Ulajjn - 3 in Hindi Moral Stories by Amita Dubey books and stories PDF | उलझन - 3

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उलझन - 3

उलझन

डॉ. अमिता दुबे

तीन

मम्मी-पापा के साथ शनिवार की शाम सौमित्र अपनी दादी के घर गया। अंशिका की दादी से बात करने के बाद उसे अपनी दादी की बहुत याद आयी। वह सोचने लगा अंशिका अपनी दादी से मिल नहीं पा रही है तो वह कितना दुःखी है और दादी भी किस तरह परेशान हो रही हैं एक वह है कि जिसे दादी का प्यार मिल सकता है परन्तु वह उनके पास जा भी नहीं पाता या जाना ही नहीं चाहता।

सौमित्र को अपनी दादी पहले से बहुत दुबली और बूढ़ी लगीं कुछ देर बैठकर वे लोग लौट आये। चाची तो कुछ देर के लिए सामने भी आयीं चाचा और बच्चे दिखायी ही नहीं दिये। पूछने पर पता चला कि आजकल चाची के बच्चे अपनी नानी के पास रहते हैं। दादी ने दबी जबान से बताया था कि छोटे और बहू की लड़ाई से वे तंग आ गयी हैं। एक दिन वे दोनों खूब लड़ रहे थे कि चाची के भाई आ गये और बच्चों को अपने साथ ले गये। तब से वे लोग वहीं हैं। चाचा अब पहले से तो ठीक हैं लेकिन बहुत चिड़चिड़े हो गये हैं। छोटी की जबान बहुत खुल गयी है। दादी ने शायद पहली बार अपने खजाने से निकालकर लड्डू सौमित्र को दिये। इन बेसन और आटे के लड्डुओं के लिए वह कितना ललचाया करता था जब वे सब साथ रहते थे।

घर आकर सौमित्र बहुत देर तक दादी के बारे में सोचता रहा। सुबह रविवार था। रोज जल्दी उठने वाले मम्मी-पापा छुट्टी के दिन कुछ आराम से उठते थे। सौमित्र को याद है पहले रोज दादी मम्मी के उठने के बाद ही अपने कमरे से बाहर निकलती थीं क्योंकि मम्मी सबसे पहले सोकर उठती थीं लेकिन छुट्टी के दिन वह दादी सुबह-सुबह आँगन में आकर बैठ जाती थीं और कुछ न कुछ खटपट शुरू कर देती थीं बेचारी मम्मी को उठकर आना पड़ता था। आज सौमित्र को ठीक से नींद नहीं आयी। कुछ अंशिका की वजह से और कुछ दादी का उदास चेहरा उसकी आँखों में घूमता रहा।

सुबह मम्मी ने उसे बाॅनविटा वाला दूध का गिलास पकड़ाया तो वह उनके पास किचन में ही आ गया। पापा अभी सो रहे थे इसलिए उसने मम्मी से बात करना ठीक समझा। अंशिका की पूरी बात बताने के बाद उसने मम्मी से कहा ‘क्यों न हम दादी को अपने साथ ले आयें ?’ उसकी यह बात सुनकर किचन के दरवाजे पर खड़े पापा ने तुरन्त प्रतिक्रिया व्यक्त की ‘लेकिन सोमू ! दादी माँ से तो तुम्हारी पटती नहीं है उनकी टोका-टाकी तुम्हें पसन्द नहीं आयेगी सोच लो।’

‘और सोमू ! दादी को एक बार बुलाकर हम दोबारा उन्हें वापस नहीं भेज सकते। बेटा ! हम तो दिन भर घर में रहते नहीं तुम्हें ही उनकी बातें बर्दाश्त करनी पड़ेंगी।’ मम्मी ने जोड़ा।

‘तो क्या हुआ मम्मी ! आखिर वे मेरी दादी हैं। अगर कुछ टोका-टाकी करती हैं तो मेरे भले के लिए। कभी कभार डाँट भी देती हैं तो इसका यह मतलब बिल्कुल नहीं है कि वे मुझे प्यार नहीं करतीं। दादी लोग तो ऐसी ही होती हैं। मम्मी ! मैं दादी को लेकर आपसे कभी कोई शिकायत नहीं करुँगा और न ही दादी को कोई शिकायत का मौका दूँगा। पापा प्लीज आप दादी माँ को आज ही ले आओ। बल्कि अभी ही।’ सोमू ने कहा।

‘सोमू एक बात और सोचने की है कि इस फ्लैट में हमारे पास तीन ही कमरे हैं। एक ड्राइंग रूम इसमें दादी को रख नहीं सकते एक बैडरूम जिसमें तुम्हारे पापा और मम्मी सोते हैं। तीसरा कमरा तुम्हारा है हाँ उसके बगल में छोटा सा स्टोर रूम है जिसमें से बक्से हटाकर दादी की चारपाई पड़ सकती है। ये बक्से पलंग के नीचे रख दिये जायें और उसमें फोल्डिंग चारपाई डाल दी जाय जिसे दिन में उठा दिया जाया करे। यही एक तरीका बचता है दादी के लेटने का।’ पापा ने समस्या बतायी।

‘पापा आप कैसी बातें करते हैं ? वे मेरी दादी हैं और मेरे साथ मेरे कमरे में सोयेगीं। वहीं उनका बेड डाला जायेगा और उसे कभी हटाया नहीं जायेगा। वे जब चाहें उस पर आराम कर सकती हैं दिन में चाहे रात में।’ सोमू का निर्णायक स्वर था।

‘लेकिन सोमू ! इससे तुम्हारी पढ़ाई में हर्ज नहीं होगा। क्योंकि दादी टी0वी0 जरूर देखेंगी और उनसे मिलने लोग भी आयेंगे।’ मम्मी ने कृत्रिम चिंता दिखायी।

‘कोई बात नहीं मम्मी। मुझे कुछ भी परेशानी नहीं होगी। जब दादी टी0वी0 देखेंगी तब मैं आप के बैडरूम में बैठकर पढ़ाई कर लूँगा। जहाँ तक सबके आने की बात है तो अकेले रहने से अच्छा है कभी कभार कोई न कोई आता जाता रहे। हाय, कितना मजा आयेगा जब बुआ जी और कलिका दीदी आयेंगी। पिछली बार जब वे लोग आये थे तो एक दिन हमारे साथ बिताकर दादी के पास चले गये थे और वहाँ एक हफ्ता रहे थे। अब जब दादी यहाँ आ जायेंगीं तो वे हमारे पास ही रहेंगे।’ सोमू ने सपने देखना शुरू किया।

मम्मी-पापा मुस्कुराने लगे। ‘देखो भला सोमू को अभी से बुआजी और कलिका के आने का इंतजार करने लगा। अभी तो छुट्टियाँ होने में कई महीने बाकी हैं।’ कहकर मम्मी काम में लग गयीं। सोमू अपने कमरे की सैटिंग बदलने लगा। वह चाहता था कि दादी के आने से पहले उनके सोने का इंतजाम हो जाय जिससे उन्हें यह न लगे कि सोमू को कोई परेशान हुई है। उसका मन कर रहा था कि जल्दी से शाम हो और दादी उसके घर आ जायें। फिर वह उनके साथ खूब अच्छे से रहेगा।

शाम को पापा-मम्मी दादी को लेने चले गये। सोमू जानबूझकर नहीं गया उसे दादी को कुछ सरप्राइज देना था। सोमू ने अपने कमरे को दादी के मनपसन्द आसमानी रंग से सजाया था। आसमानी परदे, आसमानी चादरें, आसमानी टेबल क्लाॅथ। आसमानी रंग के रोस्टरस की कमी थी जिसे वह अपनी पाॅकेट मनी से पास के सुपर मार्केट से खरीद लाया था। उसने आसमानी रंग के चार्ट पेपर पर वेक्स कलर से लिखा था - ‘वेलकम होम दादी’। पापा-मम्मी के साथ दादी लिफ्ट की ओर बढ़ रहीं थीं तब सोमू दौड़कर घर के दरवाजे पर आ गया था। उधर लिफ्ट का दरवाजा खुला और इधर सोमू चार्ट पेपर लेकर सामने खड़ा हो गया। दादी ने उसे सीने से लगा लिया। रास्ते में मम्मी-पापा ने शायद सोमू का आग्रह उन्हें बता दिया था क्योंकि सोमू के साथ पहले उनकी खूब लम्बी-लम्बी बहसें होती थीं कभी-कभी सोमू बदतमीजी भी कर जाता था और दादी भी सख्त हो जाती थीं लेकिन आज वातावरण बिल्कुल बदला हुआ था।

सोमू दादी को अपने कमरे में ले आया। कमरे के दरवाजे पर आर्टिस्टिक ढंग से लिखा था ‘दादी एण्ड सोमू‘ज रूम’। दादी कमरे की सजावट देखकर बहुत खुश हुईं थीं। उनकी आँखें सजल हो गयी थीं। डाइनिंग टेबिल पर सबने मूँग की दाल की खिचड़ी, चटनी, पापड़, दही और अचार के साथ स्वाद से खायी थी। दादी की आँखें बार-बार भर जा रहीं थीं। शायद उन्हें उस घर की याद आ रही थी। बहुत सारे दिन उन सबने वहाँ बिताये थे।

सुबह सोमू की आँख एलार्म बजने से खुली। दादी अभी सो रहीं थीं। उसने जल्दी से एलार्म बन्द किया और दबे पाँव दरवाजा उड़का कर कमरे से बाहर आ गया। सुबह पढ़ने वाली किताबें वह रात में ही ड्राइंगरूम में रख आया था। अब ड्राइंग रूम को उसने अपने पढ़ने का स्थान बनाने का निश्चय कर लिया था जब दादी आराम कर रही होंगीं। बस का हार्न सुनकर दादी कमरे से बाहर आयीं। सोमू नीचे जा चुका था। वह मुड़-मुड़कर देखता जा रहा था। उसे विश्वास था कि दादी उसे ‘सी आॅफ’ करने अवश्य आयेंगी। दादी के हाथ हिलाने पर उसे असीम खुशी मिली आज घर से बस तक की दूरी रोज की अपेक्षा उसने कुछ अधिक समय में तय की।

अंशिका पहले से बैठी हुई थी। सोमू ने बगल की सीट पर बैठते हुए उसे बताया - ‘अंशी ! कल रात मेरी दादी हमारे साथ हमेशा के लिए रहने आ गयीं।’

‘सच्ची’

‘और नहीं तो क्या झूठ। स्कूल से लौटकर मिल लेना तुम्हें ऐसा लगेगा जैसे तुम अपनी दादी से मिल रही हो। सच अंशी तुम्हारी दादी से बात कर मुझे लगा हम एक दादी का प्यार तो तुरन्त पा सकते हैं।’ सोमू ने कहा।

‘लेकिन सोमू ! अब दादी के आने के बाद मैं अपनी दादी और पापा से बात कैसे कर पाऊँगी ?’ अंशी को चिन्ता हुई।

‘अरे पगली दादी को कान्फीडेंस में ले लेंगे। हो सकता है दोनों दादी दोस्त बन जायें और हमारी समस्या सुलझ जाय। वैसे मैंने मम्मी को सब कुछ बता दिया है।’

‘सौमित्र ! तुमने यह ठीक नहीं किया। अब आण्टी मम्मी या मामी को बता देंगीं और फिर मुझे तुम्हारे घर भी आने को नहीं मिलेगा। तुम नहीं जानते मुझे नानी के घर बहुत घुटन होती है। तुम्हारे घर आकर कुछ अच्छा लगता है तो वह भी बन्द हो जायेगा। अंशिका सोच-सोचकर परेशान होने लगी।’

‘ऐसा कुछ नहीं होगा। तुम बेमतलब परेशान मत हो। हम सब मिलकर तुम्हारी समस्या सुलझा लेंगे। भगवान ने चाहा तो तुम अगली कक्षा की पढ़ाई अपने पापा के पास ही करोगी।’

‘नहीं सोमू ! मम्मी मुझे कभी नहीं जाने देंगीं।’

‘यह कौन कह रहा है कि तुम्हें मम्मी को यहाँ छोड़कर जाना होगा। देखना तुम सब बहुत जल्दी ही साथ-साथ रहने लगोगे।’ स्कूल की बस से उतरते हुए सौमित्र ने अंशिका के मन में एक नन्हीं सी आशा की किरण जगमगा दी।