30 Shades of Bela - 16 in Hindi Moral Stories by Jayanti Ranganathan books and stories PDF | 30 शेड्स ऑफ बेला - 16

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30 शेड्स ऑफ बेला - 16

30 शेड्स ऑफ बेला

(30 दिन, तीस लेखक और एक उपन्यास)

Day 16 by Harish Pathak हरीश पाठक

ठहरी हुई शाम

बेला के कदम आगे बढ़ने से इंकार कर रहे थे।उसकी सांस फूल गयी थी और हाथ की मुट्ठियां तन गयी थीं। एक क्षण लगा वह आगे बढे और इन्द्रपाल को तब तक मारती रहे जब तक वह लहूलुहान हो जमीन पर गिरकर छटपटाने न लगे।तब भीड़ जुटेगी, लोग पूछेंगे क्या हुआ और वह चीख-चीख कर इन्द्रपाल को बेनकाब कर देगी।पुलिस आएगी, उससे तहकीकात करेगी और चिल्ला-चिल्ला कर बेला इन्द्रपाल की असलियत सबको बता देगी।

...पर पापा को यह क्या हुआ। इस अपराधी के साथ वह कितने आराम से बैठे हैं। उनको जब पता चलेगा की इसी शातिर के कारण उनकी बेटी बनारस के अंधेरे बन्द कमरों में भटकने को मजबूर हुई, छोटू यदि नही होता तो पता नही आज वह कहां होती।यह सोच कर ही वह कांप गयी। उसने मन ही मन दोहराया, वह यह सच पापा को जरूर बताएगी।

पर डॉ कोठारी ने उसे जो बताया उसने कई दिनों से हताशा में डूबी बेला को एक झटके में उभार दिया।

डॉ. पंखुरी ने ही उसे सलाह दी थी की एक बार डॉ. कोठारी से रिया के सारे पेपर ले कर मिल लो। वे पहले नानावटी हॉस्पिटल में थे।बड़े कार्डियक सर्जन है। इन दिनों सांताक्रुज वेस्ट में रेन वो डबिंग थिएटर वाली बिल्डिंग के तीसरे माले पर बैठते हैं।

डॉ कोठारी से मिलकर बहुत हल्की हो गयी बेला।सारे पेपर देख कर डॉ कोठारी ने आराम से कहा आपकी बेटी जल्दी ही ठीक हो जायेगी। उसे सर्जरी की कोई जरूरत नही है। वह दवाओं से ठीक होगी। उसके ईको कार्डिया ग्राम से पता चल रहा है कि उसे एट्रियल सेप्टिक डिफेक्ट (a s d) बीमारी है। यह जन्मजात होती है पर उम्र के बढ़ने के साथ ही यह ठीक हो जाती है। इसमें अक्सर सर्दी जुकाम होना,शरीर का नीला पड़ जाना,सांस फूलना जैसे लक्षण होते है पर रिया को तो ऐसा कुछ नही हुआ। डोंट वरी, उसे दवाएं ही ठीक करेगीं। उसे घर ले आइये । सब ठीक होगा।

डॉ कोठारी के एक-एक शब्द ने उसके भीतर ढेर सी ताकत भर दी। दुख,हताशा,संशय और पल पल नजदीक आती मौत का ख़ौफ न तो उसे जीने दे रहा था न उसे मुक्ति दे रहा था। डॉ कोठारी ने उसे एक झटके में हताशा के अँधेरे से उभार दिया। उसके आंसू निकल आये और वह कोठारी के पैरों में झुक गयी।

फिर उसके कानों ने सुना आपकी बेटी को कुछ नही हुआ।वह जल्दी ठीक होगी। वह हवाओं पर तैरती हुई सांताक्रुज से लीलावती पहुंची और सामना इंद्रपाल से हो गया। जैसे उसका सारा उत्साह किसी ने सोख लिया हो। नहीं, वह इन्द्रपाल को हर हाल में बेनकाब करेगी।अंदर से कोई जोर से चीखा।

--

यह एक नई सुबह थी। कल रात बेला मुंबई से बनारस आ गई। उसे बस कुछ वक्त अपने साथ बिताना था। रिया को समीर और आशा मौसी के हवाले कर वह शाम की फ्लाइट से यहां पहुंची। इस शहर से ना जाने क्यों वह बेहद जुड़ाव महसूस करती है। यहां आ कर अपने आपको ठीक से खंगाल पाती है। समीर से पूरी तरह से न जुड़ पाना, रिया की बीमारी, अपनी मां को ले कर संशय और रह-रह कर कानों में बजता कृष का लिखा वह पत्र, डियर बेला, आई हैव टू गो टू एयरपोर्ट।माई वाइफ इज लैंडिंग टुडे। फिर उसका यह बताना कि पद्मा उसकी पत्नी है और यह बात उसके पापा और पति दोनों को पता थी।

क्या करे बेला? हताशा के उस घटाटोप में बनारस के घाट, उनका एकांत और इस शहर की हवाओं में घुला अपनापन उसे बार-बार यहां खींच लाता है।

अचानक उसे दादी की याद आयी।बनारस के किस्से वे अक्सर सुनातीं। वे कहतीं-- घाटों से भरा है बनारस। हरिश्चन्द घाट, मान मंदिर घाट जिसकी छत पर जंतर मंतर बना है सबको लुभाता है। सिंधिया घाट, दरभंगा घाट, तुलसी घाट, केदार घाट। केदार घाट पर ही काशी नरेश के परिवार के लोग जाते हैं।

दादी राम मंदिर घाट का बहुत जिक्र करती और कहतीं घाट के बगल की गली में राम भंडार है मिठाइयों की बडी दुकान ।आजादी के दिनों में तिरंगा बर्फी इसीने बनायी थी। नेहरू जी और इंदिरा गांधी अक्सर यहां आते थे।

--

बेला मणिकर्णिका घाट पर बैठी थी।अतीत की कटी-छटी यादें रह-रह कर उसका पीछा कर रही थीं।यह अतीत टुकड़ा-टुकड़ा क्यों उभरता है? सिलसिलेवार सामने क्यों नही आता । वह बुदबुदाई।

अचानक उसे लगा घाट के ठहरे हुए जल में एक चमकदार सफेद दीवार उभर आयी है। इस दीवार पर कभी पान खाती बेला आती है तो कभी अहमद भाई बिरयानी की दुकान उभरती है। कभी रोहन तो कभी नाईट मेनेजर रामलखन पांडेय, कभी आशीष तो कभी श्मशान घाट के बच्चों के लिया n g o चलानेवाले कौशिक जी, कभी उसकी सहेली समीना, तो कभी इन्द्रपाल, कभी हरे रंग की बाहुलतावाली मां की कोई पेंटिंग तो कभी बेबस पापा। कभी व्योम बाबा तो कभी रागिनी।

सब धीरे-धीरे बेला के सामने उभरता और डूब जाता है वह दसों उंगलियों से उस अतीत को छूना चाहती है, पकड़ना चाहती है, अपने पास कैद करना चाहती है पर यह अतीत रेत की मानिंद पल भर में बिखर जाता है।

तब क्या करे बेला?

मौसी से बात करे बेला। पर उसके कानों पर तो दादी आ बैठीं। वे मानों कह रही थीं--नियति और आशा चचेरी बहनें थीं।नियति पुष्पेंद्र से चार साल छोटी और आशा दस साल।नियति शांत और आशा मस्ती में डूबी।मैंने पुष्पेंद्र के लिए नियति को चुना।पर कुदरत ने नियति का कुछ और तय किया था।वह मां नहीं बन सकती थी।

बेला ने आगे सोचना बंद कर दिया।मौसी का अतीत भी उसके सामने थिरकने लगा।पर वह उसे दोहराना नही चाहती थी।

पश्चिम में सूरज पछाड़ खा कर गिर पड़ा था। उसकी पस्त किरणें अपनी बेअसर रौशनी गंगा के ठहरे हुए जल में फेंक रही थी।

बेला ने आसपास नजर डाली। घाट की सीढ़ियां सन्नाटे की गिरफ्त में थी। वह पीछे के दरवाजे के ठीक बगल में बैठी थी। सामने के दरवाजे पर एक बड़े बाबा दिनभर की इकठ्ठी की रोटियों की तह खोल रहे थे।

बेला एकदम से चौंक गयी । पद्मा। इस उतरती शाम, इस भीषण सन्नाटे में तेज-तेज कदमों से उसकी और बढ़ती यह लड़की पद्मा नहीं तो कौन है। वही काया। वही चाल-ढाल। वही बॉब कट काले बाल। पद्मा ही तो है जो तेज तेज कदमों से उसकी और बढ़ी आ रही है।

घाट सन्नाटे में डूबा था।सिर्फ और सिर्फ सन्नाटा।

नहीं ।बिलकुल नहीं।उसे पद्मा से नहीं मिलना है। इस वक्त तो बिलकुल भी नहीं। किसी भी कीमत पर। क्यों मिले वह पद्मा से।क्या करेगी वह मिलकर। एक मजबूत औरत उसके भीतर से दहाड़ी है। वह पद्मा से हरगिज नहीं मिलेगी। एक झटके में बेला उठी और पिछले दरवाजे से बाहर आ गयी।

घाट के बगल से एक पतली गली थी।गली में लाल मुरम बिछा था। मुरम के दोनों और सफेद चूना।

बेला कुछ पल ठिठकी। कपूर, लोबान और अगरबत्तियों की महक के बीच हवा में तेज-तेज आवाज में बज रहा था-

गजानन्द महाराज पधारो

कीर्तन की तैयारी है

आओ,आओ

बेगा आओ

श्याम दरस को भारी है।

सधे कदमों से बेला उस गली में उतर गयी।

आवाज धीरे-धीरे तेज होने लगी।

गजानन्द महाराज पधारो

कीर्तन की तैयारी है।