Purn-Viram se pahle - 24 in Hindi Moral Stories by Pragati Gupta books and stories PDF | पूर्ण-विराम से पहले....!!! - 24

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पूर्ण-विराम से पहले....!!! - 24

पूर्ण-विराम से पहले....!!!

24.

अब शिखा को समीर के जुड़े हुए सभी काम पूरे करने थे| सबसे पहले उसने समीर के अलमारियों में लगे हुए कपड़ों को जगह-जगह पर जाकर दान में दिया| उनके घर में कोई भी नहीं था जो उसके कपड़ों को खुशी-खुशी पहनता| वैसे भी सबके साइज़ बहुत अलग होते हैं| जब उसकी इस टॉपिक पर प्रखर से फोन पर बात हुई तो उसी ने कहा..

“शिखा! समीर हो या मैं हूँ या तुम भी हो.....हमारे जाने के बाद कोई भी हमारी चीजों को पहनना चाहेगा बहुत मुश्किल है| हर पीढ़ी की अपने पसंद है| सच तो यह है..हमारी संतानों के पास हमसे ज़्यादा साधन है| उनका हमारी किन चीजों से भावनात्मक जुड़ाव होगा..इन सब बातों में मुझे या तुमको समय व्यर्थ करने की शायद कोई जरूरत नहीं| सोचे तो तुम्हारी या मेरी भी अब शेष उम्र कितनी बची है| हम जितना स्ट्रेस फ्री रह सकें.. हमको रहना चाहिए| तुमको भी मैं बहुत अच्छे से जानता हूँ क्यों कि तुम भी बहुत कुछ मेरे जैसे ही सोचती हो| तुमको कहीं भी मेरी मदद की जरूरत हो बता देना|”

“प्रखर! तुम्हारी और मेरी सोच अलग कहाँ है| उम्र के इस पड़ाव पर हम दोनों ही बहुत कुछ देख चुके हैं| मुझे तो तुम सिर्फ़ जगह बता देना मैं जाकर जो-जो सामान दिया जा सकता होगा दे आऊँगी|”..

“तुम नहीं चाहती हो कि मैं साथ चलूँ| कम से कम इतना पराया मत करो| जीवन के अगर कुछ साल ही हम दोनों को साथ रहने को मिले हैं तो मेरे साथ गुजरने दो न शिखा|”

“तुम्हारे साथ ही हूँ प्रखर| अब तुम्हारे बगैर कुछ भी सोच पाना बहुत मुश्किल है| समीर के होने पर भी इस तरह के छोटे-छोटे काम मैं खुद हो करती थी| मैं तुम्हारे बिना कुछ भी नहीं सोचना चाहती प्रखर| इस वक़्त तो तुम से प्यारा मेरे पास कोई रिश्ता भी नहीं है|”

अपनी बात बोलते-बोलते शिखा प्रखर से जुड़ी अस्पताल की यादों में खो गई|

प्रखर भी उसकी खामोशी में खोया रहा.. और शिखा समीर के बीमार होने के समय में पहुँच गई..

समीर के बीमार होने पर कैसे प्रखर उसके साथ ढाल बनकर हर समय खड़ा रहा था| प्रखर ने एक भी पल को शिखा को अकेले नहीं छोड़ा| यहाँ तक कि शिखा ने उससे अस्पताल में हुए खर्च के बारे में भी नहीं पूछा था| सच तो यह है कि उसको प्रखर से पूछते हुए डर लग रहा था| कहीं वो नाराज न हो जाए| प्रखर उसके जीवन की अमूल्य निधि था|....इस साथ को शिखा सहेज कर रखना चाहती थी|

दोनों के पास करने को अगर कोई बात भी नहीं होती तब भी दिन में कई-कई बार फोन करके घंटों एक दूसरे के साथ मौन रहकर भी फोन पर वक़्त गुज़ारते| अब दोनों के बीच का मौन भी उनकी जरूरत बन गया था| किसी का साथ होना भी जब महसूस होने लगे तो जीवन की रफ्तार यूं ही बनी रहती है|

तभी अचानक उसने प्रखर से कहा....

“प्रखर जानते हो एक उम्र के बाद शेष बचे गिनती के रिश्ते अति मूल्यवान हो जाते हैं| तुम्हारा होना मेरे लिए कितना जरूरी है यह तुम भी जानते हो| इसलिए कभी वो मत बोलना जो मुझे खौफ़ दे|”

बोलते-बोलते शिखा अचानक चुप हो गई उसको लगा कोई फोन लगातार आ रहा है|

सार्थक का ही फोन था बहुत दिनों बाद उसके फोन को फ्लैश होते देख शिखा की छठी इंद्री ने उसे महसूस करवा दिया कि फोन आने की वजह क्या होगी|

वैसे अधिकतर फोन शिखा ही सार्थक को लगाया करती थी| अब न तो सार्थक के पास बहुत बातें बताने को होती थी न ही शिखा के पास| शिखा के पास बताने के लिए कुछ भी नया नहीं था| सार्थक खुद से बहुत कुछ बताता नहीं था| दोनों के बीच संवादों के सिरे भी अब टूट रहे थे|

उसने प्रखर से कहा....

“प्रखर! सार्थक का फोन लगातार आ रहा है| एक बार उससे बात करके तुमसे वापस बात करती हूँ|...”

शिखा ने प्रखर का फोन डिस्कनेक्ट करके उसने सार्थक को फोन लगाया| शिखा का फोन बिजी आने से दो बार पूरी-पूरी रिंग आकर बंद हो गई थी| स्मार्ट-फोन में यह सुविधा तो होती ही है कि बात करते में अगर दूसरा फोन आ जाए तो पता चल जाता है|

“हाँ बेटा.. फोन किया था..सब ठीक है..मीता का सब ठीक चल रहा है|”

“हाँ माँ सब ठीक है| एक खुशखबरी देनी थी| आप बेटे की दादी बन गई हैं| अभी थोड़ी देर पहले ही हुआ| बच्चा और मीता दोनों स्वस्थ्य है माँ| आपको उसकी फोटो भेज दी है.. बताइएगा किसके जैसा है|”

“हाँ बेटा बहुत अच्छी खबर है| तुम तीनों बहुत खुश रहो| मेरी कोई जरूरत हो जरूर बताना| वैसे तो मीता की माँ हैं वहाँ....बताने के लिए| पर पूजा-पाठ से जुड़ी रस्में जरूर कर लेना| सवा महीना होने पर पूजा होती है ध्यान रखना| मैं उसके लिए अपनी तरफ से उपहार ट्रांसफर कर दूँगी| तीनों हमेशा बहुत खुश रहो|” बोलकर शिखा चुप हो गई|

तब सार्थक बोला..

“माँ रखता हूँ.. कुछ दवाइयाँ व सामान लाकर रखना है| आपसे फिर बात करूंगा| अपना खयाल रखिएगा|” बोलकर सार्थक ने फोन डिस्कनेक्ट कर दिया|

शिखा ने वापस प्रखर को फोन लगाया ताकि वो उसको खुशखबरी दे सके.. प्रखर के अलावा अपने दुख-सुख साझे करने के लिए उसके पास और कोई नहीं था| अब प्रखर और शिखा अपनी बातें एक दूसरे से कहकर-सुनकर सुखद एहसास इककट्ठे कर लेते थे|

प्रखर ने जैसे ही फोन लिया शिखा ने चहकते हुए कहा..

"प्रखर तुमको एक खुशखबरी देनी थी..मैं दादी बन गई हूं और तुम दादा बन गए हो। अभी सार्थक का फ़ोन आया था। उन दोनों को बेटा हुआ है। उन्होंने फ़ोटो भी भेजी है प्रखर। तुमको भेजूँ.."

"नही मुझे मत भेजो ..और क्या बोला|”

“कुछ नही बोला। बोला मां देख कर बताओ किसके जैसी शक्ल है उसकी। मीता जैसी या मेरे जैसी| मैंने कह दिया मुझे मीता की शक्ल तो याद ही नही बेटा। तुम दोनो आये ही एक दिन के लिए थे। मैंने उसको अच्छे से देखा ही नही तो कैसे बताऊं किससे मिलती है। मुझे तो वो तुम जैसा ही लगेगा|”

प्रखर मैं तो सार्थक से बोलना चाहती थी कि ‘अगर तुम भी बहुत दिनों तक नही आये तो मुझे तुम्हारी उम्र के साथ बदलती शक्ल कैसे याद रहगी|’ पर मैंने बोला नहीं|

सच तो यही है समीर के जाने के बाद सार्थक आया ही नहीं|..शिखा की बातें सुनकर प्रखर ने शिखा से सपाट ही एक प्रश्न पूछा..

"शिखा तुमको सार्थक ने डिलीवरी के समय आने को बोला था क्या? उसके और मीता के बीच में अब सब ठीक है न|”

प्रखर की बात सुनकर शिखा ने कहा-

मुझे बुलाया तो नहीं था।.....पर हाँ सार्थक ने ही मुझे बताया जरूर था कि मीता ने अपनी मां को बुला लिया है। उसकी माँ आ जाएंगी| मीता अपनी सास से ज़्यादा अपनी माँ के साथ फ्री महसूस करेगी| प्रखर मैंने चुपचाप उसकी बात सुन ली कहा कुछ भी नहीं| फिर खुद ही सार्थक बोला था माँ अगर मैं उसे कुछ बोलता तो नाहक ही वो मेरे लिए कलह खड़ी करती|..

प्रखर सच कहूँ तो मुझे समझ नहीं आता सार्थक का कुछ भी....कभी-कभी मुझे लगता है सार्थक कहीं न कहीं डरता भी है अपने अनाथ होने की वजह से| इतना पढ़ा-लिखा होने के बाद भी उसका यह डर निरर्थक है| जबकि हमने हमेशा ही उसका साथ देने की कोशिश की है| पर सच क्या है यह तो वो दोनों ही जाने| कभी हम उन दोनों के पास रहे नहीं और वो भी हमारे पास आकर दो तीन दिन भी नहीं रुके तो सच मुझे भी पता नहीं|

खैर मैं बहुत सोचती और पूछती नहीं.. मुझे हर कीमत पर खुद शांत ही रहना है| सबकी अपनी-अपनी ज़िंदगी है| कहने को सार्थक मेरा बेटा है पर मैं उससे भी अपेक्षा नहीं रखती| कभी-कभी संशय आता है....कहीं झूठ तो नहीं बोल रहा| बोलकर शिखा किसी सोच में डूब गई|

तब प्रखर ने पूछा..

"तुमने डिलीवरी के समय मदद के लिए पहुँचने का बोला था क्या शिखा?

"नही मैंने अपनी तरफ से कुछ भी नही बोला। अगर उसको बुलाना होता तो मुझसे खुद बोलता। उसने सिर्फ मुझे इन्फॉर्मेशन दी। मैं कोई मूर्ख नही हूँ जो बग़ैर मान-सम्मान के पहुंच जाऊं। प्रखर एक सच यह भी है.. अब मुझे तुमसे दूर जाना ही नहीं है। तुम्हारे साथ मेरा मन बहुत शांत रहता है|"

"यह सच है शिखा जैसे तुम सोचती वैसे ही मैं भी सोचता हूँ। अब मुझे भी तुम्हारे बिना कुछ सोचना ही नही। अगर अब तुम कहीं गई तो मैं मर जाऊंगा। तुम आस-पास भी दिखती रहती हो तो लगता है मैं ज़िंदा हूँ। बहुत प्यार करता हूँ तुमको शिखा.. जब तुम थी तब भी और जब नहीं थी तब भी| "

थोड़ी देर चुप रहकर प्रखर ने वापस बोलना शुरू किया..

"हाँ एक बात और कहना चाहूँगा.. अब अपने दिमाग में यह बात क्लियर कर लो कि अब तुम अकेली हो। तुमको अपने जीवन के निर्णय अपनी खुशियों के हिसाब से लेने है। तुम्हारे हर निर्णय में साथ हूँ|"

"जानती हूं बहुत अच्छे से प्रखर। एक बात कहूँ.....समीर कभी नही चाहते थे बच्चा गोद लेना। अब समझी हूँ कैसे बच्चे के साथ धीरे-धीरे मोह जुड़ते जाते है| जब यही मोह टूटते है तो कितना आहत हो रहा है मेरा मन....खैर तुम परेशान मत हो। मुझे भी बहुत कुछ समझ पहले भी आता था.....अब और भी आने लगा है। वो कहते हैं न दूध का जला छाछ भी फूँक-फूँक कर पीता है|" बोलकर शिखा चुप हो गई।

"पर शिखा सभी के साथ ऐसा नही होता। हमको सकारात्मक भी रहना चाहिए..ख़ैर छोड़ दो यह सब बातें। अब समीर के बैंक व सभी फॉर्मेलिटीज से जुड़े काम भी अब पूरे हो गए होंगे। तुमको कभी भी कहीं भी जरूरत हो बताना। मैं साथ चलूंगा। सब जगह मेरी जान पहचान के लोग है।"

"जरूर प्रखर। तुमको नही बताऊंगी तो किसको बताऊंगी। हम बाद में बात करेंगे| कुछ पेंडिंग काम करने है तुमसे फिर बात करती हूँ| आजकल अपनी दुखी करने वाली बातें बताकर तुमको भी दुखी कर देती हूँ|”

“तुमको ऐसा नहीं सोचना चाहिए शिखा.....और हाँ तुम्हारे दिमाग में ऐसा आता भी है तो मुझे मत बताया करो मेरा जी दुखता है| मुझे लगता है तुमने मुझे पराया कर दिया| अच्छा अब जाओ काम कर लो|” बोलकर प्रखर ने भी अपनी बात को विराम दिया और दोनों अपने-अपने कामों में जुट गए|

क्रमश..