sachchai - 2 in Hindi Motivational Stories by Asmita Madhesiya books and stories PDF | सच्चाई - 2

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सच्चाई - 2

एक स्त्री का जीवन कई हिस्सो में बट जाता है विवाह के बाद कुछ ऐसा ही सुरेखा के साथ भी हुआ था , वह बुआ के घर जाना तो चाहती थी , लेकिन उसकी जिम्मेदारियां उसे रोक रहे थें।

जिंम्मेदरियां भी अपने बीमार सास और ससुर की देखभाल , क्योंकि उनको ले कर तो जाया ना जा सकता था और ना ही अकेले छोरा जा सकता था। छोड़ती भी किसके भरोसे भला , मोना के भरोसे छोड़ केे जा ना सकती थी।

क्योंकि सास ससुर के पास तो रुकने का कारन था लेकिन
मोना को किस बहने से रोकती ?

मोना का आलसी और बेपरवाह होना किसी सेे छुपा ना था । बस येेे सारी बाते सुरेेेखा को परेशान करती थी ।


जैसे तैसे तो उसने मोना को मना लिया उसके दादा दादी के साथ घर पर ही रुकने के लिये।
मगर इन बातोंं से क्या मतलब था , फर्क तो तब पड़ता जब मोना को इस बात का एहसास होता की हर वक्त उसकी
मशहूर आदते काम नही आनें वाली है।

सुरेेखा का मन कुुुछ तो हल्का हो गया था , जब से मोना ने उसकी घर पर रुकने वाली बात मानी थी। लेकिन अब भी उस पर भरोसा नही किया जा सकता था ।

फिर भी सुुुरेखा ने आधे मन से तयारी चलू कर दिया था
शादी में जाने की । सुरेखा अब अपनेे कपड़े और गहनो के बारे मेें सोचा करती थी । जैसे जैसे शादी का दिन
पास आ रहा सुरेखा की उत्सुकता बढते ही जा रही थी।

वह खुशी मेें यह भूलती जा रही थी की बहुत सारे
दायित्व उसके अभी भी पूरे करने हैं । शादी के दिन
और करीब आ रहा था, सुरेखा के जीवन में सब कुछ
वैसा ही था , जैसे मोना का आलसी होना , घर के काम ,
और ना जाने क्या क्या।

उसकी खुशी किसी से छुपी ना ‍ थी, अब वो मोना पर भी नाराज नही हुआ करती थी , और ना ही काम के बोझ ‍ से परेशान हुआ करती थी। अकसर सोचा करती
की बुआ से ये बात करेगी वो बात करेगी।
कभी कभार तो सोचा करती बुआ के घर पर उसे एक काम ना करना पड़ेगा।
और बुआ के हाथ का खाना खाने के लिये बेचैन हो जाती थी, दस साल बााद जो मिलने जो जा रही थी।

रोज के दिन जैसा आज का दिन भी था , मोना और सुरेखा के बीच सिर्फ इतना सा फर्क रह गया था कि मोना
अपने ख्यालों में खोयी रहती और थोड़ा बहुत कुुुछ काम किया करती वहीं सुरेखा अपने काम के साथ
अपने बुआ के ख्यालों में खोयी तो रेेहती थी मगर
साथ साथ काम भी किया करती थी वो बात अलग है कि आज कल उसका ध्यान ज्यादा उसकी बुआ के पास लगा रहता था।


सुरेखा - " मोना जरा देख के आ तो तेरे दादा दादी को किसी चीज़ की ज़रूरत तोह नहीं "
मोना-" बब्लू को बोल दो मेरे पास समय नही है।"
सुरेखा को अब गुस्सा भी नही आ रहा था। क्योकि बुआ के घर जाने का दिन नज़दीक आ गया था।

सुरेखा के पति को अपने काम से शहर से बाहर जना पड़ता है। और अगले कुछ हफ्तों तक़ वह बाहर ही रहने वाला था, इसलिये शादी में उसका जाना तो मुमकिन ना था।
आखिर वोह दिन आ ही गया जब सुरेखा बब्लू के साथ अपने बुआ के घर जाने के लिये निकल गयी, लेकिन अब भी उसे ऐसा ही लग रहा था की वह कुछ भूल नही रही।


जब सुरेखा अपनी बुआ के घर कुछ दिन बीता लेती है तब उसे याद आता है कि उसने मोना को तो सास और ससुर के बारे में कुछ बताया ही नही, वह घबरा सी जाती है।

सुरेखा - हे भगवान! मैने तो मोना उसके दादा दादी के दवाईयों के बारे मेें तो कुछ बताया ही नही, अब क्या होगा कौन देगा उन्हे दवाईयाँ समय समय से। मोना से तो कोई उमीद करना ही बेकार है।"

उधर मोना ने अपने दादा दादी का ख्याल बहुत अच्छे से रख रही थी। समय समय से खाना देती और साथ साथ दवाईयाँ भी।

सुरेखा तुरंत अपने घर फोन करती है हाल चाल पूछने के बहाने से , तब उसे पता चलता है कि घर में सब ठीक है और मोना ने सब कुछ अच्छे से सम्भला है उसे चिंता करने की कोई जरूरत नही।
फिर सुरेखा को उसकी गलती का एहसास हुआ की वो मोना के बारे में गलत सोचा करती थी। और उसने सुरेखा की सोच बदल दी थी।


हम अकसर दुसरो के बारे में बहुत जल्दी धारणा बना लेते हैं
जैसे सुरेखा ने मोना के बारे में बना लिया था ।
ये तो सब को पता था की मोना के अंदर क्या खूबियाँ हैं और क्या कमियाँ , लेकिन मोना ने सुरेखा को देखा था की वोह उसके दादा दादी का ख्याल कैसे रखती थी, इसलिये जरूरत
पड़ने पर उसने अपनी उसी सूझ बूझ का इस्तमाल किया।