शीर्षक :- Golden Jubilee
नोट :: - इस रचना को गांधीनगर के समाचार में प्रथम विजेता घोषित किया गया है।
"हेनिश, क्या तुम रात को दस बजे से पहले वापस आ जाओगे?" - अपने खास दोस्त मिलनने पूछा।
उसे जवाब देते हुए कहा; "तुझे पता है ना मिलन, आज का दिन, आज की तारीख मेरे लिए कितनी महत्वपूर्ण है?"
मिलन बोला; "वो बात सही है, लेकिन तुम जानते हो कि यहां के कानून कितने शख्त हैं और आखिरकार कानून कानून होते हैं। 10:00 बजे के बाद किसीकोभी यहां से बाहर जाने की अनुमति नहीं है।"
हेनीशने मजाक में कहा; "हाँ भाई मुझे पता है, मैं रात को 10:00 बजे से पहले यहां वापस लोटता हूँ, अभी मुझे यहां से जाने दे सोफिया बाहर मेरा इंतजार कर रही होगी।" - यह कहते हुए, हेनीश वहां से भाग गया और तय जगह पर सोफिया का इंतजार करने लगा।
कुछ देर बाद, सोफिया भी पहुंची। दोनों चर्च गए और अपनी शादीकी स्वर्ण जयंती पर प्रार्थना की, और फिर वे उसी समुद्र तट पर गए जहां वे पहली बार मिले थे। एक दूसरे का हाथ पकड़कर और पुरानी यादों को ताजा करते हुए, हेनिश ने पूछा, "याद है जब हम पहली बार यहां मिले थे और अपने प्यारका इजहार किया था?"
सोफ़ियाने भी थोड़ा शर्माते हुए हाँ में सिर हिलाया और फिर बोली; "हाँ, मुझे याद है कि हम यहाँ मिले थे और तुम अचानक पीछे से मेरे पास आए और मेरी आँखों पर अपने हाथ रखकर मुझे चौंका दिया था।"
"फिर मैं तुम्हारे पास आया और मेरे घुटनों पर, गुलाब का फूल और हाथ में एक अंगूठी लेकर बैठ गया और पूछा कि क्या तुम मुझसे शादी करोगी?"
सोफियाने कहा; "हाँ! मैंने कहा, हाँ और तुमने मुझे तुरंत उठा लिया। चलो आज उन्हीं पलों को याद करते हैं।"
हेनीसने उत्तर दिया; "क्या तुम पागल हो? क्या अब यह उम्र है कि मैं तुम्हें फिर से उठा लूँ? अगर कोई हड्डी टूट गई तो इस उम्र में फिर से ढीकभी नहीं होगी।" - यह कहते हुए, वे दोनों जोर से हँस पडे।
फिर वहाँ से उठे और समुद्रकी गीली रेत पर चलने लगे और धरती की बाँहोंमें समाते हुए सूरजकी लालिमा और उनके प्यार का प्रकाश जैसे आपस में मिल गए हो उस तरह दोनों एक दूसरे में घुल मिल गए थे।
दोनोंने एक दूसरे के साथ काफी वक्त बिताने के बाद, उन्होंने रातमें एक साथ कैंडल लाइट डिनर किया और फिर सोफिया बोली; "चलो अब वापस चलते हैं। लोग हमारा इंतजार कर रहे होंगे।"
हेनीशने सोफिया का हाथ पकड़ते हुए कहा; "नहीं, मैं आज वृद्धाश्रम नहीं जाना चाहता। मैंने जीवन भर खून पसीना बहाकर बच्चों के लिए बहुत कुछ कमाया और उन्हें अपने पैरों पर चलना सिखाया, शिक्षित किया और उनका पालन-पोषण किया। जब हमारा जीनेका वक्त आया तो उन्हीं बच्चोंने हमें वृद्धाश्रममें धकेल दिया। मैं उन चार दीवारों के बीच नहीं जाना चाहता वहां मेरा दम घुटता है। आज हमें इस समुद्र तट पर खुले आसमान के नीचे एक दूसरे के साथमें सोते हुए आकाश के सितारों को गिनना है और पचास साल पहले किए गए सभी वादो को पूरा करना है।" हाथ पकड़कर, वे किनारे की ओर चले और अंधेरे में कहीं रिक्त हो गए।
✍ © भारत रबारी
(मांगरोल, जिला जूनागढ़)