30 Shades of Bela - 17 in Hindi Moral Stories by Jayanti Ranganathan books and stories PDF | 30 शेड्स ऑफ बेला - 17

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30 शेड्स ऑफ बेला - 17

30 शेड्स ऑफ बेला

(30 दिन, तीस लेखक और एक उपन्यास)

Day 17by Era Tak इरा टाक

मन ना भये दस-बीस

बेला के मन में पद्मा को लेकर एक अजीब सी वितृष्णा है। पद्मा को अपने प्रेमी की पत्नी के रूप में स्वीकार कर पाना उसके लिए मुश्किल हो रहा था। पद्मा ही थी जिसकी वजह से बनारस में उसकी ज़िन्दगी में भूचाल आया था, जिसकी वजह से वो समीर से मिली उसकी शादी हुई । और अब कृष सब जानते हुए भी उसकी ज़िन्दगी में दस्तक देने क्यों आया है? क्यों अब अपने प्यार का इजहार कर उसके करीब आना चाहता है?

समीर को शायद बेला ने कभी प्यार किया ही नहीं। वो टूटी हुई उस बेल की तरह हो गयी थी, जिस जिंदा रहने को एक मजबूत सहारे की ज़रूरत होती है। समीर के दोस्ताना व्यवहार से वो उसकी तरफ झुकती गयी। इतने सालों बाद भी उनका मन नहीं जुड़ा और अब रिश्ता ख़ामोशी में बदल गया। जहां से एक दिन सब खत्म होने की आहट आती है।

वो कीर्तन की आवाज़ में अपने मन में उठ रहे शोर को दबा देना चाहती थी। प्रसाद लेकर वो वहां से भीड़ के बीच से निकल गयी। होटल जाते ही उसने फ्लाइट बुक करने के लिए अपना लैपटॉप खोला, रात में मुंबई के लिए कोई सीधा विमान नहीं था। तो उसने दिल्ली की फ्लाइट ले ली। अब वो एक पल भी यहां नहीं रुकना चाहती थी। वो बार बार खुद को बनारस आने के बेवकूफाना फैसले पर कोस रही थी। सामान पैक कर वो होटल से टैक्सी में निकल पड़ी। उसके मन में तूफ़ान था, जब मन बैचैन होता है तो कहीं शांति नहीं मिलती। वो एक तिनके की तरह मुंबई, बनारस, दिल्ली उड़ती जा रही थी। वो ऐसे सवालों में उलझी थी जिनके जवाब अब साफ़ थे पर मन उनको स्वीकारने को तैयार न था।

बचपन से झेला गया उसका अकेलापन, माता पिता के बीच झगड़ा, मां का अचानक चले जाना, कृष से अधूरा रिश्ता, दादी की मृत्यु, घर की घुटन से निकल पाने की बैचैनी में जल्दबाजी में समीर से शादी का फैसला करना। असल में टूटा हुआ इंसान बस सहारे की तलाश में होता है जो उसका मरहम बन सके और उस मरहम को वो अक्सर प्यार समझने की भूल कर बैठता है। मुंबई की भीड़ में भी अकेलापन ने उसे घेरे हुआ था। केवल नन्ही रिया उसे सुकून देती थी। दो साल की थी जब उसे गोद लिया था। समीर का रिया को दिल से स्वीकार न कर पाना भी बेला के मन में कांटे की तरह चुभता था। समीर और वो दोनों अपने काम में डूबे थे, रिया उनके बीच कड़ी नहीं बल्कि दूरी बन गयी थी। वो ज्यादा झगड़ते भी नहीं थे पर प्यार की गर्माहट भी नहीं बची थी।

उस रात कृष के गले लग कर उसने अरसे बाद सुकून महसूस किया था। बाद में शैम्पेन के नशे ने उनकी हिम्मत बढ़ा दी थी, दोनों देर तक एक दूसरे को चूमते रहे थे। फिर अचानक बेला ने कृष को रोक दिया और रिया के कमरे में जा कर दरवाज़ा बंद कर लिया। कृष भी बिना कुछ कहे एक नोट लिखकर उसके घर से निकल गया था.

अगले दिन कृष के पर्स से खुले राज ने जैसे उसे तोड़ ही दिया था। पद्मा ! कृष की पत्नी ! पांच साल पहले जिसे वो भूल चुकी वो वापस लौट आई। उसके बाद तो जैसे उसकी ज़िन्दगी दुश्मनी पर उतारू हो गयी। एक के बाद एक दिल को चकनाचूर करने वाले राज खुलते गए. आशा मौसी उसकी मां है, पद्मा उसकी सगी बहन है।

--

‘पद्मा मेरा पीछा क्यों कर रही है। कितनी बेशर्म है मेरा सब छीन कर भी उसे चैन नहीं। सब उसके साथ हैं- कृष, पापा और आशा मौसी. मौसी नहीं मां। पर पता नहीं क्यों उनके लिए मां शब्द गले से नहीं निकलता। क्या मैं एक अवैध रिश्ते की पैदाइश हूं?’

“मैडम एअरपोर्ट आ गया।”

टैक्सी ड्राईवर की आवाज़ से उसके विचारों की नाव हिचकोले खाते हुए रुक गयी। उसने अपना पर्स संभाला। अपनी गीली आंखों को पोंछते हुए बाहर निकली। उसकी आंखें आंसुओं से धुल कर और ज्यादा चमकने लगी थीं।

***

“हेलो बेला जी ! व्हाट अ प्लजेंट सरप्राइज।”

बेला चौंक कर उन्हें देखने लगी। काले फ्रेम का मोटा चश्मा लगाये एक आदमी उसकी तरफ मुखातिब था।

“पहचाना नहीं शायद। उड़ी बाबा! हम कौशिक मुखर्जी, जो शमशानघाट पर काम करने वाले बच्चो का एनजीओ चलाता है, लगभग पांच-छो साल पहले मणिकर्णिका घाट मिले थे।’

“ओह हां! कैसे हैं आप?”

“आप भोल गया पर हम शोंदर लोड़कियों को कभी नहीं भूलता...”उन्होंने अपना मोटा चश्मा कुरते से साफ़ करते हुए कहा।

बेला हंस पड़ी। वो कोलकाता जा रहे थे। फ्लाइट के जाने में अभी वक़्त था, तो बेला ने उनको साथ कॉफ़ी पीने का ऑफर दिया।

“पोता है आपकी जैसा एक लोड़की बनारस में आता रहता था। उसको देख आपका याद आता था।”

“कौन लड़की?”बेला ने अनजान बनते हुए कहा

“पेट्रीजिया नाम है, हिप्पी है। वो और उसका बॉयफ्रेंड बहुत ड्रग्स लेता था। बालू गैंग के चक्कर में फंस गये थे दोनों! एक दिन मार-पीट हुई और उसका बॉयफ्रेंड मर गया, चुपचाप घाट पर आ कर जला गए और पेट्रीजिया को वहीं रोता बिलखता छोड़ गए, नशे की हालत में वही पड़ी रही थी देर रात तक। फिर हमारे एनजीओ में ही उसे सुलाया था।”

बेला हैरानी से सुनती रही। पद्मा उर्फ़ पेट्रीजिया का पन्ना उसके आगे खुल रहा था।

“अगले दिन हेड कांस्टेबल इन्द्रपाल उसे ढूंढ़ता हुआ घाट पर आया और लेकर चला गया, बोला मेरे दोस्त की बेटी है,पद्मा ! गलत संगत में पड़ गयी। वापस घर भेजना है। बड़ा लफड़ा हुआ था उस समय। बालू गैंग इन्द्रपाल और लड़की का जान का दुश्मन हो गया था। बड़ी मुश्किल से जान बचा। बोडा अच्छा आदमी है इन्द्रपाल। आप पहले मिला होता तो आपको ज़रूर मिलवाता।”

बेला के होठों पर फीकी मुस्कान आ गयी। कौशिक मुखर्जी को कैसे बता पाती कि उन्होंने उसके कई सवालों के जवाब दे दिए। तस्वीर साफ़ हो चली थी, इन्द्रपाल उसके पापा का दोस्त था और पद्मा को बनारस से निकालने के लिए जानबूझ कर उसका इस्तेमाल किया गया था। वो हिप्पी पेट्रीजिया उर्फ़ पद्मा उसकी सगी बहन है।

बेला दिल्ली पहुंच चुकी थी। वहां से मुंबई की तीन घंटे बाद की फ्लाइट उसे मिल गयी।

***

बेला सुबह आठ बजे अपने घर पहुंच गयी, उसने डोर बेल बजाई. समीर ने दरवाज़ा खोला।

“तुम? इतनी जल्दी? कल ही तो तुम बनारस निकली थी?”वो चौंक गया

“हां, जल्दी वापस आ गयी ताकि रिया को लेकर हमेशा के लिए इस नरक से दूर जा सकूं!”बेला की आवाज थोड़ी कड़वी थी।

“क्या बकवास कर रही हो ! दिमाग तो ठीक है?”

“जिस लड़की से बचपन से आज तक झूठ बोला गया, उसके अपने पति ने उससे झूठ बोला। उसका दिमाग कैसे ठीक रहेगा !”बेला रुंधे गले से बोली

समीर थोडा नरम पड़ा। उसने बेला का बैग हाथ से ले लिया।

“अन्दर आ जाओ प्लीज। कॉफ़ी पियोगी?”

“रिया कहां है?”बेला ने उसकी बात को अनसुना करते हुए कहा

“वो नाना-नानी के साथ पार्क में गयी है।”

“अच्छा है घर पर हम दोनों के सिवा कोई नहीं। समीर! तुम सब जानते थे न फिर मुझे क्यों नहीं बताया? काश बता दिया होता तो मेरी ज़िन्दगी इतनी उलझती नहीं। इन्द्रपाल पापा का दोस्त है और वो जानता था कि पद्मा उर्फ़ पेट्रीजिया मेरी सगी छोटी बहन है, तुमने झूठ क्यों बोला कि इन्द्रपाल ड्रग माफिया है। क्यों समीर क्यों?” वो सोफे पर अपना सिर हाथों में थाम कर रोने लगी

“बेला ! तुम्हारे पापा तुमको ये राज बताना नहीं चाहते थे। वो तुम्हारी जिद से वाकिफ थे कि तुम इन्द्रपाल को ढूंढ़ लोगी और सब जान जाओगी। एक बात और, तुम उन पर यकीं भी कहां करती थी? इसलिए उन्होंने मुझ सारी बात बता कर तुम्हें वापस दिल्ली लौटा लाने की रिक्वेस्ट की। मेरे पापा की अचानक मौत के बाद पुष्पेन्द्र अंकल ने बहुत आर्थिक मदद की थी। इसलिए मैं उनकी बात मानने से इंकार न कर सका।”

“और सिर्फ मेरे पापा का अहसान चुकाने को तुमने मुझे धोखा दिया। मैं तुम्हारा भरोसा करती थी। तुम्हे प्यार करती थी। तुम सबने मुझे धोखा ही दिया। कभी दिल से मुझे जानने या समझने की कोशिश नहीं की।आज मेरी ज़िन्दगी ऐसी हो गयी कि मैं एक-एक सांस लेने के लिए खुद से लड़ रही हूं।”

“जो हुआ उसे भूलने की कोशिश करो बेला,” समीर उसके सामने वाले सोफे पर बैठ गया।

“इतना आसान होता है क्या , भूल जाना? तुम जानते थे, कृष पद्मा से शादी कर रहा है। तुम्हें एक बार भी नहीं लगा कि मुझे कैसा लगेगा?”

“तो और क्या करता? कौन पति ये चाहेगा कि उसकी बीवी अपने एक्स लवर को याद करती रहे? तुम जो बात-बात पर कृष कृष करती थी उसने मेरे मन में कडवाहट भर दी थी।”

“तो मुझे बोला क्यों नहीं? एक बार भी उसका नाम नहीं लेती,” बेला ने समीर की ओर देखते हुए कहा ।

समीर की नजरों में सालों बाद बेला अपने लिए हमदर्दी पा रही थी। कहीं ये प्यार तो नहीं?...