Chhoona hai Aasman - 7 in Hindi Children Stories by Goodwin Masih books and stories PDF | छूना है आसमान - 7

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छूना है आसमान - 7

छूना है आसमान

अध्याय 7

रात के करीब दस बज रहे थे। चेतना ने देखा उसके पापा अकेले बैठे लैम्प की रोषनी में अपने आॅफिस का काम कर रहे हैं। चेतना ने सोचा मौका अच्छा है, क्यों न पापा को आॅडिषन का फार्म दे दूँ। बस फिर क्या था चेतना जल्दी से अपने कमरे में गयी और फार्म लेकर अपने पापा के सामने मेज पर रख दिया।

फार्म देखकर चेतना के पापा ने कहा, ‘‘यह क्या है......?’’

‘‘पापा, यह आपका वो सपना है, जिसे देखकर आप खुषी से फूले नहीं समायेंगे।’’ चेतना ने खुष होते हुए कहा।

‘‘अच्छा, देखूं तो क्या है।’’ कहकर उसके पापा उस फार्म को पढ़ते हैं और कहते हैं, ‘‘गुड, वैरी गुड, हमारी चेतना बिटिया सिंगिंग टी.वी. शो के लिए आॅडिषन में भाग लेगी।’’

‘‘जी पापा, बस आप इस फार्म को भरकर पोस्ट कर देना।’’

‘‘हाँ......हाँ......क्यों नहीं, मैं इसे भरकर कल सुबह आॅफिस जाते समय पोस्ट आॅफिस में पोस्ट कर दूँगा।’’

कहकर चेतना के पापा उसके दिए फाॅर्म को भरने लगते हैं, उसी समय चेतना की मम्मी वहाँ आ जाती हैं और फाॅर्म देखकर कहती हैं, ‘‘क्या है यह......? कहकर वह मेज पर से फाॅर्म उठाकर पढ़ती हैं और कहती हैं, ‘‘कहाँ से आया यह फाॅर्म......?’’

मम्मी के पूछते ही चेतना एकदम सहम जाती है और चुपचाप कभी मम्मी को तो कभी अपने पापा को देखती है। उसे चुप देखकर उसकी मम्मी कड़क कर कहती हैं, ‘‘अपने पापा की तरफ क्या देख रही है......जो मैं पूछ रही हूँ वो बता......किसने लाकर दिया यह फाॅर्म......?’’

‘‘रोनित सर ने।’’ चेतना ने डरते हुए धीरे से कहा।

रोनित का नाम सुनते ही चेतना की मम्मी का खून खौल जाता है। वह दाँत पीसकर कहती हैं, ‘‘इस रोनित के बच्चे का तो सिर फिर गया है......और साथ में आपका भी, जो बिना सोचे-समझे बेमतलब के काम करने के लिए हामी भर देते हैं।’’

‘‘इसमें बेमतलब का क्या काम है मेनका.......? अगर हमारी चेतना आॅडिषन देना चाहती है तो देने दो......हो सकता है इसे जूनियर सिंगिंग टी.वी. शो में गाने का मौका मिल ही जाये।’’

‘‘मैंने कहा न कि सपने देखना छोड़ दो, क्योंकि आपका यह सपना तो कभी पूरा नहीं हो पायेगा।’’

‘‘मेनका, तुम बजाय चेतना का हौसला बढ़ाने के इसका हौसला तोड़ रही हो......ऐसे तो इसका मनोबल टूट जायेगा और यह हीन भावना का षिकार होकर रह जायेगी।’’

‘‘हौंसला अफजायी करनी है तो अलका की करो, उससे कुछ करने की उम्मीद तो है, वह कुछ कर तो सकती है......। इस अपाहिज से क्या उम्मीद करना......यह तो खुद जिंदगी भर हमारे ऊपर बोझ बने रहने के सिवा कुछ नहीं कर सकती......समझे......।’’

मम्मी के कहे शब्द सुनकर चेतना तिलमिला जाती है, लेकिन वह अपनी मम्मी से कुछ न कहकर दूसरी तरफ मुँह घुमा लेती है। उसी समय चेतना की आँखों के सामने उस दिन वाला दृष्य उभर आता है, जिस दिन अलका अपने पापा के साथ सुबह का नाष्ता कर रही थी।

‘‘मेनका ऽ ऽ ऽ ऽ ऽ ऽ......मेरी व्हाइट वाली शर्ट कहाँ रखी है......?’’ चेतना के पापा ने उसकी मम्मी को आवाज लगाते हुए कहा।

उनकी आवाज सुनकर चेतना की मम्मी कमरे में आयीं और अलमारी में से उसके पापा की शर्ट निकालकर देते हुए बोलीं,‘‘ यह रही आपकी शर्ट।’’

‘‘साॅरी मेनका, मैंने तुम्हें डिस्टर्ब किया। ......वो क्या है कि मैंने ढूंढ़ी तो थी, लेकिन मुझे दिखी नहीं इसलिए तुम्हें बुलाना पड़ा।’’

‘‘अच्छा ठीक है, नाष्ता तैयार हो गया है, आकर कर लो।’’ कहकर मेनका वहाँ से चली गयी।

चेतना के पापा आॅफिस के लिए तैयार होकर नाष्ता करने के लिए डायनिंग रूम में आकर बैठ गये। उनके साथ ही अलका भी आ गयी।

‘‘अलका बेटी, तुम्हारी पढ़ाई कैसी चल रही है......?’’ अलका के कुर्सी पे बैठते ही उसके पापा ने उससे प्यार से पूछा।

‘‘अच्छी चल रही है पापा।’’ अलका ने बताया।

‘‘ गुडमाॅर्निंग पापा।’’ चेतना ने डायनिंग रूम में आते हुए कहा।

‘‘गुडमाॅर्निंग चेतना।’’ आओ बेटा, आ जाओ।

अन्दर आकर चेतना अपने पापा के पास बैठ जाती है।

‘‘और चेतना बेटा, तुम्हारे रोनित सर आजकल क्या पढ़ा रहे हैं......?’’

‘‘अंग्रेजी की एक्सरसाइज करवा रहे हैं।’’ चेतना ने कहा।

‘‘गुड, वैरी गुड, तुम्हारी समझ में तो आ रही है न......?’’

‘‘हाँ पापा, खूब समझ में आ रही है।’’

चेतना की बात पर उसके पापा आगे कुछ और कहते हैं, उसी समय चेतना की मम्मी नाष्ते की ट्रे मेज पर रखती हैं और खुद भी नाष्ता करने के लिए कुर्सी पर बैठते हुए अलका से कहती हैं, ‘‘अरे हमारी रानी बिटिया उधर बैठी है......यहाँ आ जाओ, मम्मी के पास......

मम्मी अपनी प्यारी बिटिया को अपने हाथों से नाष्ता करायेंगी। आ जा......आ जा, जल्दी से आ जा......।’’

अलका उठकर अपनी मम्मी के पास जाकर बैठ जाती है। उसकी मम्मी अपने हाथों से उसे नाष्ता कराती हैं। चेतना उसे बड़े ध्यान से देखती है। उसका मन भी करता है कि उसकी मम्मी अलका की तरह अपने हाथों से उसको भी नाष्ता करायें। लेकिन उसकी मम्मी उसकी तरफ देखती भी नहीं हैं, जिससे चेतना को बहुत दुःख होता है। उसकी आँखों में आँसू आ जाते हैं।

‘‘मम्मी, अगले हफ्ते हमारी क्लास के बच्चे पिकनिक टुअर पर जा रहे हैं। मैडम ने सबसे सौ-सौ रुपये लाने को कहा है, आप मुझे सौ रुपये दोगी न......?’’ अलका ने नाष्ता करते हुए कहा।

‘‘हाँ......हाँ, क्यों नहीं, मैं अपनी बिटिया रानी को सौ नहीं पूरे दो सौ रुपये दूँगी। सौ रुपये मैडम को देने के लिए और सौ रुपये अपनी बिटिया रानी को चीज खाने के लिए।’’ अलका की मम्मी ने प्यार से उसका माथा चूमते हुए कहा।

मम्मी की बात पर अलका बहुत खुष होती है और चेतना से कहती है, ‘‘दीदी, हम तो न अगले हफ्ते पिकनिक टुअर पर जायेंगे। हमारी मैडम जी, कह रही थीं कि वहाँ बड़ा मजा आयेगा।’’

‘‘अच्छा।’’

तभी चेतना की मम्मी ने उसे घूर कर देखा और झिड़कते हुए बोलीं, ‘‘अब अगर तूने नाष्ता कर लिया हो तो जा, जाकर अपने कमरे में बैठना।’’

मम्मी के कहते ही चेतना का मुँह उतर जाता है और वह चुपचाप वहाँ से धीरे-धीरे व्हील चेयर हाथों से चलाते हुए अपने कमरे में चली गयी।

अपनी मम्मी का अपने प्रति कटु व्यवहार देखकर और जली-कटी बातों को याद करके चेतना का मन भर आया। उसकी आँखों में आँसू तैरने लगे और वह मन में सोचने लगी कि क्या वह सचमुच बहुत बुरी है......? ......क्या वह सचमुच कुछ कर नहीं सकती......? ......अगर ऐसा है तो रोनित सर उसे सिंगिंग आॅडिषन में पार्टीसिपेट करने को क्यों उकसा रहे हैं......? कहीं ऐसा तो नहीं कि वह उसे बहलाना चाहते हों......? अगर यह सच है, तो उन्हें उसके साथ ऐसा नहीं करना चाहिए। उन्हें उसकी भावनाओं के साथ नहीं खेलना चाहिए, क्योंकि वह मेरे टीचर ही नहीं वह केयर टेकर भी हैं......वह उसकी भावनाओं और जज्बातों को नहीं समझेंगे, तो और कौन समझेगा......? ......पापा ने भी षायद उसका दिल रखने के लिए उसकी हाँ-में-हाँ मिलायी थी......ताकि वह निराष न हो......वैसे पापा तो उसे बहुत प्यार करते हैं और वह चाहते भी हैं कि वह खुष रहने के लिए कुछ करे, लेकिन वह भी मम्मी से डरते हैं। वह नहीं चाहते कि उसे लेकर मम्मी और उनके बीच कोई टेंषन हो......इसीलिए पापा अक्सर मम्मी के सामने खामोष हो जाते हैं। वह मम्मी की किसी भी बात का विरोध नहीं कर पाते हैं।

यही सब सोचते-सोचते चेतना इतनी भावुक हो गयी कि मन-ही-मन रोने लगी। उसके रोनित सर आकर उसके सामने खड़े हो गये, लेकिन चेतना को इसकी भनक भी नहीं लगी।

रोनित खड़े होकर काफी देर तक चेतना को यूँ ही देखता रहा, फिर मुस्कुराते हुए उसने चेतना के सामने रखी मेज को अपने हाथ से थपथपाया, जिससे चेतना की विचार शृंखला टूट गयी और वह ऐसे चैंक गयी जैसे किसी ने उसे गहरी नींद से जगा दिया हो। वह एकदम सम्भल कर बैठ गयी और उदास मन से बोली, ‘‘गुड इवनिंग सर।’’

‘‘गुड इवनिंग।’’ कहते हुए रोनित चेतना के सामने वाली कुर्सी पर बैठ गया और बोला, ‘‘चेतना, किन खयालों में डूबी हुई थीं......?’’

‘‘कुछ नहीं सर, बस ऐसे ही।’’ चेतना ने अनमने मन से कहा।

‘‘झूठ मत बोला चेतना, तुम्हारा चेहरा बता रहा है कि तुम्हारे मन में कुछ-न-कुछ जरूर चल रहा है ?’’

‘‘कहा न सर, ऐसी कोई बात नहीं है।’’

‘‘अच्छा यह बताओ, तुमने अपने पापा से आॅडिषन फाॅर्म कम्पलीट करवा लिया......?’’

‘‘नहीं सर।’’ चेतना ने धीरे से कहा।

‘‘क्यों......?’’

‘‘क्योंकि मैं सिंगिंग के आॅडिषन में भाग नहीं ले रही हूँ।’’

चेतना की बात सुनकर रोनित एकदम चैंक जाता है और आष्चर्य से कहता है, ‘‘यह तुम क्या कह रही हो चेतना......? ......अचानक तुमने अपना इरादा क्यों बदल दिया......?’’

‘‘इसलिए, क्योंकि उस सिंगिंग आॅडिषन के लिए एक-से-बढ़कर एक बड़े कलाकार आयेंगे और मैं उनका मुकाबला नहीं कर पाऊँगी। और सर, मैं अपने आपको हारता हुआ नहीं देख सकती।’’

‘‘चेतना, यह बात तुमसे किसने कही कि तुम हार जाओगी......?’’

‘‘किसी ने नहीं सर, यह बात मुझसे मेरे दिल ने कही।’’

‘‘नहीं चेतना, मैं यह बात नहीं मान सकता......तुमसे जरूर किसी ने कुछ कहा है......बताओ न किसने क्या कहा......?’’

क्रमशः ...........

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बाल उपन्यास: गुडविन मसीह