Aapki Aaradhana - 4 in Hindi Moral Stories by Pushpendra Kumar Patel books and stories PDF | आपकी आराधना - 4

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आपकी आराधना - 4




भाग - 4

दिन भर से थकी हारी और ऊपर से डेकोरेशन वाली नयी जिम्मेदारी, आराधना ने फ्रेश होकर खाना बनाया और खाना खाने बैठी। न जाने क्यों आज का दिन उसे बहुत ज्यादा सुहावना लग रहा था, आज मनीष को उसने करीब से जाना, उनका मुस्कुराता चेहरा और उनके बात करने का अंदाज वाह क्या बात है।
रात के 11 बज रहे थे सारा काम निपटाकर आराधना अपने बेड पर बैठी और फाइल निकालकर देखने लगी।पहले पेज पर ही उसे एक लेटर मिला जिसमें सुखी गुलाब की कुछ पंखुड़ियाँ थी। उसके हाथ काँपने लगे, आखिर क्या है ये ? हिम्मत करते हुए उसने लेटर के मुड़े हुए पन्ने खोले।

" Dear Aaradhana

मैं तो चाहता था कि ये सारी बाते कहते वक्त तुम मेरे सामने रहो, पर सोंचा आज के जमाने मे भी लेटर लिखने का एक अलग ही मजा है, जिसमे तुम सिर्फ मेरी बात सुनोगी और मुझे रोकोगी नहीं।
जब से तुम हमारे शॉप आयी तब से ही देख रहा हूँ तुम्हारी लगन, मेहनत और ईमानदारी को।आज भी याद है तुम्हारा वो पहला दिन तुम्हारा साँवला सा मुखड़ा, यलो कलर की सूट, बिखरे हुए बाल और कम हील वाली सैण्डल। मै तो पागल ही हो गया था तुम्हे देखकर।
I love you so much Aaradhana💙
मै तुम्हे बता दूँ कॉलेज मे मेरी एक गर्लफ्रेंड भी थी अनन्या, पर अब उसकी शादी हो गयी है। उसके बाद मैने किसी और के बारे मे सोंचा ही नही, पर अब मै अपनी पूरी जिंदगी तुम्हारे साथ बिताना चाहता हूँ। मैं तुम्हारे बारे मे सब कुछ जान चुका हूँ और तुम्हारे इस खालीपन को दूर करना चाहता हूँ। इस दुनिया की सारी खुशियाँ तुम्हारे नाम करना चाहता हूँ, पापा भी तो अक्सर तुम्हारी तारीफ करते हैं शायद उन्हें भी कोई ऐतराज न होगा।मम्मी और शीतल को मै मना लूँगा । अगर तुम्हारा जवाब हाँ है तो कल बिल्कुल वैसे ही तैयार होकर आना जैसे तुम पहले दिन हमारे शॉप आयी थी ।तुम्हारे जवाब के इंतजार में।"

🌼तुम्हारा मनीष🌼

एक पल लगा आराधना कहीं सपनों मे खो गयी पर ये तो हकीकत था।वह लेटर को बार - बार निहारती क्या सही मे लिखा नाम उसी का है ? उसकी आँखों मे आँसू आ गए, क्या इस तरह से कोई उसकी जिंदगी मे आ सकता है ? क्या जवाब देगी वह इस खत का ,अमीरी गरीबी की ये दीवार क्या उसके सपने पूरे होने देंगे ? इतने बड़े घर का लड़का उसे कैसे पसंद कर सकता है ? वह इस वक्त खुशियाँ जाहिर करे या अफसोस करे अपनी किस्मत पर।
वह रात भर बेड पर करवटें बदलती रही पर कोई फैसला न कर सकी।

सुबह उठते ही बस उसे उलझनों ने घेर लिया, ये कैसी कश्मकश है, वो तो यही चाहती थी न कोई उसका भी हमसफर बने और उसकी हर ख्वाहिश पूरी करे। फिर न जाने क्यों अपने दिल की गहराई को वह समझ नहीं पा रही, क्या मनीष से भी अच्छा लड़का उसे मिल पायेगा ? और फिर मनीष ने तो खुद हाथ बढ़ाया है तो फिर....
क्या एक गरीब और अनाथ लड़की मनीष जैसे लड़के से प्यार नहीं कर सकती ?
उससे ने तो लिखा है वह सबको मना लेगा, फिर....

नहाने के बाद वह एकदम से आलमारी की ओर बढ़ी और वही यलो वाला सूट निकालने लगी, अब अंजाम जो भी हो वह मनीष का दिल नही तोड़ेगी।
खुले बाल, हल्की सी लिपस्टिक और वही सैण्डल। आज तो वह मनीष के लिए तैयार हुई थी। वह फाइल मे पड़े सूखे गुलाब की पंखुड़ियाँ छूकर उसकी खुशबू को महसूस करने लगी। थोड़ी देर बाद सुबह का नाश्ता करके और दोपहर का लंच पैक करके वह शॉप के लिये निकल गयी।
ऑटो में बैठी हुई वह खयालों मे खोयी थी।
ये तो वही पुराने रास्ते थे, जहाँ कल वो साथ मे गये थे, ये आज जल्दी कट क्यों नही रहे ?
कैसे पेश आएगी वो मनीष से ?
क्या वो उसकी उम्मीदों पर खरा उतर पायेगी ? और वैसे भी डेकोरेशन वाला तो कोई काम उसने स्टार्ट ही नही किया, रात तो बस हाँ या ना के डिसीजन में गुजर गयी।

" लीजिये मैम आ गया आपका श्री राम वस्त्रालय "
ऑटो वाले ने उससे कहा।

" जी भैया
ये लीजिए पैसे "
हड़बड़ाते हुए वह ऑटो से उतरी, उसकी निगाहें बस मनीष को ढूंढ रही थी।अंदर जाते ही उसने काउन्टर की तरफ देखा जहाँ मनीष बैठता था पर वहाँ तो कोई नहीं था।आज तो अग्रवाल सर भी नहीं आये।

" दीपक भैया!
आज अग्रवाल सर और मनीष सर नहीं आये क्या ? काउन्टर भी खाली है "
आराधना ने वेटर दीपक से पूछा।

" वो दोनों आज दोपहर को आएँगे, मनीष सर और उनकी बहन शीतल दीदी के रिश्ते की बात चल रही है ना उसी सिलसिले में आज कुछ मेहमान आये हैं घर में "
ट्रे मे पानी का गिलास जमाते हुए दीपक ने कहा, और एक गिलास आराधना को दिया।

ये सुनते ही आराधना के हाथ से गिलास छूट गया और फर्श पर चूर - चूर हो गया।

" Sorry भैया मै देख नही पायी,
अभी साफ कर देती हूँ "

" नहीं ..नहीं मै किसी और से करवा लेता हूँ,
तुम जाओ अब कस्टमर्स भी आने लगे हैं "
दीपक ने आराधना से कहा।

आराधना को कुछ समझ ही नहीं आ रहा था, जब मनीष सर ने खुद उसे प्रपोज़ किया है तो फिर उनकी शादी की बात क्यों?

क्रमशः...