Ye kaisi raah - 10 in Hindi Fiction Stories by Neerja Pandey books and stories PDF | ये कैसी राह - 10

Featured Books
  • My Wife is Student ? - 25

    वो दोनो जैसे ही अंडर जाते हैं.. वैसे ही हैरान हो जाते है ......

  • एग्जाम ड्यूटी - 3

    दूसरे दिन की परीक्षा: जिम्मेदारी और लापरवाही का द्वंद्वपरीक्...

  • आई कैन सी यू - 52

    अब तक कहानी में हम ने देखा के लूसी को बड़ी मुश्किल से बचाया...

  • All We Imagine As Light - Film Review

                           फिल्म रिव्यु  All We Imagine As Light...

  • दर्द दिलों के - 12

    तो हमने अभी तक देखा धनंजय और शेर सिंह अपने रुतबे को बचाने के...

Categories
Share

ये कैसी राह - 10

भाग 10

अपनी किलकारियों से अरविंद जी के घर को गुंजायमान करता हुआ अनमोल समय के साथ बड़ा होने लगा । अपने नन्हे नन्हे पांवों से जब वो चलना शुरू किया तो उसकी सुन्दर छवि सब को मोहित कर लेती ।

दादी का जी भी अब गांव में नहीं लगता था। वो यहां अनमोल की नटखट शरारतों का आनंद लेने आ गई थी।अनमोल को उठते गिरते देख कर अनायास ही उनके मुख से निकल जाता '"ठुमक चलत रामचंद्र बाजत पैजनियां।"

पूरे घर का केंद्र बिंदु अनमोल हीं था । हनी और मनी तो मां से भी ज्यादा अनमोल की देखभाल करने की कोशिश करती । परी छोटी थी पर वो भी अपनी गुड़िय खिलौने आदि अपने भाई पर न्योछावर करने में जरा भी संकोच नहीं करती ।

अनमोल अब तीन वर्ष का हो रहा था। अरविंद जी को अनमोल के दाखिले की चिंता थी । अपने सहकर्मियों और मित्रों से सबसे अच्छे स्कूल के बारे में पता किया।

वो ऑफिस से आधे दिन की छुट्टी लेकर उस स्कूल में गए। और दाखिले की पूरी प्रक्रिया पता की।

प्रिंसिपल मैम ने कहा ,"आपको दो दिन बाद बच्चे को लेकर आना होगा । अभी ये फॉर्म साथ लेकर जाइए। दो दिन बाद ये फार्म भर कर ले आइए और साथ बच्चे को भी के कर आइए मै पहले इंटरव्यू लूंगी तभी एडमिशन हो पाएगा।"

अरविंद जी ने सिर हिला कर ”हां मैम..!" कहा और फार्म लेकर घर आ गए।

अरविंद जी शाम को जब ऑफिस से आए तो उनके हाथ में कुछ पेपर थे । जब सावित्री चाय लेकर आई तो उन्हें पेपर्स में उलझा देख कर पूछा, "ये क्या हैं ? परी के पापा..! आज आप आते ही ये सब क्या लेकर बैठ गए ।"

वो बोले,

"कुछ नहीं जरा देखो तो एक छोटे से बच्चे के दाखिले के लिए कितनी फाॅरमेलिटी करनी पड़ रही है ।" सावित्री आश्चर्य से बोली, " पर किसका दाखिला ?" अरविन्द जी बोले,

"अरे! अपने अनमोल और परी का दाखिला नहीं करवाना क्या ?"

सावित्री ने कहा,

"परी का तो ठीक है पर अभी तो अनमोल तीन वर्ष का हीं है ।"

अरविंद जी बोले,

"अच्छे स्कूल में दाखिला अभी हीं होता है। ये स्कूल शहर का सबसे अच्छा और मंहगा स्कूल है। मुझे अनमोल को इसी में पढ़ाना है।"

अरविंद जी ने हनी ओर मनी को कुछ जरूरी शुरुआत की चीजें,अनमोल ओर परी को पढ़ाने को कहा। दोनों बहने मिल कर अनमोल ओर परी को पढ़ाने लगीं।

दादी और सावित्री के लाख मना करने पर भी अरविंद जी नहीं माने । दो दिन बाद सावित्री से बोल कर दोनों को तैयार करवाया और साथ में लेकर स्कूल ले गए इंटरव्यू के लिए। उत्साहित अनमोल और परी अपने पिता के साथ स्कूल गए । वहां प्रिन्सिपल मैम के सवालों का अच्छे से जवाब दिया। जिसे सुनकर मैम भी बहुत खुश हुई। तीन वर्ष की उम्र में ही अनमोल

ने रंगो, पशु पक्षियों के बारे में इतने सारी बातें बताई कि

उसके इस ज्ञान पर मैम भी हतप्रभ रह गई। मैम उसके नामांकन के लिए तैयार हो गई। इस तरह परी और

अनमोल का एडमिशन एक ही स्कूल में हो गया।

अगले दिन सुबह नौ बजे से स्कूल था। वहां का माहौल अनमोल को इतना भाया था कि बार बार उठकर पूंछता "मां सुबह हो गई ? तैयार हो जाऊं ?"

उत्सुकता से किसी तरह रात बिता कर सुबह जल्दी उठकर अनमोल जल्दी से तैयार करने की जिद्द करने लगा। मां रसोई में व्यस्त थी तो हनी ने नहला धुला कर यूनीफार्म पहना कर तैयार किया और बाल बना दिए। नए यूनिफॉर्म में नन्हा सा अनमोल इतना प्यारा दिख रहा था कि दादी नजर उतारने लगी। मां ने नाश्ता कराया फिर पहला दिन था इसलिए अरविंद जी स्वयं ही बच्चों को लेकर स्कूल छोड़ने गए। इस प्रकार अनमोल की शिक्षा कम उम्र में ही शुरू हो गई ।

नन्ही सी उम्र होने के बावजूद अनमोल कभी स्कूल जाने में आनाकानी नहीं करता। वो मन लगा कर पढ़ता। जो कुछ भी टीचर पढ़ाती वो बहुत ध्यान से सुनता। घर आकर खुद ही बैठ जाता होम वर्क करने। जहां कहीं उसे समझने में परेशानी होती वो हनी एवम् मनी दीदी की मदद ले लेता, पर किसी भी हाल में अपना होमवर्क अधूरा नहीं छोड़ता। अरविंद जी और सावित्री ये देख कर प्रसन्न हो जाते थे ।

पर दादी अनमोल को सुबह सुबह तैयार होकर स्कूल

जाते और घर आ कर होम वर्क करते देख,अरविंद जी

पर नाराज हो जाती । कहती

"जिस उम्र में बच्चे सोते हैं और खेलते हैं तूने मेरे लल्ला को इस ताम झाम में लगा दिया। मेरा नन्हा सा बेटा थक जाता है। पर तुम लोग मेरी बात नहीं मानते।"

ऐसा कहते हुए वो अरविंद जी पर नाराज़ होने लगती।

इस पर अरविंद जी हंस कर कहते,

"मां..! मैं इसे स्कूल नहीं भेजूंगा तो ये हमारा नाम कैसे रोशन करेगा..! पढ़ लिख कर बड़ा आदमी बन कर दुनिया में अपना नाम कैसे कमाएगा..!"

दादी बोलती "मुझे तेरी इन बातों से कोई लेना देना नहीं

बस मेरे अन्नू को कोई परेशानी नहीं होनी चाहिए। मुझसे

उस कोई कष्ट हो बर्दाश्त नहीं होता ।"

प्रतिउत्तर में अरविन्द जी, मुस्कुरा कर कहते,

"हां मां..! आपके अन्नू को कोई कष्ट नहीं होगा। मैं वादा करता हूं आपसे।"

साल भर की पढ़ाई के बाद आज अनमोल का रिजल्ट आना था। अरविन्द उसे लेकर स्कूल गए। प्रिन्सिपल मैम ने क्लास में फर्स्ट आने पर गोल्ड मेडल अनमोल को दिया और शाबाशी दी।

"बहुत अच्छा अनमोल बेटा..! ऐसे ही मन लगा कर पढ़ो बहुत आगे जाओगे ।"

पुनः अरविंद जी से बोली,

"आपका बेटा शर्माजी..! बहुत ब्रिलियंट है। ये आपका और हमारे स्कूल का एक दिन नाम रौशन करेगा।"

परी भी अच्छे नंबरों से पास हो गई थी घर आकर

अरविंद जी ने जब जब बताया कि अनमोल अपनी

कक्षा में फर्स्ट आया है तो सब खुश हो गए। दादी ने

गोल्ड मेडल पहने नन्हे अनमोल को गोद में बिठा कर

चूम लिया । फिर बोली,

"ओ सावित्री ..! आज शाम को मेरे लल्ला की नजर उतार देना।"

सावित्री प्यार से अनमोल का सर सहलाते हुए बोली "जी मां जी।"

अनमोल के आगे की जीवन यात्रा पढ़िए अगले अंक में।