"हिंदी" भाषा की एहमियत सिर्फ़ 14 सितंबर के रूप में ही रह गया है?मैं नहीं लोगों की अंग्रेजी सीखने की होड़ बयां कर रहा है!
इसमें संसय नहीं कि हिंदी के साया में रह अंग्रेजी से माया लगाना लोगों को ज़्यादा भाने लगा है!एक दिन हिन्दी के नाम बाक़ी 364 दीन अंग्रेज़ी पर जान छिड़क रहे है!भारत के शान-ए-हिन्दी में अंग्रेज़ी नामा गिद्ध नजर गड़ाएं है!लेक़िन,अंग्रेज़ी का अज़गर जो भारत में फ़ैलने का दुस्साहस कर रहा उसकी काट की बाट मोदी सरकार ने 34 साल बाद राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 लाकर जोह ली है।जिसमें पांचवीं कक्षा तक मातृभाषा में पढ़ाई करना आवश्यक नहीं अनिवार्य कर दिया गया है!यह तो सरकार का फैसला है जोकि सराहनीय है!लेक़िन,हम यह कब समझेंगे की हिंदी भाषा ही हमें हमारे भारतीय संस्कृति,सभ्यता और संस्कारों से ओत-प्रोत करती है और हमे विश्व पटल पर भी विशेष बनाती है!हम भारतीय दुनिया भर में अलग छाप तभी छोड़ेंगे जब हिंदी हिन्दू और हिंदुस्तान पर तटस्थ विश्वास रखेंगे!गर आप चारों ओर अपनी आँखें दौड़ाएगे तो यही पाएंगे कि दुनिया का हर देश अपने मातृभाषा के बूते ही सहिंसा बना है लेक़िन कोफ़्त की भारत के लोग अपने मातृभाषा को मुँह चिढ़ाने में अत्यधिक विश्वास रखते है!
क्या यह दैनीय नही लगता की दशकों तक भारत पर क़ाबिज़ रहे अंग्रेज शासको को तो हमारे स्वतंत्रता सेनानियों और आंदोलनकारियों ने मार-मारकर भगा दिया लेक़िन अंग्रेजी सरलता से स्वीकार कर लिया गया!इसे अतिश्योक्ति नहीं तो क्या कहें?दुनिया अपने मातृभाषा को एहमियत देती है लेक़िन,भारत को ऐंतराज़ है!सवाल आख़िर क्यूँ?
अंग्रेजी भाषा का भारत से कोई लेना-देना नहीं है फ़िर भी भारत में अंग्रेजी का अतिक्रमण इस हद तक बढ़ता जा रहा है की भारत के हर माता पिता अपने बच्चों का दाखिला अंग्रेजी स्कूलों में कराने के पक्षधर है!आज जो हिंदी दिवस मना रहे वह भी इस मुख्यधारा के हिस्सा है !
महात्मा गाँधी ने लिखा है कि," पृथ्वी पर हिंदुस्तान एक ऐसा देश है जहाँ माँ-बाप अपने बच्चों को मातृभाषा के बजाय अंग्रेज़ी में पढ़ाना पसंद करेंगे"।सत्य भी साबित होता नजर आ रहा!
हमारी मातृभाषा हिन्दी है लेक़िन अंग्रेज़ी अवैध तरीक़े से हमारे देश पर कब्ज़ा कर रहा है!दुःखद ये की ऐसा होता देखकर भी हम वीरोध नहीं कर रहे।
क्या यह अफ़सोस की बात नहीं की "हिंदी" को तवज्जों पाने के लिए जद्दोजहद करना पड़ रहा है!
देश के न्यायपालिका में सुनवाई अंग्रेज़ी में होता है और न्यायधीश फैसला भी अंग्रेज़ी में ही सुनाता है!आखिर इसमें कब होगा बदलाव?
ज़रा सोचिए...अगर आपकों अपने ही माकान से निकाल कोई ग़ैर कब्ज़ा कर लेगा तो आप को कैसा लगेगा?आपकों समझाने के लिए यह सरल उदाहरण हमनें दिया है क्योंकि अंग्रेज़ी हमारे मातृभाषा हिंदी के साथ यही करने का कुटिल चाल चल रहा है और इसके वाहक भी हमारे ही देश के लोग है!जो हिंदी से ज्यादा अंग्रेजी को वरीयता दे रहे!
हम आज हिंदी दिवस तो जोर-शोर से मना रहे है लेक़िन कल अंग्रेज़ी बोलने-पढ़ने में लिप्त हो जाएंगे औऱ फ़िर सीधे अगले वर्ष 14 सितंबर को हिंदी दिवस मनाएंगे!
हिंद से हिंदुस्तान हैं हिंदुस्तान से हम हैं
हिंदीं से हमे बहुत सीखने को मिलता हैं
अच्छे विचार अच्छे ज्ञान सीखने को मिलते है
सारे जहाँ से अच्छा हिंदुस्तान हमारा।