गवाक्ष
29==
स्वरा बंगाल की निवासी थी और बंबई में कार्यरत थी । सत्यनिष्ठ के संस्कार व व्यवहारों के प्रति आकर्षित हो वह उससे प्रेम करने लगी थी । संगीत की सुरीली धुन सी स्वरा के कंठ में लोच, स्निग्धता व ईमानदारी थी । वह सत्यनिष्ठ के संवेदनशील व पारदर्शी व्यक्तित्व के प्रति आकर्षित हुई थी।
स्वरा के मन की क्यारी में संदल महक रहा था, यह महक उसे व सत्यनिष्ठ को ऐसे भिगो रही थी जैसे कोई उड़ता कबूतर ऊपर से बरसात के सुगंध भरे पानी में भीगकर अपने पँख फड़फड़ाता निकल जाए और पता भी न चले कि कब ? कैसे ? मन भीग उठा। वह सुसंस्कृत युवती थी, अपने कर्तव्यों व प्रेम के मध्य संतुलन करने की पक्षधर !
"सत्यनिष्ठ! यदि तुम मेरे साथ अपने रिश्ते के प्रति गंभीर हो तो अपनी बहन से इस बारे में चर्चा क्यों नहीं करते?"
वह कई बार कह चुकी थी परन्तु न जाने सत्यनिष्ठ क्यों किसी संकोच में डूबा रहता। दिल की गहरी संवेदनाओं से बहन को स्नेह, प्रेम व ममता करने वाले सत्यनिष्ठ के मुख से उपरोक्त बात सुनकर स्वरा को अच्छा नहीं लगा था। जानती थी यदि वह सत्यनिष्ठ से विवाह करती है तो अक्षरा उसका उत्तरदायित्व होगी जिसके लिए वह मन से तैयार थी । परन्तु अपना विवाह करने के लिए बहन पर उसकी अनिच्छा देखकर भी स्वयं से पूर्व विवाह करने का दबाव डाला जाए, उसकी बुद्धि से परे था।
“सबकीअपनी ज़िंदगी है, उसे वह दूसरों के अनुसार क्यों चलाए ?ज़िंदगी बार-बार नहीं मिलती। सत्याक्षरा कोई इतनी छोटी नहीं है कि रिश्ते की नज़ाकत समझ न सके। "
स्वरा रिश्ते को त्रिशंकु की भाँति लटकाने की पक्षधर नहीं थी, जो भी निर्णय लेना हो ले लिया जाए । अभी तक सत्यनिष्ठ ने उसे घर पर निमंत्रित तक नहीं किया था। एक दिन स्वरा बिना किसी पूर्व सूचना के रविवार को सत्यनिष्ठ के घर जा पहुंची और अक्षरा तथा वहाँ उपस्थित उसकी अंतरंग मित्र शुभ्रा पर भाई के प्रेम-प्रसंग की बात खुल गई ।
बंबई में सत्याक्षरा को घर के पास ही रहने वाली एक अच्छी मित्र मिल गई थी शुभ्रा ! पास ही रहती थी। वह बी.ए के पश्चात एक गैरसरकारी दफ़्तर में काम कर रही थी। वे दोनों छुट्टी का दिन अधिकांशत:साथ ही व्यतीत करतीं। शुभ्रा का विवाह निश्चित कर दिया गया था जिससे सत्यनिष्ठ बहन के विवाह के प्रति और अधिक संवेदनशील हो रहा था ।
"यह क्या बात हुई भाई आप मेरी शादी की प्रतीक्षा में अपने विवाह को क्यों टाल रहे हैं?क्या आप नहीं चाहते कि आपकी बहन को घर में एक अच्छी मार्ग-दर्शिका मिले ? प्रथम मिलन में ही अक्षरा व स्वरा
दोनो रेशम की नाज़ुक सी संबंध की डोर से बंध गई।
"भाई, बस इस रविवार को आपका और स्वरा भाभी का गठबंधन ---- क्यों शुभ्रा ?"
" बिलकुल ठीक अक्षरा ! हम दोनों मिलकर एक सप्ताह में पूरी तैयारियाँ कर लेंगे । "शुभ्रा खिलखिलाई ।
"लेकिन --इस प्रकार ?" सत्यनिष्ठ को समझ नहीं आ रहा था कि वह किस प्रकार प्रतिक्रिया दे ।
"हाँ, भाई ---या तो इसी प्रकार या किसी प्रकार नहीं ! कमाल है, आपने मुझे इस योग्य ही नहीं समझा कि मुझसे अपने मन की बात साँझा तो कर सकें । " बहन का मुह भी फूलकर कुप्पा हो गया था । उसने चुप्पी लगाना ही ठीक समझा । यह सत्य था कि बहन के अतिरिक्त घर में किसी और का न होना खलता तो था ही !
दोनों सखियों ने स्वरा को अपनी ओर मिला लिया था और उसकी ही गाड़ी में जाकर उसकी ही पसंद की आवश्यक वस्तुएं व वस्त्र और आभूषण खरीद लिए गए थे।
क्रमश..