राम रचि राखा
(4)
सवेरे जब मुन्नर द्वार पर नहीं दिखे तो पहले माई ने सोचा कि दिशा-फराकत के लिए गए होंगे। परन्तु जब सूरज ऊपर चढ़ने लगा फिर भी मुन्नर लौट कर नहीं आये तो माई को चिंता होने लगी। वे मैदान की तरफ से आने वाले लोगों से पूछने लगीं कि किसी ने मुन्नर को देखा है। किन्तु सभी ने अनभिज्ञता प्रकट की। अब माई का मन डूबने लगा। मन में शंका- कुशंका का ज्वार उठने लगा- कहीं घर छोड़कर चले तो नहीं गया? लेकिन जायेगा कहाँ? कहीं कुछ कर तो नहीं लिया? माई का मुँह कलेजे को आ गया। नहीं-नहीं ऐसा नहीं हो सकता…स्वयं को सांत्वना दीं।
दस बजने को आ गए थे लेकिन मुन्नर का कहीं कोई पता न चल सका। अब माई की चिंता ने जोर पकड़ ली। उन्होंने आस पास सबको बता दिया कि मुन्नर सुबह से ही गायब हैं। मुन्नर की जोर शोर से खोज शुरू हो गयी। पल भर में पूरे गाँव में बात फैल गयी- मुन्नर लापता हैं।
गाँव का हर कोना ढूँढ़ा जाने लगा, जहाँ भी आत्महत्या की संभावना हो सकती थी। सारे कुएँ तलाशे जाने लगे। बगीचों में ढूँढा जाने लगा कि कहीं फाँसी न लगा लिए हों या धतूरा खा कर कहीं पड़ गए हों।
माई ओसर में बैठी रो रही थीं। पड़ोस की औरतें ढ़ाँढ़स बँधा रही थीं, “अरे जायेंगे कहाँ, कहीं किसी यार-दोस्त के यहाँ चले गए होंगे पड़ोस के गाँव में। या फिर बहन के यहाँ चले गए होंगे।“ कुछ पुरुष भी कुएँ के चबूतरे पर बैठे हुए थे। इस बीच मुन्नी के हाथ रामायण में रखी चिट्ठी लग गयी।
"चच्चा की चिट्ठी…" मुन्नी भागती हुयी मँड़ई से बाहर निकली ओर माई के पास ओसार में आ गयी। कुएँ पर बैठे लोग भी ओसार में आ गए ।
लल्लन ने चिट्टी मुन्नी के हाथ से लेकर सस्वर पढना शुरू किया --
"भैया,
जब तक आपको मेरा पत्र मिलेगा, मैं इस दुनिया से दूर चला जा चुका होऊँगा।
मेरा होना हमेशा आप सबके लिए दुःख का कारण ही रहा। मुझमें अब जीने की इच्छा ख़त्म हो चुकी है। नहीं चाहता कि मेरे कारण सब लोग और अधिक मुसीबत में आयें। मैं जा रहा हूँ। कल सुबह जाने वाली गाड़ी के साथ ही मेरी जीवन लीला समाप्त हो जायेगी।
माई,
शोक मत करना। समझ लेना तुम्हारा एक ही बेटा था।
जयराम "
माई को चक्कर आ गया। वहीं बेहोश होकर धरती पर लुढ़क गयीं। लोग दौड़कर पानी ले आये और उनके मुँह पर पानी के छींटे मारने लगे और हाथ के पंखे से हवा करने लगे। थोड़ी देर में होश आया तो छाती पीट-पीट कर रोने लगीं। भौजी को भी कोसने लगीं कि उनकी कल की बातों के कारण ही ऐसा हुआ।
तब तक भैया भी आ गए। गाँव में घुसते ही उन्हें खबर मिल गयी थी कि मुन्नर लापता हैं। घर आये तो देखा मातम मचा हुआ है। पत्र पढ़ा और साईकिल उठाकर स्टेशन की ओर भागे, साथ में दो तीन और लोग भी हो लिए अपनी-अपनी साईकिलों से।
स्टेशन से एक-दो किलोमीटर आगे पीछे की सारी पटरी छान मारी, किन्तु मुन्नर की लाश कहीं न मिली। थक हार कर तीसरे पहर तक सारे लोग घर वापस आ गए। दूसरे दिन भैया ने जाकर पुलिस स्टेशन में मुन्नर के गुमसुदी की रिपोर्ट लिखा दी। माई को इतनी सांत्वना देने में सफल रहे कि मुन्नर जिन्दा हैं और कहीं चले गए हैं। कभी न कभी तो लौट ही आयेंगे।
ओसार में चारपाई पर लेटे लेटे भैया शून्य में घूर रहे थे- शायद मेरे गुस्से के डर से ही मुन्नर गया होगा। जैसा भी था, जरुरत पड़ने पर मेरे साथ वही तो खड़ा होता। अपना खून था। पता नहीं कहाँ चला गया...जिन्दा भी है या नहीं। सारा गेहूँ भी जल गया...खाने पीने का इंतजाम कैसे होगा..." सोचते सोचते भैया कि आँखों में आँसू छलछला गए।
क्रमश..