अध्याय-12होश में आने के बाद वो अस्पताल के बिस्तर पर पड़े पड़े रो रहा था उसका बड़ा भाई सामने ही बैठा था।
उसने मुझे धोखा दे दिया है भैया। वो किसी और से शादी करूँगी कहती है। मैने जान से चाहा उसे। उसके सपने को पूरा करने के लिए इतनी मेहनत की और उसने क्या किया। सब पाकर उसने मुझे छोड़ दिया। आज मैं मर गया भैया, आज मैं मर गया।
चुप हो जा भाई। ये बड़े घर के लोगों की सोच के विषय में कुछ नहीं कहा जा सकता। वो कब क्या कर देंगे कुछ बता नहीं सकते। ऊपर से तुम्हारा बच्चा नहीं था। माँ बन होती तो शायद तुझे कभी नहीं छोड़ पाती। अब बच्चा है नहीं तो उसके पास तो अवसर है।
सुबोध यह सब ध्यान से सुन रहा था उसे लगा भैया शायद ठीक कह रहें है। बच्चे की लालच में कही दूसरी शादी तो नहीं कर रही है। वो क्या सिर्फ बच्चे के लिए मुझ धोखा दे सकती है ?
उसने डिसाईड कर लिया कि वो भी अपना स्टेटस बड़ा बनाएगा और मीता को एक बार जरूर दिखाएगा कि जिस स्टेटस के लिए उसे छोड़ दिया था। अब उसका भी है।
इधर मीता को जब पता चला कि सुबोध सुरक्षित है उसने गहरी सांस ली। मीता जानती थी कि अपने माता-पिता के सम्मान और सुबोध की जान बचाने का यही एक रास्ता है। इसलिए उसने ऐसा किया। नफरत और गुस्से के सहारे आदमी ज्यादा दिन जिंदा रह सकता है और वो इसी के तर्ज पर जानती थी कि सुबोध उसे भले रोज गुस्से से याद करेगा पर जीवित रहेगा। धोखा खाने के बाद इंसान मरता नहीं है बल्कि और ज्यादा सावधान हो जाता है। वो फूँक फूँक कर कदम रखता है और कई बार तो बदला लेने की भी कोशिश करता है।
मि. साहनी मैं मि. शर्मा बोल रहा हूँ।
ओ! हाँ मि. शर्मा आपने क्या डिसाईड किया ?
मीता आपके बेटे से शादी के लिए तैयार है बस उसकी एक ही शर्त है कि आप लोग सुबोध को कोई नुकसान नहीं पहुँचायेंगे।
लाईये पिताजी मुझे बात करने दीजिए। तभी मीता बोली।
देखिए अंकल जी, मैं सिर्फ अपने पिता के सम्मान के लिए एग्री हुई हूँ। इसलिए जितनी जल्दी हो सके इन्हें वापस जॉब दिलवाईये।
देखो बेटा जी तुम जितनी जल्दी मेरे बेटे से शादी करेागी उतनी जल्दी तुम्हारे पापा रिस्टैंड हो जाऐंगे। पहले शादी तो हो जाने दो और मैं उम्मीद करता हूँ कि तुम अच्छी बहू की तरह यहाँ सारे रिश्ते निभाओगी। सांसद महोदय बोले।
मेरी ओर से कभी किसी के सम्मान में कमीं नहीं होगी परंतु आपके बेटे के साथ एडजस्ट होने में थोड़ा समय लगेगा क्योंकि मैं पहले ही ब्याहता थी और अपने पति से बहुत प्यार करती थी।
ठीक है मैं दीपक को इस बात को समझा दूंगा।
तुम शर्मा जी को फोन दो। हाँ हैलो शर्मा जी देखिए मैं एक हफ्ते बाद की शादी का निमंत्रण भेज रहा हूँ आपकी ओर से भी तैयारी कर लीजिए। मुझे कोई गड़बड़ नहीं चाहिए। एक हफ्ते में प्रशासन अकादमी का भी ट्रेनिंग समाप्त हो जाएगा। फिर दीपक और मीता दोनो फ्री हो जायेंगे। उसके बाद हम शादी का आयोजन कर लेंगे।
ठीक है साहनी जी।
मीता उस दिन वापस प्रशासन अकादमी चली गई। वो अंदर से इतनी टूट गई थी कि उसके चेहरे से मुस्कान ही गायब हो गई थी। जब वो अपने रूम पर पहुँची तो अंजली वहाँ पर बैठी थी। उसे देखते ही मीता रोने लगी। अंजली ने उसे अपने सीने से लगा लिया।
वो अब भी रो रही थी।
मीता ? क्या हुआ कुछ बताओगी। पहले तुम चुप हो जाओ।
मीता थोड़ी शांत हुई।
इधर बैठो और बताओ क्या हुआ। ?
क्या बताऊँ अंजली आज मैं आपने आप हार गई। मैं सोचती थी कि मैं बहुत सक्षम हूँ, बड़ी अधिकारी बन गई हूँ तो कोई मेरा कुछ बिगाड़ नहीं पाएगा। कोई मुझे मजबूर नही कर पाएगा। परंतु बेकार की बातें हैं। वो फिर रोने लगी।
अंजली ने उसका हाथ पकड़ लिया।
अच्छा पहले चुप हो जाओ प्लीज। अंजली बोली मीता फिर थोड़ी शांत हुई।
यार उस नीच दीपक ने मेरे परिवार को नुकसान पहुँचाने की चेष्टा की।
क्यों ?
क्योंकि वो मुझसे शादी करके उस दिन के थप्पड़ का बदला लेना चाहता है।
क्या नुकसान पहुँचाया उसने तेरे परिवार को।
उसने अपने पिता से कहकर सुबोध का एक्सीडेंट कराया वो भी ट्रक से, और मेरे पापा को सस्पेंड करा दिया। वो फिर रोने लगी।
अरे तू चुप हो जा। बार-बार क्यों रोती है। रोने से क्या समस्या का समाधान निकल आएगा, नहीं ना ? अंजली थोड़ी कम इमोशनल और सुलझी हुई लड़की थी।
तू आगे बता फिर क्या हुआ। परसों रात को सुबोध बेचारा मेरे घर आया, मुझे लेने के लिए। वो बुखार में तड़पता हुआ मेरे घर के सामने रोड पर बारिश में बैठा रहा ताकि मुझे मना कर ले जा सके पर मैंने उसे धोखा दे दिया। मैने उसे बता दिया कि मैं किसी और से शादी करना चाहती हूँ।
ओह! ये तो बुरा हुआ। वो बेचारा तुमसे बहुत प्यार करता है। उसकी तो हालत खराब हो गई होगी।
हाँ अंजली। वो बुखार में वहीं पर बेहोश हो गया था फिर पापा ने एंबुलेंस बुलाकर उसे अस्पताल भेजा। अभी वो ठीक है।
तुमने उसके साथ अच्छा नहीं किया मीता। अंजली बोली।
मुझे उसके ऊपर बड़ी दया आ रही है। तुझे उसे बता देना चाहिए था।
बता देती तो वो जी नहीं पाता अंजली। उसे जीवित और स्वस्थ्य रखने के लिए धोखा देना ही बेहतर था।
हाँ ये तो तू ठीक बोल रही है। पर तेरे इस फैसले से तेरे जीवन पर कितना असर पड़ रहा है ये देख। तुझे दीपक से साथ निभाना पड़ेगा।
हाँ अंजली क्या करूँ मैं ? उस नीच के साथ निभाना जैसे मेरे लिए काँटो पर चलने के समान है। मैं जानती हूँ अंजली कि उसे सिर्फ मेरा शरीर चाहिए। वो मेरे शरीर को नोंच-नोंच कर खाएगा और मैं कुछ नहीं कर पाऊँगी।
मैं समझ सकती हूँ मीता परंतु कितने दिन ? यदि तू उससे भावनात्मक लगाव खत्म कर देगी तो तेरे शरीर से भी उसका मन धीरे-धीरे ऊब जाएगा।
फिर वो तुझसे अलग रहने की कोशिश करेगा। बस यही एक तरीका है उससे अलग होने का। तुम कुछ ऐसा करो कि वो खुद से अलग होना चाहे। अंजली ने कहा।
मुझे अभी तो यही सोच-सोच करके आत्मग्लानि महसूस कर रही हूँ कि जिस मन को, जिस शरीर को मेरे सुबोध ने इतने प्यार से सहेज कर रखा है। उसे मुझे दीपक को छूने देना पड़ेगा। छी, पता नहीं मैं कैसे बर्दाश्त कर पाऊँगी।
सब ठीक हो जाएगा। मीता। तू बस धैर्य रख और अपने ईश्वर पर भरोसा रख। चल अब सो जा। कहकर दोनो सो गए।
अगले दिन क्लास के बाद दीपक उसके पास आया।
रूको दो मिनट। दीपक बोला।
उठो यहाँ से मुझे जाना है। मीता बोली।
अब तुम मेरी बीवी होने वाली हो बैठो।
अभी बनी नहीं हूँ दीपक। मजबूरी में तुम मेरा शरीर हांसिल कर सकते हो पर मुझे नहीं।
देखो मीता मैं तुम्हें चाहता हूँ और मुझे जो तरीका तुम्हें हांसिल करने का ठीक लगा मैंने वहीं किया।
इसे तुम चाहत कहते हो दीपक। अगर तुम मुझे सचमुच चाहते तो मेरी खुशी में आपनी खुशी ढूँढते। तुम्हें तो सिर्फ मेरे जिस्म से लगाव है। तुम्हें वही चाहिए ना बस। वो तुम्हें मिल तो रहा है। तुम्हारी तो इच्छा पूरी हो गई।
देखो मीता। तुम इस तरह मुझसे बात ना ही करो तो अच्छा होगा। तुम्हारे एक्स हसबैंड के लिए भी और तुम्हारे मम्मी पापा के लिए भी।
सिर्फ उन्हीं की वजह से मैं तैयार हुई हूँ दीपक, ये बात तुम भूलना नहीं। मुझे ये भी मालूम है मैंने जो तुम्हें तमाचा मारा था उसी की वजह से तुम्हारा ईगो हर्ट हो गया और बदला निकालने पर तुल गए हो।
ऐसा ही समझ लो पर अब तुम्हे मेरे ही साथ रहना है ये अच्छे से याद रखना। अगर तुमने सुबोध से या उसके परिवार से किसी भी प्रकार का संपर्क रखने की कोशिश की तो वो जान से जाएगा। एक बार तो ट्रक उसको सिर्फ ठोकर मारकर बचाकर निकल गई। अगली बार सीधे उसके ऊपर से जाएगी। सोच लिए रहो।
इसीलिए चुप हूँ दीपक, और मेरे पापा का क्या उनसे क्या दुश्मनी है मैं तो तैयार हो गई हूँ अब उनको रिस्टैंड क्यूँ नहीं करवाते। उनकी जॉब उनको वापस दिलाओ।
इतनी जल्दी क्या है तुम शादी तो कर लो। मेरी इच्छा पूरी हो जाए फिर उनको वापिस दिलवा दूँगा उनकी नौकरी।
पुलिस वाले होकर खुद अन्याय करते हो दीपक तुम्हें जरा भी शर्म नहीं आती ?
तुम्हें पाने की इच्छा रखना बुरी बात है क्या ?
हाँ बिलकुल बुरी बात है। मैं शादी शुदा हूँ, ये जानते हुए पाने की इच्छा रखना बुरी बात है।
जिस तरीके से तुमने मुझे मजबूर किया वो बुरी बात है। क्या अच्छा है इसमें ?
देखो मुझे बहस नहीं करनी है मुझे तुम्हें पाना है बस।
हाँ तो मिल रही हूँ ना तुमको। जो मन चाहे कर लेना। हटो अब यहाँ से। मुझे जाने दो।
यह कहकर वो उठकर क्लास से निकल गई। तीन चार दिनों बाद उनकी ट्रेनिंग कम्प्लीट हो गई थी।
विवाह के पहले दिन मीता के पिता ने मीता से कहा।
मैं जानता हूँ बेटा तुमने हम सब के खातिर अपना जीवन कुर्बान कर दिया।
नहीं पापा बल्कि मुझे तो संतुष्टि है कि मेरा जीवन आप सब के काम आ सका।
संतुष्टि ना बेटा खुशी तो नहीं है ना ?
देखिए पापा कुछ चीजों को भाग्य पर भी छोड़ देना चाहिए। भाग्य में होगा तो खुशी कभी ना कभी मिल ही जाएगी। फिर सुबोध के साथ मैने जो समय गुजारा। आपके सपने को पूरा किया ये सब खुशी के ही पल थे। आप निश्चिंत रहिए। आपकी थोड़ी हिम्मत मेरे खून में है इतनी जल्दी निराश होने वाली नहीं हूँ, और सुबोध के प्यार की ताकत तो मेरे साथ ही है।
उसके पापा दुखी होकर चुप चाप बैठ गए। वो बेटी के जीवन को बर्बाद होता देख रहे थे। परंतु कुछ कर नहीं पा रहे थे।
मीता ने पिता के कंधे पर हाथ रखा और सब ठीक हो जाएगा पापा आप चिंता मत कीजिए। अगर हम ठीक हैं सच्चे हैं तो भगवान सब ठीक कर देंगे।
क्या पता बेटा। मेरी अंतर्रात्मा मुझे कचोटती है कि ये सब मेरी वजह से हुआ।
कोई घटना किसी की वजह से नहीं होती पापा। ये सब नियति का खेल होता है। ऊपरवाला सब पहले से लिखा रहता है। इसलिए मैंने इसे अपनी नियति मान लिया है।
आप जाकर आराम करिए क्योंकि कल मेरी शादी है।
पापा की आँखों में आँसू थे। वो उठकर सोने चले गए।
दूसरे दिन दीपक और मीता की शादी हो गई। सांसद ने बड़ा खर्चीला विवाह आयोजित किया था सारे मंत्रीगण, विधायक उसके बेटे की शादी में आये थे।
उदासी मीता के चेहरे पर साफ नजर आ रही थी। परंतु वो मुस्कुराने के लिए मजबूर थी।
रात को सांसद के निजी आवास पर मीता तीसरी मंजिल से खड़ी होकर लोगो को देख रही थी। ये रौनक उसके दुख का कारण थी। जितना वो देखती उनती ही तकलीफ होती। रात के लगभग 12 बज गए थे। सब लगभग जा चुके थे लेकिन उसका पति अब तक घर नहीं आया था। वो तो प्रार्थना कर रही थी कि रात बिना उसके आये यूँ ही कट जाए। पर अचानक 1 बजे के आसपास उसके कमरे की घंटी बजी। उसे समझ में आ गया कि दीपक आ गया होगा। उसने जाकर दरवाजा खोला। सामने दीपक ही था परंतु उसके मुँह से शराब की बहुत दुर्गंध आ रही थी।
तुम पीकर आये हो दीपक ?
हाँ मैं पीकर आया हूँ और तुम कौन होती हो पूछने वाली ?
अभी शादी करके बीवी बनाया ना ?
हाँ तो क्या हुकुम चलाओंगी। चुपचाप नौकरानी की तरह यहाँ पड़ी रहो।
मुझे शराब पीने वाले बिलकुल पसंद नहीं दीपक। मीता बोली।
तुमसे पूछा किसी ने ? मेरी मर्जी मैं जो चाहे पीकर आऊँ। तुम बीवी हो बीवी की तरह रहो नहीं तो नुकसान तुम्हारे परिवार का होगा। तुमने मुझे झापड़ मारा था ना? देखो आज मैंने तुमको हांसिल कर लिया। क्या बिगाड़ लिया तुम्हारे परिवार वालों ने मेरा। वो सुपरवाईजर, क्या हैसियत है उसकी मेरे सामने।
वो लोग कमजोर नहीं है दीपक। मैं चुप हूँ इसलिए वो लोग चुप है। अगर सुबोध को बता देती ना तो वो तुम्हें मार डालता।
‘‘तड़ाक’’ दीपक ने अचानक मीता को तमाचा जड़ दिया। चुप करो बदतमीज। मेरी बीवी होकर उसके बारे में बात करती हो। याद रखना जब तक तुम मेरी जरूरतें पूरी करती रहोगी तभी तक वो जिंदा रहेगा, और मेरी जरूरत तुम जानती हो।
मीता वहीं बैठ गई उसकी आँखों से आँसू टपक पड़े।
रोने की नौटंकी मत करो। इधर आओ और मेरी जरूरत पूरी करो।
भयंकर मानसिक पीड़ा के साथ मीता ने सरेंडर कर दिया। उसने अपना दिमाग शून्य कर दिया। वो भयंकर यौन उत्पीड़न का शिकार हो रही थी पर इतनी मजबूर थी कि कुछ भी नहीं कर पा ही थी। कुछ दिनों के अंदर ये दर्द सहन करना उसके लिए आम बात हो गया था।
दीपक के यौन उत्पीड़न को तो वह सहती ही थी वरन कई बार तो उसके साथ मारपीट भी करता था।
क्रमशः
मेरी अन्य दो कहानियां उड़ान और नमकीन चाय भी matrubharti पर उपलब्ध है कृपया पढ़कर समीक्षा अवश्य दें- भूपेंद्र कुलदीप।