शादी के लिए विशाल व चांदनी की रजामंदी मिलते ही दोनों परिवारों की खुशी का ठिकाना ना रहा। दोनों ही परिवारों में शादी की तैयारियां होने लगी और 1 महीने के अंदर ही चांदनी, विशाल की दुल्हन बन उसके घर आ गई।
विशाल का असीम प्रेम और कल्याणी से मां सा स्नेह पाकर चांदनी का जीवन खुशियों से भर गया था। उसकी मां तो अपनी बेटी को इतना खुश देखकर भगवान को हमेशा शुकराना अदा करते ना थकती थी।
विशाल और चांदनी के अथक परिश्रम से उनकी एनजीओ व उनके सामाजिक कार्यों को भी बहुत सराहना मिल रही थी। जिसके परिणाम स्वरूप उनकी एनजीओ को कई पुरस्कार भी मिल चुके थे। दोनों ने अपना जीवन असहाय लोगों के जीवन को संवारने के लिए समर्पित कर दिया था।
चांदनी की बढ़ती व्यस्तता के कारण कल्याणी घर के काम में उसे पूरा सहयोग देती थी। चांदनी हमेशा अपनी सास की बडाई करते हुए उन्हें कहती
" मां आपको देखकर कभी लगता ही नहीं कि आप मेरी सास हो। आपका सहयोग है, तभी मैं घर और बाहर के कामों की जिम्मेदारी निभा पा रही हूं वरना शायद ही मैं इतना कुछ कर पाती।"
"नहीं बेटा, तुम दोनों समाज के लिए इतना अच्छा काम कर रहे हो तो मेरा भी फर्ज बनता है कि मैं भी अपनी तरफ से जितना हो सके करूं। बाहर तो मैं नहीं जा सकती। हां, घर के कामों में तेरी मदद कर अपना मन को तसल्ली दे लेती हूं।"
1 साल बाद चांदनी और विशाल के जीवन में नन्हीं सी परी के रूप में खुशियों ने फिर से दस्तक दी। माता-पिता बनने के एहसास से दोनों ही अभिभूत थे। कल्याणी तो अपनी पोती को देख फूला नहीं समा रही थी। सबसे बड़ी बात चांदनी के मां बनने के बाद उसकी मां के दिल का बोझ हल्का हो गया था । आज डॉक्टर की वह बात भी झूठी साबित हो गई थी कि चांदनी कभी मां नहीं बन सकती। सच भगवान के घर देर है अंधेर नहीं।
समय पंख लगा कर उड़ रहा था। चांदनी और विशाल की शादी को 5 साल हो गए थे। उनकी बेटी स्कूल जाने लगी थी। रोहित अपनी पढ़ाई पूरी कर एक अच्छी कंपनी में नौकरी लग गया था। चांदनी और उसकी मम्मी उसके लिए लड़की ढूंढने लगी थे। दादी की इच्छा थी कि आंखें बंद होने से पहले अपने पोते का घर बसा देख ले तो चिंता मुक्त हो इस दुनिया से विदा ले।
1 दिन चांदनी क्लास ले रही थी, तभी विशाल ने उसे बुलावा भेजा कि उससे मिलने कोई आया है।
चांदनी जब ऑफिस में पहुंची तो सामने रश्मि को बैठा देख हैरान रह गई। दोनों ही एक दूसरे को देख अपने आंसुओं को नहीं रोक पाई और एक दूसरे के गले लग गई।
चांदनी ने विशाल से रश्मि का परिचय कराया। दो चार बातें करने के बाद विशाल ने कहा "अच्छा भई मैं बाहर जाता हूं। तुम दोनों सहेलियों के बीच मेरा क्या काम। इतने सालों बाद मिली हो तुम दोनों इसलिए जी भर बातें करो। तब तक मैं चाय पानी का इंतजाम करता हूं।"
"चांदनी फिर से तेरा घर बसा देख और तुझे इतना खुश देख कर, तू समझ नहीं सकती, मैं कितनी खुश हुई हूं। जब से तुम वहां से गयी हो एक दिन भी, मैं तुझे नहीं भूली।" रश्मि ने कहा।
"और मैं ही तुझे कहां भूल पाई। शादी का इनविटेशन देने के लिए भी तुझे कितनी बार फोन किया लेकिन तेरा नंबर ही नहीं लगता था। इतने सालों में तुझे मेरी याद नहीं आई क्या!"
"याद तो तब आती ना! जब तुझे एक दिन भी भूली होती। बस मैं उस अपराध बोध को अपने मन से ना निकाल पाई, जिसके कारण तेरी जिंदगी में इतने दुख आए।"
"चल पगली, इसमें तेरा क्या दोष! तूने तो हमेशा मेरे भले की सोची है। मेरे जीवन का वह समय तो भूली दास्तां बन कर रह गया। विशाल और अपनी सास से मुझे इतना प्यार मिल रहा है कि मैं उन दुखों को कब का भूल चुकी हूं। और बता जीजा जी कैसे हैं और बच्चे! उन सब के बारे में बता।"
"तेरे जीजा जी ठीक है और तू दो नन्ही मुन्ने शैतानों की मौसी बन गई है । तू बता, तेरी फुलवारी में कोई फूल खिला क्या!"
"हां, 4 साल की बिटिया की मौसी बन गई है तू भी। बस थोड़ी देर में घर चलते हैं। फिर मैं अपनी सास से तुझे मिलवांऊगी और मम्मी तो तुझे देखकर बहुत खुश होगी।"
"मैं चाची से मिलकर आई हूं ।उसी ने मुझे तेरी एनजीओ का एड्रेस दिया। बस ज्यादा देर नहीं रुकूंगी। एक बहुत ही जरूरी काम था। इस कारण मुझे आना पड़ा।"
"यह क्या बात हुई भला! इतने सालों बाद मिली है और जाने की लगी है तुझे! अभी तो मुझे तुझसे कितनी ही बातें करनी है।"
"हां हां मुझे भी तुझ से ढेर सारी बातें करनी है लेकिन आज मैं जिस जरूरी काम से आई हूं, पहले उसे निपटा लू। पर समझ में नहीं आ रहा, कहां से शुरू करूं और कैसे! सुनकर कहीं तू नाराज ना हो जाए, यह भी डर है मुझे!"
"अरे, ऐसा भी क्या जरूरी काम है। जो तुझे बताने में इतनी झिझक महसूस हो रही है। बता तो सही क्या बात है! और नाराज क्यों होऊंगी। इतने सालों बाद मुझे फिर से तू मिली है। मैं तुझे खोना नहीं चाहती। बता तो सही क्या बात है। क्या कहना चाहती है और किसके बारे में!"
"चांदनी कई साल पहले मैं तेरे जीवन की सबसे बड़ी खुशखबरी लेकर आई थी। जिसका तुझे इंतजार था ।आज वक्त ने मुझे फिर से उसी दौराहे पर खड़ा कर दिया है कि मुझे उसी इंसान के बारे में तुझे खबर देनी है ,जिससे तू सबसे ज्यादा नफरत करती है!"
"तू कहना क्या चाहती है। साफ-साफ बता यू पहेलियां मत बुझा। मेरा दिल घबरा रहा है!"
"चांदनी, आज मै एक बार फिर से तेरे लिए आकाश का संदेशा लेकर आई हूं।" रश्मि ने जल्दी से कहा।
"क्या, क्या कहा तूने फिर से एक बार फिर से कह।"
"हां ,चांदनी मैं यहां पर तेरे पास आकाश की ही बात करने आई हूं।"
"पागल हो गई है क्या! तू इतने सालों बाद मिली और वह भी उस आदमी के लिए, जिसने मेरे जीवन को नरक करने में कोई कसर ना छोड़ी। मैं उन कड़वी यादों को कब का भूल चुकी हूं ।मुझे नहीं सुनना उसके बारे में कुछ भी।"
"चांदनी, उसने तेरे साथ जो किया भगवान ने उसे उसकी सजा दे दी है। जीवन की आखिरी घड़ियां गिन रहा है वह और शायद तुझसे मिलकर माफी मांगने के लिए भी उसकी सांसे अटकी हुई है। वह और तेरे जीजा जी तो मुझे कब से तुझे बुलाने के लिए कह रहे थे लेकिन तेरी तरह मैं भी उसे कभी माफ नहीं कर पाई थी लेकिन तेरे जीजा जी के कहने से मैं उससे मिलने गई तो उसकी हालत देख, मैं अपने आप को तेरे पास आने से नहीं रोक पाई। मुझे यकीन है, उसने तेरे साथ जो भी किया हो लेकिन तुम उसकी तरह निष्ठुर नहीं।"
सुनकर चांदनी के चेहरे पर हैरानी व दुख के भाव उमड़ पड़े। अपनी भावनाओं को काबू करते हुए वह फिर से थोड़ी कठोर होते हुए बोली " उसकी शादी तो बहुत अमीर घराने में हुई थी। सुना था बहुत दहेज लाई थी उसकी दूसरी पत्नी और कारोबार भी बहुत बढा लिया था उसने। फिर अचानक यह सब कैसे हुआ।"
"अमीर घराने में शादी करने से क्या होता है ।लड़की भी तो संस्कारी होनी चाहिए ना। जब वह इतना दहेज लाएगी तो घर में किसी की क्यों सुनेगी। आकाश की मां का स्वभाव तुझे पता ही था ना। लेकिन आकाश की पत्नी उनकी कहां सुनने वाली थी। रोज घर में कलेश होता। 1 साल बाद ही उसने अपनी ससुराल वालों पर दहेज का मुकदमा डाल दिया और भारी रकम ले आकाश को तलाक देकर अलग हो गई। अभी वह सब इस सदमे से उबर भी नहीं पाए थे कि आकाश के मम्मी पापा का एक्सीडेंट हो गया और उसमें आकाश के पापा चल बसे और उसकी मम्मी के कमर के नीचे का हिस्सा लकवा ग्रस्त हो गया और वह व्हील चेयर पर आ गई। अपने परिवार पर आई मुसीबतों को देख आकाश की मम्मी अंदर ही अंदर घुलने लगी और कुछ समय बाद ही उन्होंने बिस्तर पकड़ लिया और 1 साल बाद वह भी आकाश को अकेला छोड़ चल बसी लेकिन जाते जाते उसने आकाश से माफी मांगते हुए, तेरे साथ किए अन्याय की सारी सच्चाई आकाश को बता दी कि कैसे उसने डॉक्टर से कहकर तेरी रिपोर्ट बदलवा दी थी। साथ ही उसने यह भी बताया कि तुझे उससे अलग करने के लिए उसने ही डॉक्टर से यह बात कहलवाई थी कि तू अब कभी मां नहीं बन सकती। "
आकाश को यह सब सुन अपने आप से नफरत हो गई कि उसने बिना सच्चाई जाने अपनी मां की बातों में आकर तेरा जीवन बर्बाद कर दिया । वह तुझसे माफी मांगने तेरे घर भी गया था। तुम्हें वहां ना पाकर, मेरे पास तेरे घर का पता लेने आया था लेकिन चाची ने मुझे पहले ही मना कर दिया था कि किसी भी हाल में यहां के लोगों को, मैं उनके नये ठिकाने के बारे में ना बताऊं और वह मुझे ना भी कहती तो भी मैं उसे तेरे पास नहीं भेजती । तेरे साथ उसने जो किया, मैं कहां उसके लिए उसे माफ कर पाई थी। प्रायश्चित व अकेलेपन की आग में जलते हुए उसने खुद को शराब के हवाले कर दिया। रात दिन शराब में डूबा रहता। इस कारण उसका कारोबार भी ठप्प हो गया और शरीर भी। अगर तू मुझे अपनी सहेली मानती है तो एक बार उससे मिल ले। भगवान ने उसे उसके बुरे कर्मों की बहुत सजा दे दी है। दूसरी तरफ यह सोच ले कि
उसके कारण ही आज विशाल जी तेरे जीवन में है। वैसे भी तुम दोनों ने लोगों के जीवन से दुख दूर करने का प्रण लिया है ना! तो उसे भी उसके दुखों से मुक्ति दे।"
रश्मि की बातें सुन चांदनी सोच में पड़ गई।
क्रमशः
सरोज ✍️