पांच सो चौहत्तर आंकड़े को सीधे और अदल बदल कर लगाया जाने लगा. सभी के चेहरों पर खुशियाँ चमक उठी. एक संदूक खुल गई थी. ढक्कन उठाकर देखा, सब की आंखें चौंधिया गई. अन्दर चमचमाते हुए सोने और चांदी के सिक्के थे. आहा! पांचों के मुंह से आह निकल गई. एक एक करके सभी संदूकों को खोल लिया गया. अन्य संदूकों में भी हीरा, जवाहरात, मानिक, मोती इत्यादि बहुत कुछ था. हर संदूक में से एक एक पत्र भी मिला. जिसमे वह संदूक में से निकला धन मेघनाथजी का हैं या उनके सेठ का हैं, उस बात का निर्देश था. जो चार साथी बाहर थे, उन्हें भी देखने का मौका दिया गया. वे भी चकित रह गए. सभी ने एक दूसरे को अभिनंदन दिए.
जिस की तलाश में निकले थे, उनका पता मिल गया था. मतलब, पता, एक खोये हुए खज़ाने का!
अब सब इसको यहाँ से निकालने की फिक्र करने लगे. वे आदिम मनुष्य आ पहुँचे इससे पहले वे जल्दी से जल्दी इस धन को निकाल ले जाना चाहते थे.
उन्होंने यह तै किया कि आदिम मनुष्यों की आस्था बन चुकी इन संदूकें भले ही यहाँ पड़ी रहे, पर अन्दर का सारा धन वे उठा ले जायेंगे. इससे उन आदिम लोगों की आस्था को चोट भी नहीं पहुँचेगी. और उन्हें कोई संदेह भी पैदा नहीं होगा कि संदूकों से कोई सामान उठा ले गया है.
अतः, उनके पास जो भी बिछावन, थैले, इत्यादि थे उसे लाने के लिए चार साथियों को भेजा. जाते वक्त वे अपने टीशर्त एवं पेंट में भी जितना बन पड़ा, भरते गए. जल्दी ही वे सारा सामान लेकर लौटे. रात का अँधेरा पूरी तरह छा चूका था. फिर भी उन्होंने यह कार्य कर लेना उचित समझा.
वे सारा धन संदूकों में से निकालकर ले जाते थे और उसे खोह से थोड़ी दूरी पर जहां किसी की नजर आसानी से न पड़े, वहां सारे थैलों और पोटलियों को जमीन में गद्दा खोद, गार दे रहे थे. ऊपर फिर घाँस, पत्ते, लताओं इत्यादि को बिछा कर पहले जैसा हाल बना दे रहे थे. उनकी योजना यह थी कि फिल हाल खोह से सारा धन निकाल लिया जाए. फिर वहां से सुरक्षित स्थान पर पहुंचा दिया जाएगा. पर इस कार्य के दौरान उनसे बड़ी गलती हो गई. उन्होंने अपने सभी साथियों को इस कार्य में लगा दिया. और बाहर पहरे को बिलकुल भूल ही गए. जिसका मूल्य उन्हें क्या चुकाना पड़ेगा, वह तो वक्त ही बताएगा.
उपरान्त, यह सारे उपद्रव ने उनके हुलिये को भी पहले जैसा नहीं रहने दिया था. साफ़ पहचाने जा सकते थे कि यह कोई बाहरी लोग हैं.
***
उन आदिम मनुष्य जब अपनी मिज़बानी में मग्न थे, तब कुछ बच्चे खेलते हुए इधर उधर निकल गए. तभी उनकी नज़र खोह से थोड़ी दूरी पर एक स्थान पर पड़ी. वहां एक पेड़ के साए में उनकी देवी की मिट्टी से बनी मुखमुद्रा पड़ी हुई थीं. सामने एक छोटे गद्दे में आग सुलग रही थी. बगल में फल फूल पड़े हुए थे और रंगोली भी बनी हुई थी.
यह हाल देखकर उन बच्चों को अजूबा हुआ. और उन्होंने दौड़ते हुए जाकर सारा हाल अपने बड़ों को सुनाया.
बच्चों के मुंह से यह हाल सुनकर उनके बड़ों को भी ताज्जुब हुआ. इसलिए पहले कुछ लोग मामला पता करने बच्चों के पीछे चले. जब वे नहीं लौटे तो फिर दूसरे भी उनके पीछे चले. इस तरह सभी लोग वहां पहुँच गए. यहाँ तक की खोह भी खाली हो गई.
यह सारा पैंतरा राजू के खुराफाती दिमाग की पैदाइश थी. उसने और उनके साथियों ने ही आदिम मनुष्यों को खोह से हटाने के लिए यह सारा उपद्रव मचाया था.
उन्होंने मिट्टी से देवी की एक मुखमुद्रा बनाकर खोह से थोड़े दूर, जहां आसानी से किसी का भी ध्यान पड़ जाए, ऐसा स्थान देखकर एक पेड़ के नीचे वह मुखमुद्रा रख दी. उनके सामने एक छोटा सा गद्दा खोदकर आग भी जला दी. और अगल बगल रंगोली एवं फल फूल भी रख दिए. इतना कर, वे उन मनुष्यों का ध्यान पड़ने और खोह से उसका पलायन होने का इंतज़ार करने लगे.
आदिम लोगों के बच्चे खेलते हुए वहां आ पहुंचे. और उन्होंने जा कर अपने बुजुर्गो को यह हाल कह सुनाया.
पर उन मनुष्यों के लिए यह सारा हाल कोई चमत्कार था. देवी की कृपा थी. काफी देर तक सब वहां ठहरे रहे. बड़े अहोभाव से देवी की मुखमुद्रा का पूजन करते रहे. पर फिर किसी काम से कुछ लोग खोह की और लौटे. और जब वे खोह के द्वार पर पहुँचे, तो कुछ लोगों को देवी की संदूकों की खोजख़बर लेते पाया. जैसे ही उनके हुलिये पर ध्यान गया, वे और ज्यादा बिफर पड़े. ये तो उनकी बिरादरी के भी नहीं थे! ये तो किसी और ही दुनियाँ से आये हुए थे.
तुरंत उन्होंने अपने तीर कमान निकाल लिए. और निशाना ले, खड़े हो गए.
किसी ने भागकर अपने अन्य बिरादरी वालों को यह खबर सुनाई. और देखते ही देखते सारे आदिम लोग खोह पर आ धमके.
***
राजू और उनके साथी अपने कार्य में मग्न थे. अभी तो उन्होंने सारे सामान की हेराफेरी भी न की थी. पर इतने में उनके कानों को किसी के आने की आहत लगी. और जब उन्होंने मुड़कर देखा तो वे आदिम मनुष्य तीर कमान निकाल, उनकी और निशाना लगाने की तैयारी में थे. थोड़ी देर में तो अन्य आदिम मनुष्यों का जमावड़ा भी खोह में होने लगा. वक्त बिलकुल नहीं रहा था. तुरंत फैसला करना था.
वे किसी से संघर्ष में उतरना तो बिलकुल भी नहीं चाहते थे, पर अब हालात ऐसे पैदा हो गए थे कि अब बिना टकराव के उनका काम बनने वाला नहीं था. फिर भी उन्होंने तै किया कि वे उन आदिम मनुष्यों को जहां तक हो सके, नुकसान नहीं पहुँचाएंगे.
इस कार्य में भीमुचाचा का अनुभव तुरंत काम आया. बिना वक्त गँवाए उसने अश्रुगैस के गोले निकाल छोड़े.
आदि मनुष्यों की आँखों में जाते ही इस गैस ने अपना करतब दिखाया. वे अपने तीर कमान छोड़, आंखों की फिक्र में पड़े. तब तक दो चार और गोले छुट पड़े. वे आदिम मानुष जैसे ही जायजा लेने आंखें खोलते, और ज्यादा जलन होने लगती. अब तो जो जो आगे खड़े थे, उन्होंने पीछे हटना शुरू कर दिया. फिर तो सब एक दूसरे को धक्का देते हुए भागे. खोह में भगदड़ मच गई. गिरते पड़ते, धक्का देते, बाहर निकलने के लिए होड़ लगा दी. थोड़ी ही देर में सब बाहर. खोह खाली.
अब राजू की टीम के लिए रास्ता साफ़ हो गया था. दोनों मुहाने पर आदिम लोगों को बाहर ही रखने में चार लोग रुके. और अन्य साथी धन की हेराफेरी में लगे.
पर बाहर माहौल बड़ा गर्म था. अपनी देवी के स्थान पर कोई और कब्जा कर ले, यह हकीकत वे कैसे स्वीकार कर सकते थे! उन्होंने भी अपनी तरफ से उपद्रव शुरू कर दिया. आगे से पार नहीं पाया जा सका तो पीछे से कोशिश करने लगे.
कुछ आदिम लोग पहाड़ी के पीछे से होते हुए गुफा की दूसरी बाजू आ पहुँचे. जहां से राजू के साथी धन की हेराफेरी में लगे हुए थे. उसी वक्त राजू के साथी खोह से सामान लिए अपने मार्ग पर ही बढ़े थे. तभी घात लगाकर आदिम लोगों ने तीरों से हमला कर दिया. सामान की पोटलियाँ होने से और मोटे जाकेट एवं जींस पेंट की वजह से तीरों से ज्यादा गंभीर चोट तो न आई, पर फिर भी वे थोड़े बहुत घायल हुए. वे भी सामना करने लगे. पर सामान के बोझ तले वे बेबस थे. फिर भी वे अश्रुगैस के गोले छोड़ने लगे.
पर इस बार उन आदिम लोगों ने अश्रुगेस से बचने का तरीका निकाल लिया था. वे इस वक्त दो दो, तीन तीन के झुंड में छितरबितर हो कर लड़ रहे थे. इसलिए अश्रुगैस वाली तरकीब इस बार काम न आई. और राजू की टीम के दो साथियों को आदिम लोगों ने पकड़ लिया. पर बाकी लोग सामान के साथ वापस खोह की और भागने में सफल रहे.
क्रमशः
क्या अब राजू और उनके साथी अपने दो साथियों को आदिम लोगों की चुंगाल से छुड़ा पाएंगे? या उनकी बलि चढ़ा दी जाएगी? वे आदिम लोग उन लोगों के लिए कौन कौन सी नयी मुसीबतें खड़ी करेंगे? अगले हप्ते पढ़े.
कहानी अब अत्यंत रोचक हो चुकी है, अतः आगे पढ़ते रहे.
अगले हप्ते कहानी जारी रहेगी.