Mita ek ladki ke sangarsh ki kahaani - 13 in Hindi Love Stories by Bhupendra Kuldeep books and stories PDF | मीता एक लड़की के संघर्ष की कहानी - अध्याय - 13

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मीता एक लड़की के संघर्ष की कहानी - अध्याय - 13

अध्याय-13

एक दिन दीपक अपने पिता की आय का काला चिट्ठा लेकर घर आया।
सुनो। ये फाईल रखो इसकी पूरी जवाबदारी तुम्हारी है। दीपक बोला।
क्या है ये ?
तुम फाईल खोलकर देखो तुम्हें समझ आ जाएगा।
मीता ने फाईल खोलकर देखा तो सांसद महोदय की संपत्ति और आय का काला चिट्ठा था।
ये सब क्या है और तुम मुझसे क्या चाहते हो ?
मीता ने पूछा।
ये सब भी पिताजी की ही संपत्ति है
तो ?
तो इन सभी को तुमको लीगल बनाना है।
मैं ही क्यूँ। तुम इसे मुझसे बड़े अधिकारी को दे दो। तुम्हारे पिताजी तो सांसद है उनकी तो ऊपर तक अच्छी पकड़ है। वो किसी को बोलेंगे तो कोई मना करेगा क्या। आखिर मेरे पापा को तो दो दिन में सस्पेंड करा दिये थे।
अच्छा हाँ क्या हुआ मेरे पापा का ?
उनकी कब वापसी होगी। अब तो शादी भी हो गई। तुम्हें जो चाहिए था वो तो मिल चुका, अब तो बोलो तुम्हारे पापा को।
ठीक है ठीक है बोलता हूँ परंतु ये काम पहले दीपक बोला।
देखो दीपक मैं एक ईमानदार पिता की बेटी हूँ, मैं तो ये काम नहीं कर पाऊँगी।
ईमानदारी किस बात की ईमानदारी ? 25 साल की ईमानदारी से क्या मिला तेरे बाप को ? एक दिन लगा उसको झूठे केस में फसाने के लिए। अब तू ये चाहती है कि ये सब मीडिया में जाए कि उनको भ्रष्टाचार के लिए संस्पेंड किया गया है। दीपक चिल्लाते हुए बोला।
देखो चिल्लाने से कोई फायदा नहीं होगा। मेरे सब अधिकारी मेरे काम पर नजर रखते हैं। तुम अपने पिताजी से कहो कि ऊपर बात करें, मेरे अधिकारियों से बात करें। मैं बस सभी फाईल आगे बढ़ा दूँगी। बाकि तुम्हारे पापा जाने और वो अधिकारी जाने। लेकिन शर्त एक ही है कि मेरे पापा की नौकरी में वापसी होनी चाहिए।
इधर एक दिन सुबोध जब घर पहुँचा तो उसकी माँ ने एक पत्र दिया।
ऊपर लिखा था साक्षात्कार पत्र प्रेषक लोक सेवा आयोग। उसने पत्र खोलकर देखा तो उसकी खुशी का ठिकाना नहीं रहा। वो जज की लिखित परीक्षा निकाल लिया था जो उसने मीता के मुख्य परीक्षा के समय दिलाया था।
उसके अरमानों का पंख लग गए, उसे दुख मिश्रित सुख का अनुभव हुआ। क्योंकि मीता ने उसे उसके निम्न स्टेटस के लिए छोड़ दिया था। एक सप्ताह बाद उसका इंटरव्यू था। उसने सिर्फ मीता और उसके परिवार को दिखाने के लिए जमकर मेहनत की। वो सलेक्ट होकर और जज बनकर उनको दिखा देना चाहता था कि वो भी उनके स्टेटस के बराबर पहुँच गया है। ये स्टेटस शब्द उसे दिनभर चुभता था। इसलिए वो उस एक सप्ताह में अपनी क्षमता से अधिक मेहनत किया।
आखिर साक्षात्कार का दिन आया और उसने बड़े आत्मविश्वास और ईश्वर पर भरोसे के साथ साक्षात्कार दिलाया। साक्षात्कार के अंत में जब उसे पूछा गया कि तुम जज क्यों बनना चाहते हो ?
तो उसने जवाब दिया क्योंकि मैं जीवन भर ‘‘सुपरवाईजर’‘ नहीं बने रहना चाहता हूँ।
इस उत्तर ने बोर्ड में बैठे सभी सदस्यों को प्रभावित किया और शाम को जब रिजल्ट आया तो सुबोध को प्रथम स्थान मिला था। वो तो खुशी से पागल ही हो गया। उसे जो चाहिए था जीवन में वो मिल गया था। अब उसे सिर्फ ये सब मीता को दिखाना था।
मीता के पापा अब भी सस्पेंड ही थे। उनकी नौकरी उन्हें अब तक वापस नहीं मिली थी। जबकि मीता की शादी हुए एक महीना होने वाला था। फिर एक दिन उसके पापा को फोन आया।
हैलो मीता।
हाँ पापा कैसे हैं आप ?
मैं तो ठीक हूँ बेटा तुम कैसी हो ?
मैं भी ठीक हूँ पापा। आप तो सब कुछ जानते हैं।
मैं जानता हूँ बेटा कि तुम कितनी तकलीफ सह रही हो।
हाँ पापा और किसी बात का विरोध भी नहीं कर पाती क्योंकि जैसे ही विरोध करती हूँ तो दीपक आपको रिस्टैण्ड ना करने की धमकी देता है और मैं चुप हो जाती हूँ।
पर मैंने तुझे आज फोन इसलिए किया है बेटा कि शासन ने मेरा सस्पेंशन खत्म करा दिया है और मुझे बहाल कर दिया गया है।
ओह! ये तो अच्छी बात है पापा। ये तो बहुत बड़ी घटना है आपको निष्कलंक होकर वापस अपना जॉब मिल रहा है।
पर मैं जॉब छोड़ना चाहता हूँ बेटा। उसी सम्मान के साथ वालेन्टरी रिटायरमेंट लेकर घर पर रहना चाहता हूँ। मैं जानता हूँ मीता कि तुम सुबोध की वजह से नहीं बल्कि मेरी वजह से कमजोर पड़ रही थी। अब तुम उसकी बातों का विरोध कर पाओगी। क्योंकि जब मैं और तुम्हारी मम्मी जॉब में ही नहीं रहेंगे तो धमकी किस बात की देगा।
नहीं पापा तब भी वो आपको नुकसान पहुँचा सकते हैं।
तो बेटा तू घर क्यों नहीं आ जाती। तू चुपचाप घर आजा हम सब यहाँ से कही दूर जाकर बस जायेंगे।
आपने मुझे कभी भागकर जीना नहीं सिखाया पापा। तो आज मुसीबतों से भागकर मैं जिंदगी भर डरपोक की तरह जीना नहीं चाहती।
ऊपर से मैं भाग गई तो सुबोध को नुकसान पहुँच सकता है। ये लोग उसे छोड़ेंगे नहीं। अब मेरे भाग्य में ऐसा लिखा है तो ऐसा ही चलने दो पापा। अब तो इन सब बातों की इतनी आदत हो गई है कि वो मुझ पर चिल्लाता है तो भी दिन सामान्य गुजरता है।
आप अपनी ड्यूटी ज्वाईन करके चिंतामुक्त रहिए पापा। वो अब कुछ नहीं करेगा प्रेम बहुत लंबा होता है पर लालसा बहुत छोटी होती है। उसे सिर्फ मेरी लालसा थी। प्यार नहीं था इसलिए वो खत्म हो गया है। अब वो सिर्फ शारीरिक जरूरतों के लिए मेरे कमरे में आता है। ना उसे मुझसे कुछ भावनात्मक लगाव है ना ही मुझे उससे कुछ भावनात्मक लगाव है।
मैं ये सब सुनकर बहुत दुखी हो जाता हूँ बेटा। यही मेरी स्थिति समझकर खुश रहने की कोशिश करिए पापा। चलिए मुझे कुछ उनके फादर की फाईलें बढ़ानी है मैं रखती हूँ।
सुनो, सुनो क्या बोली तुम ? शर्मा जी ने कहा।
सांसद महोदय की बेनामी संपत्ति को लीगल करने के लिए मुझ पर दबाव बना रहे हैं पापा।
तुमने क्या बोला ?
मैंने तो कह दिया था कि मेरे अधिकारी जाने और आप जानो। बाकि मैं फाईलें आग बढ़ा दूँगी।
तुम अपना हाथ साफ ही रखना बेटा।
वो तो रखूँगी पापा परंतु दबाव तो बना ही हुआ है और अगर कहीं से ये मामला लीक हो गया तो परेशानी और बढ़ जायेगी। क्योंकि लोकल इनकम टैक्स अधिकारियों को तो पता ही नहीं चलता कि कब किसके घर रेड पड़ने वाला है।
हाँ तुम ठीक बोल रही हो। चलो अपना ध्यान रखना।
ठीक है पापा। कहकर उसने फोन रख दिया।
फिर मीता ने दीपक को फोन लगाया।
तुम्हारे पापा ने अधिकारी से बात किया कि नहीं क्योंकि मैं फाईल लीगल करने के लिए उनके पास ले जाने वाली हूँ।
ठीक है मैं पापा से बात करके बताता हूँ । दीपक बोला।
थोड़ी देर में वो वापस कालबैक किया।
पापा ने शायद बात कर ली है वो बोले फाईल आगे बढ़ा दो।
ठीक है मैं फाईल लेकर जा रही हूँ।
मीता फाईल लेकर अधिकारी के पास फाईल छोड़कर आ गई और निश्चिंत हो गई कि अब वो अधिकारी और सांसद आपस में जाने क्या करना है। ये सब काम निपटा कर वो घर आ गई और कुछ हद तक निश्चिंत हो गई कि उसके ऊपर से बड़ा बोझ ऊतर गया।
दूसरे दिन घर के सभी लोग, मीता भी आफिस के लिए निकल गई थी। तब करीब दिन के 12 बजे सांसद महोदय के घर तथा सभी ठिकानों पर केन्द्रीय आयकर विभाग का छापा पड़ा।
खबर लगते लगते करीब एक घंटा बीत चुका था।
दीपक ने मीता को फोन किया।
कमीनी तुमने क्या किया था फाईल के साथ ?
क्या किया था ?
तुमने पूरी फाईल की कॉपी दिल्ली भेज दी थी।
नहीं मैं क्यूँ भेजूंगी। मैंने तो वो फाईल बिलकुल वैसे ही अपने अधिकारी को दे दी थी।
इतना पैसा खाने के बाद वो अधिकारी तो धोखा दे नहीं सकता। धोखा तुम्हीं ने दिया होगा। नहीं तो बताओ कि उन सारी सपंत्तियों की जानकारी आखिर वहाँ पहुँची कैसे।
मुझे कुछ नही मालूम मैं भला अपने ही परिवार का बुरा क्यो चाहूँगी। आखिर तुम्हारे घर की बहु हूँ मैं, और चाहे जो भी हो वो तो मेरे ससुर ही हैं।
मुझे तुम्हारी बात पर बिलकुल भरोसा नहीं है। तुम तुरंत घर आओ । तुमको बताता हूँ।
देखे कुल मिलाकर तुम मेरे साथ मारपीट करोगे, पर मैं सच बोल रही हूँ, मुझे सचमुच नहीं पता। मैं अपने पापा की कसम खाकर कहती हूँ मुझे कुछ भी नहीं पता, मीता बोली।
मुझे कुछ भी नही सुनना है तुम तुरंत घर आओ आज तुम्हारी खैर नहीं।
थोड़ी देर में मीता सांसद के निजी निवास पर पहुँच गई। दीपक बाहर ही खड़ा था और उसके साथ आयकर विभाग के दो तीन अधिकारी भी खड़े थे।
तुम ऊपर जाओ मैं अभी आता हूँ। दीपक बोला। ठीक है पर मुझे कुछ नहीं पता। मीता बोली।
मैं बोल रहा हूँ ना कि तुम ऊपर जाओ। तुमको समझ में नहीं आ रहा है क्या चुपचाप ऊपर जाओ। दीपक चिल्लाया।
मीता ऊपर जाकर बाल्कनी में खड़ी हो गई और नीचे देखने लगी। थोड़ी देर में दीपक कमरे में आते दिखा। वो बहुत गुस्से में दिख रहा था वो तेजी से मीता को मारने के लिए आगे बढ़ा लेकिन अचानक उसका पैर स्लिप कर गया और वो सीधे बाल्कनी से नीचे गिरने को हुआ। मीता ने उसका हाथ पकड़ने की कोशिश की पर वो छूट गया और धड़ाम से वो नीचे आ गिरा। उसके कान के नीचे से खून बहता हुआ बाहर चला आया और उसके प्राण पखेरू उड़ गए।
मीता एकदम स्तब्ध खड़ी थी। एक सेकण्ड के लिए तो उसे कुछ समझ में नहीं आया। फिर उसे होश आया कि दीपक तो मर चुका था। वो अब भी नीचे देख रही थी। वहाँ पर भीड़ जमा हो चुकी थी। सब लोग ऊपर मीता की तरफ ऊपर देख रहे थे। पता नहीं क्यूँ लेकिन मीता ने एक अजीब सी शांति का अनुभव किया।
तभी पुलिस उसके कमरे में आ गई और उसे हिरासत में ले लिए।
सांसद ने तुरंत उसको अरेस्ट करने का आदेश दे दिया। अब तो उसको यकीन हो गया था कि इसी ने रेड करवाया है और इसी ने उसके बच्चे को तीसरे मंजिल से धक्का दिया होगा। इसलिए उसने पुलिस को तत्काल एफ.आई.आर. दर्ज करने के लिए कहा। पुलिस भी तत्काल हरकत में आ गई। उसने मीता को गिरफ्तार कर लिया। बाल्कनी के फोटोग्राफ ले लिए। ऊपर बाल्कनी के सभी चीजो का आकलन कर उसके कमरे को बंद कर दिया। पुलिस ने मीता को रिमांड पर ले लिया और तुरंत महिला जेल ले गई।

क्रमशः

मेरी अन्य दो कहानिया उड़ान और नमकीन चाय भी matrubharti पर उपलब्ध है कृपया पढ़कर समीक्षा अवश्य दे- भूपेंद्र कुलदीप।