Nipunnika - 5 in Hindi Horror Stories by Saroj Verma books and stories PDF | निपुणनिका-- - 5(अंतिम भाग)

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निपुणनिका-- - 5(अंतिम भाग)

फिर एक रात उस महल में एक खूनी खेल हुआ, अपारशक्ति चेहरा ढ़ककर आधी रात के वक्त निपुणनिका के कमरे में गया और तलवार से श्रवन का गला काट दिया, आवाज सुनकर निपुणनिका जागी तो उसनेे उसका भी गला भी तकिये से घोट दिया और महल से भाग गया, सुबह लोगों को महल में चार लोगों की लाशें मिली, महाराज अमर्त्यसेन, राजकुमार रूद्रसेन,श्रवन और राजकुमारी निपुणनिका की,अपारशक्ति की लाश नहीं मिली तो लोगों ने समझा कि अपारशक्ति ही सभी को मारकर,कहीं भाग गया है,उस रात महल में क्या हुआ किसी को भी कुछ भी नहीं पता।
आजी मां बोली,बस यही कहानी है उस महल की, इसके अलावा मुझे कुछ नहीं मालूम, और सब आ गये।
लेकिन अपार के मन में कुछ चल रहा था, उसे कहानी सुनने के बाद सारी बातें याद आ गई, उसे याद आया कि पिछले जन्म में वो अपारशक्ति था, और ये इत्तेफ़ाक वाली बात है कि इस जन्म में भी उसका नाम अपारशक्ति ही है, लेकिन उस रात बहुत कुछ हुआ था जो कि शायद निपुणनिका को नहीं मालूम था,वो सब कुछ सिर्फ मुझे ही पता है और निपुणनिका को भी सच्चाई पता चलनी चाहिए।
फकीर बाबा के ताबीज की वजह से वो चुड़ैल दो-तीन दिन तक अपार के पास नहीं आई, और शनिवार की शाम अपार और मनोज मामा के साथ सिद्ध बाबा के पास गये और अपार अपना ताबीज उतार कर गया, वो जैसे ही सिद्ध बाबा के दरवाज़े तक पहुंचे,वो वैसे हवा में उड़ते हुए आई और अपार को हवा में उछाल दिया,शायद वो बाबा के पास हमें नहीं जाने देना चाहती थी,मामा जी बाबा के दरवाज़े पर जोर -जोर से दस्तक देने लगे, बाबा ने दरवाजा खोला और ये सब देखकर उन्होंने कुछ मंत्र पढ़ें, कुछ जलं छिड़का तो वो चली गई।
हमें बाबा अंदर ले गये, उन्होंने कहा कि आप सब लोग परेशान ना हों, वो अब नहीं आएगी, मुझे आराम से सारी बात बताये, हमने उन्हें सारी बात बताई, साथ-साथ पिछले जन्म की भी बात बताई।
उन्होंने कहा,आप सब परेशान ना हों अब वो नहीं आएगी,कल तक के लिए मैं बच्चे के हाथ में एक रक्षा सूत्र बांध देता हूं और आपको सामाग्री बता देता हूं कि कल पूजा में क्या-क्या लगेगा।
हम सब घर आ गये,सुबह होते ही हम सब सोच रहे थे कि क्या होगा रात में।
और शाम भी हो गई,हम सबने पूजा की सारी तैयारियां कर ली, थोड़ी देर बाद बाबा जी भी आ गये, सब ब्यवस्थित करने के बाद, बाबा जी बोले बेटा इस जगह बैठो, और उन्होंने अपार का रक्षासूत्र खोल दिया।
रक्षासूत्र खोलते ही,वो सामने प्रकट हुई, उसने अपने शक्तियों द्वारा पूजा के समान को बिखेरना शुरू कर दिया, और अपार से बोली मैं तुम्हें नहीं छोडूंगी,सब बुरी तरह से डरें हुए थे कि अब क्या होगा।
बाबा जी ने उससे पूछा कि तू इसे क्यो मारना चाहती हैं?
वो बोली ,ये मेरे सारे परिवार को मारकर भाग गया था, ये मुझसे बदला लेना चाहता था क्योंकि मैंने श्रवन से विवाह किया था, मुझे पता था कि ये मन ही मन मुझसे प्रेम करता है,इसने मेरे पति,भाई, पिता और यहां तक की मुझको भी नहीं छोड़ा। इससे पूछिए,इसने ऐसा क्यों किया,मेरा भाई तो इसका मित्र था, मेरे पिता,इसे अपने बेटे की तरह मानते थे और इसने इतना बड़ा विश्वासघात किया।
बाबा बोले, तुझे सारी बातें नहीं पता,तू पहले अपारशक्ति की बात सुन ले और अगर तुझे लगे कि वो ग़लत है तो जरूर उसे मार देना।
वो बोली, ठीक है बोलने दो,इसे अपनी बात___
अपारशक्ति ने बोलना शुरू किया____
उस दिन रूद्रसेन मेरे पास आया और बोला आज रात को राज्य का फेरा करना है कि सारे काम-काज ठीक से हो रहे हैं कि नहीं और प्रजा हमारे बारे में क्या सोचती है।
मैं बोला हां मित्र,क्यो नही? मैं किस प्रकार तुम्हारी मदद कर सकता हूं।
रूद्र बोला,बस तुम आज रात के लिए अपने वस्त्र देदो, ताकि मैं राज्य में जाऊं तो प्रजा मुझे पहचान ना सके।
अपार बोला,क्यो नही मित्र? आखिर इतना संकोच किसलिए,सब तुम्हारा दिया ही तो है,मुझ जैसे साधारण और अनाथ इंसान को तुमने अपना मित्र बनाया, नहीं तो मेरा क्या होता।
और रूद्रसेन, अपार के वस्त्र लेकर चला गया,रात में अपार को ध्यान आया कि,शायद मेरे मित्र को किसी सहायता की आवश्यकता हो तो वो उससे मिलने गया, तभी उसने दो सेवकों को आपस में बातें करते हुए सुना।
वो कह रहे थे कि, हमने श्रवन महाराज के कहने पर, रूद्र महाराज के पीने के जल में विष तो मिला दिया लेकिन किसी को कुछ पता चल गया तो, हमारी ख़ैर नहीं।
अपार ने इतना सुना तो, वो रूद्र को बताने उसके कमरे की तरफ दौड़ पड़ा, लेकिन देखा तो वो अपने कमरे में नहीं था, और वो महाराज अमर्त्यसेन के कमरे की तरफ भागा कि शायद रूद्रसेन वहां मिल जाए, लेकिन जब वो महाराज के कमरे तक पहुंचा ही तो उसने देखा कि रूद्रसेन उसके दिए हुए वस्त्र पहने हैं ,अपने मुंह को कपड़े से ढक रखा है, तलवार खून से सनी है वहीं बगल में महाराज अमर्त्यसेन का घायल और मृत शरीर पड़ा है और वो कह रहा है कि पिता महाराज आपने अगर मेरी बात मान ली होती तो आपका ये हाल ना होता,अब श्रवन और निपुणनिका की बारी है ,और रूद्र उन लोगों के कमरे की तरफ भागा और जल्दबाजी में मेरा पैर फिसल गया, मैं जैसे तैसे उठा और लंगड़ाते हुए उनके कमरे की ओर पहुंचा लेकिन तब तक देर हो चुकी थी और रूद्र,श्रवन के गले को धड़ से अलग कर चुका था,शोर सुनकर निपुणनिका जागी तो उसके मुंह पर तकिया रख कर उसका भी गला घोंट दिया, रूद्र मेरे कपड़ों में था तो निपुणनिका को लगा कि मैं हूं।
मैंने रूद्र को आवाज दी कि ये तुम क्या कर रहे हो, उसने कहा तूने मुझे देख लिया,अब तू भी नही बचेगा और मैंने महल से बाहर भागने की कोशिश की लेकिन वो भी मेरे पीछे आया, मैं जंगल की तरफ भागा, लेकिन उसने मुझे मार दिया, मेरी लाश तो जंगल में जानवरों ने खा ली होगी, लेकिन रूद्र जब महल लौटा होगा तो उसने महल पहुंच कर वहीं विष वाला जल पी लिया और वो भी मर गया।
बस यही कहानी थी निपुणनिका, मैं तो तुम्हें तब भी प्यार करता था और मैंने तो तुम्हें अब भी प्यार किया है।
अगर तुम्हें लगता है कि मैं ग़लत था तो तुम अपना बदला ले सकती हो, मुझे मारकर अगर तुम्हारी आत्मा को शांति मिलती है तो ये ही सही।
लेकिन निपुणिका बोली मुझे तुम्हारी बात पर भरोसा है, मैं तुम्हें अब कभी भी परेशान नहीं करूंगी, और निपुणनिका चली गई, फिर कभी भी अपारशक्ति को नहीं दिखी।

समाप्त__

सरोज वर्मा___🐾